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ओपी चौटाला ने जेजेपी की दुखती नस पकड़ ली! ऐसे बदलने लगा सियासी माहौल

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला(op chautala) प्रदेश में राजनीतिक गर्मी बढ़ाने के लिए निकल पड़े हैं. किसान आंदोलन में जाकर उन्होंने अपनी यात्रा की शुरुआत की है.

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Published : Jul 21, 2021, 5:57 PM IST

Updated : Jul 21, 2021, 7:11 PM IST

चंडीगढ़ः पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला(op chautala) जब से तिहाड़ से आये हैं तब से हरियाणा की राजनीति में गर्मी जरा बढ़ गई है. ओपी चौटाला ने जेल से निकलते ही कहा था कि वो जैसे ही ठीक होंगे सबसे पहले किसानों के बीच जाएंगे. लिहाजा जैसे ही ओपी चौटाला जरा ठीक हुए वो किसानों के बीच पहुंच गए. मंगलवार को उन्होंने गाजीपुर जाकर राकेश टिकैत से मुलाकात की और किसानों को अपना समर्थन दिया. अब बुधवार को वो सिंघू बॉर्डर पर पहुंचे.

यहां उन्होंने किसानों से बातचीत की और अपने भाषण में बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस को भी निशाने पर रखा. अब वो इनेलो के तय कार्यक्रम के अनुसार पूरे प्रदेश में जाएंगे. हर जिले में जगह-जगह उनके कार्यक्रम होंगे. जिसकी रूपरेखा पहले ही इनेलो तैयार कर चुकी है. ओपी चौटाला के इन दौरों और जमीन पर इस सक्रियता को जेजेपी के लिए सबसे बड़ा खतरा माना जा रहा है. क्योंकि अगर ओपी चौटाला अपने समर्थकों को वापस खींचने में कामयाब हुए तो वो जेजेपी के जनाधार में से आएंगे.

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सिंघू बॉर्डर पर भाषण देते ओपी चौटाला, उन्हें संभाल रहे हैं करण चौटाला

इसको लेकर जेजेपी भले ही कुछ ना बोलती हो लेकिन उसे फिक्र तो है. इसीलिए वो भी कह रहे हैं कि जैसे ओपी चौटाला छूटे हैं वैसे ही अजय चौटाला भी जेल से बाहर आएंगे और हमें मजबूती देंगे.

लेकिन ओम प्रकाश चौटाला के सक्रिय होने के बाद अगर इनेलो में कोई जान पड़ती है तो जेजेपी पर इसका क्या और कैसे असर पड़ेगा? तो इसे ऐसे समझिए कि जब इनेलो से टूटकर जेजेपी बनी और उन्होंने पहला उपचुनाव जींद में लड़ा तो दिग्विजय चौटाला वहां दूसरे नंबर पर आये. और इनेलो के प्रत्याशी की जमानत जब्त हो गई, जबकि ये सीट इनेलो विधायक की मौत के बाद ही खाली हुई थी. इसके बाद आप आ जाइये 2019 के विधानसभा चुनाव पर, इस चुनाव में इनेलो को मात्र 2.44 फीसदी वोट मिले और सीट मिली.

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गाजीपुर बॉर्डर पर ओपी चौटाला का स्वागत करते राकेश टिकैत

ये भी पढ़ेंः इनेलो में जान फूंकने के लिए जमीन पर उतरे ओपी चौटाला, किसानों के बीच से भरी हुंकार

जबकि अगर आप इनेलो का इतिहास देखें तो उसे 2000 के बाद से सीटें भले ही कितनी मिली हों लेकिन उसका मत प्रतिशत 20 फीसदी से कभी कम नहीं हुआ. मतलब उसका जो कैडर वोटर था वो कभी कहीं नहीं जाता था, लेकिन जब परिवार टूटा और जेजेपी वजूद में आई तो वो उसकी तरफ मुड़ गया. इसका नतीजा ये हुआ कि जेजेपी को 10 सीटें मिल गई और वो प्रदेश में किंग मेकर बन गई. आज उनकी पार्टी से दुष्यंत चौटाला सूबे की सरकार में उप मुख्यमंत्री हैं वो बात अलग है कि वो इनेलो में रहते हुए मुख्यमंत्री की उम्मीदवारी चाहते थे.

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सिंघू बॉर्डर पर ओपी चौटाला

बहरहाल ये सब आंकड़े इस ओर इशारा करते हैं कि अगर इनेलो मजबूत होती है तो जेजेपी का कमजोर होना तय है. यही तमाम राजनीतिक पंडित भी मानते हैं. हालांकि ये हो सकता है कि इनेलो अपने आप कुछ ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब ना हो, लेकिन उनकी मजबूती कई लोगों को हरा जरूर सकती है. इस वोट बैंक की खास बात ये है कि ज्यादातर लोग इसमें किसान बैकग्राउंड के हैं तो ओपी चौटाला ने इस मौके का फायदा उठाते हुए किसानों के बीच से अपनी यात्रा शुरू की है. जो इस वक्त जेजेपी की दुखती रग है और खतरे की घंटी भी.

