सोनीपत: ये कहानी है एक ऐसे प्रगतिशील किसान कि जिन्होंने अपनी सूझ बूझ की बदौलत करीब दस हजार किसानों की जिंदगी बदल दी. इनका नाम कंवल सिंह चौहान जो कि अटेरना गांव सोनीपत के रहने वाले हैं. 16 साल की उम्र से ही कंवल सिंह किसानी में सक्रिय हो गए थे. वे शुरू से ही खेती में आने वाली चुनौतियों के नए समाधान की तलाश में रहते थे. साल 1998 के बाद कंवल सिंह ने ऐसा कमाल किया कि आज इनके पास चार प्रोसेसिंग यूनिट्स हैं. कंवल सिंह के बिजनेस मॉडल की सबसे बड़ी खासियत यह है कि ये किसानों को खेती से पहले उनकी उपज खरीदने की गारंटी देते हैं.
परिवार का पेट पालने के लिए 16 साल की उम्र उठाया हल- कंवल सिंह पहली बार साल 1978 में खेती करने के लिए उतरे. दरअसल उनके पिता की मौत हो गई थी. इसके बाद परिवार का पेट पालने की जिम्मेदारी 16 साल के कंवल सिंह कंधों पर आ गई. शुरुआत में कंवल सिंह धान का ही उत्पादन करते थे. लेकिन साल 1985 में धान की खेती में आई बीमारी की वजह से कंवल सिंह चौहान को काफी नुकसान झेलना पड़ा. नौबत यहां तक आ गई कि उनके कंधे कर्ज के बोझ के तले दब गए. हालांकि उन्होंने हार नहीं मानी. इस दौरान कंवल सिंह चौहान के मन में ख्याल आया कि क्यों ना अपने खेत में बायोगैस प्लांट लगाकर जैविक खेती की जाय.
फसल बेचने के लिए लगाने पड़े फाइव स्टार होटलों के चक्कर- साल में 1997 में कंवल सिंह ने पहली बार सोनीपत में बेबी कॉर्न और मशरूम की खेती (baby corn and mushroom farming In Sonipat) की. इसके बाद उन्होंने अपनी फसल को बेचने के लिए फाइव स्टार होटलों के चक्कर लगाने पड़े. कई जगहों पर बात न बनते देख कंवल सिंह चौहान ने पहली बार आजादपुर सब्जी मंडी में एक मशरूम की दुकान पर बेबीकॉर्न, मशरूम बेचने के लिए पहुंचे. यहां उनकी सारी फसल बिक गई. फिर क्या था कंवल सिंह ने यहीं से बेबीकॉर्न और मशरूम की खेती करने का ही फैसला कर लिया.
यहीं से कंवल सिंह चौहान ने अपनी पहचान एक प्रगतिशील किसान (Progressive Farmer Kanwal Singh Chouhan) के रूप में बनानी शुरू कर दी. साल 2000 तक अटेरना गांव के अधिकतर किसानों ने कंवल सिंह की तरह ही बेबीकॉर्न और स्वीट कॉर्न उगाना शुरू कर दिया. उत्पादन बढ़ने और बाजार की कमी ने एक बार फिर से कंवल सिंह के सामने परेशानी खड़ी कर दी थी. परन्तु कंवल सिंह चौहान ने हार नहीं मानी.
किसानों को आगे बढ़ाने के लिए लगाई फूड प्रोसेसिंग यूनिट कंवल सिंह चौहान ने खुद के साथ-साथ क्षेत्र के किसानों को आगे बढ़ाने के लिए फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाने का मन बनाया. इसके बाद सोसायटी गठित करके एच.एस.आई.आई.डी.सी. में पहली यूनिट लगाई. मौजूदा समय में कंवल सिंह चौहान अटेरना, मनौली सहित कई दर्जन गांवों के हजारों किसानों की आमदनी बढ़ा रहे हैं. इसके अलावा वे अब तक पांच सौ लोगों को रोजगार मुहैया करा चुके हैं. कंवल सिंह के इस उपलब्धि को देखते हुए भारत सरकार ने साल 2019 में उन्हें खेती के क्षेत्र में अच्छा कार्य करने के लिए पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित कर चुकी (Padma Shri Awardee Kanwal Singh Chouhan) है.
सरकार ने कंवल सिंह चौहान को फॉदर ऑफ बेबीकॉर्न के नाम दिया (Father Of Baby Corn Kanwal Singh Chouhan) है. वे आज पूरे हरियाणा के किसानों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन चुके हैं. हालांकि कंवल सिंह चौहान अपनी इस कामयाबी को एक छोटा सा पड़ाव मानते हैं. उनका लक्ष्य हरियाणा के हर जिले में प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित करके किसानों की आय को दोगुना नहीं पांच से छ गुना करना है ताकि किसी किसान का सिर कर्ज के पहाड़ के सामने झुक न सके.
मिल चुके हैं कई अवॉर्ड देश के नागरिकों को मिलने वाले सबसे बड़े सम्मानों में से एक पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त करने से पहले कंवल सिंह चौहान कई मंचों पर सम्मानित हो चुके हैं. सबसे पहले कंवल सिंह चौहान को साल 2005 में डीसी सोनीपत द्वारा देवीलाल किसान पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. इसके बाद राजीव गांधी अवार्ड, एन.जी. रंगा अवार्ड, कृषि के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए प्रदेश स्तरीय अवार्ड कंवल सिंह को प्राप्त हो चुके है. गुजरात, हरियाणा के साथ-साथ पंजाब और दिल्ली स्थित पूसा द्वारा भी कंवल सिंह चौहान को कई बार सम्मानित किया गया है.