कुरुक्षेत्र: किसान वर्मीकम्पोस्ट बनाकर अपने फसल का उत्पादन बढ़ा सकते हैं. वर्मीकम्पोस्ट खाद की विधि में बैड बनाकर उसमें फसल अवशेष, गाय का गोबर और केचुएं डाल देते हैं जिसके बाद खाद तैयार करते हैं. ये बहुत ही आसान विधि है और इसमें नाममात्र खर्च आता है.
केंचुआ खाद विधि आसान और सस्ती है
विशेषज्ञों के मुताबिक गोबर को फसल पोषण का सर्वाधिक श्रेष्ठ विकल्प माना जाता है. जिसमे पौधों के लिए आवश्यक सभी सूक्ष्म तत्व संतुलित मात्रा में उपलब्ध होते हैं. इन सूक्ष्म तत्वों को पौधे बड़ी आसानी से अवशोषित कर लेते हैं. गोबर में उपस्थित सूक्ष्मजीव मृदा में उपस्थित जैव-भार के विघटन का कार्य बहुत ही सफलतापूर्वक करते हैं. वैसे तो जैविक खाद बनाने की कई विधियां प्रचलन में हैं, लेकिन केंचुआ खाद विधि आसान और सस्ती है.
वर्मीकम्पोस्ट डेढ़ से दो माह के अंदर तैयार हो जाता है
विशेषज्ञों के अनुसार, वर्मीकम्पोस्ट में बदबू नहीं होती है और मक्खी एवं मच्छर नहीं बढ़ते है तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होता है. तापमान नियंत्रित रहने से जीवाणु क्रियाशील तथा सक्रिय रहते हैं. वर्मीकम्पोस्ट डेढ़ से दो माह के अंदर तैयार हो जाता है. इसमें 2.5 से 3 प्रतिशत नाइट्रोजन, 1.5 से 2 प्रतिशत सल्फर तथा 1.5 से 2 प्रतिशत पोटाश पाया जाता है.
सब्जी उत्कृष्टता केंद्र के जैविक खाद विशेषज्ञों की माने तो खेतों में अंधाधुंध पेस्टीसाइड दवाइयों के इस्तेमाल ने ना सिर्फ प्रकृति के जैविक व अजैविक पदार्थों के आदान-प्रदान के चक्र को प्रभावित किया है, बल्कि भूमि की उर्वरा शक्ति के साथ-साथ मनुष्य के स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचानें में अहम भूमिका निभाई है.
पेस्टीसाइड के इस्तेमाल से भूमि का स्वास्थ्य खराब हुआ है
जैविक खाद विशेषज्ञ रोहित सोनी बताते है कि पेस्टीसाइड के इस्तेमाल से भूमि का स्वास्थ्य खराब हुआ है यदि जैविक खेती की तरफ रूझान नहीं किया गया तो भविष्य में इसे भयावह परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं. सब्जी उत्कृष्टता केंद्र में जैविक खेती परियोजना के तहत केंचुआ खाद यानी वर्मी कम्पोस्ट की यूनिट लगाई हुई है. जिसका उद्देश्य भूमि स्वास्थ्य में सुधार, खेती की कुल उत्पादन लागत में कमी, गुणवत्ता युक्त स्वस्थय खाद्य उत्पादन के साथ-साथ पर्यावरण प्रदूषण को कम करना है.
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