चंडीगढ़: आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या किसी भी शहर और गांव के लिए बड़ी समस्या होती है. इससे इंसानों को तो खतरा होता ही है बल्कि कुत्तों को भी जान का खतरा होता है. आपसी लड़ाई में कई कुत्ते गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं और कई मामलों में तड़प-तड़प कर मर जाते हैं. बहुत से कुत्ते सड़क दुर्घटनाओं का भी शिकार हो जाते हैं. कई बार कुत्तों को इंसानों द्वारा तो जहर देकर भी मार दिया जाता है, इसलिए कुत्तों की बढ़ती संख्या को नियंत्रित करना ना सिर्फ इंसान हो बल्कि कुत्तों के लिए भी फायदेमंद है.
कुत्तों को हो रही परेशानियों को समझा चंडीगढ़ के 2 युवा दीक्षा और उनहद ने इसके लिए एक अनूठी पहल शुरू कर दी. दीक्षा गुप्ता साइकोलॉजी स्टूडेंट है और अनहद संधू एक स्टार्ट अप फाउंडर है. दीक्षा ने बताया कि वे सुखना लेक के पास आवारा कुत्तों को खाना देने के लिए जाते थे, तब उन्होंने देखा कि अगर कुत्ते को खाना नहीं मिलता तो वे आसपास जंगल के पक्षियों या कुछ छोटे जानवरों को मार देते थे. उनकी आपसी लड़ाइयां भी बढ़ जाती थी, इसलिए हमने कुत्तों की बढ़ती संख्या को रोकने के लिए उनकी नसबंदी करवाने का काम शुरू किया.
उन्होंने कहा कि कुछ कुत्तों की नसबंदी करवाने के बाद हमने देखा कि उनकी जिंदगी में सुधार हुआ है. इससे कुत्तों का तनाव कम हुआ, वे पहले से ज्यादा शांत हो गए. उनकी आपसे लड़ाइयां कम हो गई, उनके स्वास्थ्य में भी सुधार हुआ. तब से उन्होंने ठान लिया कि वो पूरे शहर में इस मुहिम को चलाएंगे. इसके बाद उन्होंने कई और जगह पर कुत्तों की स्टरलाइजेशन का काम शुरू कर दिया. ये काम इसी साल अप्रैल महीने ने शुरू किया था और अभी तक हम करीब 70 कुत्तों को स्टरलाइज कर चुके हैं.
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उन्होंन कहा कि कुछ कुत्ते ऐसे होते हैं जो आसानी से हाथ में नहीं आते ऐसे कुत्तों के लिए हमें पिंजरा लगाना पड़ता है. जब वो खाने के लिए पिंजरे में जाते हैं तो पिंजरा बंद हो जाता है और उन्हें क्लीनिक तक ले जाते हैं. जहां पर उन्हें स्टरलाइट कर दिया जाता है. दीक्षा ने बताया कि हर कुत्ते को स्टेरलाइज करने में करीब 3000 रुपये का खर्च आता है. जिसे वे खुद ही खर्च कर रहे हैं, उन्हें कहीं से कोई सहायता नहीं मिल रही. अब तक वे 70 कुत्तों का स्टेरलाइज कर चुके हैं.
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अनहद संधू के मुताबिक कुत्ता एक ऐसा जानवर होता है जो अपने इलाके के लिए बहुत गंभीर होता है. अगर कोई दूसरा कुत्ता उसके इलाके में आता है तो वह उससे लड़ाई शुरू कर देता है, इसी वजह से वह कई बार इंसानों को भी काट लेता है. ऐसे में उनकी संख्या को कम करना ही एकमात्र रास्ता है. इसके लिए दो तरीके हैं पहला कि लोग आवारा कुत्तों को अडॉप्ट करें, ताकि उन्हें एक घर मिल सके और वे सुरक्षित रहें. मगर आवारा कुत्तों को इतनी बड़ी संख्या में अडॉप्ट करना संभव नहीं है. दूसरा तरीका है उनकी नसबंदी कर दी जाए, ताकि उनकी संख्या अपने आप बढ़नी कम हो जाए.
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कुत्तों में स्टेरलाइजेशन का काम मेल और फीमेल दोनों में किया जाता है. इसके बाद इनके हारमोंस निष्क्रिय हो जाते हैं और यह गुस्सा नहीं होते. साथ ही साथ इससे संख्या को नियंत्रित करने में तो सहायता मिलती ही है. दीक्षा ने बताया कि कुत्तों को स्टेबलाइज करने के लिए सबसे पहले उन्हें पकड़ना शुरू होता है, ताकि उन्हें क्लीनिक तक लेकर जाया जा सके. इसके लिए भी कई तरीके अपनाते हैं जैसे पहले वह कुत्तों को खाना देना शुरू करते हैं, तकी वो फ्रेंडली हो जाएं उसके बाद वो उन्हें पकड़कर क्लीनिक ले जाते हैं.
दीक्षा और अनहद ने बताया कि कुत्तों की जान बचाने के लिए ऐसा करना बेहद जरूरी है. स्टरलाइजेशन के बाद ने सिर्फ कुत्तों की संख्या नियंत्रित होगी बल्कि उनका जीवन स्तर भी सुधरेगा. वे स्वस्थ रहेंगे, गुस्सैल नहीं होंगे और इंसानों को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाएंगे. दोनों युवाओं ने यह काम चंडीगढ़ के सेक्टर-34 से शुरू किया है इनका लक्ष्य है कि सेक्टर-34 को पपी फ्री जोन बनाने के बाद चंडीगढ़ के दूसरे इलाकों में भी यही मुहिम चलाएंगे.
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