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हरियाणा का वो जिला जो 1857 में 3 महीने के लिए हो गया था आजाद, जलियांवाला बाग से भी ज्यादा हुआ नरसंहार

आजाद वतन के मायने क्या हैं, ये जानना है तो स्वतंत्रता सेनानियों का संघर्ष और उनके जीवन की विपत्तियों के बारे में पढ़िए. हम आजाद भले ही 1947 में हुए लेकिन लड़ाई हमारे पूर्वजों ने सैकड़ों साल लड़ी. आजादी की ऐसी ही कहानी हरियाणा के हिसार जिले से जुड़ी है, जब हमारे वीर सपूतों ने हिसार को 1857 में ही आजाद करा लिया था. लेकिन उन्हें इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी और फिर से हिसार अंग्रेजों के कब्जे में हो गया. स्वतंत्रता संग्राम की अनगिनत गाथाएं हैं जो बताती हैं कि भारत मां के सपूतों ने जो बलिदान दिए वो अतुल्य थे.

Hisar became independent in 1857
Hisar became independent in 1857
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Published : Aug 12, 2022, 11:17 PM IST

हिसारः आजादी की 75वीं सालगिरह पर जब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, ते ये मौका है शहीदों और आजादी के नायकों को याद करने का. आज ऐसे ही कुछ क्रांतिकारियों की कहानी हम आपको सुना रहे हैं जिन्हें इतिहास के पन्नों पर जितनी जगह मिली, उनके कारनामे उससे कहीं बड़े थे. इतने बड़े कि 1857 में उन्होंने हरियाणा के हिसार को करीब 3 महीने के लिए आजाद करवा दिया था.

इतिहासकार डॉ. महेंद्र सिंह बताते हैं कि 29 मई को दिन में एक बजे जब क्रांतिकारियों ने पूरे जिला कार्यालय पर कब्जा कर लिया तो उसके बाद उन्होंने जेल को तोड़ा जो वर्तमान में जहां रेड स्क्वायर मार्केट है वहां हुआ करती थी. जेल तोड़ने के बाद क्रांतिकारी किले में आये और वहां जितने भी अंग्रेज थे उन्हें निशाना बनाया. इसके अलावा 1 लाख 70 हजार रुपये भी इस किले से क्रांतिकारियों ने लूट लिये.

हरियाणा का वो जिला जो 1857 में 3 महीने के लिए हो गया था आजाद, जलियांवाला बाग से भी ज्यादा हुआ नरसंहार

इस तरह 29 मई 1857 को हिसार आजाद हो गया. लेकिन ये लड़ाई खत्म नहीं हुई थी. जितने भी अंग्रेज हिसार में थे उन्हें क्रांतिकारियों ने या तो मौत के घाट उतार दिया या जेल में डाल दिया. उनमें से एक अंग्रेज बचकर निकलने कामयाब रहा और उसने अपने आला अफसरों को इस पूरे घटनाक्रम से अवगत कराया.

इतिहासकार डॉ. महेंद्र सिंह आगे बताते हैं कि अंग्रेजों की ओर से इस विद्रोह से निपटने के लिए फिरोजपुर के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर जनरल कॉटलैंड की ड्यूटी लगाई गई. उसके बाद कॉटलैंड पहले सिरसा के पास स्थानीय लोगों को पराजित करता है जहां उसे काफी समय लग जाता है. हालांकि वो हिसार पर कब्जा कर लेता है. 10 जुलाई को जब अंग्रेज हिसार पर कब्जा करते हैं तो क्रांतिकारी हांसी पर कब्जा कर लेते हैं. 10 जुलाई से 19 अगस्त तक क्रांतिकारियों और अंग्रेजों के बीच आंख मिचौली का खेल चलता रहा. इस बीच 5 बार क्रांतिकारियों ने हिसार पर कब्जा किया और इतनी ही बार अंग्रेजों ने.

Hisar became independent in 1857
अंग्रेजों ने 123 क्रांतिकारियों पर रोड रोलर चलवा दिया था.

ये लड़ाई बहादुरशाह जफर के खानदान से ताल्लुक रखने वाले आजम खान के नेतृत्व में लड़ी जा रही थी. क्रांतिकारियों के पास तलवारें और जेलियां जैसे परंपरागत हथियार थे और अंग्रेजों के पास बंदूकें. इसके अलावा अंग्रेजों के पास एक प्लस प्वाइंट ये भी था कि वो किले के अंदर थे और क्रांतिकारी बाहर. जिसका नतीजा ये हुआ कि क्रांतिकारियों के सीने छलनी कर दिये गये.

Hisar became independent in 1857
हिसार में बना वार मेमोरियल.

इस लड़ाई में 438 क्रांतिकारी शहीद हुए. जिनमें से 235 शहीदों की बॉडी बिखरी पड़ी मिलीं और बाकी का पता ही नहीं चला. क्रांतिकारी लड़ाई हार गए और 123 लोगों को बंदी बना लिया गया. अंग्रेजों की बर्बरता का खेल इसके बाद शुरू हुआ. उन्होंने पकड़े गए 123 लोगों को रोड रोलर बुलाकर कुचलवा दिया. जिसे बाद में इतिहासकारों ने दूसरा जलियांवाला बाग की संज्ञा भी दी.

