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'मिनी क्यूबा' के मुक्केबाजों को मदद की दरकार, बोले-सरकार साथ दे तो लगा देंगे मेडल की झड़ी

सरकारी एकेडमियों में प्रैक्टिस करने वाले मुक्केबाजों को सरकारी मदद मिल जाती है, लेकिन प्राइवेट एकेडमियों को सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिलती है, ना ही कोई सुविधा दी जाती है. इन मुक्केबाजों को अपना खर्चा खुद उठाना पड़ता है.

private boxing academies of bhiwani need government help
मुक्केबाजों को मदद की दरका
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Published : Dec 3, 2019, 10:16 AM IST

Updated : Dec 3, 2019, 12:16 PM IST

भिवानी: मुक्केबाजों की नगरी भिवानी शहर को मिनी क्यूबा के नाम से जाना जाता है, क्योंकि भिवानी शहर ने देश को विजेंद्र, दिनेश, विकास कृष्णनन, अखिल, प्रदीप समोता जैसे अंतर्राष्ट्रीय मुक्केबाज दिए है. भिवानी में 20 के करीब छोटी-बड़ी सरकारी और गैर सरकारी मुक्केबाजी एकेडमियां हैं. जहां हर रोज सैकड़ों बच्चे मुक्केबाजी के गुर सिखते हैं.

सैकड़ों बच्चे सीखते हैं मुक्केबाजी के गुर
सरकारी एकेडमियों में प्रैक्टिस करने वाले मुक्केबाजों को तो सरकारी मदद मिल जाती है, लेकिन प्राइवेट एकेडमियों को सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिलती है, ना ही कोई सुविधा दी जाती है. प्राइवेट एकेडमियों में प्रैक्टिस करने वाले मुक्केबाजों ने बताया कि वैसे तो उन्हें एकेडमी में उन्हें किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं होती है. कोच बारिकी के साथ उन्हें दांव पेंच सिखाते हैं, लेकिन अगर सरकार उनके एकेडमी की मदद कर देती तो वो और बेहतर खेल सकते हैं.

क्लिक कर देखें रिपोर्ट

प्राइवेट एकेडमियों को नहीं मिलती है सरकारी मदद
प्राइवेट एकेडमियों में प्रैक्टिस करने वाले मुक्केबाजों ने बताया कि खिलाड़ी जब खेलना शुरू करता है तो हर तरह का खर्चा खिलाड़ी को खुद को उठाना पड़ता है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचते-पहुंचते एक खिलाड़ी पर लाखों रूपये खर्च होते है, लेकिन सिर्फ राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर का मेडल मिलने पर ही खिलाड़ी को लाखों रूपये मिलते हैं.

ये भी पढ़िए: गीता जयंती महोत्सव के लिए धर्मनगरी तैयार, मुख्यमंत्री आज करेंगे मुख्य कार्यक्रमों का शुभारंभ

मुक्केबाजों ने की सरकार से मदद की अपील

सरकार खिलाड़ी के सफल होने पर ही उनकी झोली भरती है. जबकि उससे पहले के संघर्ष को जरा भी याद नहीं रखा जाता. अगर खिलाड़ी को प्रैक्टिस के दौरान बेहतर सुविधाएं और खुराक मिले तो मेडलों की संख्या में इजाफा होना कोई बड़ी बात नहीं होगी. मुक्केबाजों ने कहा कि अगर सरकार उनकी भी मदद कर दे. उन्हें प्रैक्टिस करने के लिए खुराक भत्ता और दूसरी सुविधाएं दे तो मिनी क्यूबा के मुक्केबाज राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मेडलों की बौछार कर देंगे.

