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नई रिसर्च: पराली को डिकम्पोज करने के लिए लिक्विड तैयार

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Published : Sep 18, 2020, 11:47 AM IST

पराली का धुआं हमेशा की तरह दिल्ली वालों की सांस में जहर न भरे, इसके लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने एक तकनीक तैयार की है. उस तकनीक की पूरी जानकारी और प्रयोग की विधि से ईटीवी भारत आपको रूबरू करा रहा है.

know process of stubble decomposition by chief scientist of iari yb singh
आईएआरआई के मुख्य वैज्ञानिक वाईबी सिंह द्वारा स्टबल अपघटन की प्रक्रिया को जानें

चंडीगढ़/नई दिल्ली: हरियाणा और पंजाब में जैसे जैसे धान की कटाई रफ्तार पकड़ती है, दिल्ली के आसमान पर कोहरे की चादर घनी होती जाती है और फिर शुरू होती है आरोपों-प्रत्यारोपों की सियासत, क्योंकि तब दिल्ली सांस में पराली का धुआं भरने को मजबूर हो जाती है. एक अध्ययन के अनुसार बीते साल दिल्ली में जितना प्रदूषण हुआ, उसका 44 फीसदी कारक पराली थी, जो दिल्ली के कुछ हिस्से, पड़ोसी राज्यों हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में जलाई गई थी.

गोपाल राय ने लिया था जायजा
इसबार यह समस्या सामने न आए, इसे लेकर पहले से ही तैयारी शुरू है. दिल्ली के पूसा स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा कैप्सूल व लिक्विड तैयार किया है, जिसके प्रयोग से चंद दिनों में ही पराली को डिकम्पोज किया जा सकेगा और किसान इसका प्रयोग खाद के रूप में कर सकेंगे. दिल्ली सरकार के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने बुधवार को इस नई तकनीक का जायजा भी लिया और उन्होंने किसानों को सरकार की तरफ से इसे उपलब्ध कराने की बात कही.

नई रिसर्च: पराली को डिकम्पोज करने के लिए लिक्विड तैयार


मुख्य वैज्ञानिक ने दी जानकारी
ईटीवी भारत ने इस पूरी तकनीक को समझने की कोशिश की. इसे लेकर प्रयोग क्षेत्र में ही हमने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के मुख्य वैज्ञानिक वाईबी सिंह से बातचीत की. वाईबी सिंह ने बताया कि इस संस्थान ने एक कैप्सूल और लिक्विड तैयार किया है, जिसके जरिए आसानी से किसान अपनी पराली को डिकम्पोज कर सकेंगे. किसानों की सहायता के लिए चार-चार कैप्सूल का पैकेट तैयार किया गया है, जो एक हेक्टेयर जमीन की पराली को डिकम्पोज कर सकता है.

'किसानों को बताई जाएगी प्रयोग-विधि'
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की तरफ से किसानों को इसकी पूरी प्रक्रिया को लेकर एक प्रायोगिक बुकलेट दिया जाना है, जिसमें पराली को डिकम्पोज करने की पूरी प्रक्रिया समझाई गई है. इसके अनुसार, 100 ग्राम गुड़ को 5 लीटर पानी में मिलाकर उबालना है और फिर ऊपर में जमा हुई गन्दगी फेंक देनी है. फिर उस मिश्रण को चौकोर बर्तन में ठंडा होने के लिए रखना है, हल्का गुनगुना होने पर उसमें 50 ग्राम बेसन मिलाना है और फिर ये चार कैप्सूल उसमें तोड़कर डाल देने हैं.

'4 कैप्सूल की कीमत 20 रुपये'
इसे अच्छी तरह मिलाकर एक सामान्य तापमान पर बर्तन कक कपड़े से ढककर रख देना है. अगले दो दिन में यह एक टन कृषि अवशेष यानी पराली पर इस्तेमाल के लिए तैयार होगा. अगर पराली धान की हो, तो 10 लीटर का मिश्रण तैयार करना होगा और गेहूं, मूंग आदि की पराली के लिए यह मात्रा 5 लीटर हो सकती है. वैज्ञानिक वाईबी सिंह ने बताया कि इस चार कैप्सूल की कीमत 20 रुपये है. जो किसान लिक्विड बनाने की इस पूरी प्रक्रिया से नहीं गुजरना चाहते, उनके लिए यहां तैयार लिक्विड भी उपलब्ध है.

