चंडीगढ़: हरियाणा में गांव की जनता का एक साल से अधिक वक्त से पंचायत चुनावों को लेकर चल रहा इंतजार जल्द खत्म होता दिखाई नहीं दे रहा है. यानि ग्रामीण इलाके की छोटी सरकार को बनाने के लिए (पंचायत चुनाव) लोगों को अभी और इंतजार करना पड़ेगा. प्रदेश में पंचायतों का कार्यकाल बीते साल 23 फरवरी को समाप्त हो गया था. लेकिन पंचायत चुनावों का मामला पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट में लंबित है. 17 अप्रैल के बाद होगी मामले की अगली सुनवाई प्रस्तावित है.
हरियाणा सरकार ने पंचायती राज एक्ट में महिला आरक्षण (50 प्रतिशत) सहित कुछ अन्य संशोधन किए हैं. जिसको लेकर हाईकोर्ट में 13 याचिकाएं दायर कर चुनौती दी गई है. इस मामले में मंगलवार को हाईकोर्ट ने अवकाश के बाद यानी 17 अप्रैल के बाद सुनवाई करने का आदेश देते हुए सुनवाई स्थगित कर दी. जिससे यह साफ हो गया कि अभी कुछ और महीने हरियाणा में ग्रामीण सरकार को बनने में लगेंगे.
एक साल से ज्यादा समय से पंचायत चुनावों का इंतजार- इस मामले में प्रदेश सरकार ने एक अर्जी दायर कर चुनाव के लिए हाई कोर्ट से इजाजत मांग रखी है. हरियाणा सरकार ने दायर अर्जी में कहा है कि पिछले साल 23 फरवरी को ही पंचायतों का कार्यकाल खत्म हो चुका है. इसलिए जल्द ही चुनाव कराए जाने चाहिए. लेकिन पंचायती राज एक्ट के दूसरे संशोधन के कुछ प्रावधानों को हाई कोर्ट में याचिकाएं दायर कर चुनौती दी गई है.
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आरक्षण के प्रावधानों को लेकर दायर हुई याचिकाएं- भले ही आरक्षण के प्रावधानों को लेकर हाईकोर्ट में याचिकाएं दी गई हो, लेकिन सरकार ने चुनाव करवाने के लिए इजाजत मांग रखी है. बावजूद इसके अभी तक सरकार ने कोई नोटीफिकेशन इसको लेकर नहीं की है. वहीं अब मामले की सुनवाई अप्रैल के तीसरे सप्ताह से पहले न होने की वजह से जल्द चुनावों के होने की उम्मीद भी कम ही दिखाई दे रही है. यानी एक साल से अधिक वक्त के बाद भी ग्रामीण सरकार जल्द बनती दिखाई नहीं दे रही है.
ग्रामीण इलाकों के विकास कार्यों पर असर- प्रदेश में पंचायत चुनाव न होने से ग्रामीण इलाकों में होने वाले विकास कार्यों पर असर होना लाजमी है. हालांकि इस सबके बीच ग्रामीण इलाकों में विकास कार्य न रुके इसके लिए सरकार भी अपनी ओर से प्रयास कर रही है. इसके लिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने गांव के स्तर पर कमेटियां बनाने की घोषणा की थी. जिनके पास पंचायत चुनाव न होने तक गांव के विकास कार्यों को लागू करने की जिम्मेदारी रहेगी. इसके लिए अधिकाारियों की तैनाती भी की गई थी।
क्या कहते हैं पिछली पंचायत के सरपंच?- इधर इस मामले में पानीपत के महमदपुर गांव के सरपंच रहे जिन्दर सिंह चीमा का कहना है कि विभाग की तरफ से भी उनके गांव में कार्यकाल खत्म होने के पश्चात एक रुपए तक का भी विकास कार्य नहीं हुआ. सरपंच ने कहा कि जल्द से जल्द पंचायत चुनाव सरकार को करवाने चाहिए ताकि ग्रामीण परिवेश में विकास की रफ्तार धीमी न हो. वे कहते हैं कि गांव में पीने के पाइप लाइन सैकड़ों जगह से टूट चुके हैं, गांव की कोई भी इनकम नहीं है. ना ही किसी प्रकार की कोई पंचायती जमीन जिससे गांव के विकास कार्य करवाए जा सके.
करनाल के बरथाल गांव के सरपंच रहे गजे सिंह ने कहा कि गांव केे विकास कार्यों का पैसा अधिकारियों के पास जा रहा है, लेकिन वह समय पर विकास कार्यों में नहीं लग पाता. प्रशासन को ऐसा कोई निर्णय लेना चाहिए कि जब तक पंचायत चुनाव न हो तब तक मौजूदा पंचायत को चार्ज दे दिया जाए ताकि हरियाणा के विकास का जो पहिया गांव से होकर गुजरता है वह ना रुके.
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अधिकारीयों को विकास कार्यों पर नजर रखने के निर्देश- इधर पंचायत चुनावों में हो ही देरी को लेकर प्रदेश के पंचायती राज मंत्री देवेंद्र बबली कहते हैं कि पंचायत चुनाव को लेकर सरकार पूरी तरीके से तैयार है. कोर्ट का आदेश मिलते ही प्रदेश में चुनाव करा दिए जाएंगे. पंचायत मंत्री देवेंद्र बबली ने भी मानते हैं कि चुनी हुई पंचायत ना होने के चलते पंचायतों का विकास कार्य उतनी तेजी से नहीं हो पा रहा है, जितना पंचायतों से होता है. वहीं वे यह भी कहते हैं कि उनका प्रयास है कि विकास की गति को बढ़ाया जाए और गुणवत्ता भी लाई जाए. उनका कहना है कि अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि जल्द से जल्द फाइल को निपटाएं.
इसके साथ ही बबली का कहना है कि विकास कार्यों का निरीक्षण खुद आला अधिकारी करेंगे और मैं भी करूंगा. उनका लक्ष्य हरियाणा के गांव का विकास शहर की तर्ज पर करने का है. वे कहते हैं कि पंचायत के चुनाव नहीं होने के कारण विकास कार्य प्रभावित जरूर हो रहे हैं लेकिन हम अधिकारियों के साथ मिलकर इस पर लगातार काम कर रहे हैं.
पंचायती संस्थाओं को कमजोर करने का प्रयास- इसी मामले को लेकर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा का कहना है कि प्रदेश में पंचायती राज संस्थाओं (ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, जिला परिषद) का कार्यकाल पिछले साल 23 फरवरी को पूरा हो चुका है. जबकि 53 से ज्यादा शहरी निकाय संस्थाओं (नगर परिषदों व नगर पालिकाओं) का कार्यकाल जून महीने में पूरा हो चुका है. अब जनप्रतिनिधि की बजाए अधिकारी बतौर प्रशासक इन्हें संभाल रहे हैं. उन्होंने ने कहा कि प्रदेश सरकार पंचायती राज संस्थाओं व शहरी निकाय संस्थाओं को कमजोर करना चाहती है. जनता के चुने हुए प्रतिनिधि अपने इलाके की आवाज को किसी भी स्तर पर न उठा सकें, इसलिए प्रदेश की भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार चुनावों को लेकर गंभीर नहीं है.
मुख्यमंत्री मनोहर लाल का कहना है कि हमने इस बार चुनाव में महिलाओं को 50 प्रतिशन भागीदारी सुनिश्चित की थी. किसी ने हमारे फैसले को कोर्ट में चुनौती दी है. इसलिए मामला कोर्ट में चल रहा है. सीएम ने कहा कि कोर्ट से इस मामले पर फैसला आने के बाद चुनाव करवाया जायेगा.
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