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जींद की छात्राओं की इस खोज से आत्मनिर्भर बनेगा भारत ! नीदरलैंड की जर्नल में छपेगा शोध पत्र

जींद विश्विद्यालय की दो छात्राओं ने एक ऐसा अनोखा कांच बनाया है जो इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों में काम आ सकेगा. इसके इस्तेमाल से भारतीय बाजार को चीन के बाजार के मुकाबले मजबूती मिलने का भी दावा किया जा रहा है. इन छात्रों की इस खोज का शोध पत्र जल्द ही इंटरनेशनल जर्नल में छपेगा.

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Published : May 29, 2020, 12:49 PM IST

जींद: चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय की दो छात्राओं द्वारा एक नए कांच की खोज की गई है जिसे आत्मनिर्भर भारत की ओर बड़ा कदम बताया जा रहा है. विश्वविद्यालय के फिजिक्स विभाग की दो छात्राओं ने ऐसा शीशा बनाया है जो इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों में काम आ सकेगा. इसका मुख्य तौर पर एलईडी लाइट्स व लेजर में इस्तेमाल हो सकता है.

इस खोज से चीनी बाजार को दे सकेंगे टक्कर

इस तरीके का शीशा बनाने से भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स बाजार सस्ते चीनी माल को बेहतर गुणवत्ता के साथ कड़ी चुनौती दे सकेगा. हालांकि इस खोज को अभी प्रयोग में लाने में समय लगेगा, लेकिन इससे भविष्य के रास्ते खुल गए हैं. वहीं जल्द ही इस खोज पर आधारित शोध पत्र नीदरलैंड देश के शोध जर्नल में प्रकाशित होगा. सीआरएसयू के कुलपति प्रोफेसर आरबी सोलंकी के अनुसार ऐसा पहली बार हो रहा है कि इंटरनेशनल शोध जर्नल में पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स तक सिलेबस के छात्रों का शोध प्रकाशित होगा.

जींद विश्विद्यालय की दो छात्राओं ने एक ऐसा अनोखा कांच बनाया है जो इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों में काम आ सकेगा.

ये भी पढ़ें- सरकारी स्कूलों में किया जाएगा अध्यापकों का रेशनलाइजेशन, शिक्षा विभाग ने जारी किए आदेश

सीआरएसयू के कुलपति प्रोफेसर आरबी सोलंकी ने बताया कि अनुसंधान के विषय में विवि की यह बहुत बड़ी उपलब्धि होगी. इसके लिए विवि की टीम ने काफी कड़ी मेहनत व प्रयास किए हैं. इस पर विवि की द्वितीय वर्ष की छात्रा करनाल निवासी शिवानी जागलान व हिसार जिला के राजस्थल गांव निवासी पूनम बिसला ने काम किया है. इलके बारे में जर्नल ऑफ नॉन क्रिस्टलाइन सॉलिड में प्रकाशित होगा.

जींद विश्वविद्यालय को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिली पहचान

उन्होंने कहा कि अनुसंधान के क्षेत्र में पूरे देश के विश्वविद्यालयों में जींद विश्वविद्यालय द्वारा पहली बार एमएससी स्तर के विद्यार्थियों द्वारा इस तरह की उपलब्धि प्राप्त की है. उन्होंने भौतिक विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. राजेश पुनिया एवं प्राध्यापक डॉ. निशा को भी अनुसंधान में छात्राओं का सहयोग करने पर सराहना की. इससे जींद विश्वविद्यालय को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है.

वहीं भौतिक विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. राजेश पुनिया ने कहा कि सीआरएसयू का पाठ्यक्रम बहुत ही खास ढंग से तैयार किया गया है. इसमें तीसरे सेमेस्टर में ही अनुसंधान का कार्य करवाया जाता है, जबकि देश के अन्य विश्वविद्यालयों में चौथे सेमेस्टर में यह कार्य करवाया जाता है. इसी का परिणाम है कि दोनों छात्राओं ने काफी अच्छा काम किया है.

इस नए कांच की हैं कई खासियतें

छात्राओं का सहयोग करने वाली विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ. निशा ने बताया कि इस अनुसंधान में बोरो सिलिकेट ग्लास के विषय में बताया है कि इसका प्रयोग स्क्रीन, एलईडी व लेजर इलेक्ट्रॉनिक उद्योग के क्षेत्र में अति उपयोगी सिद्ध होगा, जिससे ज्यादा तापमान में स्क्रीन खराब नहीं होगी. इस शीशे की टेस्टिंग आंध्र प्रदेश एवं दिल्ली टेक्निकल यूनिवर्सिटी में करवाई गई जिससे थोड़े खर्च पर अधिक ऊर्जा की प्राप्ति होगी. विद्यार्थियों व उनके प्राध्यापकों ने कड़ी मेहनत व ईमानदारी से इस पर काम किया है.

इस खोज के लिए इन छात्राओं की खूब प्रशंसा हो रही है. वहीं देश को आत्मनिर्भर बनाने की और बढ़ने में यह खोज एक अच्छी कड़ी साबित हो सकती है. एक छोटे से विश्वविद्यालय की इतनी बड़ी उपलब्धि कहीं ना कहीं यह साबित जरूर करती है कि भारत में टैलेंट हर जगह छिपा है, बस उसे तराशने के लिए सही मार्गदर्शक की जरूरत है.

