चंडीगढ़: आज यानि 25 सितंबर को पूरा देश ताऊ देवी लाल को उनके जन्मदिवस के मौके पर याद कर रहा है. 25 सितंबर 1914 को ताऊ देवी लाल का जन्म हरियाणा के सिरसा जिले के तेजा खेड़ा गांव में हुआ था, उनके पिता एक संपन्न किसान थे.
कांग्रेस की तरफ से लड़ा पहला चुनाव
चौधरी देवी लाल उन कुछ चुनिंदा राजनीतिज्ञों में से थे जो आजादी के बाद तथा आजादी के पहले दोनों ही समय में भारतीय राजनीति में सक्रिय रहे. देश की आजादी के बाद जब पहली बार चुनाव हुए तब हरियाणा पंजाब राज्य का हिस्सा था और वहां हुए विधानसभा चुनावों में चौधरी देवी लाल पहली बार सन 1952 में ही कांग्रेस की तरफ से विधायक बने और उसके बाद पुनः 1957 तथा 62 में भी पंजाब विधानसभा के सदस्य रहे.
1971 में छोड़ दी कांग्रेस
भारत की आजादी के बाद ही वे किसानों के नेता बन गए और उनके मुद्दों के लगातार उठाते रहे. पंजाब विधानसभा (1962-67) में अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान उन्होंने हिंदी भाषी हरियाणा को पंजाब से अलग राज्य बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इसी बीच कांग्रेस से वैचारिक मतभेद के चलते 1971 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी.
हरियाणा में हुए लोकप्रिय
इमरजेंसी के दौरान उन्हें इंदिरा गांधी का विरोध करने के कारण जेल जाना पड़ा. इसके बाद वे जनता पार्टी में शामिल हो गए और जीतने पर हरियाणा के सीएम बने, लेकिन पार्टी में आंतरिक असंतोष के चलते 1979 में इस्तीफा देकर इन्होंने लोकदल नामक अपनी पार्टी बनाई. इस दौरान वे किसानों व गरीबों की लड़ाई लड़ते रहे और हरियाणा में किसानों के बड़े नेता के तौर पर उभरे. धीरे-2 हरियाणा में उनकी लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि 1987 के चुनाव में देवीलाल की पार्टी को हरियाणा की 90 में से 85 सीटें जीत मिलीं और वह दूसरी बार हरियाणा के सीएम बने.
पीएम की कुर्सी से ज्यादा कीमत थी ताऊ की जुबान की
ताऊ देवी लाल को आज भी ऐसे राजनेता के तौर पर याद किया जाता है जिसने कुर्सी से अधिक अपने सिद्धांतों को महत्व दिया. इसी क्रम में एक किस्सा याद किया जाता है जब उनके संसदीय दल का नेता चुने जाने पर सभी सहमत थे, लेकिन उन्होंने वीपी सिंह को समर्थन देकर संसदीय दल का नेता बनाया.
'मुझे ताऊ ही रहने दो, पीएम वीपी सिंह को बनाएं'
कहा जाता है कि उस समय वह प्रधानमंत्री की कुर्सी के बेहद करीब थे, लेकिन सबको धन्यवाद करने के लिए वह खड़े हुए और बोले कि मैं सबसे बुजुर्ग हूं, मुझे सब ताऊ बुलाते हैं मुझे ताऊ बने रहना ही पसंद है और मैं ये पद विश्वनाथ प्रताप सिंह को सौंपता हूं. जिसके बाद वी.पी. सिंह देश के प्रधानमंत्री बने. ताऊ देवी लाल इस दौरान 19 अक्टूबर 1989 से 21 जून 1991 तक देश के उपप्रधानमंत्री भी रहे.
जब गर्वनर को जड़ दिया था थप्पड़
चौधरी देवी लाल को भारतीय राजनीति का दबंग ताऊ कहा जाता था. लंबे चौड़े कद काठी वाले देवी लाल को दबना उनकी आदत में नहीं था. ताऊ देवी लाल अपने स्वभाव और खरी बोली के लिए भी काफी मशहूर थे, जिसकी वजह से वो हमेशा विवाद से जुड़े रहते थे.
