हिसार: खेल नगरी से पहचान बनाने वाले हरियाणा ने एक और इतिहास रच दिया है. यह इतिहास रचा है हरियाणा के हिसार की रहने वाली गार्गी आर्य ने. दरअसल, राष्ट्रीय भारतीय सैन्य कॉलेज के 100 साल के इतिहास में पहली बार दो लड़कियों का दाखिला हुआ है. इनमें से एक लड़की गार्गी आर्य हरियाणा (Gargi Arya of Haryana) के हिसार की रहने वाली है.
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में स्थित राष्ट्रीय इंडियन मिलिट्री कॉलेज (Rashtriya Indian Military College) में पढ़ने के लिए इतिहास में पहली बार दो लड़कियों ने प्रवेश पाया है. इस संस्थान की स्थापना सन 1922 में हुई थी. RIMC कमांडेंट कर्नल अजय कुमार ने मार्च में संस्थान के शताब्दी स्थापना दिवस के दौरान घोषणा की थी कि वे जल्द ही कॉलेज में छात्राओं को भी शामिल करेंगे. पहली बार इस बैच में लड़कियों के लिए पांच सीटें थीं, लेकिन केवल दो ही नामांकन की प्रक्रिया को पूरा कर सकीं. पांच सीटों के लिए देशभर से कुल 568 लड़कियों ने प्रवेश परीक्षा दी थी.
गार्गी के पिता धर्मपाल ने कहा- बेटी के सेना कॉलेज में एडमिशन होने से उनके परिवार में बेहद खुशी का माहौल है. उनका सपना था कि बेटी बड़ी अधिकारी बने और अब यह सपना साकार होने जा रहा है. बेटी ने पूरी मेहनत की है और उसे मेहनत का फल मिला है.
राष्ट्रीय भारतीय सैन्य कॉलेज में चयन प्रक्रिया बेहद कठिन होती है. पहले लिखित परीक्षा आयोजित होती है. इसके बाद इंटरव्यू और फिर मेडिकल कराया जाता है. स्टूडेंट्स यहां एडमिशन पाने के लिए जी तोड़ मेहनत करते हैं. सैन कॉलेज में एडमिशन पाने के प्रक्रिया 8वीं क्लास से शुरु होती है और 12वीं कक्षा तक शिक्षण कार्य के साथ ही ट्रेनिंग भी दी जाती है. कुल पांच सालों तक प्रशिक्षण कार्य चलता है.
देहरादून के इस सैन्य कॉलेज में अब तक लड़के ही प्रवेश पाते थे. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद लड़कियों को भी एडमिशन दिया जाने लगा. सरकार की ओर से महिलाओं के लिए राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) में एडमिशन देने के फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट ने लड़कियों को सैन्य कॉलेज में प्रवेश दिए जाने क आदेश दिया था. इस संस्थान में पढ़ने वाले छात्रों को NDA के लिए तैयार किया जाता है.
राष्ट्रीय भारतीय सैन्य कॉलेज का मुख्य उद्देश्य यह है कि जिन भारतीयों को बीएसएफ में अधिकारी बनने की इच्छा है उन्हें जरूरी प्राइमरी ट्रेनिंग मुहैया कराना. प्रथम विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजी सेना को सैन्य प्रशिक्षण की जरूरत महसूस हुई. इसके बाद प्रिंस ऑफ वेल्स ने अपने भारत के प्रथम दौरे के दौरान सैन्य प्रशिक्षण की शुरूआत की थी. यहां पढ़ने वाले छात्रों का खर्च केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारें वहन करती हैं.