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टिड्डी के हमले को लेकर अलर्ट जारी, कृषि विशेषज्ञ ने बताए फसलों को बचाने के ये उपाय

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Published : Jul 21, 2020, 10:38 PM IST

हरियाणा सरकार द्वारा 22 जुलाई के बाद टिड्डी दल के हमले में तेजी आने की संभावना जताने के बाद कई जिलों को अलर्ट किया गया है. जिसको लेकर कृषि विश्वविधालय के कुलपति डॉ. समर सिंह ने किसानों को टिड्डी से अपनी फसलों को बचाने के लिए कई सलाह दी हैं.

locust attack alert in haryana
locust attack alert in haryana

हिसार: हरियाणा सरकार द्वारा प्रदेश में 22 जुलाई के बाद टिड्डी दल के हमले में तेजी आने की संभावना के संबंध में चेतावनी जारी की गई है, जिसके मद्देनजर टिड्डी दल पर काबू पाने और फसलों को नुकसान से बचाने के तीव्र प्रयास किए जा रहे हैं. इसके लिए अन्य बचाव उपायों के अलावा कीटनाशक लैम्ब्डा-सिहलोथ्रिन 5ईसी की अतिरिक्त मात्रा में स्टॉक करने की व्यवस्था की जा रही है. वहीं हिसार की चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविधालय के कुलपति डॉ. समर सिंह ने किसानों को टिड्डी से अपनी फसलों को बचाने के लिए और किसानों की समस्या के समाधान के लिए सलाह दी है.

डॉ. समर सिंह का कहना है कि टिड्डी दल अफ्रीका से चलकर वाया ओमान, ईरान, पाकिस्तान से राजस्थान व राजस्थान से हरियाणा में प्रवेश करते हैं. आमतौर पर टिड्डी दल मानसून सीजन में आते हैं. इस बार टिड्डी दल लगभग 27 साल बाद आये हैं. पिछले साल 2019 में अक्टूबर से दिसम्बर के दौरान राजस्थान के गंगानगर, हनुमानगढ़ आदि जिलों में कुछ टिड्डी दल सक्रिय थे. दिसम्बर 2019 में भी हरियाणा के सिरसा व हिसार जिलों में टिड्डी दल के आने की सम्भावना बनी रही परन्तु टिड्डी दल न आने से बचाव हो गया.

टिड्डी के हमले को लेकर अलर्ट जारी, कृषि विशेषज्ञ ने बताए फसलों को बचाने के ये उपाय.

ऐसा जलवायु परिवर्तन की वजह से हो सकता है (टिड्डी दल का मानसून के अलावा दिसम्बर में आना). वर्तमान में हरियाणा के भिवानी, झज्जर, रेवाड़ी, चरखी दादरी, महेन्द्रगढ़, नारनौल, सिरसा व हिसार जिलों में टिड्डी दल आने की सम्भावना बनी रहेगी, इसलिए किसानों व कृषि अधिकारियों को सर्तक रहने की अति आवश्यकता है.

कौन-कौन सी फसलों पर रहता है सबसे ज्यादा प्रकोप

डॉ. समर सिंह ने बताया कि टिड्डी एक बहुभक्षी कीट है तथा यह किसी भी फसल को खा जाती है. टिड्डी दल अगर फसल पर बैठ जाए तो रातों-रात पूरी फसल चट कर जाता है. टिड्डी सभी फसलों जैसे मक्की, बाजरा, ज्वार, ग्वार, नरमा, गेहूं, जौ, जई, सब्जियों, फल आदि तथा प्राकृतिक वनस्पति जैसे कीकर आदि सभी को खा सकती है. टिड्डी दल का प्रकोप रेतीली भूमि वाले क्षेत्रों में ज्यादा होने की सम्भावना होती है. मादा टिड्डी दल नरम/रेतीली नमी वाली भूमि में अंडे देती है. एक मादा टिड्डी अपने जीवनकाल में 2-3 बार अंडे देती है. एक बार में 80-100 अंडे देकर पूरे जीवन काल में एक मादा 200-300 अंडे दे सकती है. जब मादा टिड्डियां अंडे देने के काबिल होती हैं तो उनका रंग पीला होता है. इससे पहले वह गुलाबी रंग की होती हैं व फसल पर अंडे नहीं देती.

विश्वविद्यालय द्वारा किसानो के लिए जिम्मेवारी व सुझाव

डॉ. सिंह ने बताया कि चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के जिलेवार कृषि विज्ञान केन्द्र व कीट विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक स्थिति पर नजर रखें हुए है और कृषि विभाग से लगातार सम्पर्क में हैं. किसानों को सजग कर रहे हैं और बचाव के उपाय भी बता रहे हैं.