भिवानी: मुक्केबाजों की नगरी भिवानी शहर को मिनी क्यूबा के नाम से जाना जाता है, क्योंकि भिवानी शहर ने देश को विजेंद्र, दिनेश, विकास कृष्णनन, अखिल, प्रदीप समोता जैसे अंतर्राष्ट्रीय मुक्केबाज दिए है. भिवानी में 20 के करीब छोटी-बड़ी सरकारी और गैर सरकारी मुक्केबाजी एकेडमियां हैं. जहां हर रोज सैकड़ों बच्चे मुक्केबाजी के गुर सिखते हैं.

सैकड़ों बच्चे सीखते हैं मुक्केबाजी के गुर
सरकारी एकेडमियों में प्रैक्टिस करने वाले मुक्केबाजों को तो सरकारी मदद मिल जाती है, लेकिन प्राइवेट एकेडमियों को सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिलती है, ना ही कोई सुविधा दी जाती है. प्राइवेट एकेडमियों में प्रैक्टिस करने वाले मुक्केबाजों ने बताया कि वैसे तो उन्हें एकेडमी में उन्हें किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं होती है. कोच बारिकी के साथ उन्हें दांव पेंच सिखाते हैं, लेकिन अगर सरकार उनके एकेडमी की मदद कर देती तो वो और बेहतर खेल सकते हैं.

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प्राइवेट एकेडमियों को नहीं मिलती है सरकारी मदद
प्राइवेट एकेडमियों में प्रैक्टिस करने वाले मुक्केबाजों ने बताया कि खिलाड़ी जब खेलना शुरू करता है तो हर तरह का खर्चा खिलाड़ी को खुद को उठाना पड़ता है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचते-पहुंचते एक खिलाड़ी पर लाखों रूपये खर्च होते है, लेकिन सिर्फ राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर का मेडल मिलने पर ही खिलाड़ी को लाखों रूपये मिलते हैं.

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मुक्केबाजों ने की सरकार से मदद की अपील

सरकार खिलाड़ी के सफल होने पर ही उनकी झोली भरती है. जबकि उससे पहले के संघर्ष को जरा भी याद नहीं रखा जाता. अगर खिलाड़ी को प्रैक्टिस के दौरान बेहतर सुविधाएं और खुराक मिले तो मेडलों की संख्या में इजाफा होना कोई बड़ी बात नहीं होगी. मुक्केबाजों ने कहा कि अगर सरकार उनकी भी मदद कर दे. उन्हें प्रैक्टिस करने के लिए खुराक भत्ता और दूसरी सुविधाएं दे तो मिनी क्यूबा के मुक्केबाज राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मेडलों की बौछार कर देंगे.

