चंडीगढ़: म्यूकार्माइकोसिस (Mucormycosis) यानी ब्लैक फंगस (Black Fungus) नया खतरा बनकर उभर रहा है. बहुत से कोरोना मरीज इसकी चपेट में आ रहे हैं. मरीजों को दी जाने वाली स्टेरॉइड्स दवाएं, गलत तरीके से लगाई गई ऑक्सीजन और डायबिटीज इसका मुख्य कारण माना गया था.
वहीं अब कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं जिन लोगों को कोरोना नहीं था, ना ही उन्हें स्टेरॉयड दिए गए और ना ही कभी ऑक्सीजन लगाई गई, लेकिन फिर भी वे ब्लैक फंगस के शिकार हो गए. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है. इस बारे में हमने चंडीगढ़ पीजीआई के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के एचओडी प्रोफेसर अरुणालोके चक्रवर्ती से खास बातचीत की.
कौन-कौन आ रहा फंगस की चपेट में
डॉक्टर चक्रवर्ती ने बताया कि लोगों को ऐसा लगता है कि म्यूकार्माइकोसिस की बीमारी कोरोना के बाद अस्तित्व में आई है. ये उन लोगों को अपनी चपेट में ले रही है जो लोग कोरोना पॉजिटिव हो चुके हैं, लेकिन ऐसा नहीं है. म्यूकार्माइकोसिस का कोरोना कोई संबंध नहीं है क्योंकि इस बीमारी के होने के अपने अलग कारण हैं. ये तो साफ हो चुका है कि जो लोग कोरोना संक्रमित थे और जिन्हें ज्यादा स्टेरॉइड्स दिए गए या ऑक्सीजन सही तरीके से नहीं दी गई वे लोग इसकी चपेट में आ रहे हैं.
हालांकि इनके अलावा दूसरे लोग भी इसकी चपेट में आ रहे हैं क्योंकि इसके कई कारण हैं. जैसे अगर कोई मरीज अत्याधिक डायबिटिक है या किसी मरीज को कैंसर है, वह कीमोथेरेपी ले रहा है, या कोई ट्रांसप्लांट का मरीज है. ऐसे मरीजों को भी ब्लैक फंगस अपनी चपेट में ले सकता है.
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इसके अलावा हमारा वातावरण भी इसके लिए जिम्मेदार है. भारत में हवा ज्यादा साफ नहीं होती और हवा के अंदर भी फंगस मौजूद रहता है. हवा के जरिए भी फंगस हमारे शरीर में प्रवेश कर सकता है और हमें संक्रमित कर सकता है. उन्होंने कहा कि म्यूकार्माइकोसिस अलग-अलग किस्म के होते हैं.
- जब ये आंख या नाक में होता है तो इसे कहा जाता है- राइनोसेबल म्यूकार्माइकोसिस
- जो छाती में होता है तो उसे कहा जाता है- पलमोनरी म्यूकार्माइकोसिस
- जब ये आंत की नाली में होता है तो उसे कहा जाता है- गैस्ट्रोइंटेस्टाइन म्यूकार्माइकोसिस
- जब ये हमारी त्वचा में होता है तो उसे कहा जाता है- क्यूटनेस म्यूकार्माइकोसिस
आंखों और नाक में होने वाला फंगस ज्यादातर डायबिटीज की वजह से होता है. जबकि छाती में होने वाला म्यूकार्माइकोसिस हेपटोलॉजी और ट्रांसपोर्ट के मरीजों को होता है. त्वचा में होने वाला म्यूकार्माइकोसिस के मरीजों में देखा जाता है कि किसी का एक्सीडेंट हुआ और उसे शरीर में चोट लगी और उस चोट को ठीक से साफ नहीं किया तो वहां पर फंगस पैदा हो जाता है.
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सफेद फंगस और पीले फंगस के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि इस तरह की कोई बीमारी नहीं है. सफेद फंगस का सही नाम कैडीडा है, ये मुंह में होता है. जबकि पीले फंगस का सही नाम एस्पेरगिलोसिस होता है. इनमें म्यूकार्माइकोसिस यानी ब्लैक फंगस सबसे ज्यादा खतरनाक होता है.
अलग-अलग फंगस के फैलने के कारण भी अलग
तीनों फंगस के फैलने के कारण अलग-अलग हैं. जैसे सफेद फंगस उन मरीजों में ज्यादा होता है जिन्हें ज्यादा एंटीबायोटिक दी गई हो या जो ज्यादा समय तक आईसीयू में रहे हो. कोरोना के बहुत से मरीज भी आईसीयू में रहे हैं. इसके अलावा अगर आईसीयू में सफाई ना रखी जाए तब भी मरीज सफेद फंगस की चपेट में आ सकता है. दूसरी ओर पीला फंगस उन मरीजों को होता है जिनकी रेस्पिरेट्री ट्रैक में समस्या हो, ये फंगस फेफड़ों पर असर डालता है.
देश में फंगस बीमारी बढ़ने के कई कारण
डॉक्टर चक्रवर्ती ने बताया कि फंगस की बीमारी ना केवल भारत बल्कि दुनिया के लगभग सभी विकासशील देशों में मौजूद है. भारत में संक्रमण नियंत्रित करने की व्यवस्था अच्छी नहीं है. अस्पतालों के भीतर का वातावरण साफ नहीं है. आईसीयू वार्ड में फिल्टर नहीं लगे हैं जो हवा को अच्छी तरह से साफ करते हैं.
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बहुत से अस्पतालों में ये देखा गया है कि जिस इमारत में मरीज भर्ती हैं उसी इमारत के पास कंस्ट्रक्शन का काम भी चल रहा होता है जो बेहद गलत है. ऐसे में इमारत को ढक देना चाहिए ताकि मरीजों तक धूल ना जाए, लेकिन ऐसा नहीं किया जाता. जिससे मरीजों में फंगस का खतरा बढ़ जाता है.
कोरोना से पहले भी मिल रहे थे ब्लैक फंगस के मरीज
उन्होंने बताया कि कोविड से पहले 50 से 60 म्यूकार्माइकोसिस के मरीज पीजीआई आते थे, लेकिन कोविड के बाद इसका आंकड़ा बढ़ा है. अब जितने मरीज पूरे साल में आते थे उतने मरीज 5 से 6 दिनों में ही सामने आ गए हैं.
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