भिवानी: एक ओर जहां सरकारी स्तर पर भिवानी का कस्बा लोहारू के क्षेत्रों में बढ़ते रेगिस्तान को रोकने के लिए हरे-भरे पेड़ लगाने की हिदायत जारी की जा रही है. वहीं दूसरी ओर इन क्षेत्रों में अवैध रूप से वृक्षों की दुर्बल प्रजातियों की बड़े पैमाने पर कटाई होने से उनके अस्तित्व का संकट खड़ा हो रहा है. पेड़ों की कटाई के परंपरागत तरीके अब पूरी तरह बदल चुके है. जिसके कारण लोहारू में पेड़ों की कटाई का कार्य तेजी से हो रहा है. बड़ी संख्या में लोगों द्वारा पेड़ों की कटाई करने से मरुस्थलीय विशेषताओं से युक्त जाटी (खेजड़ी) के पेड़ों का अस्तित्व खतरे में पड़ता जा रहा है.
हरियाणा के अंतिम छोर पर बसे लोहारू में खेजड़ी के पेड़ पर लगने वाले फल को लोग बड़े चाव से खाते हैं. इसकी पत्तियां पशुओं के लिए पौष्टिक चारे का काम करती हैं. लंबी जड़ों और गहराई तक नमी को साैंखने की क्षमता रखने के कारण यह वृक्ष कम वर्षा वाले क्षेत्रों में बड़ी आसानी से वृद्धि करता रहता हैं. इसके अलावा 24 घंटे ऑक्सीजन का उत्सर्जन करने वाले इस पेड़ को पर्यावरण को संतुलित बनाए रखने में भी सहायक माना जाता है.
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इतने गुणों से भरपूर इस पेड़ को अब धीरे-धीरे वन माफिया निगलता जा रहा है. किसानों की नासमझी का फायदा उठाकर, इस कारोबार में लगे लोग इन पेड़ों की अवैध कटाई से अच्छा खासा धन अर्जित कर रहे हैं. यदि कानूनी दृष्टि से देखा जाए तो सफेदा व पॉपुलर के पेड़ों को छोड़कर अन्य किसी भी वृक्ष को काटने के लिए विभाग की अनुमति ली जानी आवश्यक है. कारोबारियों के झांसे में आकर किसानों में भी पेड़ काटने की प्रवृत्ति पनपती जा रही हैं.
हालांकि पहले किसान पेड़ों की कटाई अपनी घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के अनुसार ही करते थे. जबकि इस समय इनकी बिक्री करके लाभ कमाने का धंधा शुरू कर दिया गया है. इन क्षेत्रों में पेड़ों की लगातार हो रही कटाई के दो ही कारण मुख्य रूप से सामने आए हैं. इनमें से एक तो भिवानी में वन माफिया द्वारा किसानों को पेड़ काटने के लिए उकसाना है और दूसरा कारण पेड़ों पर सरकारी नियंत्रण जैसी फैलती अफवाह है.
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जानकार लोगों का मानना है कि अगर इस क्षेत्र में इसी रफ्तार से वन क्षेत्र घटता गया तो यहां वर्षा की मात्रा में और कमी आएगी. यह भी संभव है कि भूमिगत जल भी पहुंच से बाहर हो जाए. अब इस विकट स्थिति से बचने तथा राजस्थान की ओर से बढ़ रहे रेगिस्तान को रोकने के लिए ये जरूरी है कि वन विभाग, लोक संपर्क विभाग व सामाजिक संस्थाएं मिलकर लोगों को पेड़ों के महत्व से अवगत कराएं. उन्हें भावनात्मक स्तर पर वन संरक्षण के लिए प्रेरित किया जाए.