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कोरोना खतरे के बीच सिर्फ 4 हजार रुपये महीने में काम कर रहीं आशा वर्कर्स - पंचकूला आशा वर्कर्स सैलरी

कोरोना संकट में डॉक्टर और नर्स के साथ-साथ आशा वर्कर्स भी अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रही हैं. आशा वर्कर घरों में जाकर लोगों का सर्वे कर रही हैं. लेकिन आशा वर्कर्स के साथ तनख्वाह के नाम पर मजाक हो रहा है.

Asha workers Survey panchkula
आशा वर्कस पंचकूला
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Published : May 20, 2020, 6:23 PM IST

पंचकूला: कोरोना वायरस के खतरे के बीच बतौर योद्धा काम कर रहे डॉक्टरों और नर्स के साथ-साथ आशा वर्कर्स अपना योगदान बखूबी दे रही हैं. कोरोना महामारी के बीच कंटेनमेंट और बफर जोन एरिया में जाकर आशा वर्कर्स अपनी ड्यूटी को निभा रही हैं. लेकिन आशा वर्कर्स को बेहद कम सैलरी दी जाती है.

सिर्फ 4 हजार रुपये वेतन

ईटीवी भारत ने आशा वर्कर्स से बात की और उनकी परेशानियों को जाना. आशा वर्कर्स ने बताया कि उन्हें केवल 4 हजार रुपये महीने ही वेतन दिया जा रहा है. उन्होंने कहा कि सरकार आशा वर्कर्स की तनख्वाह के बारे में कुछ भी नहीं सोच रही. जबकि डॉक्टरों और नर्सों की तनख्वाह और उनके इंश्योरेंस के बारे में सोचा जाता है. आशा वर्कर्स ने कहा कि केवल 4 हजार रुपये प्रतिमाह मिलने से कोई गुजारा नहीं होता.

कोरोना खतरे के बीच सिर्फ 4 हजार रुपये महीने में काम कर रहीं आशा वर्कर्स

सर्वे कर रहीं आशा वर्कर्स

बता दें कि स्वास्थ्य विभाग द्वारा आशा वर्कर्स के जरिए फर्स्ट राउंड में एक लाख की आबादी का घर-घर जाकर सर्वे किया जा चुका है. वहीं, आशा कार्यकर्ताओं ने दूसरे राउंड में अब तक करीब साढे आठ लाख लोगों की स्क्रीनिंग की है. आशा वर्कर्स ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग द्वारा उन्हें किट, ग्लव्स मुहैया करवाए गए हैं. जिन्हें डालकर वे कंटेनमेंट और बफर जोन एरिया में जाती हैं और लोगों के घर जाकर सर्वे करती हैं.

इस तरह काम करती हैं आशा वर्कर्स

आशा वर्कर्स ने बताया कि उन्हें जिले में अलग-अलग जगहों पर भेजा गया है. जहां पर वो घर-घर जाकर लोगों का सर्वे करती हैं. उन्होंने बताया कि लोगों के घर जाकर आशा वर्कर्स लोगों से पूछती हैं कि किसी को खांसी, बुखार, जुकाम, गले में खराश आदि किसी प्रकार के कोई लक्षण तो नहीं है. 60 साल से ऊपर उम्र के बुजुर्गों से भी जानते हैं कि उनमें से किसी को शुगर, बीपी, कैंसर तो नहीं है.

उन्होंने बताया कि ऐसा करने के बाद उनका नाम, आधार कार्ड नम्बर, फोन नम्बर को नोट कर लिया जाता है. नंबर नोट करने के बाद उन्हें सेक्टर 6 नागरिक अस्पताल में रेफर किया जाता है. लेकिन जब वे खुद अस्पताल में नहीं जाते तो फिर संबंधित डिस्पेंसरी में इसकी जानकारी दी जाती है.

कभी-कभी लोग करते हैं झगड़ा

उन्होंने बताया कि सर्वे करने के दौरान कई बार लोग आशा वर्कर्स के साथ झगड़ा भी करते हैं और उन पर हावी हो जाते हैं और बोलते हैं कि तुम रोज आ जाते हो, जिस वजह से जान का खतरा बना रहता है और दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है और इसके बावजूद भी सभी आशा वर्कर्स तन मन से पूरी लगन के साथ अपना काम करने में लगी हैं.

