भिवानी: मुक्केबाजों की नगरी भिवानी शहर को मिनी क्यूबा के नाम से जाना जाता है, क्योंकि भिवानी शहर ने देश को विजेंद्र, दिनेश, विकास कृष्णनन, अखिल, प्रदीप समोता जैसे अंतर्राष्ट्रीय मुक्केबाज दिए है. भिवानी में 20 के करीब छोटी-बड़ी सरकारी और गैर सरकारी मुक्केबाजी एकेडमियां हैं. जहां हर रोज सैकड़ों बच्चे मुक्केबाजी के गुर सिखते हैं.
सैकड़ों बच्चे सीखते हैं मुक्केबाजी के गुर
सरकारी एकेडमियों में प्रैक्टिस करने वाले मुक्केबाजों को तो सरकारी मदद मिल जाती है, लेकिन प्राइवेट एकेडमियों को सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिलती है, ना ही कोई सुविधा दी जाती है. प्राइवेट एकेडमियों में प्रैक्टिस करने वाले मुक्केबाजों ने बताया कि वैसे तो उन्हें एकेडमी में उन्हें किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं होती है. कोच बारिकी के साथ उन्हें दांव पेंच सिखाते हैं, लेकिन अगर सरकार उनके एकेडमी की मदद कर देती तो वो और बेहतर खेल सकते हैं.
प्राइवेट एकेडमियों को नहीं मिलती है सरकारी मदद
प्राइवेट एकेडमियों में प्रैक्टिस करने वाले मुक्केबाजों ने बताया कि खिलाड़ी जब खेलना शुरू करता है तो हर तरह का खर्चा खिलाड़ी को खुद को उठाना पड़ता है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचते-पहुंचते एक खिलाड़ी पर लाखों रूपये खर्च होते है, लेकिन सिर्फ राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर का मेडल मिलने पर ही खिलाड़ी को लाखों रूपये मिलते हैं.
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मुक्केबाजों ने की सरकार से मदद की अपील
सरकार खिलाड़ी के सफल होने पर ही उनकी झोली भरती है. जबकि उससे पहले के संघर्ष को जरा भी याद नहीं रखा जाता. अगर खिलाड़ी को प्रैक्टिस के दौरान बेहतर सुविधाएं और खुराक मिले तो मेडलों की संख्या में इजाफा होना कोई बड़ी बात नहीं होगी. मुक्केबाजों ने कहा कि अगर सरकार उनकी भी मदद कर दे. उन्हें प्रैक्टिस करने के लिए खुराक भत्ता और दूसरी सुविधाएं दे तो मिनी क्यूबा के मुक्केबाज राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मेडलों की बौछार कर देंगे.