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चंडीगढ़ पीजीआई की प्रोफेसर एएन चक्रवर्ती मेमोरियल अवॉर्ड से सम्मानित, माइक्रोबायोलॉजी विभाग की प्रोफेसर हैं कुसुम शर्मा - Professor Kusum Sharma PGI Chandigarh

चंडीगढ़ पीजीआई (PGI Chandigarh) के मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी विभाग की डॉ. कुसुम शर्मा (Professor of Chandigarh PGI) को टीबी पर उनके द्वारा किए गए शोध के लिए प्रतिष्ठित प्रोफेसर एएन चक्रवर्ती मेमोरियल अवार्ड ( Professor AN Chakraborty Memorial Award) से सम्मानित किया गया है. उन्हें यह सम्मान इंडियन एकेडमी ऑफ मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी के राष्ट्रीय सम्मेलन में भुवनेश्वर में दिया गया.

Professor of Chandigarh PGI honored with Professor AN Chakraborty Memorial Award
चंडीगढ़ पीजीआई की प्रोफेसर एएन चक्रवर्ती मेमोरियल अवार्ड से सम्मानित, माइक्रोबायोलॉजी विभाग की प्रोफेसर हैं कुसुम शर्मा
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Published : Dec 2, 2022, 8:58 PM IST

चंडीगढ़: पीजीआई (PGI Chandigarh) के मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी विभाग की ओर टीबी को लेकर नई-नई शोध पर काम किया जा रहा है. ऐसे में माइक्रोबायोलॉजी विभाग के डॉ. कुसुम शर्मा को टीबी की बीमारी को लेकर किए गए अध्ययन के लिए प्रतिष्ठित प्रोफेसर एएन चक्रवर्ती मेमोरियल अवार्ड (Chakraborty Memorial Award) से सम्मानित किया गया है.

यह अवॉर्ड पिछले दिनों इंडियन एकेडमी ऑफ मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी के राष्ट्रीय सम्मेलन में भुवनेश्वर में प्रदान किया गया. यह पुरस्कार इंडियन सोसाइटी ऑफ मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी द्वारा माइक्रो बैक्टीरियोलॉजी (क्षय रोग) के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ प्रकाशित शोध के लिए दिया जाता है. डॉ. कुसुम ने दिमाग की टीबी की जांच की तकनीक के लिए प्रयोग किए जाने वाले ट्रूनेट और जीन एक्सपर्ट अल्ट्रा का तुलनात्मक अध्ययन किया है.

इसमें उन्होंने बताया कि दोनों ही तकनीक दिमाग की टीबी के डायग्नोसिस के स्तर पर समान परिणाम देने वाली हैं. डॉ. सुमन ने बताया कि फेफड़े की टीबी का संक्रमण इतना तीव्र होता है कि उसकी डायग्नोसिस आसानी से हो जाती है. जबकि शरीर के अन्य भागों में होने वाले टीबी के संक्रमण स्तर काफी कम होता है. इसलिए जांच में उसे पकड़ना बेहद मुश्किल होता है. उन्होंने इस शोध के लिए कई सालों तक मेहनत की है. उनके अध्ययन का शीर्षक ट्रूनैट टीएम एमटीबी प्लस और एक्सपीईआरटी अल्ट्रा इंडिग्नोजिंग ट्यूबरकुलस मेनिन्जाइटिस का तुलनात्मक विश्लेषण था.

पढ़ें: World Aids Day 2022: एचआईवी संक्रमित होने के बाद भी मुमकिन है जिंदगी, चंडीगढ़ पीजीआई में हुए कई शोध

प्रोफेसर कुसुम (Microbiology Department Professor Kusum Sharma) 2007 से एक्स्ट्रा पल्मोनरी तपेदिक के क्षेत्र में सक्रिय रूप से काम कर रही हैं. उन्होंने पीजीआई में तपेदिक के आणविक निदान की स्थापना और सुविधा प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उनकी टीम के द्वारा दुनिया में पहली बार ओकुलर ट्यूबरकुलोसिस में मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस का प्रदर्शन किया गया. फिर उन्होंने तपेदिक निदान की सुविधा के लिए एलएएमपी और बहु-लक्षित एलएएमपी विकसित किया. यह एक बड़ी छलांग थी, क्योंकि यह एक सस्ती तकनीक है. इसके लिए बहुत परिष्कृत उपकरणों की आवश्यकता नहीं होती है. इसे बिजली के बिना भी किया जा सकता है.

पढ़ें: कोरोना वैक्सीन पर चंडीगढ़ पीजीआई का शोध, बोले- सुरक्षित रहने के लिए दो डोज ही काफी

उन्हें यूएसए की फोगार्टी फेलोशिप दो बार (2010 व 2015) मिल चुकी है. यूएसए में एक फेलोशिप के दौरान प्रोफेसर कुसुम शर्मा ने 2015 में जॉन्स हॉपकिंस बाल्टीमोर में जीनोमिक कार्य की बारीकियों को समझने में 3 महीने बिताए थे. उनके काम ने डायग्नोस्टिक्स और परिणामों को काफी प्रभावित किया है. टीबी और एनटीएम संक्रमण के रोगियों के जीवन में सुधार लाने की उनकी खोज प्रतिबद्धता के साथ जारी है. वह इंटरनेशनल ट्यूबरक्लोसिस रिसर्च कंसोर्टियम का हिस्सा भी हैं. उन्हें यूके के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में आयोजित समूहों की बैठक के दौरान अपना शोध प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया गया था.