Intro:रिपोर्ट इन्द्रवेश भिवानी
दिनांक 28 नवंबर।
मिनी क्यूबा के मुक्केबाजों को सरकार से सहायता की दरकार
निजी अकादमियों में अपने दम पर कर रहे मुक्केबाजी का अभ्यास
मिनी क्यूबा की प्राईवेट अकादमियां गुजर रही है संघर्ष के दौर से
अंतर्राष्ट्रीय मुक्केबाजों की नगरी है भिवानी
मुक्केबाजों की नगरी भिवानी शहर को मिनी क्यूबा के नाम से जाना जाता है। क्योंकि भिवानी शहर ने देश को बिजेंद्र, दिनेश, विकास कृष्णनन, अखिल, प्रदीप समोता जैसे अंतर्राष्ट्रीय मुक्केबाज देश को दिए है। यहां भिवानी शहर में 20 के लगभग छोटी-बड़ी सरकार व गैर सरकारी मुक्केबाजी अकादमियां हैं। भिवानी की इन प्राईवेट अकादमियों में सैंकड़ों बच्चें प्रतिदिन मुक्केबाजी का अभ्यास करते हैं। प्राईवेट अकादमियों की हम बात करें पराशर बॉक्सिंग अकादमी की तो सरकार की तरफ से इस अकादमी को कोई भी सुविधा प्राप्त नहीं है। जबकि यहां 150 के लगभग मुक्केबाज प्रतिदिन अभ्यास करते हैं।
भारत के लिए ओलंपिक मैडल लाने वाले विजेंद्र व भारत खेल रत्न पुरस्कार से नवाजे जाने वाले मुक्केबाज भले ही भिवानी से हो, परन्तु मिनी क्यूबा की दर्जन भर के लगभग खेल अकादमियों को प्रदेश सरकार की तरफ से कोई सुविधा नहीं मिल रही हैं। यह अकादमियां अपने व्यक्तिगत संसाधनों के बूते पर ही अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी तैयार करने का अमादा है।
पराशर बॉक्सिंग अकादमी के कोच विकास कुमार बताते है कि वे अपने अकादमी को मात्र खिलाडिय़ों से प्राप्त होने वाली फीस के आधार पर चलाते है। ऐसे में बहुत सी ऐसी सुविधाएं है, जो खिलाडिय़ों को मिलनी चाहिए। परन्तु आर्थिक अभाव के चलते ये खिलाड़ी उन सुविधाओं से महरूम है। उन्होंने बताया कि कोई भी खिलाड़ी जब खेलना शुरू करता है तो हर प्रकार का खर्चा खिलाड़ी को खुद को उठाना पड़ता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचते-पहुंचते एक खिलाड़ी पर लाखों रूपये खर्च होते है, परन्तु सिर्फ राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर का मैडल मिलने पर ही खिलाड़ी को लाखों रूपये मिलते है। सरकार खिलाड़ी के सफल पर होने पर ही मुक्केबाज की झोली भरती है, परन्तु उससे पहले के संघर्ष को जरा भी याद नहीं रखा जाता। यदि खिलाड़ी को अभ्यास के दौरान खिलाड़ी को बेहतर सुविधाएं व खुराक मिले तो मैडलों की संख्या में इजाफा होना कोई बड़ी बात नहीं होगी। इसीलिए उनकी सरकार से भी मांग है कि सरकार मिनी क्यूबा की इन बॉक्सिंग अकादमियों को आर्थिक सहायता दें व यहां अभ्यास करने वाले मुक्केबाजों को खुराक भत्ता व अन्य सुविधाएं दे तो मिनी क्यूबा के मुक्केबाज राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मैडलों की बौछार कर देंगे।
Body: मुक्केबाजी कोच विकास कुमार का कहना है कि बहुत से खिलाड़ी आर्थिक अभाव व खराब पारिवारिक स्थिति के चलते मुक्केबाजी को बीच में ही छोड़ देते है, जिसके कारण देश होनहार मुक्केबाजों से हाथ धो बैठता है, जो भविष्य के अंतर्राष्ट्रीय मैडल धारी हो सकते थे। उनका कहना है कि भिवानी के मुक्केबाजों में राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर के मैडल लाने की क्षमता है। ऐसे में मिनी क्यूबा के मुक्केबाजों को विशेष प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
इस अकादमी में अभ्यास करने वाले मुक्केबाज शुभम तंवर व विकास का कहना है कि वे अपने खर्चे पर यहां अभ्यास करते हैं। सरकार की तरफ से उन्हे कोई भी सहायता मिली है। यदि सरकार व खेल मंत्रालय उन पर ध्यान देते है तो वे अपने अभ्यास को निरंतर जारी रखते हुए देश के लिए मैडल लाने में सक्षम हैं।
Conclusion: गौरतलब है कि मैडल लाने वाले जिन मुक्केबाजों को हम सिरआंखों पर बैठा लेते है, उनके संघर्ष के दौर बड़े अभाव में गुजरते है। ऐसा भिवानी की विभिन्न प्राईवेट अकादमियों में देखने को मिला है। ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी को तैयारी करने की प्रक्रिया में धन, समय व प्रशिक्षण पर जोर लगाए जाने की जरूरत साफ झलकती हैं।
बाईट : शुभम तंवर व विकास मुक्केबाज एवं विकास कुमार कोच।
Last Updated : Dec 3, 2019, 12:16 PM IST
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