'किसानों के लिए जरूरी होगा टाइम-मैनजेमेंट'
लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके जरिए पराली को डिकम्पोज होने में 20-30 दिन का समय लग जाता है. क्या किसानों के पास इतना समय होता है कि वे इस पूरी प्रक्रिया का पालन करते हुए इसका उपयोग कर सकें, इस सवाल पर वाईबी सिंह ने कहा कि इसके लिए किसानों को समय का मैनजेमेंट करना होगा. धान की कटाई के अगले दिन ही नमी वाली जमीन पर उन्हें पराली के ऊपर इसका छिड़काव कर देना होगा और फिर जब पराली हल्की डिकम्पोज हो जाए, तो वे जल जोतकर पलेवा कर सकते हैं.

'कम होगा रासायनिक खाद का प्रयोग'
उनका यह भी कहना था कि यह प्रयोग रासायनिक खादों के इस्तेमाल को भी कम करेगा. अगर किसान खेत के बाहर पराली के जरिए कम्पोस्ट बनाना चाहते हैं, तो उसके लिए भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं. उन्होंने यह भी बताया कि पराली जलाने के दौरान किसान खेत के कई महत्वपूर्ण तत्व जैसे नाइट्रोजन, फॉस्फोरस भी जला देते हैं, जो फसलों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं. इस कैप्सूल और लिक्विड का प्रयोग उनके लिए मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बरकरार रखने में भी कारगर होगा.


पड़ोसी राज्यों से बात करेंगे गोपाल राय
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में ऐसी मशीनें भी लगीं हैं, जिनके जरिए पराली के कम्पोस्ट में बदलने के बाद उसमें रह गए ईंट-पत्थर जैसे अवांछनीय तत्वों को हटा दिया जाता है. पराली के जरिए बड़े स्तर पर कम्पोस्ट तैयार करने वाले किसान ये मशीनें भी खरीद सकते हैं. सरकारें इन मशीनों की खरीद पर किसानों को सब्सिडी देती हैं. बीते दिन दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा भी था कि वे इस तकनीक को लेकर पड़ोसी राज्यों से भी बातचीत करेंगे.

चंडीगढ़/नई दिल्ली: हरियाणा और पंजाब में जैसे जैसे धान की कटाई रफ्तार पकड़ती है, दिल्ली के आसमान पर कोहरे की चादर घनी होती जाती है और फिर शुरू होती है आरोपों-प्रत्यारोपों की सियासत, क्योंकि तब दिल्ली सांस में पराली का धुआं भरने को मजबूर हो जाती है. एक अध्ययन के अनुसार बीते साल दिल्ली में जितना प्रदूषण हुआ, उसका 44 फीसदी कारक पराली थी, जो दिल्ली के कुछ हिस्से, पड़ोसी राज्यों हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में जलाई गई थी.

गोपाल राय ने लिया था जायजा
इसबार यह समस्या सामने न आए, इसे लेकर पहले से ही तैयारी शुरू है. दिल्ली के पूसा स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा कैप्सूल व लिक्विड तैयार किया है, जिसके प्रयोग से चंद दिनों में ही पराली को डिकम्पोज किया जा सकेगा और किसान इसका प्रयोग खाद के रूप में कर सकेंगे. दिल्ली सरकार के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने बुधवार को इस नई तकनीक का जायजा भी लिया और उन्होंने किसानों को सरकार की तरफ से इसे उपलब्ध कराने की बात कही.

नई रिसर्च: पराली को डिकम्पोज करने के लिए लिक्विड तैयार


मुख्य वैज्ञानिक ने दी जानकारी
ईटीवी भारत ने इस पूरी तकनीक को समझने की कोशिश की. इसे लेकर प्रयोग क्षेत्र में ही हमने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के मुख्य वैज्ञानिक वाईबी सिंह से बातचीत की. वाईबी सिंह ने बताया कि इस संस्थान ने एक कैप्सूल और लिक्विड तैयार किया है, जिसके जरिए आसानी से किसान अपनी पराली को डिकम्पोज कर सकेंगे. किसानों की सहायता के लिए चार-चार कैप्सूल का पैकेट तैयार किया गया है, जो एक हेक्टेयर जमीन की पराली को डिकम्पोज कर सकता है.