प्रवासी आदत का कीट है टिड्डी

डॉ. समर सिंह ने बताया कि टिड्डी प्रवासी आदत का कीट है इसलिए ये एक स्थान से दूसरे स्थान तक उड़कर पहुंच जाते हैं. व्यस्क टिड्डियों के परिपक्व होने के बाद ही ये अंडे देने के लिए राजस्थान एवं गुजरात के रेगिस्तानी इलाके जो भारत-पाक सीमा से सटे हैं, अच्छी वर्षा होने के बाद इक्कठा होते हैं. किसानों से आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि किसान चौधरी चरण सिंह हरियाणा विश्वविद्यालय द्वारा जारी हिदायतों का पालन करते हुए टिड्डी दल से अपनी फसलों का बचाव कर सकते हैं.

फसल बचाने के क्या-क्या उपाय कर सकते हैं ?

किसानों को टिड्डी दल के प्रति सचेत रहना है और अपने खेतों में खड़ी फसलों की रखवाली / निगरानी करनी है. टिड्डी दल दिन के समय अपनी उड़ान में रहता है व आमतौर पर सूर्यास्त के बाद फसलों या प्राकृतिक वनस्पति पर बैठ जाता है. दिन के समय टिड्डी दल आने पर किसान जोर-जोर से शोर कर (यानि ड्रम, पीपा, ढ़ोल आदि बजाकर) टिड्डी दल को अपनी फसल पर न बठने दें. जैसे ही टिड्डी दल आए तो तुरन्त नजदीक के कृषि अधिकारी, कृषि विज्ञान केन्द्र के अधिकारी, पटवारी आदि को सूचित करें.

कृषि विभाग की टिड्डी दल को स्प्रे करके मारने की पूरी तैयारी है. अपने गांव में उपलब्ध ट्रैक्टर चालित स्प्रे पंप तैयार रखें. स्प्रे के लिए लेम्डा-साइहैलोथ्रिन 5 प्रतिशत ई.सी. दवाई 400 एम.एल./हेक्टेयर के हिसाब से 450-500 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें या क्लोरपाईरिफॉस 20 प्रतिशत ई.सी. दवाई 1200 एम.एल./हेक्टेयर 450 - 500 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें. स्प्रे तब करें जब टिड्डी दल बैठा हो यानि सूर्यास्त के बाद रात को या सूर्यादय से पहले सुबह-सुबह.

ये भी पढ़ें- बोर्ड रिजल्ट को लेकर छात्र रहें बेफिक्र, सर्टिफिकेट पूर्णतया होगा मान्य- बोर्ड चेयरमैन

हिसार: हरियाणा सरकार द्वारा प्रदेश में 22 जुलाई के बाद टिड्डी दल के हमले में तेजी आने की संभावना के संबंध में चेतावनी जारी की गई है, जिसके मद्देनजर टिड्डी दल पर काबू पाने और फसलों को नुकसान से बचाने के तीव्र प्रयास किए जा रहे हैं. इसके लिए अन्य बचाव उपायों के अलावा कीटनाशक लैम्ब्डा-सिहलोथ्रिन 5ईसी की अतिरिक्त मात्रा में स्टॉक करने की व्यवस्था की जा रही है. वहीं हिसार की चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविधालय के कुलपति डॉ. समर सिंह ने किसानों को टिड्डी से अपनी फसलों को बचाने के लिए और किसानों की समस्या के समाधान के लिए सलाह दी है.

डॉ. समर सिंह का कहना है कि टिड्डी दल अफ्रीका से चलकर वाया ओमान, ईरान, पाकिस्तान से राजस्थान व राजस्थान से हरियाणा में प्रवेश करते हैं. आमतौर पर टिड्डी दल मानसून सीजन में आते हैं. इस बार टिड्डी दल लगभग 27 साल बाद आये हैं. पिछले साल 2019 में अक्टूबर से दिसम्बर के दौरान राजस्थान के गंगानगर, हनुमानगढ़ आदि जिलों में कुछ टिड्डी दल सक्रिय थे. दिसम्बर 2019 में भी हरियाणा के सिरसा व हिसार जिलों में टिड्डी दल के आने की सम्भावना बनी रही परन्तु टिड्डी दल न आने से बचाव हो गया.

टिड्डी के हमले को लेकर अलर्ट जारी, कृषि विशेषज्ञ ने बताए फसलों को बचाने के ये उपाय.

