पानीपत: करोड़ों रुपए की लागत से बना पानीपत का सिविल अस्पताल डॉक्टरों के अभाव के कारण एक सफेद हाथी साबित होकर रह गया है. सिविल अस्पताल के एसएनसीयू वार्ड में सुविधाओं के अभाव में नवजात बच्चों की मौत हो रही है.
हर महीने पीलिया से औसतन 4 से 5 बच्चे मर रहे हैं. एसएनसीयू वार्ड में वेंटिलेटर और डबल सरफेस थेरेपी मशीन की कमी है. वेंटिलेटर मशीन ना होने के कारण नवजातों को खानपुर पीजीआई रेफर करना पड़ता है.
बाल रोग विशेषज्ञ के अनुसार मौसम में बदलाव व जागरूकता की कमी के कारण नवजात बच्चों की मौत हो रही है. नवजात रोग विशेषज्ञ बताते हैं कि जागरूकता के अभाव के चलते पीलिया से नवजात घिर रहे हैं.
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एसएनसीयू वार्ड में 16 इनक्यूबेटर है जबकि जरूरत 25 से अधिक की है. इन इनक्यूबेटर पर डॉक्टरों को दो-दो नवजात लेटाने पढ़ते हैं जिससे नवजात में एक दूसरे से संक्रमण का खतरा भी बना रहता है. वहीं सिविल अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञ की भारी कमी है.
पीडियाट्रिशियन के रूप में मात्र डॉ. निहारिका ही कार्यरत हैं जबकि डॉ. आलोक जैन एमएस का पदभार संभाल रहे हैं जिसके कारण वह ओपीडी में समय नहीं दे पाते और प्रशासनिक काम में व्यस्त रहते हैं. इसके अलावा स्वास्थ्य विभाग में एनएचएम के माध्यम से दो डॉक्टरों की भर्ती की है लेकिन वह विशेषज्ञ नहीं है.
विशेषज्ञ नहीं होने के कारण ये दो डॉक्टर प्राथमिक उपचार देने तक ही सीमित हैं. डॉक्टर आलोक जैन ने कहा कि पानीपत के सिविल अस्पताल में कम से कम 2 बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टरों की और जरूरत है. इस बारे में उन्होंने सरकार से कई बार गुहार भी लगाई है.
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एक तरफ हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज दिल्ली की केजरीवाल सरकार को सरकारी अस्पताल में सुविधाओं को लेकर चुनौती देते रहते हैं वहीं उनके अपने राज्य में सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा पर उनकी नजर नहीं पड़ रही है. अभी भी अगर समय रहते डॉक्टरों की कमी पूरी नहीं की गई तो नवजातों की मौतों का ये सिलसिला शायद नहीं थमेगा.