उनका गवर्नर वाला किस्सा आज भी लोगों की जुबान पर रहता है. दरअसल हरियाणा में 1982 में विधानसभा चुनाव हुआ, जिसमें 90 सीटों वाली विधानसभा में 36 सीटें जीतकर कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी. चुनाव जीतने के बाद किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था और ये राज्यपाल पर निर्भर करता था कि वो किस गठबंधन को सरकार बनाने के लिए बुलाते हैं.
उस वक्त हरियाणा में गणपतराव देवजी तपासे राज्यपाल थे. राज्यपाल ने पहले देवी लाल को 22 मई 1982 को सरकार बनाने के लिए बुलाया. इसी बीच भजनलाल कांग्रेस और निर्दलियों को एक करके उसके नेता घोषित कर दिए गए. उनके पास बहुमत के लिए 52 विधायकों का समर्थन था.
इस फैसले के बाद गवर्नर तपासे ने फौरन भजनलाल को बुलाया और मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलावा दी, जिसको लेकर देवी लाल आग बबूला हो गए और वो अपने और बीजेपी विधायकों के साथ राजभवन पहुंचे गए और इस बात को लेकर उनमें और राज्यपाल के बीच जमकर विवाद हुआ. यह विवाद इतना बढ़ गया कि ताऊ देवी लाल ने राज्यपाल को गुस्से में एक थप्पड़ लगा दिया. यह देख हर कोई सन्न रह गया. थप्पड़ की बात सुनते ही राज्यपाल के गार्ड तुरंत वहां पहुंच उन्हें सुरक्षित बाहर निकाल लिया. इस थप्पड़ की गूंज काफी दिनों तक भारतीय राजनीति में सुनाई देती रही. क्योंकि तपासे पुराने नेता थे.
ताऊ को झकझोर गई ये घटना, तो शुरू की थी बुढ़ापा पेंशन
एक बार झज्जर जिले के एक गांव में ताऊ देवी लाल अपने पुराने साथी स्वतंत्रता सेनानी के घर चले गए. उनकी पोती ससुराल में जाने के लिए आशीर्वाद लेने पहुंची. उन्होंने पोती को शगुन देने के लिए बच्चों से रुपये मांगे और कुछ लोगों के लिए चाय बनवाने की बात कही, लेकिन काफी देर तक न तो बच्चों ने रुपये दिए और न ही चाय आई. ये ताऊ देवी लाल देख रहे थे, वे वादा करके गए, जिस दिन कलम में ताकत आएगी तो बुढ़ापा पेंशन लागू करेंगे. सत्ता में आने के बाद उन्होंने वादा पूरा भी किया.
ताऊ देवीलाल का परिवार
चौधरी देवी लाल के पिता का नाम लेख राम था. ताऊ देवीलाल का जन्म तेजाखेड़ा गांव में 25 सितंबर 1914 को हुआ था. उनका विवाह सन 1926 में हरखी देवी साथ हुआ. उनकी कुल 5 संतानें हुई जिनमें चार पुत्र तथा एक पुत्री थी. उनके पुत्रों के नाम है ओमप्रकाश चौटाला, प्रताप चौटाला और रणजीत सिंह तथा जगदीश चौटाला. देवी लाल के बड़े बेटे ओम प्रकाश चौटाला भी हरियाणा के 3 बार मुख्यमंत्री बने.
वर्तमान समय में उनके कई नाती तथा पोते हरियाणा की राजनीति में कई दलों में सक्रिय हैं. उनमें प्रमुख हैं जननायक जनता पार्टी के संयोजक दुष्यंत चौटाला जो कि वर्तमान समय में हरियाणा के उप मुख्यमंत्री हैं और ओम प्रकाश चौटाला के बड़े बेटे अजय चौटाला के सुपुत्र हैं. वहीं रणजीत सिंह हरियाणा सरकार में मंत्री हैं.
देवी लाल के सबसे छोटे पुत्र जगदीश चौटाला के पुत्र आदित्य चौटाला भी अबकी बार भारतीय जनता पार्टी विधानसभा चुनाव लड़े थे परंतु हार गए. भारतीय राजनीति के इस दबंग ताऊ का निधन छह अप्रैल, 2001 को हुआ, उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में यमुना नदी के तट पर चौधरी चरण सिंह की समाधि किसान घाट के पास संघर्ष स्थल पर हुआ था.
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