'किसानों को बताई जाएगी प्रयोग-विधि'
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की तरफ से किसानों को इसकी पूरी प्रक्रिया को लेकर एक प्रायोगिक बुकलेट दिया जाना है, जिसमें पराली को डिकम्पोज करने की पूरी प्रक्रिया समझाई गई है. इसके अनुसार, 100 ग्राम गुड़ को 5 लीटर पानी में मिलाकर उबालना है और फिर ऊपर में जमा हुई गन्दगी फेंक देनी है. फिर उस मिश्रण को चौकोर बर्तन में ठंडा होने के लिए रखना है, हल्का गुनगुना होने पर उसमें 50 ग्राम बेसन मिलाना है और फिर ये चार कैप्सूल उसमें तोड़कर डाल देने हैं.

'4 कैप्सूल की कीमत 20 रुपये'
इसे अच्छी तरह मिलाकर एक सामान्य तापमान पर बर्तन कक कपड़े से ढककर रख देना है. अगले दो दिन में यह एक टन कृषि अवशेष यानी पराली पर इस्तेमाल के लिए तैयार होगा. अगर पराली धान की हो, तो 10 लीटर का मिश्रण तैयार करना होगा और गेहूं, मूंग आदि की पराली के लिए यह मात्रा 5 लीटर हो सकती है. वैज्ञानिक वाईबी सिंह ने बताया कि इस चार कैप्सूल की कीमत 20 रुपये है. जो किसान लिक्विड बनाने की इस पूरी प्रक्रिया से नहीं गुजरना चाहते, उनके लिए यहां तैयार लिक्विड भी उपलब्ध है.

'किसानों के लिए जरूरी होगा टाइम-मैनजेमेंट'
लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके जरिए पराली को डिकम्पोज होने में 20-30 दिन का समय लग जाता है. क्या किसानों के पास इतना समय होता है कि वे इस पूरी प्रक्रिया का पालन करते हुए इसका उपयोग कर सकें, इस सवाल पर वाईबी सिंह ने कहा कि इसके लिए किसानों को समय का मैनजेमेंट करना होगा. धान की कटाई के अगले दिन ही नमी वाली जमीन पर उन्हें पराली के ऊपर इसका छिड़काव कर देना होगा और फिर जब पराली हल्की डिकम्पोज हो जाए, तो वे जल जोतकर पलेवा कर सकते हैं.

'कम होगा रासायनिक खाद का प्रयोग'
उनका यह भी कहना था कि यह प्रयोग रासायनिक खादों के इस्तेमाल को भी कम करेगा. अगर किसान खेत के बाहर पराली के जरिए कम्पोस्ट बनाना चाहते हैं, तो उसके लिए भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं. उन्होंने यह भी बताया कि पराली जलाने के दौरान किसान खेत के कई महत्वपूर्ण तत्व जैसे नाइट्रोजन, फॉस्फोरस भी जला देते हैं, जो फसलों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं. इस कैप्सूल और लिक्विड का प्रयोग उनके लिए मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बरकरार रखने में भी कारगर होगा.


पड़ोसी राज्यों से बात करेंगे गोपाल राय
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में ऐसी मशीनें भी लगीं हैं, जिनके जरिए पराली के कम्पोस्ट में बदलने के बाद उसमें रह गए ईंट-पत्थर जैसे अवांछनीय तत्वों को हटा दिया जाता है. पराली के जरिए बड़े स्तर पर कम्पोस्ट तैयार करने वाले किसान ये मशीनें भी खरीद सकते हैं. सरकारें इन मशीनों की खरीद पर किसानों को सब्सिडी देती हैं. बीते दिन दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा भी था कि वे इस तकनीक को लेकर पड़ोसी राज्यों से भी बातचीत करेंगे.

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