चंडीगढ़: विश्व कप जीतना हर किसी टीम का सपना होता है, फिर चाहे वो क्रिकेट हो फुट बॉल हो या फिर हॉकी. इस जीत की खुशी वो ही खिलाड़ी बता सकता है, जिसने वर्ल्ड कप जीतने के लिए जी तोड़ मेहनत की हो और इस सपने को पूरा किया हो. पूर्व भारतीय हॉकी प्लेयक अशोक कुमार वो खिलाड़ियों में से एक हैं, जिन्होंने ना सिर्फ वर्ल्ड कप ट्रॉफी का सपना देखा बल्कि उसे साकार भी किया.
'हॉकी के जादूगर' के बेटे हैं अशोक कुमार
बता दें कि पूर्व हॉकी प्लेयर अशोक कुमार हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद के बेटे हैं. वो मेजर ध्यानचंद जिनकी हॉकी स्टिक से बॉल ऐसे चिपक जाती थी मानो उनकी स्टिक पर चुंबक या फिर गोंद लगा हो. यही वजह है कि एक बार मेजर ध्यानचंद की हॉकी स्टिक को सिर्फ इसलिए तोड़ दिया गया, क्योंकि लोगों को शक था कि उनकी स्टिक में गोंद या फिर चुंबक लगा है.
1975: आखिरी गोल कर भारत को अशोक कुमार ने दिलाया वर्ल्ड कप
1928 से 1956 के दौर में भारतीय हॉकी दुनिया में प्रतिष्ठित रही. इस दौरान भारत ने छह बार ओलंपिक के स्वर्ण पदक पर कब्जा किया. 28 साल के इस सुनहरे सफर के बाद 1971 तक हॉकी की हालत देश में दयनीय हो गई थी. आसानी से हॉकी टीम किसी छोटे देश से भी हार जाया करती थी, लेकिन ध्यानचंद के बेटे अशोक कुमार ने अपने पिता की तरह ही एक बार फिर इस देश में हॉकी के सुनहरे दिन लौटाए. भारत ने 1975 के हॉकी विश्व में जीत हासिल कर दुनिया में फिर से अपना दबदबा कायम किया. वर्ल्ड कप के आखिर मैच में मेजर ध्यानचंद के बेटे ही थे जिन्होंने आखिरी गोल कर भारत को हॉकी में विश्व विजेता बनाया था.
पूर्व हॉकी प्लेयर अशोक कुमार ने की खास बातचीत
हॉकी में भारत को विश्व विजेता बनाने वाले अशोक कुमार ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने अपने वर्ल्ड कप जीतने के सुनहरे पलों को दोबारा ईटीवी भारत के साथ सांझा किया. इस दौरान अशोक कुमार ने ये भी बताया कि उनके पिता जो खुद इतने बड़े हॉकी खिलाड़ी थे, कभी नहीं चाहते थे कि उनके बेटे भी हॉकी खेलें.
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साल 1975 में जीते वर्ल्ड कप के बारे में अशोक कुमार ने कहा कि उन्हें आज भी वो पल याद है, जब उन्होंने पहली बार उस कप को पकड़ा था. उन्होंने बताया कि उस वर्ल्ड कप का सफर चंडीगढ़ से ही शुरू हुआ था. वर्ल्ड कप से पहले चंडीगढ़ में ही उनका कैंप लगाया गया था. जहां पर उन्होंने और उनकी टीम ने जी तोड़ मेहनत की थी.
वर्ल्ड कप पहली बार देखकर कैसा लगा?
उन्होंने बताया कि वर्ल्ड कप से पहले वो मलेशिया में अपने होटल में थे. जहां पर वर्ल्ड कप की ट्रॉफी को रखा गया था. उन्होंने ट्रॉफी को देखा तो ये दिमाग में बैठा लिया कि अगर उन्हें ये वर्ल्ड कप जीतना है तो अपने अंदर का सारा खेल लगाना होगा. जिसके बाद उन्होंने हर मैच में ऐसा ही किया और परिणाम ये हुआ कि वर्ल्ड कप टीम इंडिया को मिला.
इस वजह से ध्यानचंद नहीं चाहते थे हॉकी खेलें अशोक
पूर्व हॉकी प्लेयर अशोक कुमार ने ये भी बताया कि उनके पिता मेजर ध्यानचंद नहीं चाहते थे कि उनके बेटे हॉकी खेले. अशोक कुमार ने बताया कि अगर वो और उनके भाई हॉकी खेलते हुए पकड़े जाते थे तो उनके पिता उनकी पिटाई किया करते थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि हॉकी में कोई करियर नहीं है.
...जब पहली बार ध्यानचंद ने थपथपाई थी बेटे की पीठ
अशोक कुमार ने बताया कि वर्ल्ड कप के फाइनल से पहले कभी भी उनके पिता ने उन्हें हॉकी खेलते नहीं देखा. उन्होंने बताया कि जब उनकी टीम ने 1975 में हॉकी विश्व कप जीता. उसके बाद उन्होंने अपने पिता को वर्ल्ड कप और अपना मेडल दिखाया. जिसके बाद पहली बार उनके पिता ने उनकी पीठ थपथपाई.