भिवानी: भगवान शिव का प्रिय सावन का महीना यानी श्रावण मास शुरू हो चुका है. भिवानी में श्रावण मास के पहले सोमवार पर भगवान शिव के दरबार में शिवलिंग पर गंगाजल एवं दूध और जल से स्नान करवाया गया. सुबह से ही संत महात्माओं और श्रद्धालुओं ने मास्क पहनकर भगवान शिव की आराधना की. मंदिरों के चारों तरफ दीवारों पर सामाजिक दूरी बनाने, मास्क पहनने और सैनिटाइजर के प्रयोग के हार्डिंग व पोस्टर लगाए गए थे.
लोगों ने किया शिवलिंग पर जलाभिषेक
हनुमान जोहड़ी मंदिर के पुजारी चरणदास ने कोविड-19 के चलते श्रद्धालु से घर में ही भगवान शिव की आराधना करने की अपील की. उन्होंने कोरोना संकट के चलते इस बार कावड़ यात्रा को रोकने की सरकार के फैसले की सराहना की. उन्होंने कहा कि इस बार हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार ने हरिद्वार गंगा तट के लिए कोविड-19 के चलते संयुक्त निर्णय लिया है, जिसमें इस बार हरिद्वार में कावड़ियों का समागम नहीं होगा.
उन्होंने कहा कि इसलिए सभी शिवभक्त तीनों सरकारों के निर्णय का सम्मान करें. ये निर्णय जनहित को देखते हुए लिया गया है और सही है. चरणदास ने कहा कि इस बार शिवरात्रि का पर्व कोविड-19 के दौरान सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए मनाया जा रहा है, ताकि लोग कोविड-19 जैसी महामारी से बच सकें.
इसलिए पवित्र है सावन का महीना
पौराणिक कथा के अनुसार जब देवता और दानवों ने मिलकर समुंद्र मंथन किया तो हलाहल विष निकला. विष के प्रभाव से संपूर्ण सृष्टि में हलचल मच गई. ऐसे में सृष्टि की रक्षा के लिए महादेव ने विष का पान कर लिया. शिव जी ने विष को अपने कंठ के नीचे धारण कर लिया था. यानी विष को गले से नीचे जाने ही नहीं दिया. विष के प्रभाव से भगवान भोले का कंठ नीला पड़ गया और उनका एक नाम नीलकंठ भी पड़ा.
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विष का ताप शिव जी के ऊपर बढ़ने लगा. तब विष का प्रभाव कम करने के लिए पूरे महीने घनघोर वर्षा हुई और विष का प्रभाव कुछ कम हुआ. लेकिन अत्यधिक वर्षा से सृष्टि को बचाने के लिए भगवान शिव ने अपने मस्तक पर चन्द्र धारण किया. चन्द्रमा शीतलता का प्रतीक है और भगवान शिव को इससे शीतलता मिली. ये घटना सावन मास में घटी थी, इसीलिए इस महीने का इतना महत्व है और इसीलिए तब से हर वर्ष सावन में भगवान शिव को जल चढ़ाने की परम्परा की शुरुआत हुई.