चंडीगढ़: पीजीआई में ह्यूमन मिल्क बैंक की शुरुआत करीब डेढ़ साल पहले हुई थी.तब से अब तक 400 लीटर ह्यूमन मिल्क बैंक यहां जमा हो चुका है. 750 से अधिक महिलाएं मिल्क दान कर चुकी हैं. इस बैंक का फायदा उन नवजातों को मिल रहा है जिनकी माताएं किसी बीमारी के चलते उनको दूध नहीं पिला पाती हैं. पीजीआई के इस बैंक में 50 लीटर के करीब मिल्क रिजर्व रखा गया है. रोजाना एक लीटर से अधिक दूध एडवांस रेफ्रिजरेटर में पहुंचता है.बस मुश्किल इस बात की है कि मिल्क बैंक के लिए अभी तक स्टाफ नहीं दिया गया है.ये कर्मचारियों के सहयोग से चल रहा है.
कैसे काम करता है बैंक ?: ये मिल्क बैंक महिलाओं के सहयोग से ही चलता है. यहां एक तरह से भागीदारी व्यवस्था है. इसमें मिल्क देने वाली महिलाएं, मिल्क लेने वाली महिलाएं और महिला नर्सिंग स्टॉफ का महत्त्वपूर्ण रोल है. नर्स दविंदर ने बताया,'रोजाना करीब 25 से 30 महिलाएं बच्चों को जन्म देने के लिए भर्ती होती हैं.कुछ महिलाएं होती हैं जिनका दूध अच्छा आता है, लेकिन कुछ महिलाओं और नवजातों को विशेष तौर पर देखभाल की जरूरत होती है.दोनों तरह की महिलाओं की काउंसलिंग की जाती है.' मिल्क डोनेट करने वाली एक महिला दीप्ति ने बताया,'मेरे बच्चे को सात दिनों तक नो फीड पर रखा गया था.मुझे मिल्क आ रहा था.फिर मेरी काउंसलिंग हुई.जैसे ब्लड डोनेट होता है. वैसे मिल्क भी डोनेट होता है. ये उन बच्चों के लिए अच्छा है जिनको मां का दूध नहीं मिल पा रहा है. फिर ये सोचकर मैंने अपना मिल्क डोनेट करना शुरू किया.'कुछ अळग तरह के केस भी यहां पर आते हैं. जिन महिलाओं का प्रसव तो होता है लेकिन उनको दूध नहीं बनता है. ऐसी ही एक महिला पुष्पा ने ईटीवी भारत को बताया,'मैं यहां एक महिने से भर्ती हूं.मुझे दूध नहीं बन रहा था. ये बहुत अच्छा है कि दूसरी महिलाएं मिल्क डोनेट करती है. इससे मेरी लड़की को मिल्क मिल रहा है.'एक अन्य महिला नैना कहती है,'मैं उन महिलाओं को धन्यवाद देती हूं जिन्होंने मेरी बच्ची की जान बचाई अपना दूध देकर.' सहभागिता से चलने वाले इस मिल्क बैंक में स्टॉफ का भी बड़ा रोल है. मिल्क डोनेट करने की व्यवस्था उन्हीं की वजह से चल रही है.
कर्मचारियों की कमी: ईटीवी भारत के साथ बातचीत में नियोनेटोलॉजी प्रोफेसर और मिल्क बैंक की संस्थापक डॉ. कन्या मुखोपाध्याय ने बताया,'पांच नर्सों की एक टीम है. जो लगातार ड्यूटी देती है. बच्चों को मां के दूध की सबसे ज्यादा जरूरत होती है. इस जरूरत को मिल्क बैंक पूरा करता है. हम लोगों को अलग से स्टॉफ नहीं दिया गया है. नर्सिंगस्टॉफ और लेक्टीशियन हैं. वे सब मिलकर ये काम कर कर रहे हैं. अगर हमको और स्टॉफ मिल जाए तो हम और बेहतर तरीके से मिल्क बैंक को चला सकते हैं.' पब्लिक हेल्थ नर्सिंग ऑफिसर उर्मिला ने भी बताया कि मिल्क बैंक को खुले दो साल हो चुके हैं.यहां कर्मचारियों की कमी है. काउंसलिंग से लेकर बच्चों को दूध देने का काम सब एक साथ करना पड़ता है.
मिल्क के होते हैं कई टेस्ट :गायनेकोलॉजी विभाग से रोजाना कोल्ड चेन से दूध छोटी-छोटी कटोरियों के माध्यम से मिल्क बैंक में पहुंचता है. इसके बाद ही मिल्क बॉटल में शिफ्ट किया जाता है. बोतलों का स्टरलाइजेशन भी किया जाता है. दूध का पॉश्चराइजेशन भी होता है. इसके अलावा कल्चर टेस्ट होता है.दूध में मौजूद बीमारी और अन्य बैक्टीरिया को देखा जाता है. जब सारे टेस्ट हो जाते हैं. तब दूध को डीप फ्रिजर में रखा जाता है.इसे -20 डिग्री के नीचे फ्रीज किया जाता है. मिल्क बैंक में दो डीप फ्रीजर है. इनमें लगभग 40 लीटर ह्यूमन मिल्क जमा किया जाता है. महिलाओं के मिल्क डोनेट करने से लेकर डीप फ्रीजर तक कोल्ड चेन बनाई गई है. बैंक में 400 लीटर ह्यूमन मिल्क जमा हो चुका है. 750 से अधिक महिलाएं मिल्क दान कर चुकी हैं. यहां करीब 50 लीटर मिल्क रिजर्व रहता है. रोजाना एक लीटर से अधिक दूध एडवांस रेफ्रिजरेटर में पहुंचता है.