अंबाला: गर्मी का सीजन आते ही सड़क किनारे नींबू पानी, शिकंजी और ठंडा पानी जैसी कई रेहड़ी लगाने वाले दिख जाया करते थे. जो इस चिलचिलाती गर्मी में लोगों की प्यास बुझाने का काम करते थे, लेकिन कोरोना वायरस और लॉकडाउन की वजह से इन रेहड़ी वालों का काम पूरी तरह से ठप हो गया है.
लॉकडाउन का असर सड़क किनारे रेहड़ी लगाने वालों पर कितना पड़ा है. ये जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम ग्राउंड जीरो पर पहुंची और जाना कि लॉकडाउन से उनकी आमदनी पर कितना असर पड़ा है.
ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान रेहड़ी लगाने वालों ने बताया कि अब उनका काम आधे से भी कम हो गया है. आमदनी ना के बराबर ही रह गई है. पहले वो रोज के 400 से 500 रुपये कमा लेते थे, लेकिन कोरोना काल में उनके लिए खर्च निकालना भी मुश्किल हो रहा है. उन्होंने कहा कि वो सड़क किनारे खड़े रहते हैं, लेकिन कोई भी ग्राहक उनके पास आकर नहीं रुकता है.
वहीं ग्राउंड जीरो के दौरान कई रेहड़ी वाले ऐसे भी दिखे जिन्होंने काम बंद होने की वजह से अपना धंधा ही बदल दिया. बाबू नाम के रेहड़ी वाले ने बताया कि वो पहले गोलगप्पे बेचने का काम करता था, लेकिन लोगों ने कोरोना के डर से गोलगप्पे ही खाने बंद कर दिया. जिसके बाद अब उसने सब्जी बेचने का काम शुरू किया है.
दरअसल, कोरोना वायरस को देखते हुए लोग एक दूसरे के संपर्क में आने से बच रहे हैं. साथ ही लोग जरूरी काम होने पर ही घर से बाहर निकल रहे हैं. ऐसे में लोग बाहर का खाने-पीने से भी परहेज कर रहे हैं. जब इस बारे में स्थानीय लोगों से बात की गई तो उन्होंने कहा कि वो बाहर तो आते हैं, लेकिन बाहर कुछ खाते-पीते नहीं हैं.
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ई-रिक्शा चलाक ने कहा कि बाहर का खाने-पीने से डर लगता है. क्या पता सामने वाले को कोरोना हो? वो घर से निकलने पर अपने साथ पानी लेकर आते हैं. जब प्यास लगती है तो घर से लाया पानी ही पीते हैं, लेकिन बाहर कुछ नहीं पीते हैं.
लॉकडाउन और कोरोना वायरस ने सड़क किनारे रेहड़ी लगाने वालों का काम चौपट कर दिया है. खासकर वो रेहड़ी वाले जो पेयजल बेचा करते थे, क्योंकि लोग कोरोना के डर से सड़क किनारे का कुछ भी खाने-पीने से बच रहे हैं. ऐसे में इन रेहड़ी वालों पर आर्थिक तंगी का पहाड़ टूट पड़ा है.