चंडीगढ़: इंडियन नेशनल लोकदल हरियाणा की सियासत की वो पार्टी है, जिसके पास कई बार हरियाणा की सत्ता रही, लेकिन आज वो पार्टी डूबता जहाज दिखाई दे रही है. इस बार के विधानसभा चुनाव में पार्टी 3 सीट महम, करनाल और सिरसा में उम्मीदवार ही नहीं उतार पाई. पार्टी के पास उम्मीदवार हैं या पार्टी ने पहले ही हार मान ली है. वहीं अंबाला शहर सीट की सीट पर इनेलो की सहयोगी पार्टी शिरोमणि अकाली दल के उम्मीदवार ने नामांकन ही नहीं दाखिल किया.
परिवार की कलह बनी वजह
पूर्व सीएम रहे ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी इनेलो एक दिन इस स्थिति में पहुंचेगी, शायद ही किसी ने सोचा होगा. दरअसल अक्टूबर 2018 में गोहाना में हुई पार्टी की सम्मान रैली में परिवार की कलह जग जाहिर हुई. जहां चाचा(अभय चौटाला ) और भतीजे दुष्यंत चौटाला के बीच की रार खुलकर सामने आई, हालांकि चाचा-भचीजे के बीच रार पहले से ही चल रही थी. गोहाना में सिर्फ वो जगजाहिर हो गई. इसी रैली के बाद इनेलो के टूटने का सिलसिला शुरू हो गया और दुष्यंत चौटाला और उनके भाई दिग्विजय चौटाला को इनेलो से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.
जेजेपी का हुआ उदय
फिर क्या था जैसी ही कुछ वक्त बाद अजय चौटाला जेल से बाहर पैरोल पर आए तो उन्होंने एक तरह से अलग-अलग राहों का ऐलान कर दिया. कुछ वक्त बाद जींद में रैली कर जेजेपी यानि जननायक जनता पार्टी का आगाज हो गया. बस फिर तो एक-एक कर इनेलो के कई नेता और विधायक जेजेपी में शामिल होते गए और इनेलो में कार्यकर्ता और नेता की संख्या कम होती गई.
जेजेपी ने जींद में दिखाया दम
इसके बाद जींद में उपचुनाव हुआ. इस उपचुनाव में दुष्यंत चौटाला के अगुवाई में जेजेपी दूसरे नंबर की पार्टी रही जबकि इनेलो सीधे पांचवें स्थान पर खिसक गई. इनेलो को इस झटके के बाद लगातार झटके लगते रहे. जिससे पार्टी उभर नहीं पाई. वहीं इस बार विधानसभा चुनाव आते-आते उसके विधायक भी उससे दूर हो गए.
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इनेलो से दूर हुए विधायक
इनेलो के सबसे ज्यादा विधायक बीजेपी के पाले में गए, जिनकी संख्या 10 रही. वहीं जेजेपी के साथ 4 विधायक रहे. जबकि दो का देहांत हो गया था. इनेलो के 2014 में चुने गए 19 विधायकों में से वर्तामान में पार्टी के साथ सिर्फ 3 विधायक हैं. यानि ओम प्रकाश चौटाला जिस पार्टी को प्रदेश की सत्ता में ले कर आए और आगे बढ़ाया वो इसबार के चुनाव में खुद के वजूद को बचाने की जद्दोजहद कर रही है.
लोकसभा चुनावों में मिली करारी शिकस्त
इनेलो 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में भी कोई बड़ा कारनामा नहीं कर पाई, यहां तो बीजेपी ने सभी दलों को धूल चटाते हुए प्रदेश की सभी 10 सीटों पर कब्जा कर लिया. इसके बाद इनेलो के कई बड़े नेता लगातार जेजेपी और बीजेपी के दरवाजे पर दस्तक देते नजर आए, कुछ बीजेपी के हो गए तो कुछ जेजेपी के. ऐसे में अब सिरसा के इनेलो से रहे पूर्व सांसद चरणजीत सिंह रोड़ी ने भी पार्टी का साथ छोड़कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया.
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इनेलो के लिए करो या मरो की स्थिति
जो पार्टी कभी दूसरे दलों को डूबता जहाज कहती थी वो आज खुद डूबता जहाज हो गई है. इस विधानसभा चुनाव में अगर पार्टी कोई बड़ा कारनामा नहीं कर पाई तो इस दल का बिखरना विधानसभा चुनावों के बाद भी जारी रहेगा. यानि जेजेपी जिस तरह आगे बढ़ रही है, उसे देखते हुए जानकार मानते हैं कि ये चुनाव इनेलो के लिए करो या मरो की स्थिति वाले हैं, क्योंकि इसके नतीजे ही पार्टी का भविष्य तय करेंगे.
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किसकी बचेगी साख
2014 के चुनावों में प्रदेश में इनेलो मुख्य विपक्षी दल थी. जिसके पास 19 विधायक थे. पांच साल बाद पार्टी की आपसी फूट चरम पर है और पार्टी का जनाधार लगातार गिरता जा रहा है. 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को 1.89 प्रतिशत वोट मिले तो वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी का वोट प्रतिशत 24.43 था. जिससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इनेलो की वर्तमान में क्या स्थिति है? ऐसे में क्या इनेलो अपनी साख बचा पाएगी ये सबसे बड़ा सवाल है.