चंडीगढ़: केंद्र सरकार के कृषि से जुड़े तीन अध्यादेशों के विरोध में कांग्रेस भी उतर आई है. हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी सैलजा ने इन अध्यादेशों को किसान विरोधी करार देते हुए कहा कि भाजपा सरकार किसानों को बर्बाद करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रही है. कोरोना महामारी के बीच भाजपा सरकार द्वारा किसानों को बर्बाद करने के लिए एक नया अध्याय लिखा गया है. केंद्र सरकार अभी हाल ही में तीन नए अध्यादेश लेकर आई है, इससे सरकार के कुछ पसंदीदा पूंजीपतियों को लूट की खुली छूट होगी और किसान अपनी फसल बेचने के लिए इन पूंजीपतियों पर निर्भर होंगे.
सरकार पर खेती का निजीकरण करने के लगाए आरोप
सैलजा ने आगे कहा कि इन कानूनों के जरिए सरकार खेती में निजी क्षेत्र को बढ़ावा दे रही है जो किसानों के साथ इस सरकार का एक और षड्यंत्र है. पहले हर व्यापारी केवल मंडी से ही फसल खरीद सकता था, परंतु अब नए अध्यादेश के मुताबिक उसे इस कानून के तहत मंडी के बाहर से फसल खरीदने की छूट मिल जाएगी. जिससे मंडी में होने वाली प्रतिस्पर्धा और फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य दोनों समाप्त हो जाएंगे. इस कानून से जहां हरियाणा में मंडियां खत्म हो जाएंगी, वहीं किसानों की फसल मंडी में ओने पौने दामों पर बिकेंगी, जिससे किसानों को भारी नुकसान होगा.
सरकार पर निशाना साधते हुए सैलजा ने कहा कि देश में 85 फीसदी छोटी खेती करने वाले किसान हैं, जिनकी साल भर की पैदावार इतनी नहीं होती कि वह हर बार पास की मंडी तक ही जा सके और अपनी फसल बेच सकें. ऐसे में किसान अपनी फसल को किसी दूसरे राज्य की मंड़ी में जाकर बेचें, ये कहना किसी मजाक से कम नहीं है, यदि कोई किसान अपनी फसल बेचने के लिए दूसरे राज्य में पहुंच भी जाए तो इसकी क्या गारंटी है कि उसको फसल के इतने दाम मिल जाएंगे कि माल, ढुलाई सहित पूरी लागत निकल आएगी.
नए अध्यादेश से कालाबाजारी होगी
कुमारी सैलजा ने कहा कि वहीं दूसरे अध्यादेश ‘आवश्यक वस्तु अधिनियम संसोधन’ के तहत अनाज, दालों, प्याज, आलू इत्यादि को जरूरी वस्तु अधिनियम से बाहर कर दिया गया है. इनकी स्टॉक सीमा समाप्त कर दी गई है, इससे अत्यधिक स्टॉक करके इन चीजों की कालाबाजारी होगी और महंगे दामों पर इन्हें बेचा जाएगा. वहीं तीसरे अध्यादेश में कॉन्टैक्ट फार्मिंग के माध्यम से किसानों का वजूद समाप्त करने की साजिश रची गई है. इस कानून के माध्यम से अनुबंध आधारित खेती को वैधानिकता प्रदान की गई है, ताकि बड़े पूंजीपति और कंपनियां अनुबंध के माध्यम से ठेका आधारित खेती कर सकें. किसान खेतीबाड़ी के लिए इनसे बंध जाएगा, जिससे किसानों का वजूद समाप्त हो जाएगा.
कांग्रेस ने सभी अध्यादेश वापस लेने की मांग की
सैलजा ने कहा कि सरकार के तमाम दावों के बावजूद कर्ज के बोझ तले दबे किसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला जारी है. सरकार खोखले नारों व दावों से, किसानों की आय दोगुनी करना, जीरो बजट खेती आदि से निरंतर किसानों को गुमराह करती रही है. जिससे आज किसान पूरी तरह से तबाह होने की कगार पर पहुंच चुका है. ये नए अध्यादेश एक खास वर्ग के हितों की रक्षा करते हैं. ये अध्यादेश पूरी तरह से किसानों के लिए घाटे का सौदा हैं और इन तीनों अध्यादेशों को तुरंत वापस लिया जाए व पहले की तरह ही सारी व्यवस्था रहने दी जाएं.
