चंडीगढ़: आज कजरी तीज मनाई जा रही है. कजरी तीज (kajari teej 2021) भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है. वैसे तो हिन्दू मान्यताओं के अनुसार पति की लंबी उम्र के लिए कई महिलाएं कई व्रत रखती हैं, लेकिन कजरी तीज अपने आप में खास है. इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं. कजरी तीज को बड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है, जो हरियाली तीज यानी छोटी तीज के बाद मनाई जाती है. इस मौके पर कई महिलाएं तो पूरा दिन निर्जल रहकर उपवास करती हैं. वहीं, कुंवारी कन्याएं अच्छा वर पाने के लिए यह व्रत करती हैं.
कजरी तीज की व्रत कथा: एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण का परिवार रहता था. ब्राह्मण की पत्नी ने भाद्रपद महीने में आने वाली कजरी तीज का व्रत रखा और ब्राह्मण से कहा, हे स्वामी आज मेरा तीज व्रत है. कहीं से मेरे लिए चने का सत्तू ले आइए. लेकिन ब्राह्मण ने परेशान होकर कहा कि मैं सत्तू कहां से लेकर आऊं भाग्यवान. इस पर ब्राह्मण की पत्नी ने कहा कि मुझे किसी भी कीमत पर चने का सत्तू चाहिए. इतना सुनकर ब्राह्मण रात के समय घर से निकल पड़ा. वह सीधे साहूकार की दुकान में गया और चने की दाल, घी, शक्कर आदि मिलाकर सवा किलो सत्तू बना लिया. इतना करने के बाद ब्राह्मण अपनी पोटली बांधकर जाने लगा. तभी खटपट की आवाज सुनकर साहूकार के नौकर जाग गए और वह चोर-चोर आवाज लगाने लगे.
ब्राह्मण को उन्होंने पकड़ लिया साहूकार भी वहां पहुंच गया. ब्राह्मण ने कहा कि मैं बहुत गरीब हूं और मेरी पत्नी ने आज तीज का व्रत रखा है. इसलिए मैंने यहां से सिर्फ सवा किलो का सत्तू बनाकर लिया है. ब्राह्मण की तलाशी ली गई तो सत्तू के अलावा कुछ भी नहीं निकला. उधर चांद निकल आया था और ब्राह्मण की पत्नी इंतजार कर रही थी. साहूकार ने कहा कि आज तुम्हारी पत्नी को मैं अपनी धर्म बहन मानूंगा. उसने ब्राह्मण को सत्तू, गहने, रुपये, मेहंदी, लच्छा और बहुत सारा धन देकर अच्छे से विदा किया. सबने मिलकर कजली माता की पूजा की.
कजरी तीज पूजा विधि: सबसे पहले घर में पूजा के लिए सही दिशा का चुनाव करके दीवार के सहारे मिट्टी और गोबर से एक तालाब जैसा छोटा सा घेरा बना लें. इसके बाद उस तालाब में कच्चा दूध और जल भर दें. फिर किनारे पर एक दीपक जलाकर रख दें. उसके बाद एक थाली में केला, सेब सत्तू, रोली, मौली-अक्षत आदि रखें. तालाब के किनारे नीम की एक डाल तोड़कर रोपें. इस नीम की डाल पर चुनरी ओढ़ाकर नीमड़ी माताजी की पूजा करें. शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलें.
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