ETV Bharat / city

हिसार चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय में किसान-वैज्ञानिक कार्यक्रम का आयोजन

हिसार चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के बालसमंद अनुसंधान फार्म पर किसान-वैज्ञानिक गोष्ठी आयोजित की गई. इस दौरान विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर समर सिंह ने पेड़ों की लुप्त होती प्रजातियों को बचाने के लिए किसानों से अपील की.

Farmer-Scientist Program organized at Hisar Chaudhary Charan Singh Agricultural University
हिसार चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय में किसान-वैज्ञानिक कार्यक्रम आयोजित
author img

By

Published : Jul 22, 2020, 12:39 PM IST

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के बालसमंद स्थित अनुसंधान फार्म पर मंगलवार को किसान-वैज्ञानिक गोष्ठी का आयोजन किया गया. विश्वविद्यालय के कुलपति महोदय प्रोफेसर समर सिंह के दिशा-निर्देशानुसार किसानों को खरीफ फसलों और आधुनिक तकनीकों की जानकारी दी गई.

वन महोत्सव के अवसर पर इस गोष्ठी का आयोजन वानिकी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. आर.एस. ढिल्लो की देखरेख में किया गया. इस गोष्ठी में बालसमंद गांव के 22 किसानों ने भाग लिया. इस दौरान विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को खरीफ फसलों के बारे में विस्तार पूर्वक बताया और किसानों द्वारा इससे संबंधित पूछे गए विभिन्न सवालों के जवाब भी दिए. कोविड-19 के चलते इस गोष्ठी में सामाजिक दूरी और मास्क का विशेष ध्यान रखा गया.

किसानों को संबोधित करते हुए बालसमंद अनुसंधान फार्म के इंचार्ज डॉ. विरेंद्र दलाल ने कहा कि मौजूदा समय में कैर, रोहिड़ा, खेजड़ी जैसे वृक्षों की प्रजातियां लगभग विलुप्त हो रही हैं. ऐसे में इन प्रजातियों को बचाना बहुत ही आवश्यक है क्योंकि इन प्रजातियों की औषधीय महत्ता बहुत अधिक है.

उन्होंने कहा कि पहले किसान अपने खेतों में हल चलाते समय ऐसे पेड़ों को बचा लेते थे. लेकिन आजकल किसानों ने इन प्रजातियों के पेड़ों को जानकारी के अभाव में नष्ट कर दिया है.

इसके अलावा किसानों को संबोधित करते हुए चारा विभाग से डॉ. सतपाल ने शुष्क क्षेत्रों में चारे की फसलों और खरीफ मौसम में लगने वाली फसल बाजरा, मूंग, ग्वार की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि बालसमंद जैसे शुष्क क्षेत्र के लिए धामण घास, बाजरा और ज्वार चारे की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है. धामण घास में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है. जिससे किसानों के दुधारू पशुओं का दुग्ध उत्पादन बढ़ जाता है.

ये भी पढ़ें: 'बीजेपी की ओछी मानसिकता को दर्शाता है त्रिपुरा के मुख्यमंत्री का जाटों पर दिया गया बयान'

वहीं रामधन सिंह बीज फार्म से डॉ. राजेश कथवाल ने बताया कि मानसून के दौरान वर्षा के कारण ग्वार और मूंग फसलों को बोने के लिए अगस्त महीने का पहला सप्ताह उपयुक्त है. शुष्क क्षेत्रों में इस सप्ताह में इन फसलों को बोया जा सकता है. साथ ही ग्वार के बीज का उपचार स्ट्रेप्टोसाइक्लिन से 1 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर के हिसाब से किया जाना चाहिए. जिससे बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट को काफी हद तक रोका जा सकता है. इसके अलावा किसानों को बहुउद्देशीय वानिकी पेड़ों की नर्सरी और ट्रांसप्लांटेशन प्रबंधनपर भी जानकारी दी गई.

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के बालसमंद स्थित अनुसंधान फार्म पर मंगलवार को किसान-वैज्ञानिक गोष्ठी का आयोजन किया गया. विश्वविद्यालय के कुलपति महोदय प्रोफेसर समर सिंह के दिशा-निर्देशानुसार किसानों को खरीफ फसलों और आधुनिक तकनीकों की जानकारी दी गई.

वन महोत्सव के अवसर पर इस गोष्ठी का आयोजन वानिकी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. आर.एस. ढिल्लो की देखरेख में किया गया. इस गोष्ठी में बालसमंद गांव के 22 किसानों ने भाग लिया. इस दौरान विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को खरीफ फसलों के बारे में विस्तार पूर्वक बताया और किसानों द्वारा इससे संबंधित पूछे गए विभिन्न सवालों के जवाब भी दिए. कोविड-19 के चलते इस गोष्ठी में सामाजिक दूरी और मास्क का विशेष ध्यान रखा गया.

किसानों को संबोधित करते हुए बालसमंद अनुसंधान फार्म के इंचार्ज डॉ. विरेंद्र दलाल ने कहा कि मौजूदा समय में कैर, रोहिड़ा, खेजड़ी जैसे वृक्षों की प्रजातियां लगभग विलुप्त हो रही हैं. ऐसे में इन प्रजातियों को बचाना बहुत ही आवश्यक है क्योंकि इन प्रजातियों की औषधीय महत्ता बहुत अधिक है.

उन्होंने कहा कि पहले किसान अपने खेतों में हल चलाते समय ऐसे पेड़ों को बचा लेते थे. लेकिन आजकल किसानों ने इन प्रजातियों के पेड़ों को जानकारी के अभाव में नष्ट कर दिया है.

इसके अलावा किसानों को संबोधित करते हुए चारा विभाग से डॉ. सतपाल ने शुष्क क्षेत्रों में चारे की फसलों और खरीफ मौसम में लगने वाली फसल बाजरा, मूंग, ग्वार की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि बालसमंद जैसे शुष्क क्षेत्र के लिए धामण घास, बाजरा और ज्वार चारे की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है. धामण घास में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है. जिससे किसानों के दुधारू पशुओं का दुग्ध उत्पादन बढ़ जाता है.

ये भी पढ़ें: 'बीजेपी की ओछी मानसिकता को दर्शाता है त्रिपुरा के मुख्यमंत्री का जाटों पर दिया गया बयान'

वहीं रामधन सिंह बीज फार्म से डॉ. राजेश कथवाल ने बताया कि मानसून के दौरान वर्षा के कारण ग्वार और मूंग फसलों को बोने के लिए अगस्त महीने का पहला सप्ताह उपयुक्त है. शुष्क क्षेत्रों में इस सप्ताह में इन फसलों को बोया जा सकता है. साथ ही ग्वार के बीज का उपचार स्ट्रेप्टोसाइक्लिन से 1 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर के हिसाब से किया जाना चाहिए. जिससे बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट को काफी हद तक रोका जा सकता है. इसके अलावा किसानों को बहुउद्देशीय वानिकी पेड़ों की नर्सरी और ट्रांसप्लांटेशन प्रबंधनपर भी जानकारी दी गई.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.