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किसानों पर दर्ज केस वापस लेना सरकार के लिए आसान नहीं, ये कानूनी अड़चनें बन सकती हैं मुश्किल

पिछले एक साल से चले आ रहे किसान आंदोलन को स्थगित करने का एलान हो चुका है. सरकार ने किसानों की सारी मांगें मान ली हैं. दूसरी ओर इन सभी मांगों में से एक मांग ऐसी है जो सरकार के लिए अभी भी मुश्किलें पेश कर सकती है. वो है किसानों पर दर्ज मुकदमे वापस (Case Registered Against Farmers) लेना. इसे लेकर हमने कानूनी जानकार एडवोकेट हरिंदर ईशर से बात की.

Case Registered Against Farmers
Advocate Comment On Case Registered On Farmers
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Published : Dec 10, 2021, 8:42 PM IST

चंडीगढ़: केंद्र सरकार द्वारा तीन कृषि कानून वापस लिए जाने और किसानों की बाकी मांगें मानने के बाद किसानों का आंदोलन स्थगित हो चुका है. किसानों ने सरकार से एमएसपी के लिए कमेटी बनाना, किसानों पर दर्ज मुकदमे वापस लेना समेत मृत किसानों को मुआवजे की मांग सरकार से लिखित में देने की बात कही थी. सरकार ने किसानों की मांगों को मानते हुए उन्हें एक लिखित पत्र दिया. जिसके बाद किसानों ने बृहस्पतिवार को आंदोलन स्थगित करने का एलान कर दिया.

वहीं दूसरी ओर इन सभी मांगों में से एक मांग ऐसी है जो सरकार के लिए मुश्किलें पेश कर सकती है. ये मांग है किसानों पर दर्ज मुकदमों को वापस लेना. इस मांग को पूरा करना सरकार के लिए आसान नहीं होगा क्योंकि इनमें से कई मुकदमें अलग अलग धाराओं में लंबित (Case Registered Against Farmers) हैं. इसे लेकर हमने कानूनी जानकार एडवोकेट हरिंदर ईशर से बात की. उन्होंने बताया कि सरकार को किसानों की इन मांगों को मानने में कौन कौन सी मुश्किलें आ सकती हैं.

किसानों पर दर्ज केस वापस लेना सरकार के लिए आसान नहीं, ये कानूनी अड़चनें बन सकती हैं मुश्किल

एडवोकेट हरिंदर ईशर ने बताया कि सरकार ने किसानों पर अलग-अलग धाराओं के तहत मुकदमे दर्ज करवाए हैं. इनमें ज्यादातर मुकदमों में शिकायतकर्ता खुद पुलिस ही है. अगर किसी प्राइवेट पार्टी द्वारा यह मामले दर्ज करवाए गए होते तब इसमें कई तरह की अड़चनें थी, लेकिन इन मामलों में पुलिस ही शिकायतकर्ता है और पुलिस की ओर से ही कैंसिलेशन रिपोर्ट पेश की जाएगी.

ईशर ने बताया कि मजिस्ट्रेट के पास यह शक्ति होती है कि वह इस रिपोर्ट को स्वीकार करें या ना स्वीकार करे, लेकिन जहां तक किसान आंदोलन की बात है तो भीड़ के खिलाफ दर्ज मामलों में सबसे बड़ी समस्या पहचान की होती है. ऐसे मामलों में सही आरोपियों की कई बार पहचान नहीं हो पाती और अगर पुलिस खुद ही इन मामलों की कैंसिलेशन रिपोर्ट को पेश करेगी तब ऐसा नहीं लगता कि सरकार कोई मामलों को खत्म करने में कोई ज्यादा दिक्कत पेश आएगी.

ये भी पढ़ें- पलवल में घर वापसी के लिए किसान तैयार, शनिवार को विजय जुलूस निकालने की हो रही तैयारी

उन्होंने बताया कि ऐसे मामलों में जज के पास तीन तरह के अधिकार होते हैं. या तो वह पुलिस की कैंसिलेशन रिपोर्ट को मंजूर कर ले, तब केस खत्म हो जाएगा. अगर वह पुलिस की रिपोर्ट संतुष्ट नहीं है तो वह पुलिस को केस की दोबारा जांच के लिए आदेश दे सकते हैं. इसके अलावा पुलिस की रिपोर्ट के बावजूद अपने स्तर पर आरोपियों के खिलाफ समन जारी कर सकते हैं. यह जज पर निर्भर करता है कि वह किसी केस को लेकर क्या आदेश देते हैं. अगर जज इन केसों को खत्म न करना चाहे तो सरकार के सामने मुश्किल पेश आ सकती हैं.

ये भी पढ़ें-आंदोलन स्थगित होने के बाद दिल्ली बॉर्डर से किसान तोड़ने लगे अस्थायी मकान, मृतक किसानों के स्मारक में लगाएंगे ईंटें

बता दें कि, किसान पिछले एक साल से अपनी कई मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे थे. हाल ही में पीएम मोदी ने तीन कृषि कानून वापस लेने का एलान किया था. इसके बाद भी किसानों ने अपने आंदोलन को जारी रखा था. कृषि वापस लिए जाने के बाद भी किसानों का कहना था कि जब तक सरकार संसद में इन कानूनों को रद्द नहीं कर देती और हमारी मांगें नहीं मान लेती तब तक धरना जारी रहेगा. कुछ दिन पहले सरकार ने संसद में तीन कृषि कानूनों को रद्द कर दिया था. इसके बाद किसानों ने सरकार से अपनी सारी मांगों को मानने के लिए लिखित में पत्र देने के लिए कहा था. दो दिन पहले सरकार ने किसानों की सारी मांगों को मानते हुए उन्हें एक लिखित पत्र सौंपा जिसके बाद बीते गुरुवार को किसानों ने आंदोलन खत्म करने का एलान कर दिया. अब किसान 11 दिसंबर को जश्न जुलूस निकालते हुए अपने घर वापस लौटेंगे.