इस तरह से 30 मई 1857 से 19 अगस्त 1857 तक हिसार आजाद रहा. इस बीच दिल्ली में भी गदर को दबा दिया गया और बहादुरशाह जफर को कैद कर लिया गया. लेकिन आजादी के परवानों द्वारा जलाई ये शमा 15 अगस्त 1947 को रौशन हुई और ऐसी रौशन हुई कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र ने जन्म लिया.

हिसारः आजादी की 75वीं सालगिरह पर जब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, ते ये मौका है शहीदों और आजादी के नायकों को याद करने का. आज ऐसे ही कुछ क्रांतिकारियों की कहानी हम आपको सुना रहे हैं जिन्हें इतिहास के पन्नों पर जितनी जगह मिली, उनके कारनामे उससे कहीं बड़े थे. इतने बड़े कि 1857 में उन्होंने हरियाणा के हिसार को करीब 3 महीने के लिए आजाद करवा दिया था.

इतिहासकार डॉ. महेंद्र सिंह बताते हैं कि 29 मई को दिन में एक बजे जब क्रांतिकारियों ने पूरे जिला कार्यालय पर कब्जा कर लिया तो उसके बाद उन्होंने जेल को तोड़ा जो वर्तमान में जहां रेड स्क्वायर मार्केट है वहां हुआ करती थी. जेल तोड़ने के बाद क्रांतिकारी किले में आये और वहां जितने भी अंग्रेज थे उन्हें निशाना बनाया. इसके अलावा 1 लाख 70 हजार रुपये भी इस किले से क्रांतिकारियों ने लूट लिये.

हरियाणा का वो जिला जो 1857 में 3 महीने के लिए हो गया था आजाद, जलियांवाला बाग से भी ज्यादा हुआ नरसंहार

इस तरह 29 मई 1857 को हिसार आजाद हो गया. लेकिन ये लड़ाई खत्म नहीं हुई थी. जितने भी अंग्रेज हिसार में थे उन्हें क्रांतिकारियों ने या तो मौत के घाट उतार दिया या जेल में डाल दिया. उनमें से एक अंग्रेज बचकर निकलने कामयाब रहा और उसने अपने आला अफसरों को इस पूरे घटनाक्रम से अवगत कराया.

इतिहासकार डॉ. महेंद्र सिंह आगे बताते हैं कि अंग्रेजों की ओर से इस विद्रोह से निपटने के लिए फिरोजपुर के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर जनरल कॉटलैंड की ड्यूटी लगाई गई. उसके बाद कॉटलैंड पहले सिरसा के पास स्थानीय लोगों को पराजित करता है जहां उसे काफी समय लग जाता है. हालांकि वो हिसार पर कब्जा कर लेता है. 10 जुलाई को जब अंग्रेज हिसार पर कब्जा करते हैं तो क्रांतिकारी हांसी पर कब्जा कर लेते हैं. 10 जुलाई से 19 अगस्त तक क्रांतिकारियों और अंग्रेजों के बीच आंख मिचौली का खेल चलता रहा. इस बीच 5 बार क्रांतिकारियों ने हिसार पर कब्जा किया और इतनी ही बार अंग्रेजों ने.

Hisar became independent in 1857
अंग्रेजों ने 123 क्रांतिकारियों पर रोड रोलर चलवा दिया था.

ये लड़ाई बहादुरशाह जफर के खानदान से ताल्लुक रखने वाले आजम खान के नेतृत्व में लड़ी जा रही थी. क्रांतिकारियों के पास तलवारें और जेलियां जैसे परंपरागत हथियार थे और अंग्रेजों के पास बंदूकें. इसके अलावा अंग्रेजों के पास एक प्लस प्वाइंट ये भी था कि वो किले के अंदर थे और क्रांतिकारी बाहर. जिसका नतीजा ये हुआ कि क्रांतिकारियों के सीने छलनी कर दिये गये.

Hisar became independent in 1857
हिसार में बना वार मेमोरियल.

इस लड़ाई में 438 क्रांतिकारी शहीद हुए. जिनमें से 235 शहीदों की बॉडी बिखरी पड़ी मिलीं और बाकी का पता ही नहीं चला. क्रांतिकारी लड़ाई हार गए और 123 लोगों को बंदी बना लिया गया. अंग्रेजों की बर्बरता का खेल इसके बाद शुरू हुआ. उन्होंने पकड़े गए 123 लोगों को रोड रोलर बुलाकर कुचलवा दिया. जिसे बाद में इतिहासकारों ने दूसरा जलियांवाला बाग की संज्ञा भी दी.

इस तरह से 30 मई 1857 से 19 अगस्त 1857 तक हिसार आजाद रहा. इस बीच दिल्ली में भी गदर को दबा दिया गया और बहादुरशाह जफर को कैद कर लिया गया. लेकिन आजादी के परवानों द्वारा जलाई ये शमा 15 अगस्त 1947 को रौशन हुई और ऐसी रौशन हुई कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र ने जन्म लिया.

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