करनाल: शुक्रवार को मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने बैग बैंक वैन को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया. यह वैन बाजारों में जाकर लोगों को तो जागरूक करेगी ही साथ ही कपड़ों का थैला भी देगी. सीएम ने कहा करनाल हरियाणा में सबसे पहले प्लास्टिक मुक्त शहर बनेगा. खास बात यह है कि शुक्रवार को ही करनाल के दो वार्ड प्लास्टिक मुक्त हो गए. जिसकी सीएम ने नगर निगम पार्षदों और अधिकारियों को बधाई दी..
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करनाल के दो वार्ड हुए प्लास्टिक मुक्त
इस दौरान सीएम मनोहर लाल ने कहा कि प्रथम चरण में करनाल शहर प्लास्टिक मुक्त हो, आज नगर निगम के 8 और 10 नंबर वार्ड प्लास्टिक मुक्त हो गए हैं. इन वार्डों में रहने वाले लोग अब अपनी दिनचर्या में प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं करेंगे. सीएम खट्टर ने कहा कि ऐसा प्रयास पूरे नगर निगम में होना चाहिए.
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सीवर साफ करने वाली मशीन को भी दिखाई हरी झंडी
लोक निर्माण विभाग के विश्राम गृह से सीएम स्वच्छता जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम से जुड़े और नगर निगम के दो बैग बैंक वैन को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया. मुख्यमंत्री ने कहा कि नगर निगम ने सीवरेज सफाई के लिए जो मशीन खरीदी है, उसके बेहतर परिणाम होंगे. जाम सीवरेज को शीघ्र खोला जाएगा और चलता-फिरता बैग बैंक नाम का वाहन शहर में जाकर आम जनता, दुकानदार और ग्राहकों को पॉलिथीन की थैलियों में सामान न लेकर कपड़े के थैलों का प्रयोग करने के लिए जगाने का काम करेगा. कोई भी व्यक्ति 20 रुपये की राशि देकर अच्छी क्वालिटी का कपड़े का थैला खरीद सकता है, बैग बैंक वैन के साथ निगम के ट्रिगर मास्टर और उनकी टीम के सदस्य रहेंगे जो लोगों को पॉलिथीन के नुकसान और कपड़े के थैलों से क्या फायदा है, इसके बारे में समझाएंगे.
पीएम मोदी ने भी की जनता से अपील
आपको बता दें कि प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से तिरंगा फहराते हुए देश को प्लास्टिक कचरे से मुक्त करने की अपील की थी. इससे पहले भी उन्होंने गांधी जयंती के अवसर पर स्वच्छ भारत अभियान की शुरूआत की थी, जिसे देश ही नहीं दुनिया में काफी सराहना मिली. इसका असर भी व्यापक तौर पर देखने को मिला. इसके लिए भी उन्होंने गांधी जयंती के अवसर को ही चुना है. उन्होंने कहा कि सरकार देश को सिंगल यूज प्लास्टिक से मुक्त बनाएगी.
भारत करता है ई-कचरे का आयात
प्रधानमंत्री की वाजिब चिंता के बावजूद, भारत प्लास्टिक कचरे के एक रूप ई-कचरे का आयात भी करता है. दरअसल, प्लास्टिक कचरे का एक रूप ई-कचरे का शोधन भारत में हजारों करोड़ रुपये का बड़ा कारोबार बन चुका है. वर्ष 2016 में ई-कचरे और प्लास्टिक के शोधन में दस लाख लोगों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से रोजगार भी मिला हुआ है. यानी यह कचरा भारत के लाखों लोगों की रोजी-रोटी से भी जुड़ा हुआ है. ई-कचरे (कम्प्यूटर, लैपटॉप या मोबाइल) को बनाने में प्रयुक्त सोने या चांदी को निकालने के लिए इसका शोधन किया जाता है.
भारत में सालाना 13 लाख टन प्लास्टिक का इस्तेमाल
एक आंकड़े के मुताबिक ई-कचरे के उत्पादन में भारत का स्थान चीन (7.2 मिलियन टन), यूएस (6.3 मिलियन टन), जापान (2.1 मिलियन टन) के बाद चौथे नंबर पर आता है, जो 19 लाख टन कचरा प्रतिवर्ष पैदा करता है. प्लास्टिक की बात करें, तो भारत में प्रति वर्ष लगभग 13 लाख टन प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है. इससे लगभग नौ लाख टन कचरा हर साल पैदा होता है. प्रतिदिन के हिसाब से देखें तो 15 हजार टन प्लास्टिक कचरा रोज पैदा होता है, जिसमें केवल नौ हजार टन कचरा ही रिसाइकिल किया जाता है.
केवल 60 फीसदी हिस्सा ही हो पाता है रिसाइकिल
भारत में इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक का केवल 60 फीसदी हिस्सा ही रिसाइकिल हो पाता है. यानी लगभग चालीस फीसदी हिस्सा खेतों, नदियों और समुद्र जैसे जल स्रोतों, सड़कों, वनों और अन्य जगहों पर जमीन में पड़ा रह जाता है. इससे न सिर्फ खेती की उत्पादकता प्रभावित होती है, बल्कि यह जलीय जन्तुओं के लिए मौत का जाल भी बन रहा है.
प्लास्टिक से मुक्ति पाना बेहद मुश्किल
इस क्षेत्र में काम कर रहे विशेषज्ञों के मुताबिक प्लास्टिक से पूरी तरह मुक्ति पाना बेहद मुश्किल है. इसकी वजह यह है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में अनेक ऐसी दवाएं, इंजेक्शन और सामग्रियां हैं, जिन्हें लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए प्लास्टिक की आवश्यकता होती है. फिलहाल इसका कोई विकल्प नहीं है. ऐसे में गैर जरूरी क्षेत्रों में प्लास्टिक के उपयोग को घटाने और स्वास्थ्य, वैज्ञानिक जैसे क्षेत्रों में उपयोग हो रहे प्लास्टिक को रिसाइकिल करने से समस्या का बड़ा समाधान निकल सकता है.
रिसाइकिलिंग को बढ़ावा देना चाहिए
विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगर प्लास्टिक कचरे की रिसाइकिलिंग को बढ़ावा दिया जाए, तो अगले कुछ सालों में ही इसके 11 हजार करोड़ रुपये का व्यापार बन जाने की क्षमता है. इस तरह इस क्षेत्र में भी हजारों लोगों के रोजगार की संभावनाएं छिपी हुई है.
पॉलीथीन नष्ट होने में लेता है अधिक समय
प्लास्टिक की बेहतर क्वालिटी समस्या का समाधान नहीं है. इन्हें एकत्र करना और रिसाइकिल करना आसान काम होता है. प्लास्टिक का सबसे महीन रूप जिसे इस्तेमाल किया जा रहा है वह पॉलीथीन का है. यह नष्ट होने में बहुत अधिक समय (20 साल से 1000 साल तक) लेता है. दूसरे इसको इकट्ठा करना भी काफी मुश्किल काम होता है.
पानी की बोतलों के नष्ट होने में लगता है 450 साल
वहीं पानी पीने की बोतलों को नष्ट होने में 450 साल का समय लगता है, जबकि प्लास्टिक कप के नष्ट होने में 50 साल का समय लग जाता है. यहां यह भी जानना चाहिए कि मामूली रूप से प्लास्टिक की परत चढ़े पेपर कप के नष्ट होने में भी 30 साल का समय लग जाता है.