चंडीगढ़: हरियाणा में दो राज्यसभा सीटों के लिए 10 जून को मतदान होना है. बीजेपी और कांग्रेस द्वारा अपने उम्मीदवारों को उतारे जाने के बाद ऐसा लग रहा था कि यह चुनाव सिर्फ औपचारिकता रह जाएगा. लेकिन नामांकन के आखिरी दिन पूर्व मंत्री विनोद शर्मा के बेटे कार्तिकेय शर्मा (Karthikeya Sharma) ने निर्दलीय के तौर पर नामांकन दाखिल करके मतदान के साथ ही इसे रोमांचक लड़ाई बना दिया. कार्तिकेय शर्मा के पास मतों का जरूरी संख्या बल नहीं है. उन्हें कांग्रेस के नाराज विधायकों से समर्थन की उम्मीद है. जाहिर है पर्दे के पीछे कुछ तो ऐसा है जिससे उन्हें जीत की उम्मीद है.
कार्तिकेय शर्मा के तीसरे उम्मीदवार के तौर पर मैदान में आने से हरियाणा की 2 सीटों पर होने वाले राज्यसभा चुनाव पर सभी की निगाहें टिक गई हैं. क्योंकि राज्यसभा की इन 2 सीटों के चुनाव को लेकर वोटों का आंकड़ा जिस तरह का है वह इस मुकाबले को दिलचस्प बना रहा है. इस चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार कृष्ण लाल पंवार की जीत तो पक्की है. लेकिन कार्तिकेय शर्मा के मैदान में आने से कांग्रेस के राज्यसभा उम्मीदवार अजय माकन (Congress Rajya Sabha candidate Ajay Maken) की जीत पर सवाल खड़े हो गये हैं.
हरियाणा विधानसभा का गणित- राज्यसभा चुनाव में संख्या बल और समर्थन की बात की जाये तो वर्तमान में हरियाणा विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी के 40 विधायक हैं. जबकि सरकार में बीजेपी की सहयोगी जननायक जनता पार्टी के 10 विधायक. कांग्रेस पार्टी के 31 विधायक हैं. एक इंडियन नेशनल लोकदल (इनोलो) और एक हरियाणा लोकहित पार्टी का विधायक है. इनके अलावा कुल सात विधायक निर्दलीय हैं. कार्तिकेय शर्मा को जननायक जनता पार्टी ने नामांकन के साथ ही समर्थन का ऐलान कर दिया है. जेजेपी के सहारे उन्होंने राज्यसभा की उम्मीदवारी के लिए पर्चा भी भरा है. बीजेपी भी कार्तिकेय शर्मा को अपना समर्थन दे रही है. सात निर्दलीय विधायकों में से 6 अभी सरकार के साथ हैं. ये सभी निर्दलीयों को सरकार ने अलग-अलग आयोगों का चेयरमैन बनाया हुआ है. यानि 6 निर्दलीय विधायकों का समर्थन भी कार्तकेय शर्मा को मिलना लगभग तय है.
हरियाणा में विधायकों का आंकड़ा- अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो जेजेपी के 10 विधायक. निर्दलीय 6 विधायक. एक विधायक हरियाणा लोकहित पार्टी के गोपाल कांडा भी बीजेपी को समर्थन करते हैं. इस हिसाब से कार्तिकेय शर्मा के पास कुल 17 विधायकों (10+6+1) का समर्थन हो जाता है. वही फर्स्ट प्रिफरेंस मे बीजेपी के 31 विधायक अपनी पार्टी के उम्मीदवार को वोट करते हैं. उसके बाद बीजेपी के 9 विधायक कार्तिकेय शर्मा को वोट कर सकते हैं. इसके बाद कार्तिकेय के पास समर्थन का आंकड़ा 26 (10 जेजेपी+ 9 बीजेपी + 6 निर्दलीय + एक गोपाला कांडा) हो जाता है. जबकि दूसरी सीट पर चुनाव जीतने के लिए कम से कम 30 विधायकों के समर्थन की जरूरत रहेगी. निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू और इनेलो के इकलौते विधायक अभय चौटाला ने अभी अपने समर्थन पर फैसला नहीं किया है. अगर ये दो विधायक भी कार्तिकेय को समर्थन करते हैं तब भी उनका आंकड़ा 28 होता है. यानि कांग्रेस के वोट के बिना उनकी जीत संभव नहीं लगती. लेकिन अगर 2016 की तरह कांग्रेस के वोट खारिज होते हैं तो कार्तिकेय शर्मा की जीत के लिए वोटों का आंकड़ा कम हो जायेगा. इस स्थिति में उनकी जीत बिना समर्थन मिले भी पक्की हो जायेगी.
निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू को लेकर स्थिति साफ नहीं हो पा रही है. क्योंकि वह बयान जारी करके चुके हैं कि उन्होंने अभी कोई फैसला नहीं किया है कि वे किसका समर्थन करेंगे. इनेलो के विधायक अभय चौटाला को लेकर भी स्थिति साफ नहीं है. अगर यह दोनों विधायक भी कांग्रेस को वोट देते हैं तो ऐसे में कार्तिकेय शर्मा के पास 26 विधायकों का समर्थन रह जाएगा. जिससे कांग्रेस के पास 33 विधायक हो जाते हैं. इस स्थिति में उनको जीत के लिए कांग्रेस के कम से कम चार विधायकों को अपने पाले में करना होगा. अगर यह संभव नहीं हुआ तो, उन्हें दूसरी स्थित, जिसमें अगर कांग्रेस के 4 विधायकों के वोट कैंसिल होती है तो उनकी जीत पक्की हो जायेगी.
कांग्रेस की जीत पर कलह भारी- इधर इस समय कांग्रेस पार्टी के कुल 31 विधायक विधानसभा में हैं. ऐसे में आंकड़ों के हिसाब से कांग्रेस प्रत्याशी की जीत निश्चित लग रही है. लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस पार्टी अंतर कलह की वजह से डरी हुई है. पार्टी को कहीं ना कहीं अपने विधायकों के टूटने का डर सता रहा है. जिसकी वजह से पार्टी के सभी विधायकों को दिल्ली बुलाया गया है. माना जा रहा है कि 10 जून यानि वोटिंग के दिन तक पार्टी के सभी विधायक या तो कांग्रेस शासित राज्य राजस्थान या फिर छत्तीसगढ़ में अपना डेरा जमा सकते हैं.
वर्तमान में कांग्रेस की गुटबाजी गाहे-बगाहे सामने आती रही है. हाल ही में कुमारी सैलजा को राज्यसभा का टिकट न मिलने को लेकर पार्टी की ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कैप्टन अजय यादव सोशल मीडिया में अपनी नाराजगी जता चुके हैं. वही कुछ दिनों पहले पार्टी की वरिष्ठ नेता किरण चौधरी भी नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा के राज्यसभा सांसद बेटी दीपेंद्र हुड्डा से अपनी नाराजगी जाहिर कर चुकी हैं. इधर कुलदीप बिश्नोई की नाराजगी भी उस समय खुलकर सामने आ गई थी जब उदय भान को हरियाणा कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था.
ऐसे में एक तरफ पार्टी सैलजा गुट के विधायकों से तो वही कुलदीप बिश्नोई (Kuldeep Bishnoi) की नाराजगी से डरी हुई है. समीकरणों के हिसाब से अगर कुलदीप बिश्नोई का वोट पार्टी उम्मीदवार के खिलाफ या कैंसिल हो जाता है तो भी कांग्रेस का उम्मीदवार जीत सकता है. इस स्थिति में भी पार्टी उम्मीदवार के पास 30 विधायकों का समर्थन मौजूद रहेगा. अगर कुमारी सैलजा के करीबी एक या दो विधायकों ने पलटी मारी तो फिर कांग्रेस उम्मीदवार अजय माकन की जीत संकट में पड़ जायेगी.
कुमारी सैलजा के करीबी विधायकों में सढौरा की विधायक रेणु बाला और असंध के विधायक शमशेर गोगी माने जाते हैं. इसी वजह से पार्टी इस समय अपने विधायकों के पाला बदलने की स्थिति को लेकर डरी हुई है. वहीं अगर दोनों उम्मीदवारों के पास बराबर-बराबर वोट हो जाते हैं तो फिर राज्यसभा के लिए उम्मीदवार का चयन ड्रा से भी निकाला जा सकता है. इस बार भी जिस तरह के समीकरण बन रहे हैं उसको देखते हुए साल 2016 में इन्हीं 2 सीटों पर हुए चुनाव की याद ताजा हो जाती है. जब 14 वोट स्याही की वजह से रद्द हो गए थे. मीडिया टायकून सुभाष चंद्रा राज्यसभा पहुंच गए थे. उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी इनेलो उम्मीदवार आरके आनंद को इस चुनाव में मात दी थी. प्रदेश में एक बार फिर 2016 जैसे हालात बन रहे हैं.