ऐसा जलवायु परिवर्तन की वजह से हो सकता है (टिड्डी दल का मानसून के अलावा दिसम्बर में आना). वर्तमान में हरियाणा के भिवानी, झज्जर, रेवाड़ी, चरखी दादरी, महेन्द्रगढ़, नारनौल, सिरसा व हिसार जिलों में टिड्डी दल आने की सम्भावना बनी रहेगी, इसलिए किसानों व कृषि अधिकारियों को सर्तक रहने की अति आवश्यकता है.

कौन-कौन सी फसलों पर रहता है सबसे ज्यादा प्रकोप

डॉ. समर सिंह ने बताया कि टिड्डी एक बहुभक्षी कीट है तथा यह किसी भी फसल को खा जाती है. टिड्डी दल अगर फसल पर बैठ जाए तो रातों-रात पूरी फसल चट कर जाता है. टिड्डी सभी फसलों जैसे मक्की, बाजरा, ज्वार, ग्वार, नरमा, गेहूं, जौ, जई, सब्जियों, फल आदि तथा प्राकृतिक वनस्पति जैसे कीकर आदि सभी को खा सकती है. टिड्डी दल का प्रकोप रेतीली भूमि वाले क्षेत्रों में ज्यादा होने की सम्भावना होती है. मादा टिड्डी दल नरम/रेतीली नमी वाली भूमि में अंडे देती है. एक मादा टिड्डी अपने जीवनकाल में 2-3 बार अंडे देती है. एक बार में 80-100 अंडे देकर पूरे जीवन काल में एक मादा 200-300 अंडे दे सकती है. जब मादा टिड्डियां अंडे देने के काबिल होती हैं तो उनका रंग पीला होता है. इससे पहले वह गुलाबी रंग की होती हैं व फसल पर अंडे नहीं देती.

विश्वविद्यालय द्वारा किसानो के लिए जिम्मेवारी व सुझाव

डॉ. सिंह ने बताया कि चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के जिलेवार कृषि विज्ञान केन्द्र व कीट विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक स्थिति पर नजर रखें हुए है और कृषि विभाग से लगातार सम्पर्क में हैं. किसानों को सजग कर रहे हैं और बचाव के उपाय भी बता रहे हैं.

प्रवासी आदत का कीट है टिड्डी

डॉ. समर सिंह ने बताया कि टिड्डी प्रवासी आदत का कीट है इसलिए ये एक स्थान से दूसरे स्थान तक उड़कर पहुंच जाते हैं. व्यस्क टिड्डियों के परिपक्व होने के बाद ही ये अंडे देने के लिए राजस्थान एवं गुजरात के रेगिस्तानी इलाके जो भारत-पाक सीमा से सटे हैं, अच्छी वर्षा होने के बाद इक्कठा होते हैं. किसानों से आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि किसान चौधरी चरण सिंह हरियाणा विश्वविद्यालय द्वारा जारी हिदायतों का पालन करते हुए टिड्डी दल से अपनी फसलों का बचाव कर सकते हैं.

फसल बचाने के क्या-क्या उपाय कर सकते हैं ?

किसानों को टिड्डी दल के प्रति सचेत रहना है और अपने खेतों में खड़ी फसलों की रखवाली / निगरानी करनी है. टिड्डी दल दिन के समय अपनी उड़ान में रहता है व आमतौर पर सूर्यास्त के बाद फसलों या प्राकृतिक वनस्पति पर बैठ जाता है. दिन के समय टिड्डी दल आने पर किसान जोर-जोर से शोर कर (यानि ड्रम, पीपा, ढ़ोल आदि बजाकर) टिड्डी दल को अपनी फसल पर न बठने दें. जैसे ही टिड्डी दल आए तो तुरन्त नजदीक के कृषि अधिकारी, कृषि विज्ञान केन्द्र के अधिकारी, पटवारी आदि को सूचित करें.

कृषि विभाग की टिड्डी दल को स्प्रे करके मारने की पूरी तैयारी है. अपने गांव में उपलब्ध ट्रैक्टर चालित स्प्रे पंप तैयार रखें. स्प्रे के लिए लेम्डा-साइहैलोथ्रिन 5 प्रतिशत ई.सी. दवाई 400 एम.एल./हेक्टेयर के हिसाब से 450-500 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें या क्लोरपाईरिफॉस 20 प्रतिशत ई.सी. दवाई 1200 एम.एल./हेक्टेयर 450 - 500 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें. स्प्रे तब करें जब टिड्डी दल बैठा हो यानि सूर्यास्त के बाद रात को या सूर्यादय से पहले सुबह-सुबह.

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