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टिकैत और चढूनी किसानों के कंधे पर बंदूक रख चमका रहे अपनी राजनीति, किसान नेता का बड़ा बयान

किसान आंदोलन का प्रतिनिधित्व कर रहे किसान नेता अब राजनीति की बातें करने लगे हैं, ऐसे में अब कई सवाल उठ रहे हैं. भारतीय किसान यूनियन, हरियाणा के अध्यक्ष गुणी प्रकाश ने तो साफ तौर पर गुरनाम सिंह चढूनी और राकेश टिकैत के लिए कहा है कि ये लोग किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर खुद की राजनीति चमकाना चाहते हैं.

guni prakash on farmer protest politics
farmer protest politics
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Published : Jul 13, 2021, 11:05 PM IST

चंडीगढ़: तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसान नेताओं का आंदोलन अभी भी जारी है. इस सबके बीच किसानों के नेता अब धीरे-धीरे राजनीति की बातें करने लगे हैं. किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी हो या फिर राकेश टिकैत, सभी इशारों-इशारों में आने वाले समय में विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव में अपनी ताकत दिखाने की चाह रख रहे हैं. ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि क्या ये आंदोलन अब इन नेताओं के लिए किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर राजनीति के मैदान तक जाने की चाह को पूरा करने का रास्ता बन गया है.

इसी मुद्दे पर हमने बात की भारतीय किसान यूनियन, हरियाणा के अध्यक्ष गुणी प्रकाश से. इस सवाल पर कि क्या ये आंदोलन अब धीरे-धीरे अपना रुख बदल रहा है और किसानों से ज्यादा ये आंदोलन राजनीति की ओर मुड़ता दिखाई दे रहा है, इस पर गुणी प्रकाश ने कहा कि ये तीन कृषि कानून भाजपा नहीं लाई बल्कि ये 1993 में ही तय हो गया था. इन्हीं नेताओं ने उस समय कहा था कि बाजार की लूट से बचने के लिए किसानों के हक एक कानून होना चाहिए. ये जो खुद को किसान यूनियन के नेता कहते हैं वो सब राजनीतिक नेता हैं.

सुनिए किसान नेता का बड़ा बयान

पंजाब के जो किसान नेता हैं वह सभी कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े रहे. यहां तक कि गुरनाम सिंह चढूनी ने खुद चुनाव लड़ा है और बुरी तरह हारे थे. यहां तक की गुरनाम चढूनी ने अपनी पत्नी को भी चुनाव मैदान में उतारा था. राकेश टिकैत ने भी विधानसभा का चुनाव लड़ा था और हार गए थे. इसके साथ ही योगेंद्र यादव भी हारे हुए खिलाड़ी हैं यानी ये सभी नेता कहीं न कहीं इस आंदोलन के नाम पर और किसानों के कंधो पर बंदूक रखकर लोकसभा और विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाना चाह रहे हैं.

ये भी पढ़ें- उग्र हुए किसान: हरियाणा में डिप्टी स्पीकर की गाड़ी के तोड़े शीशे, पुलिस पर भी किया पथराव

उन्होंने कहा कि ये नेता तीन कृषि कानूनों के नाम पर भ्रामक प्रचार करके अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश कर रहे हैं. आज के दौर में राकेश टिकैत और गुरनाम चढूनी संसद में जाने की राह देख रहे हैं. उन्होंने कहा कि ये सभी मिलकर अलगाववाद को जन्म दे रहे हैं. वो चाहे लाल किले पर किया गया अपमान हो या फिर गैंगरेप जैसे मामले का सामने आना हो या एक किसान को जलाने की बात हो, ये सभी अलगाववाद की निशानियां हैं.

अब ये नेता मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में हंगामा कर हैं, डिप्टी स्पीकर के कार्यक्रम में हंगामा कर रहे हैं. ये बातें बताती है कि यह आंदोलन अपनी दिशा भटक चुका है. उन्होंने कहा कि उनका संगठन मुख्यमंत्री का कार्यक्रम करवाएगा और अगर गुरनाम चढूनी और राकेश टिकैत में दम है तो वह खुद उस कार्यक्रम में आए. अपने दंगाइयों को ना भेजकर वह खुद वहां पहुंचे तो हम उनको मुंहतोड़ जवाब देंगे. हरियाणा का किसान उनको इसका जवाब देगा.

उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में सभी को अपनी बात कहने का अधिकार है, लेकिन जिस तरीके से ये लोग हरकतें कर रहे हैं उसको तालिबान की संज्ञा दी जा सकती है. वहीं उन्होंने खोरी गांव में चढूनी के जाने पर कहा कि यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश हैं. इसमें राजनीति से कुछ भी लेना देना नहीं. ये वो लोग हैं जो सुप्रीम कोर्ट की बात को भी नहीं मानते और ये लोग हर चीज का विरोध करना जानते हैं. दंगा फसाद करवाने की बात करते हैं. ये सब राजनीति में जाने के लिए कर रहे हैं. ये किसानों की आड़ में इस तरीके की राजनीति कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें- इनेलो की 'महा रणनीति' तैयार, ओपी चौटाला 20 जुलाई से ऐसे फूंकेंगे पार्टी में नई जान

उन्होंने कहा कि डंडे और लाठियों से कानून नहीं बनते. कानून विधानसभा और लोकसभा में बनेंगे. जिस पर यह लोग विश्वास नहीं करते और जब यह लोग खुद चुनाव मैदान में उतरे थे तो इनकी बुरी तरह हार हुई थी. आज यह खुद को किसानों का मसीहा कहते हैं और उनका प्रतिनिधि कहते हैंं. उन्होंने कहा कि सरकार को इनके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करनी चाहिए. सरकार को किसानों से बात करनी चाहिए. इन लोगों से बात बिल्कुल नहीं करनी चाहिए.

उन्होंने कहा कि ये सभी अलगाववादी हैं, हंगामा करने में विश्वास रखते हैं. कृषि कानून में कुछ भी काला नहीं है, अगर कानूनों में कोई कमी है तो उस पर बहस होनी चाहिए. किसान अगर विरोध में है तो बातचीत के माध्यम से ही हल निकल सकता है, लेकिन ये लोग किसी से भी कोई बात नहीं करना चाहते. उन्होंने कहा कि गुरनाम चढूनी और राकेश टिकैत को खालिस्तान मुर्दाबाद और भिंडरावाला मुर्दाबाद के नारे लगाने चाहिए, लेकिन वह ऐसा नहीं करेंगे, वे सिख धर्म का इस्तेमाल करके इस आंदोलन को गलत राह पर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें- कभी सीएम का मंच तोड़ा, कभी डिप्टी स्पीकर पर हमला, सरकार के इस 'दर्द' की दवा क्या है?

चंडीगढ़: तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसान नेताओं का आंदोलन अभी भी जारी है. इस सबके बीच किसानों के नेता अब धीरे-धीरे राजनीति की बातें करने लगे हैं. किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी हो या फिर राकेश टिकैत, सभी इशारों-इशारों में आने वाले समय में विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव में अपनी ताकत दिखाने की चाह रख रहे हैं. ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि क्या ये आंदोलन अब इन नेताओं के लिए किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर राजनीति के मैदान तक जाने की चाह को पूरा करने का रास्ता बन गया है.

इसी मुद्दे पर हमने बात की भारतीय किसान यूनियन, हरियाणा के अध्यक्ष गुणी प्रकाश से. इस सवाल पर कि क्या ये आंदोलन अब धीरे-धीरे अपना रुख बदल रहा है और किसानों से ज्यादा ये आंदोलन राजनीति की ओर मुड़ता दिखाई दे रहा है, इस पर गुणी प्रकाश ने कहा कि ये तीन कृषि कानून भाजपा नहीं लाई बल्कि ये 1993 में ही तय हो गया था. इन्हीं नेताओं ने उस समय कहा था कि बाजार की लूट से बचने के लिए किसानों के हक एक कानून होना चाहिए. ये जो खुद को किसान यूनियन के नेता कहते हैं वो सब राजनीतिक नेता हैं.