पढ़ें: चंडीगढ़ पीजीआई के वायरोलॉजी विभाग की दो महिला डॉक्टर को उनकी रिसर्च के लिए किया गया सम्मानित

प्रोफेसर कुसुम शर्मा को सहयोगी प्रोफेसर एसके शर्मा (पूर्व एचओडी मेडिसिन, एम्स, नई दिल्ली), प्रोफेसर विकास अग्रवाल (एसजीपीजीआई) जैसे अन्य केंद्रों से संपर्क किया गया है. उनके अनुभव को ध्यान में रखते हुए, उन्हें भारत के लिए एक्स्ट्रा पल्मोनरी ट्यूबरक्लोसिस पर दिशानिर्देशों के लिए माइक्रोबायोलॉजी सपोर्ट ग्रुप के ग्रुप लीड के रूप में चुना गया था. उन्हें केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से नई दिल्ली स्थित एम्स में हुए कई शोध में शामिल किया गया. वे आज भी शरीर के अन्य अंगों में होने वाली टीबी को लेकर शोध कार्य कर रही हैं.

चंडीगढ़: पीजीआई (PGI Chandigarh) के मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी विभाग की ओर टीबी को लेकर नई-नई शोध पर काम किया जा रहा है. ऐसे में माइक्रोबायोलॉजी विभाग के डॉ. कुसुम शर्मा को टीबी की बीमारी को लेकर किए गए अध्ययन के लिए प्रतिष्ठित प्रोफेसर एएन चक्रवर्ती मेमोरियल अवार्ड (Chakraborty Memorial Award) से सम्मानित किया गया है.

यह अवॉर्ड पिछले दिनों इंडियन एकेडमी ऑफ मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी के राष्ट्रीय सम्मेलन में भुवनेश्वर में प्रदान किया गया. यह पुरस्कार इंडियन सोसाइटी ऑफ मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी द्वारा माइक्रो बैक्टीरियोलॉजी (क्षय रोग) के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ प्रकाशित शोध के लिए दिया जाता है. डॉ. कुसुम ने दिमाग की टीबी की जांच की तकनीक के लिए प्रयोग किए जाने वाले ट्रूनेट और जीन एक्सपर्ट अल्ट्रा का तुलनात्मक अध्ययन किया है.

इसमें उन्होंने बताया कि दोनों ही तकनीक दिमाग की टीबी के डायग्नोसिस के स्तर पर समान परिणाम देने वाली हैं. डॉ. सुमन ने बताया कि फेफड़े की टीबी का संक्रमण इतना तीव्र होता है कि उसकी डायग्नोसिस आसानी से हो जाती है. जबकि शरीर के अन्य भागों में होने वाले टीबी के संक्रमण स्तर काफी कम होता है. इसलिए जांच में उसे पकड़ना बेहद मुश्किल होता है. उन्होंने इस शोध के लिए कई सालों तक मेहनत की है. उनके अध्ययन का शीर्षक ट्रूनैट टीएम एमटीबी प्लस और एक्सपीईआरटी अल्ट्रा इंडिग्नोजिंग ट्यूबरकुलस मेनिन्जाइटिस का तुलनात्मक विश्लेषण था.

पढ़ें: World Aids Day 2022: एचआईवी संक्रमित होने के बाद भी मुमकिन है जिंदगी, चंडीगढ़ पीजीआई में हुए कई शोध

प्रोफेसर कुसुम (Microbiology Department Professor Kusum Sharma) 2007 से एक्स्ट्रा पल्मोनरी तपेदिक के क्षेत्र में सक्रिय रूप से काम कर रही हैं. उन्होंने पीजीआई में तपेदिक के आणविक निदान की स्थापना और सुविधा प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उनकी टीम के द्वारा दुनिया में पहली बार ओकुलर ट्यूबरकुलोसिस में मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस का प्रदर्शन किया गया. फिर उन्होंने तपेदिक निदान की सुविधा के लिए एलएएमपी और बहु-लक्षित एलएएमपी विकसित किया. यह एक बड़ी छलांग थी, क्योंकि यह एक सस्ती तकनीक है. इसके लिए बहुत परिष्कृत उपकरणों की आवश्यकता नहीं होती है. इसे बिजली के बिना भी किया जा सकता है.

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उन्हें यूएसए की फोगार्टी फेलोशिप दो बार (2010 व 2015) मिल चुकी है. यूएसए में एक फेलोशिप के दौरान प्रोफेसर कुसुम शर्मा ने 2015 में जॉन्स हॉपकिंस बाल्टीमोर में जीनोमिक कार्य की बारीकियों को समझने में 3 महीने बिताए थे. उनके काम ने डायग्नोस्टिक्स और परिणामों को काफी प्रभावित किया है. टीबी और एनटीएम संक्रमण के रोगियों के जीवन में सुधार लाने की उनकी खोज प्रतिबद्धता के साथ जारी है. वह इंटरनेशनल ट्यूबरक्लोसिस रिसर्च कंसोर्टियम का हिस्सा भी हैं. उन्हें यूके के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में आयोजित समूहों की बैठक के दौरान अपना शोध प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया गया था.

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प्रोफेसर कुसुम शर्मा को सहयोगी प्रोफेसर एसके शर्मा (पूर्व एचओडी मेडिसिन, एम्स, नई दिल्ली), प्रोफेसर विकास अग्रवाल (एसजीपीजीआई) जैसे अन्य केंद्रों से संपर्क किया गया है. उनके अनुभव को ध्यान में रखते हुए, उन्हें भारत के लिए एक्स्ट्रा पल्मोनरी ट्यूबरक्लोसिस पर दिशानिर्देशों के लिए माइक्रोबायोलॉजी सपोर्ट ग्रुप के ग्रुप लीड के रूप में चुना गया था. उन्हें केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से नई दिल्ली स्थित एम्स में हुए कई शोध में शामिल किया गया. वे आज भी शरीर के अन्य अंगों में होने वाली टीबी को लेकर शोध कार्य कर रही हैं.

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