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Paddy cultivation in Haryana: धान की जगह दलहन की खेती की ओर किसानों का बढ़ा रुख - Paddy cultivation in Haryana

बढ़ते भूमिगत जल संकट (water crisis in Haryana) को देखते हुए हरियाणा सरकार ने किसानों से आग्रह किया है कि धान की फसल की जगह अन्य कोई फसल किसान उगाएं जिससे घटते भूमिगत जल के बावजूद भी अच्छी पैदावार की जा सके.

Paddy cultivation in Haryana
प्रदेश में धान की बुआई के रकबे में आई कमी
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Published : Jul 31, 2022, 11:55 AM IST

Updated : Jul 31, 2022, 1:34 PM IST

पानीपत: भूजल संकट और बढ़ रहे डार्क जोन (water crisis in Haryana) को लेकर सरकार धान की फसल लगाने वाले किसानों से इस फसल को छोड़कर अन्य फसल उगाने के लिए लगातार आग्रह कर रही है. पिछले साल के मुकाबले इस साल हरियाणा प्रदेश में धान की अब तक करीब 24.4 प्रतिशत कम बुवाई हुई है. इसके अलावा अरहर भी पिछले साल के मुकाबले कम बोया गया है. उधर मूंग दाल पिछले साल के मुकाबले ज्यादा बोई गई है. कपास का रकबा भी पिछले साल के मुकाबले कुछ प्रतिशत ही बढ़ा है. जिसके चलते सरकार किसानों से लगातार आग्रह कर रही है.


2021 में हुई 15.6 हैक्टेयर भूमि पर धान की फसल की बुआई : हरियाणा एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट के ज्वाइंट डायरेक्टर जागराज डांडी (Haryana Agriculture Department) ने बताया कि पिछले साल 2021 में प्रदेश में 15.6 हैक्टेयर भूमि पर धान की फसल की बुआई की गई थी और अबतक प्रदेश में 12 लाख हैक्टेयर भूमि पर धान की फसल की बुआई हो चुकी (Paddy cultivation decreased in Haryana) है और किसानों का रुझान दलहन की फसलों की तरफ हुआ है.

सरकार भी कर रही है प्रोत्साहित: जगराज डांडी ने बताया कि पिछले साल के मुताबिक धान की फसलों की बुवाई में कमी आने का मुख्य कारण सरकार द्वारा चलाई गई कुछ नई नीतियां भी हैं. डार्क जोन को बढ़ता देख सरकार ने किसानों को चावल की फसल को छोड़कर अन्य फसल लगाने वाले किसानों को 7000 रुपए प्रति एकड़ प्रोत्साहन राशि दे रही जिसके चलते धान की बुआई में कमी आई है और किसानों का रुझान दलहन की खेती की तरफ हुआ है.

क्या रेट पर भी असर पड़ सकता है: एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट के ज्वाइंट डायरेक्टर ने बताया कि कम पैदावार से कोई बहुत असर नहीं पड़ेगा क्योंकि प्रदेश ही नहीं बल्कि देश चावल सरप्लस है और हमे दालें बाहर से इंपोर्ट करना पड़ता है. अगर दाल की पैदावार बढ़ेगी तो इनके रेट पर भी असर पड़ेगा. लेकिन अगर लगातार पैदावार में गिरावट होती रही तो दिक्कत आ सकती है. देश से बड़ी मात्रा में बासमती एक्सपोर्ट भी होती है.

कम लागत में जायदा मुनाफा देती है की दलहन फसलें: अगर दलहन की फसलों के मुकाबले धान की खेती की जाए तो इससे आधे से भी कम लागत दलहनी फसलों में आती है. हरियाणा में धान की नर्सरी से लेकर और मंडी तक पहुंचाने तक में करीब 20 हजार रुपये प्रति एकड़ लागत आती है. लेकिन अगर आप इसकी जगह मूंग की खेती करते हैं तो उसका एक एकड़ में मुश्किल से 8-9 हजार का खर्चा आता है. अब दलहनों का रेट भी अच्छा मिलता है.

धान की जगह दलहन की खेती की ओर किसानों का बढ़ा रुख
क्या कहते हैं किसान: धान की फसलों को छोड़कर दलहन की फसल लगाने के बारे में किसानों का कहना है कि सरकार ने जो 7000 रुपए प्रति एकड़ देने की स्कीम किसानों के लिए चलाई है वह एक अच्छी स्कीम है और दाल भी कम लागत में अच्छा मुनाफा देने वाली फसलें हैं, लेकिन सरकार साथ ही यह सुनिश्चित करे कि दाल की मंडियों में और किस भाव पर बिकेगी. किसानों ने कहा कि एमएसपी तय किया गया है पर निर्धारित एमएसपी पर दाल की फसल खरीदने वाला कोई खरीदार नहीं मिलता तो पहले सरकार को इनकी मंडिया सुनिश्चित करनी चाहिए और एमएसपी पर खरीदने वाले खरीदार भी होने चाहिए.

