चंडीगढ़: 8 जनवरी को चंडीगढ़ में मेयर चुनाव (Chandigarh mayor election) होने हैं. चंडीगढ़ के मेयर चुनाव देशभर में सबसे अलग है, क्योंकि जहां अन्य राज्यों के नगर निगमों में मेयर का कार्यकाल 5 साल का होता है. वही चंडीगढ़ में 5 साल में 5 बार अलग-अलग लोगों को मेयर चुना जाता है और हर साल मेयर का चुनाव होता है. चंडीगढ़ में 1996 में नगर निगम का गठन हुआ था. जिसके बाद यहां पंजाब के नगर निगम का मॉडल अपनाया गया था. हालांकि पंजाब के नगर निगमों में मेयर का कार्यकाल 5 साल का होता है, जबकि चंडीगढ़ में हर साल मेयर का चुनाव होता है.
बता दें कि चंडीगढ़ में भी पंजाब की तर्ज पर मेयर के अलावा सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर के पद होते हैं. इस बारे में चंडीगढ़ के पूर्व मेयर और भाजपा नेता रविकांत शर्मा ने बताया कि मेयर का कार्यकाल MHA (ministry of home affairs) द्वारा निर्धारित किया जाता है. रविकांत शर्मा ने बताया कि चंडीगढ़ की राजनीतिक पार्टियों द्वारा मेयर का कार्यकाल 5 साल करने को लेकर MHA और राज्यपाल को चिट्ठी लिखी गई है. लेकिन इस मांग को अभी तक पूरा नहीं किया गया है. उन्होंने कहा कि मेयर बनने वाला व्यक्ति सभी चीजों को समझ सके और शहर की बेहतरी के लिए काम कर सके. एक साल के कार्यकाल में व्यक्ति मेयर के तौर पर शहर से जुड़ी समस्याओं को ठीक से समझ नहीं पाता. लेकिन आज भी मेयर का चुनाव एक साल के लिए ही होता है.
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चंडीगढ़ मेयर चुनाव की प्रक्रिया
चंडीगढ़ में मेयर चुनाव (Chandigarh mayor election process) हर साल होता है. जिसमें चंडीगढ़ नगर निगम के पार्षद मेयर का चुनाव करते है. अमूमन जिस पार्टी के पार्षद ज्यादा होते है पांचों साल मेयर भी उसी पार्टी का बनता है. लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी के प्रदर्शन की वजह से मेयर चुनाव का गणित पूरी तरह से बिगड़ चुका है. इस साल पहली बार चंडीगढ़ में 35 वार्डों पर चुनाव हुए और किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है.
कांग्रेस के पास इस वक्त 7 वोट हैं. जबकि भाजपा और आम आदमी पार्टी के पास 14-14 वोट है. किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिलने की वजह से पार्टियों को हर साल अपने उम्मीदवार को मेयर बनाने के लिए जोड़-तोड़ का सहारा लेना पड़ेगा और यह लड़ाई अगले 5 सालों तक जारी रहेगी. वहीं अकाली दल इस बार मेयर चुनाव में अहम भूमिका निभा सकता है. क्योंकि अकाली दल के पास एक वोट है और अकाली दल जिस भी पार्टी को अपना समर्थन देगा, वो पार्टी मेयर बनाने की स्थिति में आ जाएगी.
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हर साल क्यों बदलता है चंडीगढ़ का मेयर
चंडीगढ़ में मेयर पद प्रत्येक वर्ष अलग-अलग वर्ग के लोगों के लिए आरक्षित होता है. पहला और चौथा साल महिलाओं के लिए आरक्षित होता है, दूसरा और पांचवा साल सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित है और तीसरा साल अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों के लिए आरक्षित होता है.
सरल शब्दों में समझा जाए तो पहले और चौथे साल में केवल महिला मेयर बन सकती है, वहीं दूसरे और पांचवे साल में सामान्य वर्ग का उम्मदीवार मेयर बन सकता है. वहीं तीसरे साल में अनुसूचित जाति का उम्मीदवार ही मेयर बन सकता है. ये भी एक कारण है कि कांग्रेस ने इस साल मेयर पद की रेस से अपना नाता तोड़ लिया है. क्योंकि कांग्रेस के पास महज एक महिला उम्मीदवार थी, जिन्होंने भी बीजेपी का दामन थाम लिया है.
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सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर क्यों
देशभर में लगभग सभी शहरों में मेयर और डिप्टी मेयर, दो ही पद होते हैं. जबकि चंडीगढ़ में 3 पद निर्धारित किए गए हैं. इसमें मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर का पद होता है. जैसा कि हम जानते है चंडीगढ़ नगर निगम में पंजाब मॉडल को अपनाया जाता है और पंजाब में भी सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर के पद होते हैं. इसलिए यह पद चंडीगढ़ में भी बनाए गए हैं. लेकिन इन दोनों पदों के पास ज्यादा शक्तियां नहीं होती हैं.
हालांकि मेयर की गैर हाजरी में यह दोनों व्यक्ति मेयर की जिम्मेदारी निभाते है. इसके अलावा पार्षद, मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर मिलकर शहर के लिए कई योजनाएं तैयार करते हैं. जिनमें इन तीनों व्यक्तियों का योगदान होता है ताकि इन योजनाओं को बाद में अधिकारियों द्वारा शुरू करवाया जा सके.
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कैसे होगा चंडीगढ़ नगर निगम के मेयर का चुनाव
नगर निगम चुनाव में पार्षदों के चुनाव के बाद मेयर चुनाव होता है. चंडीगढ़ में मेयर 1 साल के लिए चुना जाता है. मेयर की सीट पहले साल के लिए महिला उम्मीदवार के लिए रिजर्व होती है. इस बार मेयर चुनाव में कांग्रेस पार्टी हिस्सा नहीं लेगी. इसलिए टक्कर भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच रहेगी. दोनों में से जिसके उम्मीदवार को ज्दादा वोट मिलेगा वही मेयर बनेगा.
अगर कांग्रेस पार्टी भी मेयर चुनाव में हिस्सा लेती है तो मतदान दो बार होता. पहली बार मतदान में तीनों पार्टियों के उम्मीदवार चुनाव में हिस्सा लेंते. इसके बाद वोटों की गिनती होती. मतगणना के बाद तीसरे नंबर पर रहने वाली पार्टी को चुनाव से बाहर कर दिया जाता. बाकी बची दो पार्टियों में दोबारा से मतदान होता. इसके बाद जिस पार्टी के उम्मीदवार को ज्यादा वोट मिलेते वही मेयर घोषित किया जाता.
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