ये भी पढ़ें- पलवल: हरियाणा-बॉर्डर पर प्रवासी मजदूरों का जमावड़ा, घर पहुंचाने के नाम पर सरकार कर रही खानापूर्ति

पंचकूला: कोरोना वायरस के खतरे के बीच बतौर योद्धा काम कर रहे डॉक्टरों और नर्स के साथ-साथ आशा वर्कर्स अपना योगदान बखूबी दे रही हैं. कोरोना महामारी के बीच कंटेनमेंट और बफर जोन एरिया में जाकर आशा वर्कर्स अपनी ड्यूटी को निभा रही हैं. लेकिन आशा वर्कर्स को बेहद कम सैलरी दी जाती है.

सिर्फ 4 हजार रुपये वेतन

ईटीवी भारत ने आशा वर्कर्स से बात की और उनकी परेशानियों को जाना. आशा वर्कर्स ने बताया कि उन्हें केवल 4 हजार रुपये महीने ही वेतन दिया जा रहा है. उन्होंने कहा कि सरकार आशा वर्कर्स की तनख्वाह के बारे में कुछ भी नहीं सोच रही. जबकि डॉक्टरों और नर्सों की तनख्वाह और उनके इंश्योरेंस के बारे में सोचा जाता है. आशा वर्कर्स ने कहा कि केवल 4 हजार रुपये प्रतिमाह मिलने से कोई गुजारा नहीं होता.

कोरोना खतरे के बीच सिर्फ 4 हजार रुपये महीने में काम कर रहीं आशा वर्कर्स

सर्वे कर रहीं आशा वर्कर्स

बता दें कि स्वास्थ्य विभाग द्वारा आशा वर्कर्स के जरिए फर्स्ट राउंड में एक लाख की आबादी का घर-घर जाकर सर्वे किया जा चुका है. वहीं, आशा कार्यकर्ताओं ने दूसरे राउंड में अब तक करीब साढे आठ लाख लोगों की स्क्रीनिंग की है. आशा वर्कर्स ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग द्वारा उन्हें किट, ग्लव्स मुहैया करवाए गए हैं. जिन्हें डालकर वे कंटेनमेंट और बफर जोन एरिया में जाती हैं और लोगों के घर जाकर सर्वे करती हैं.

इस तरह काम करती हैं आशा वर्कर्स

आशा वर्कर्स ने बताया कि उन्हें जिले में अलग-अलग जगहों पर भेजा गया है. जहां पर वो घर-घर जाकर लोगों का सर्वे करती हैं. उन्होंने बताया कि लोगों के घर जाकर आशा वर्कर्स लोगों से पूछती हैं कि किसी को खांसी, बुखार, जुकाम, गले में खराश आदि किसी प्रकार के कोई लक्षण तो नहीं है. 60 साल से ऊपर उम्र के बुजुर्गों से भी जानते हैं कि उनमें से किसी को शुगर, बीपी, कैंसर तो नहीं है.

उन्होंने बताया कि ऐसा करने के बाद उनका नाम, आधार कार्ड नम्बर, फोन नम्बर को नोट कर लिया जाता है. नंबर नोट करने के बाद उन्हें सेक्टर 6 नागरिक अस्पताल में रेफर किया जाता है. लेकिन जब वे खुद अस्पताल में नहीं जाते तो फिर संबंधित डिस्पेंसरी में इसकी जानकारी दी जाती है.

कभी-कभी लोग करते हैं झगड़ा

उन्होंने बताया कि सर्वे करने के दौरान कई बार लोग आशा वर्कर्स के साथ झगड़ा भी करते हैं और उन पर हावी हो जाते हैं और बोलते हैं कि तुम रोज आ जाते हो, जिस वजह से जान का खतरा बना रहता है और दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है और इसके बावजूद भी सभी आशा वर्कर्स तन मन से पूरी लगन के साथ अपना काम करने में लगी हैं.

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