पानीपत: भूजल संकट और बढ़ रहे डार्क जोन (water crisis in Haryana) को लेकर सरकार धान की फसल लगाने वाले किसानों से इस फसल को छोड़कर अन्य फसल उगाने के लिए लगातार आग्रह कर रही है. पिछले साल के मुकाबले इस साल हरियाणा प्रदेश में धान की अब तक करीब 24.4 प्रतिशत कम बुवाई हुई है. इसके अलावा अरहर भी पिछले साल के मुकाबले कम बोया गया है. उधर मूंग दाल पिछले साल के मुकाबले ज्यादा बोई गई है. कपास का रकबा भी पिछले साल के मुकाबले कुछ प्रतिशत ही बढ़ा है. जिसके चलते सरकार किसानों से लगातार आग्रह कर रही है.


2021 में हुई 15.6 हैक्टेयर भूमि पर धान की फसल की बुआई : हरियाणा एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट के ज्वाइंट डायरेक्टर जागराज डांडी (Haryana Agriculture Department) ने बताया कि पिछले साल 2021 में प्रदेश में 15.6 हैक्टेयर भूमि पर धान की फसल की बुआई की गई थी और अबतक प्रदेश में 12 लाख हैक्टेयर भूमि पर धान की फसल की बुआई हो चुकी (Paddy cultivation decreased in Haryana) है और किसानों का रुझान दलहन की फसलों की तरफ हुआ है.

सरकार भी कर रही है प्रोत्साहित: जगराज डांडी ने बताया कि पिछले साल के मुताबिक धान की फसलों की बुवाई में कमी आने का मुख्य कारण सरकार द्वारा चलाई गई कुछ नई नीतियां भी हैं. डार्क जोन को बढ़ता देख सरकार ने किसानों को चावल की फसल को छोड़कर अन्य फसल लगाने वाले किसानों को 7000 रुपए प्रति एकड़ प्रोत्साहन राशि दे रही जिसके चलते धान की बुआई में कमी आई है और किसानों का रुझान दलहन की खेती की तरफ हुआ है.

क्या रेट पर भी असर पड़ सकता है: एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट के ज्वाइंट डायरेक्टर ने बताया कि कम पैदावार से कोई बहुत असर नहीं पड़ेगा क्योंकि प्रदेश ही नहीं बल्कि देश चावल सरप्लस है और हमे दालें बाहर से इंपोर्ट करना पड़ता है. अगर दाल की पैदावार बढ़ेगी तो इनके रेट पर भी असर पड़ेगा. लेकिन अगर लगातार पैदावार में गिरावट होती रही तो दिक्कत आ सकती है. देश से बड़ी मात्रा में बासमती एक्सपोर्ट भी होती है.

कम लागत में जायदा मुनाफा देती है की दलहन फसलें: अगर दलहन की फसलों के मुकाबले धान की खेती की जाए तो इससे आधे से भी कम लागत दलहनी फसलों में आती है. हरियाणा में धान की नर्सरी से लेकर और मंडी तक पहुंचाने तक में करीब 20 हजार रुपये प्रति एकड़ लागत आती है. लेकिन अगर आप इसकी जगह मूंग की खेती करते हैं तो उसका एक एकड़ में मुश्किल से 8-9 हजार का खर्चा आता है. अब दलहनों का रेट भी अच्छा मिलता है.

धान की जगह दलहन की खेती की ओर किसानों का बढ़ा रुख
क्या कहते हैं किसान: धान की फसलों को छोड़कर दलहन की फसल लगाने के बारे में किसानों का कहना है कि सरकार ने जो 7000 रुपए प्रति एकड़ देने की स्कीम किसानों के लिए चलाई है वह एक अच्छी स्कीम है और दाल भी कम लागत में अच्छा मुनाफा देने वाली फसलें हैं, लेकिन सरकार साथ ही यह सुनिश्चित करे कि दाल की मंडियों में और किस भाव पर बिकेगी. किसानों ने कहा कि एमएसपी तय किया गया है पर निर्धारित एमएसपी पर दाल की फसल खरीदने वाला कोई खरीदार नहीं मिलता तो पहले सरकार को इनकी मंडिया सुनिश्चित करनी चाहिए और एमएसपी पर खरीदने वाले खरीदार भी होने चाहिए.
Last Updated : Jul 31, 2022, 1:34 PM IST
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