चंडीगढ़: लंबे समय से लड़कियों की शादी की सही उम्र तय करने को लेकर बहस छिड़ी हुई है. कोई कहता है कि भारत में लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल से घटा कर 15 साल कर देनी चाहिए, तो कोई कहता है कि लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ा कर 21 साल कर देना चाहिए है. इन दोनों विचारों के साथ लोगों का तर्क भी अलग-अलग है.
खुद को विकासवादी सोच वाला कहने वाले लोग लड़कियों को और आजादी देने की बात कह कर उम्र बढ़ाने की बात करते हैं, तो दूसरी तरफ समाजवादी सोच का दावा करने वाले लोग लड़कियों को अभिभावकों के लिए एक अहम जिम्मेदारी मानते हैं. जिस वजह से वो सुरक्षात्मक दृष्टि से लड़कियों की 15 साल में ही हाथ पीले कर देने की मांग करते रहे हैं.
लाल किले से पीएम ने दिए बदलाव के संकेत
इस साल 15 अगस्त से ये चर्चा अब और तेज होने लगी है. दरअसल पीएम मोदी ने लाल किले की प्रचीर से लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम आयु में बदलाव के संकेत दिए हैं. ऐसे में ये माना जा रहा है कि अब लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 से बढ़ाकर 21 की जा सकती है.
भारत में है शादी की उम्र को लेकर कानून
आपको बता दें कि भारत में लड़कियों और लड़कों की शादी की उम्र को लेकर बकायदा एक कानून बना हुआ है. जिसमें ये कहा गया है कि शादी के लिए लड़की की उम्र कम से कम 18 साल और लड़के के लिए 21 साल होनी चाहिए. लड़के या लड़की किसी की भी उम्र अगर कम हुई तो उसे बाल विवाह माना जाएगा और इसके कानून में सजा और जुर्माना दोनों का प्रावधान है. ये कानून सभी धर्मों और वर्गों के लिए समान है.
आखिर ये बदलाव जरूरी क्यों है?
अब जब देश में लड़कियों की शादी की उम्र के लिए कानून बना हुआ है तो ये सवाल उठता है कि आखिर क्यों मोदी सरकार इस कानून में लड़कियों की न्यूनतम उम्र बढ़ाना चाहती है? इससे क्या हासिल होने वाला है. इस सवाल के जवाब के लिए ईटीवी भारत हरियाणा की टीम ने लड़कियों के शारीरिक विकास, मानसिक स्वास्थ्य, समाजिक संदर्भों को ध्यान में रखते हुए विशेषज्ञों से बात की और उनसे जाना कि इस नए बदलाव से लड़कियों के जीवन में कितना सुधार संभव है.
डॉक्टर्स ने किया फैसले का स्वागत
नूंह जिले में सरकारी अस्पताल में कार्यरत महिला विशेषज्ञ डॉ. मोनिका यादव सरकार के इस फैसले का समर्थन करती हैं. उनका का कहना है कि कम उम्र में शादी हो जाने से लड़कियां कम उम्र में भी मां बन जाती हैं. जिससे लड़कियों और उनके बच्चों की मृत्यु दर काफी ज्यादा है. अगर लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ जाएगी तो वो शारीरिक तौर पर परिपक्व होंगी.
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'ग्रामीण क्षेत्र पर इस फैसले का पड़ेगा ज्यादा असर'
चंडीगढ़ की जानी मानी गाइनेकोलॉजिस्ट डॉक्टर सोनिका चुघ की चिंता ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाली लड़कियों के लिए ज्यादा है. उनका कहना है कि ग्रामीण इलाकों में लड़कियों की स्थिति ज्यादा खराब है. डॉक्टर चुघ कहती हैं कि ग्रामीण क्षेत्र में अगर लड़की मां बन जाती है तो परिवार का ध्यान बच्चे पर ज्यादा होता है. मां के स्वास्थ्य पर कम लोग ही ध्यान देते हैं. इसी वजह से ग्रामीण क्षेत्र में प्रसव के बाद मातृ मृत्यु दर ज्यादा है.
समाजिक संगठनों ने बताया तर्कहीन
वहीं महिला के लिए समाजिक संस्था से जुड़ी एडवोकेट बलबीर कौर गांधी का कहना है कि सरकार को इस तरह के कानून लाने की जगह कुछ ऐसी योजनाएं लानी चाहिए कि लड़कियों की स्थिति में बेहत बदलाव हो सके. उनका तर्क है कि लड़कियों का शारीरिक विकास 18 साल की उम्र तक हो जाता है और लड़कियों की पढ़ाई पूरी होते होते वो 21 या 22 साल की उम्र से ऊपर हो जाती हैं, तो सरकार को लड़कियों के लिए शिक्षा प्रणाली में सुधार करने की आवश्यकता है.
लड़कों की उम्र हो 18 साल- बलबीर कौर
एडवोकेट बलबीर कौर का मानना है कि आज भी लड़कियों पर कई तरह की बंदिशें हैं जिससे उनकी पढ़ाई पूरी नहीं हो पाती और उन्हें 17 या 18 साल में शादी के बंधन में बांध दिया जाता है. उन्होंने कहा कि अगर सरकार लड़कियों बराबरी के दायरे में लाना चाहती हैं तो लड़कियों की उम्र बढाने की बजाए लड़कों की उम्र 21 की बजाए 18 साल कर देनी चाहिए.
लड़की की शादी की उम्र 18 साल ही बेहतर- संतोष दहिया
वहीं जानी मानी समाज सेविका संतोष दहिया का कहना है कि वैसे तो आज इस दौर में अभिभावक अपने बच्चों की शादी 21 साल से कम उम्र में नहीं करते हैं, लेकिन आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए अपने घर में 18 साल तक बेटी रखना समाजिक और आर्थिक रूप से मुश्किल हो जाता है. ऐसे में शादी की उम्र 18 साल ही बेहतर थी. सरकार अगर इसे बढ़ाकर 21 साल करती है तो ये स्वागत योग्य फैसला नहीं है.
इस मुद्दे पर जितनी बहस होती है तर्क भी उतने ही समाने आते हैं. कई दशकों से इस विषय पर विशेषज्ञ एक मत से सहमत नहीं दिखे हैं. यही वजह से कि डॉक्टर्स स्वास्थ्य और मानसिक दृष्टि से लड़कियों के लिए उम्र बढ़ाने के फैसले का स्वागत करते दिख रहे हैं. वहीं महिलाओं के लिए ही काम करने वाले संगठन इस फैसले को तर्कहीन बता रहे हैं.
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