फरीदाबाद: केले के पेड़ से फल लेने के बाद आमतौर पर पेड़ को काटकर सड़ने के लिए फेंक दिया जाता है, लेकिन पश्चिम बंगाल के युवा शिल्पकार ने उसे रोजगार का जरिया बना लिया है. युवा शिल्पकार 35वें सूरजकुंड मेले में बनाना फाइबर क्राफ्ट से तैयार की गई कलाकृतियों को लेकर पहुंचे हैं. पश्चिम बंगाल के रहने वाले 24 वर्षीय शिल्पकार हेमंत रॉय बीरभूमि जिले के अकेले शिल्पकार हैं, जिन्होंने केले के रेशे से कलाकृतियां तैयार कर विदेशों तक पहुंचा रहे हैं.
इस तरह से तैयार होता है बनाना फाइबर क्राफ्ट- फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर रहे हेमंत पिछले छह साल से इस कला को नया रूप देने में लगे हैं. हेमंत बताते हैं कि पश्चिम बंगाल में जूट का कारोबार होता है. जूट से अनेकों समान बनाए जाते हैं. कुछ किसान केले की फसल उगाते हैं. फल लेने के बाद किसान केले के पेड़ को काट कर फेंक देते हैं. इन्हीं खराब तने को शिल्पकार 20 रुपए तक प्रति पेड़ खरीदते हैं. इसके बाद दो हिस्सों में फाड़कर एक-एक परत अलग करते हैं. फिर परत को गन्ने का रस निकालने वाली मशीन में डालकर उसमें से फाइबर निकालते हैं. उसे सुखाकर रेशा निकालते हैं, फिर कागज और फेविकोल का एक बेस बनाकर उसमें रेशे से कलाकृति की जाती है.
दोगुनी हुई किसानों की आय- युवा शिल्पकार का कहना है कि इस कला की शुरू होने से भीरभूमि जिले के किसानों की आय दोगुनी हो गई है. पहले उन्हें सिर्फ केले के पैसे मिलते थे, लेकिन अब बेकार समझे जाने वाले तने का भी पैसा मिल रहा है. यहां के किसान अब केले की फसल लेने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं. हेमंत बताते हैं कि उनके पिता किसानी करते थे, जिससे सिर्फ खाने का इंतजाम हो पाता था, लेकिन अब वो इस कला के जरिए हर महीने वह तकरीबन 20 हजार का कारोबार कर लेते हैं.
तैयार होती है ये कलाकृतियां- हेमंत के साथी शिल्पकार अशोक बताते हैं कि केले के पेड़ से निकलने वाले रेशे से विभिन्न देवी देवताओं की आकृति के अलावा मैट, जानवरों की आकृति जैसे घोड़ा, हिरण, शेर, मनी प्लांट कटोरी, पानी का ढक्कन, पेन, पेन स्टंट, आदि बनाते है. बनाना फाइबर क्राफ्ट में तैयार कलाकृतियों का वजन बहुत कम होता है. ऐसे में इसके टूटने का खतरा ना के बराबर हो जाता है.
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