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सोशल मीडिया तक सीमित 'वॉकल फॉर लोकल', आज भी लोगों के इंतजार में हैं कुम्हार - भिवानी कुम्हार परेशान

परिवेश बदलने के साथ ही मिट्टी के दीवों की मांग भी सिमट कर रह गई है. अब तो लोग सिर्फ पूजा और औपचारिकता पूरी करने के लिए मिट्टी के दीयों की खरीदारी करते हैं.

people buying electronic lights over earthen lamps in bhiwani
सोशल मीडिया तक सीमित 'वॉकल फॉर लोकल', आज भी लोगों का इंतजार कर रहे कुम्हार
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Published : Nov 11, 2020, 2:06 PM IST

भिवानी: दिवाली में कुछ दिनों का वक्त बचा है. ऐसे में भिवानी शहर में जगह-जगह मिट्टी के दीयों के स्टॉल लगने लगे हैं, लेकिन मिट्टी के दीयों के आगे चाइनीज लड़ियां भारी साबित हो रही हैं. भले ही 'वॉकल फॉर लोकल' का नारा पीएम मोदी द्वारा दिया गया हो, लेकिन ये नारा सिर्फ सोशल मीडिया पर भी अपनी छाप छोड़ रहा है. असल जिंदगी में लोग आज भी अपनी बगल वाली दुकान में बिकने वाले दीयों से ज्यादा चाइनीज लड़ियों को खरीद रहे हैं.

परिवेश बदलने के साथ ही मिट्टी के दीवों की मांग भी सिमट कर रह गई है. अब तो लोग सिर्फ पूजा और औपचारिकता पूरी करने के लिए मिट्टी के दीयों की खरीदारी करते हैं. कोई 11 पीस खरीदता है तो कोई 20 पीस. ये सब महज रसमो-रिवाज को पूरा करने के लिए हो रहा है.

सोशल मीडिया तक सीमित 'वॉकल फॉर लोकल', आज भी लोगों के इंतजार में हैं कुम्हार

भिवानी के कुंभकार ईश्वर ने बताया कि वो सालों से मिट्टी के बर्तन बना रहे हैं. ये उनका पुश्तैनी काम है, इसीलिए छोड़ भी नहीं सकते. परिवार का पालन-पोषण इन्हीं मिट्टी के बर्तनों के सहारे चलता है. उन्होंने कहा कि इन दिनों आधुनिकता दीयों पर हावी है. पहले जिस घर में 100 से 150 दीये जलते थे. आज उस घर में सिर्फ नाम के 20 से 25 दीये ही जल रहे हैं.

ये भी पढ़िए: त्योहारी सीजन में कोरोना नियमों की पालना करवाने के लिए सख्त हुआ नगर निगम

कुंभकार ने आगे कहा कि दीपक पवित्रता, शुद्धता और शुभता का प्रतीक है. घर में उजाला भी इसी से होता है. ये हमारी संस्कृति का प्रमुख आधार है, इसीलिए हमें इस परंपरा को आगे बढ़ाना चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर दिवाली में लोग उनके हाथों से बने मिट्टी के दीये खरीदेंगे तो ये दिवाली उनके लिए भी ढेरों खुशियां लेकर आएगी.

भिवानी: दिवाली में कुछ दिनों का वक्त बचा है. ऐसे में भिवानी शहर में जगह-जगह मिट्टी के दीयों के स्टॉल लगने लगे हैं, लेकिन मिट्टी के दीयों के आगे चाइनीज लड़ियां भारी साबित हो रही हैं. भले ही 'वॉकल फॉर लोकल' का नारा पीएम मोदी द्वारा दिया गया हो, लेकिन ये नारा सिर्फ सोशल मीडिया पर भी अपनी छाप छोड़ रहा है. असल जिंदगी में लोग आज भी अपनी बगल वाली दुकान में बिकने वाले दीयों से ज्यादा चाइनीज लड़ियों को खरीद रहे हैं.

परिवेश बदलने के साथ ही मिट्टी के दीवों की मांग भी सिमट कर रह गई है. अब तो लोग सिर्फ पूजा और औपचारिकता पूरी करने के लिए मिट्टी के दीयों की खरीदारी करते हैं. कोई 11 पीस खरीदता है तो कोई 20 पीस. ये सब महज रसमो-रिवाज को पूरा करने के लिए हो रहा है.

सोशल मीडिया तक सीमित 'वॉकल फॉर लोकल', आज भी लोगों के इंतजार में हैं कुम्हार

भिवानी के कुंभकार ईश्वर ने बताया कि वो सालों से मिट्टी के बर्तन बना रहे हैं. ये उनका पुश्तैनी काम है, इसीलिए छोड़ भी नहीं सकते. परिवार का पालन-पोषण इन्हीं मिट्टी के बर्तनों के सहारे चलता है. उन्होंने कहा कि इन दिनों आधुनिकता दीयों पर हावी है. पहले जिस घर में 100 से 150 दीये जलते थे. आज उस घर में सिर्फ नाम के 20 से 25 दीये ही जल रहे हैं.

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कुंभकार ने आगे कहा कि दीपक पवित्रता, शुद्धता और शुभता का प्रतीक है. घर में उजाला भी इसी से होता है. ये हमारी संस्कृति का प्रमुख आधार है, इसीलिए हमें इस परंपरा को आगे बढ़ाना चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर दिवाली में लोग उनके हाथों से बने मिट्टी के दीये खरीदेंगे तो ये दिवाली उनके लिए भी ढेरों खुशियां लेकर आएगी.

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