करनाल: हरियाणा में धान की फसल काटने के बाद अवशेष में आग लगाने की समस्या काफी देखने को मिल रही है. पराली जलाने से हवा में धुएं से बहुत प्रदूषण फैलता है, जिस से सांस की बीमारियां हो सकतीं हैं. हालांकि किसानों को यह सब मजबूरी में करता है क्योंकि उनके पास इसका कोई विकल्प नहीं था. हालांकि मौजूदा समय में ऐसे ऐसे कृषि यंत्र और तकनीक आ चुकी है कि बहुत ही कम पैसों में फानो का प्रबंधन किया जाता है. अगर आप भी फसल अवशेषों की समस्या से परेशान हैं तो कुछ यंत्र पराली की समस्या को हल करने में आपके लिए बेहद लाभकारी साबित हो सकते हैं.
कृषि विकास अधिकारी डॉ. रामप्रकाश ने बताया कि हरियाणा में पराली की समस्या (stubble problem in haryana) से निपटने के लिए राज्य सरकार फसल अवशेष प्रबंधन स्कीम (Crop Residue Management Scheme) के तहत कृषि यंत्रों पर सब्सिडी दे रही है. इसके तहत किसानों को 50 प्रतिशत तो कस्टम हायरिग सेंटर स्थापित करने पर 80 प्रतिशत तक का अनुदान दिया जा रहा है.
इन मशीनों पर मिलेगा अनुदान- इस स्कीम के तहत किसानों को सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट (एसएमएस), हैप्पी सीडर, पैडी स्ट्रा चोपर, मल्चर, बेलर, रोटरी सलेसर, क्राप रीपर, ट्रैक्टर चलित, स्वचलित, रिवर्सिबल एमबी प्लाउ, जीरो टिल सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल मशीन, सुपर सीडर, बेलिग मशीन, शर्ब मास्टर, स्लेसर की खरीद पर 50 प्रतिशत अनुदान दिए जाने की घोषणा की गई है.
एनजीटी के आदेशानुसार 2 एकड़ तक अवशेष जलाने पर 2500 रुपए जुर्माना और 2 से 5 एकड़ तक अवशेष जलाने पर 5 हजार रुपये के जुर्माने से दंडित करने का प्रावधान है. एनजीटी किसानों से यह फाइन पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने पर ले रही है.
फसल अवशेषों को खेत में मिलाना भूमि के लिए लाभदायक- फसल अवशेषों को आग के हवाले करने की जगह किसान भाइयों को चाहिए कि वे इन फसल अवशेषों को रोटावेटर या डिस्क हेरो आदि की सहायता से भूमि में मिला दें. इससे जीवांश के रूप में खाद की बचत की जा सकती है. फसल अवशेषों को खेत में मिलाने से भूमि की उर्वरा शक्ति बढने के साथ ही अनेक लाभ मिलते है.
बता दें कि भूसे में नत्रजन 0.5, प्रतिशत, स्फुर 0.6 और पोटाश 0.6 प्रतिशत पाया जाता है, जो नरवाई में जलकर नष्ट हो जाता है. फसल के दाने से डेढ़ गुना भूसा होता है अर्थात् यदि एक हेक्टयर में 40 क्विंटल गेहूं का उत्पादन होगा तो भूसे की मात्रा 60 क्विंटल होगी और भूसे से 30 किलो नत्रजन, 36 किलो स्फुर, 90 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर प्राप्त होगा. जो वर्तमान मूल्य के आधार पर लगभग 3 हजार रुपये का होगा जो जलकर नष्ट हो जाता है. वहीं मौजूदा समय में कृषि विभाग की तरफ से ऐसे ऐसे कृषि यंत्र निकाले गए हैं जो एक ही बार में फानो का प्रबंधन भी करते हैं. गेहूं या अन्य फसलों की बिजाई भी करते है. ऐसे किसान को पांच हजार से लेकर ₹ सात हजार प्रति एकड़ की बचत होती है. उनके पराली का प्रबंधन भी अच्छा होता है. और उसमें फसल की पैदावार भी अच्छी होती है.
पूसा डीकम्पोजर का उपयोग- भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा (Indian Agricultural Research Institute), पूसा के वैज्ञानिकों द्वारा बनाया गया एक ऐसा छोटा कैप्सूल है, जो फसल अवशेषों को लाभदायक कृषि अपशिष्ट खाद में बदल देता है. एक कैप्सूल की कीमत सिर्फ 4-5 रुपये है और एक एकड़ खेत के अवशेष को उपयोगी खाद में बदलने के लिए केवल 4 कैप्सूल की आवश्यकता होती है. पूसा में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने अब फसल अवशेष प्रबंधन (Crop Residue Management) के संभावित समाधान के रूप में एक कम लागत वाली तकनीक विकसित की है.
- भूमि की उर्वराशक्ति में ह्रास अवशेष जलाने से 100 प्रतिशत नत्रजन, 25 प्रतिशत फास्फोरस, 20 प्रतिशत पोटाश और 60 प्रतिशत सल्फर का नुकसान होता है.
- भूमि की संरचना में क्षति होने से जब पोषक तत्वों का समुचित मात्रा में स्थानान्तरण नहीं हो पाना तथा अत्यधिक जल का निकासी न हो पाना.
भूमि के कार्बनिक पदार्थों का ह्रास - फसल अवशेषों से मिलने वाले पोषक तत्वों से मृदा वंचित रह जाती है.
- जमीन की ऊपरी सतह पर रहने वाले मित्र कीट व केंचुआ आदि भी नष्ट हो जाते हैं.
धान के अवशेष से बनाई जा रही बिजली- वहीं मौजूदा समय में धान के बचे हुए अवशेष से बिजली बनाने का काम भी कई फैक्ट्रियों चल रहा है. जिसको बेलर मशीन के जरिए गठे बनाकर फैक्ट्रियों में पहुंचाया जाता है. वही फानो को चारकोल के रूप में भी तब्दील करके पराली जलाने से निजात पा सकते है. ऐसे ही कुछ तरीके हैं जिससे पराली जलाने की बजाय यह काम करने से पराली का प्रबंधन कर सकते हैं और अपने खेत की मिट्टी को बलवान बना सकते हैं.