सुनिए किसान नेता का बड़ा बयान

पंजाब के जो किसान नेता हैं वह सभी कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े रहे. यहां तक कि गुरनाम सिंह चढूनी ने खुद चुनाव लड़ा है और बुरी तरह हारे थे. यहां तक की गुरनाम चढूनी ने अपनी पत्नी को भी चुनाव मैदान में उतारा था. राकेश टिकैत ने भी विधानसभा का चुनाव लड़ा था और हार गए थे. इसके साथ ही योगेंद्र यादव भी हारे हुए खिलाड़ी हैं यानी ये सभी नेता कहीं न कहीं इस आंदोलन के नाम पर और किसानों के कंधो पर बंदूक रखकर लोकसभा और विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाना चाह रहे हैं.

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उन्होंने कहा कि ये नेता तीन कृषि कानूनों के नाम पर भ्रामक प्रचार करके अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश कर रहे हैं. आज के दौर में राकेश टिकैत और गुरनाम चढूनी संसद में जाने की राह देख रहे हैं. उन्होंने कहा कि ये सभी मिलकर अलगाववाद को जन्म दे रहे हैं. वो चाहे लाल किले पर किया गया अपमान हो या फिर गैंगरेप जैसे मामले का सामने आना हो या एक किसान को जलाने की बात हो, ये सभी अलगाववाद की निशानियां हैं.

अब ये नेता मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में हंगामा कर हैं, डिप्टी स्पीकर के कार्यक्रम में हंगामा कर रहे हैं. ये बातें बताती है कि यह आंदोलन अपनी दिशा भटक चुका है. उन्होंने कहा कि उनका संगठन मुख्यमंत्री का कार्यक्रम करवाएगा और अगर गुरनाम चढूनी और राकेश टिकैत में दम है तो वह खुद उस कार्यक्रम में आए. अपने दंगाइयों को ना भेजकर वह खुद वहां पहुंचे तो हम उनको मुंहतोड़ जवाब देंगे. हरियाणा का किसान उनको इसका जवाब देगा.

उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में सभी को अपनी बात कहने का अधिकार है, लेकिन जिस तरीके से ये लोग हरकतें कर रहे हैं उसको तालिबान की संज्ञा दी जा सकती है. वहीं उन्होंने खोरी गांव में चढूनी के जाने पर कहा कि यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश हैं. इसमें राजनीति से कुछ भी लेना देना नहीं. ये वो लोग हैं जो सुप्रीम कोर्ट की बात को भी नहीं मानते और ये लोग हर चीज का विरोध करना जानते हैं. दंगा फसाद करवाने की बात करते हैं. ये सब राजनीति में जाने के लिए कर रहे हैं. ये किसानों की आड़ में इस तरीके की राजनीति कर रहे हैं.

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उन्होंने कहा कि डंडे और लाठियों से कानून नहीं बनते. कानून विधानसभा और लोकसभा में बनेंगे. जिस पर यह लोग विश्वास नहीं करते और जब यह लोग खुद चुनाव मैदान में उतरे थे तो इनकी बुरी तरह हार हुई थी. आज यह खुद को किसानों का मसीहा कहते हैं और उनका प्रतिनिधि कहते हैंं. उन्होंने कहा कि सरकार को इनके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करनी चाहिए. सरकार को किसानों से बात करनी चाहिए. इन लोगों से बात बिल्कुल नहीं करनी चाहिए.

उन्होंने कहा कि ये सभी अलगाववादी हैं, हंगामा करने में विश्वास रखते हैं. कृषि कानून में कुछ भी काला नहीं है, अगर कानूनों में कोई कमी है तो उस पर बहस होनी चाहिए. किसान अगर विरोध में है तो बातचीत के माध्यम से ही हल निकल सकता है, लेकिन ये लोग किसी से भी कोई बात नहीं करना चाहते. उन्होंने कहा कि गुरनाम चढूनी और राकेश टिकैत को खालिस्तान मुर्दाबाद और भिंडरावाला मुर्दाबाद के नारे लगाने चाहिए, लेकिन वह ऐसा नहीं करेंगे, वे सिख धर्म का इस्तेमाल करके इस आंदोलन को गलत राह पर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं.

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