ये भी पढ़ेंः सिंघु बॉर्डर पर गरजे ओपी चौटाला, 'किसान आंदोलन ने जात-पात की राजनीति करने वालों के मुंह पर जड़ा थप्पड़'

चंडीगढ़ः पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला(op chautala) जब से तिहाड़ से आये हैं तब से हरियाणा की राजनीति में गर्मी जरा बढ़ गई है. ओपी चौटाला ने जेल से निकलते ही कहा था कि वो जैसे ही ठीक होंगे सबसे पहले किसानों के बीच जाएंगे. लिहाजा जैसे ही ओपी चौटाला जरा ठीक हुए वो किसानों के बीच पहुंच गए. मंगलवार को उन्होंने गाजीपुर जाकर राकेश टिकैत से मुलाकात की और किसानों को अपना समर्थन दिया. अब बुधवार को वो सिंघू बॉर्डर पर पहुंचे.

यहां उन्होंने किसानों से बातचीत की और अपने भाषण में बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस को भी निशाने पर रखा. अब वो इनेलो के तय कार्यक्रम के अनुसार पूरे प्रदेश में जाएंगे. हर जिले में जगह-जगह उनके कार्यक्रम होंगे. जिसकी रूपरेखा पहले ही इनेलो तैयार कर चुकी है. ओपी चौटाला के इन दौरों और जमीन पर इस सक्रियता को जेजेपी के लिए सबसे बड़ा खतरा माना जा रहा है. क्योंकि अगर ओपी चौटाला अपने समर्थकों को वापस खींचने में कामयाब हुए तो वो जेजेपी के जनाधार में से आएंगे.

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सिंघू बॉर्डर पर भाषण देते ओपी चौटाला, उन्हें संभाल रहे हैं करण चौटाला

इसको लेकर जेजेपी भले ही कुछ ना बोलती हो लेकिन उसे फिक्र तो है. इसीलिए वो भी कह रहे हैं कि जैसे ओपी चौटाला छूटे हैं वैसे ही अजय चौटाला भी जेल से बाहर आएंगे और हमें मजबूती देंगे.

लेकिन ओम प्रकाश चौटाला के सक्रिय होने के बाद अगर इनेलो में कोई जान पड़ती है तो जेजेपी पर इसका क्या और कैसे असर पड़ेगा? तो इसे ऐसे समझिए कि जब इनेलो से टूटकर जेजेपी बनी और उन्होंने पहला उपचुनाव जींद में लड़ा तो दिग्विजय चौटाला वहां दूसरे नंबर पर आये. और इनेलो के प्रत्याशी की जमानत जब्त हो गई, जबकि ये सीट इनेलो विधायक की मौत के बाद ही खाली हुई थी. इसके बाद आप आ जाइये 2019 के विधानसभा चुनाव पर, इस चुनाव में इनेलो को मात्र 2.44 फीसदी वोट मिले और सीट मिली.

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गाजीपुर बॉर्डर पर ओपी चौटाला का स्वागत करते राकेश टिकैत

ये भी पढ़ेंः इनेलो में जान फूंकने के लिए जमीन पर उतरे ओपी चौटाला, किसानों के बीच से भरी हुंकार

जबकि अगर आप इनेलो का इतिहास देखें तो उसे 2000 के बाद से सीटें भले ही कितनी मिली हों लेकिन उसका मत प्रतिशत 20 फीसदी से कभी कम नहीं हुआ. मतलब उसका जो कैडर वोटर था वो कभी कहीं नहीं जाता था, लेकिन जब परिवार टूटा और जेजेपी वजूद में आई तो वो उसकी तरफ मुड़ गया. इसका नतीजा ये हुआ कि जेजेपी को 10 सीटें मिल गई और वो प्रदेश में किंग मेकर बन गई. आज उनकी पार्टी से दुष्यंत चौटाला सूबे की सरकार में उप मुख्यमंत्री हैं वो बात अलग है कि वो इनेलो में रहते हुए मुख्यमंत्री की उम्मीदवारी चाहते थे.

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सिंघू बॉर्डर पर ओपी चौटाला

बहरहाल ये सब आंकड़े इस ओर इशारा करते हैं कि अगर इनेलो मजबूत होती है तो जेजेपी का कमजोर होना तय है. यही तमाम राजनीतिक पंडित भी मानते हैं. हालांकि ये हो सकता है कि इनेलो अपने आप कुछ ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब ना हो, लेकिन उनकी मजबूती कई लोगों को हरा जरूर सकती है. इस वोट बैंक की खास बात ये है कि ज्यादातर लोग इसमें किसान बैकग्राउंड के हैं तो ओपी चौटाला ने इस मौके का फायदा उठाते हुए किसानों के बीच से अपनी यात्रा शुरू की है. जो इस वक्त जेजेपी की दुखती रग है और खतरे की घंटी भी.

ये भी पढ़ेंः सिंघु बॉर्डर पर गरजे ओपी चौटाला, 'किसान आंदोलन ने जात-पात की राजनीति करने वालों के मुंह पर जड़ा थप्पड़'

Last Updated : Jul 21, 2021, 7:11 PM IST
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