ये भी पढ़ें- जींद में लेफ्ट-राइट फॉर्मुले से खुलेंगे बाजार, 5वीं बार लगा नियम

जींद: चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय की दो छात्राओं द्वारा एक नए कांच की खोज की गई है जिसे आत्मनिर्भर भारत की ओर बड़ा कदम बताया जा रहा है. विश्वविद्यालय के फिजिक्स विभाग की दो छात्राओं ने ऐसा शीशा बनाया है जो इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों में काम आ सकेगा. इसका मुख्य तौर पर एलईडी लाइट्स व लेजर में इस्तेमाल हो सकता है.

इस खोज से चीनी बाजार को दे सकेंगे टक्कर

इस तरीके का शीशा बनाने से भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स बाजार सस्ते चीनी माल को बेहतर गुणवत्ता के साथ कड़ी चुनौती दे सकेगा. हालांकि इस खोज को अभी प्रयोग में लाने में समय लगेगा, लेकिन इससे भविष्य के रास्ते खुल गए हैं. वहीं जल्द ही इस खोज पर आधारित शोध पत्र नीदरलैंड देश के शोध जर्नल में प्रकाशित होगा. सीआरएसयू के कुलपति प्रोफेसर आरबी सोलंकी के अनुसार ऐसा पहली बार हो रहा है कि इंटरनेशनल शोध जर्नल में पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स तक सिलेबस के छात्रों का शोध प्रकाशित होगा.

जींद विश्विद्यालय की दो छात्राओं ने एक ऐसा अनोखा कांच बनाया है जो इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों में काम आ सकेगा.

ये भी पढ़ें- सरकारी स्कूलों में किया जाएगा अध्यापकों का रेशनलाइजेशन, शिक्षा विभाग ने जारी किए आदेश

सीआरएसयू के कुलपति प्रोफेसर आरबी सोलंकी ने बताया कि अनुसंधान के विषय में विवि की यह बहुत बड़ी उपलब्धि होगी. इसके लिए विवि की टीम ने काफी कड़ी मेहनत व प्रयास किए हैं. इस पर विवि की द्वितीय वर्ष की छात्रा करनाल निवासी शिवानी जागलान व हिसार जिला के राजस्थल गांव निवासी पूनम बिसला ने काम किया है. इलके बारे में जर्नल ऑफ नॉन क्रिस्टलाइन सॉलिड में प्रकाशित होगा.

जींद विश्वविद्यालय को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिली पहचान

उन्होंने कहा कि अनुसंधान के क्षेत्र में पूरे देश के विश्वविद्यालयों में जींद विश्वविद्यालय द्वारा पहली बार एमएससी स्तर के विद्यार्थियों द्वारा इस तरह की उपलब्धि प्राप्त की है. उन्होंने भौतिक विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. राजेश पुनिया एवं प्राध्यापक डॉ. निशा को भी अनुसंधान में छात्राओं का सहयोग करने पर सराहना की. इससे जींद विश्वविद्यालय को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है.

वहीं भौतिक विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. राजेश पुनिया ने कहा कि सीआरएसयू का पाठ्यक्रम बहुत ही खास ढंग से तैयार किया गया है. इसमें तीसरे सेमेस्टर में ही अनुसंधान का कार्य करवाया जाता है, जबकि देश के अन्य विश्वविद्यालयों में चौथे सेमेस्टर में यह कार्य करवाया जाता है. इसी का परिणाम है कि दोनों छात्राओं ने काफी अच्छा काम किया है.

इस नए कांच की हैं कई खासियतें

छात्राओं का सहयोग करने वाली विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ. निशा ने बताया कि इस अनुसंधान में बोरो सिलिकेट ग्लास के विषय में बताया है कि इसका प्रयोग स्क्रीन, एलईडी व लेजर इलेक्ट्रॉनिक उद्योग के क्षेत्र में अति उपयोगी सिद्ध होगा, जिससे ज्यादा तापमान में स्क्रीन खराब नहीं होगी. इस शीशे की टेस्टिंग आंध्र प्रदेश एवं दिल्ली टेक्निकल यूनिवर्सिटी में करवाई गई जिससे थोड़े खर्च पर अधिक ऊर्जा की प्राप्ति होगी. विद्यार्थियों व उनके प्राध्यापकों ने कड़ी मेहनत व ईमानदारी से इस पर काम किया है.

इस खोज के लिए इन छात्राओं की खूब प्रशंसा हो रही है. वहीं देश को आत्मनिर्भर बनाने की और बढ़ने में यह खोज एक अच्छी कड़ी साबित हो सकती है. एक छोटे से विश्वविद्यालय की इतनी बड़ी उपलब्धि कहीं ना कहीं यह साबित जरूर करती है कि भारत में टैलेंट हर जगह छिपा है, बस उसे तराशने के लिए सही मार्गदर्शक की जरूरत है.

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