गौरतलब है कि केंद्र सरकार के कृषि से जुड़े तीन अध्यादेशों के खिलाफ पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के किसान प्रदर्शन कर रहे हैं. वहीं अब कांग्रेस ने भी किसान का साथ देते हुए इन अध्यादेशों को वापस लेने की मांग की है. आपको बताते हैं कि वो तीन अध्यादेश क्या हैं जिनका विरोध हो रहा है-
एसेंशियल एक्ट 1955 में बदलाव
पहले व्यापारी फसलों को किसानों के औने-पौने दामों में खरीदकर उसका भंडारण कर लेते थे और कालाबाजारी करते थे, उसको रोकने के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 बनाया गया था जिसके तहत व्यापारियों द्वारा कृषि उत्पादों के एक लिमिट से अधिक भंडारण पर रोक लगा दी गयी थी. अब इस नए अध्यादेश के तहत आलू, प्याज, दलहन, तिलहन व तेल के भंडारण पर लगी रोक को हटा लिया गया है.
किसान और किसान संगठनों का मानना है कि सरकार की इस नीति से किसानों को नुकसान होगा. किसानों का कहना है कि हमारे देश में 85% लघु किसान हैं, किसानों के पास लंबे समय तक भंडारण की व्यवस्था नहीं होती है यानी यह अध्यादेश बड़ी कम्पनियों द्वारा कृषि उत्पादों की कालाबाजारी के लिए लाया गया है. कम्पनियां और सुपर मार्केट अपने बड़े-बड़े गोदामों में कृषि उत्पादों का भंडारण करेंगे और बाद में ऊंचे दामों पर ग्राहकों को बेचेंगे.
फॉर्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) ऑर्डिनेंस
कृषि उपज, वाणिज्य और व्यापार (संवर्धन एवं सुविधा) अध्यादेश किसानों को उनकी उपज देश में किसी भी व्यक्ति या संस्था (APMC सहित) को बेचने की इजाजत देता है. किसान अपना प्रोडक्ट खेत में या व्यापारिक प्लेटफॉर्म पर देश में कहीं भी बेच सकते हैं. वहीं इसको लेकर किसानों को सबसे बड़ा डर मंडी एक्ट के प्रभाव को सीमित करने वाले अध्यादेश कृषि उपज, वाणिज्य और व्यापार (संवर्धन एवं सुविधा) को लेकर है. इसके जरिए राज्यों के मंडी एक्ट को केवल मंडी परिसर तक ही सीमित कर दिया गया है. यानी अब कहीं पर भी फसलों की खरीद-बिक्री की जा सकेगी. बस फर्क इतना होगा कि मंडी में खरीद-बिक्री पर मंडी शुल्क लगेगा, जबकि बाहर शुल्क से छूट होगी.
फॉर्मर्स अग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विस ऑर्डिनेंस- कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग
सरकार प्रवक्ता का कहना है कि व्यावसायिक खेती के समझौते वक्त की जरूरत है. विशेषकर छोटे और सीमांत किसानों के लिए, जो ऊंचे मूल्य की फसलें उगाना चाहते हैं, मगर पैदावार का जोखिम उठाते और घाटा सहते हैं. इस अध्यादेश से किसान अपना यह जोखिम कॉरपोरेट खरीदारों को सौंपकर फायदा कमा सकेंगे. वहीं किसानों कहा कहना है कि इसके जरिये कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग को आगे बढ़ाया जाएगा. कंपनियां खेती करेंगी और किसान मजदूर बनकर रह जाएगा. उसकी सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं होगी. हाल में सरकार ने कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की गाइडलाइन जारी की है. इसमें कॉन्ट्रैक्ट की भाषा से लेकर कीमत तय करने का फॉर्मूला तक दिया गया है. लेकिन कहीं भी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य का कोई जिक्र नहीं है, जिस पर किसान नेता सवाल उठा रहे हैं.
ये भी पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: खेलों की तारीखें घोषित ना होने के चलते खिलाड़ियों को सता रहा भविष्य का डर