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चंडीगढ़: केंद्र सरकार द्वारा तीन कृषि कानून वापस लिए जाने और किसानों की बाकी मांगें मानने के बाद किसानों का आंदोलन स्थगित हो चुका है. किसानों ने सरकार से एमएसपी के लिए कमेटी बनाना, किसानों पर दर्ज मुकदमे वापस लेना समेत मृत किसानों को मुआवजे की मांग सरकार से लिखित में देने की बात कही थी. सरकार ने किसानों की मांगों को मानते हुए उन्हें एक लिखित पत्र दिया. जिसके बाद किसानों ने बृहस्पतिवार को आंदोलन स्थगित करने का एलान कर दिया.

वहीं दूसरी ओर इन सभी मांगों में से एक मांग ऐसी है जो सरकार के लिए मुश्किलें पेश कर सकती है. ये मांग है किसानों पर दर्ज मुकदमों को वापस लेना. इस मांग को पूरा करना सरकार के लिए आसान नहीं होगा क्योंकि इनमें से कई मुकदमें अलग अलग धाराओं में लंबित (Case Registered Against Farmers) हैं. इसे लेकर हमने कानूनी जानकार एडवोकेट हरिंदर ईशर से बात की. उन्होंने बताया कि सरकार को किसानों की इन मांगों को मानने में कौन कौन सी मुश्किलें आ सकती हैं.

किसानों पर दर्ज केस वापस लेना सरकार के लिए आसान नहीं, ये कानूनी अड़चनें बन सकती हैं मुश्किल

एडवोकेट हरिंदर ईशर ने बताया कि सरकार ने किसानों पर अलग-अलग धाराओं के तहत मुकदमे दर्ज करवाए हैं. इनमें ज्यादातर मुकदमों में शिकायतकर्ता खुद पुलिस ही है. अगर किसी प्राइवेट पार्टी द्वारा यह मामले दर्ज करवाए गए होते तब इसमें कई तरह की अड़चनें थी, लेकिन इन मामलों में पुलिस ही शिकायतकर्ता है और पुलिस की ओर से ही कैंसिलेशन रिपोर्ट पेश की जाएगी.

ईशर ने बताया कि मजिस्ट्रेट के पास यह शक्ति होती है कि वह इस रिपोर्ट को स्वीकार करें या ना स्वीकार करे, लेकिन जहां तक किसान आंदोलन की बात है तो भीड़ के खिलाफ दर्ज मामलों में सबसे बड़ी समस्या पहचान की होती है. ऐसे मामलों में सही आरोपियों की कई बार पहचान नहीं हो पाती और अगर पुलिस खुद ही इन मामलों की कैंसिलेशन रिपोर्ट को पेश करेगी तब ऐसा नहीं लगता कि सरकार कोई मामलों को खत्म करने में कोई ज्यादा दिक्कत पेश आएगी.

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उन्होंने बताया कि ऐसे मामलों में जज के पास तीन तरह के अधिकार होते हैं. या तो वह पुलिस की कैंसिलेशन रिपोर्ट को मंजूर कर ले, तब केस खत्म हो जाएगा. अगर वह पुलिस की रिपोर्ट संतुष्ट नहीं है तो वह पुलिस को केस की दोबारा जांच के लिए आदेश दे सकते हैं. इसके अलावा पुलिस की रिपोर्ट के बावजूद अपने स्तर पर आरोपियों के खिलाफ समन जारी कर सकते हैं. यह जज पर निर्भर करता है कि वह किसी केस को लेकर क्या आदेश देते हैं. अगर जज इन केसों को खत्म न करना चाहे तो सरकार के सामने मुश्किल पेश आ सकती हैं.

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बता दें कि, किसान पिछले एक साल से अपनी कई मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे थे. हाल ही में पीएम मोदी ने तीन कृषि कानून वापस लेने का एलान किया था. इसके बाद भी किसानों ने अपने आंदोलन को जारी रखा था. कृषि वापस लिए जाने के बाद भी किसानों का कहना था कि जब तक सरकार संसद में इन कानूनों को रद्द नहीं कर देती और हमारी मांगें नहीं मान लेती तब तक धरना जारी रहेगा. कुछ दिन पहले सरकार ने संसद में तीन कृषि कानूनों को रद्द कर दिया था. इसके बाद किसानों ने सरकार से अपनी सारी मांगों को मानने के लिए लिखित में पत्र देने के लिए कहा था. दो दिन पहले सरकार ने किसानों की सारी मांगों को मानते हुए उन्हें एक लिखित पत्र सौंपा जिसके बाद बीते गुरुवार को किसानों ने आंदोलन खत्म करने का एलान कर दिया. अब किसान 11 दिसंबर को जश्न जुलूस निकालते हुए अपने घर वापस लौटेंगे.

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