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चौधर की जंग: जाटलैंड में इस बार क्या बन रहे हैं समीकरण? देखिए ये स्पेशल रिपोर्ट

ये है ईटीवी भारत की खास पेशकश 'चौधर की जंग'. हरियाणा राजनीतिक नजरिए से चार भागों में बंटा हुआ है जिनका अपना अलग मिजाज है- जाटलैंड, जीटी रोड बेल्ट, अहीरवाल और मेव क्षेत्र. इन चारों क्षेत्रों में अलग राजनीति है, अलग मुद्दे हैं और अलग समीकरण हैं. इस कड़ी में हम बात करेंगे जाटलैंड की राजनीति की.

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Published : Oct 8, 2019, 5:43 PM IST

Updated : Oct 20, 2019, 4:26 PM IST

चंडीगढ़: जाट समुदाय हरियाणा की सियासत का प्रभावी फैक्टर रहा है. कई दशक तक सत्ता की चाभी इसी समुदाय के इर्द गिर्द घूमती रही है. जाटलैंड के अंदर आने वाले मुख्य जिले हैं- सोनीपत, रोहतक, जींद, झज्जर और कैथल. हरियाणा में 27 फीसदी जाट समुदाय माना जाता है. प्रदेश की सत्ता बनाने और बिगाड़ने में जाट समुदाय की बड़ी भूमिका रहती है. कई सालों तक ये मिथक चलता रहा कि जिस पार्टी ने जाटलैंड का दिल जीत लिया उसी को सत्ता मिलती है, लेकिन 2014 के विधानसभा चुनाव के बाद स्थितियां बदल चुकी हैं.

जानिए जाटलैंड में इस बार क्या बन रहे हैं समीकरण.

बीजेपी को जनाधार की तलाश
बीजेपी की स्थिति हरियाणा के जाटलैंड में कभी अच्छी नहीं रही. पिछले विधानसभा चुनाव में जाटलैंड सोनीपत में बीजेपी 6 में से मात्र 1 ही सीट जीत पाई थी. वहीं रोहतक की भी 4 विधानसभा सीटों में से केवल एक पर ही भगवा लहराया था. झज्जर में भी 4 में से केवल 2 सीटें ही बीजेपी को मिली थी. वहीं जींद में बीजेपी के टिकट पर केवल बीरेन्द्र सिंह की पत्नी प्रेमलता ही चुनाव जीत पाई थी.

कांग्रेस की रही है अच्छी पकड़
कांग्रेस की बात करें तो कांग्रेस को 15 सीटों में से सबसे ज्यादा इसी इलाके से मिली थी. जिसमें सोनीपत की 5 सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों ने जीत का परचम लहराया था, रोहतक की 3 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली थी और झज्जर की 2 अहम सीटें कांग्रेस की झोली में आई थी. कुल मिलाकर 10 सीटें कांग्रेस को इसी इलाके से मिली यानि कह सकते हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव में जाटलैंड ने ही कांग्रेस की लाज रखी थी.

सभी दलों ने बनाई रणनीति
2019 में फिर एक बार बीजेपी नॉन-जाट की राजनीति को ही आगे लेकर चल रही है. लेकिन 75 पार के नारे को अगर नतीजों में तब्दील करना है तो जाटलैंड में कमल खिलना जरूरी है. वहीं बीजेपी के उल्ट कांग्रेस की जाटलैंड में अच्छी पकड़ रही है. एक बार फिर कांग्रेस जाट समुदाय से आने वाले पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा को ही आगे कर के चुनाव लड़ रही है. सोनीपत और रोहतक को हुड्डा का प्रभाव क्षेत्र या माना जाता है.

पिछले चुनाव में इन दोनों जिलों की 10 में 8 सीटें कांग्रेस को मिली थी. हालांकि लोकसभा चुनाव में जरूर सोनीपत से भूपेंद्र सिंह हुड्डा और रोहतक से उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा चुनाव हार गए थे लेकिन जाटलैंड में हुड्डा को कम आंकने की भूल कोई पार्टी नहीं करेगी इसलिए बीजेपी की इस बार पैनी नजर इस इलाके पर है. बीजेपी ने प्रधानमंत्री की रैली भी इसी हिसाब से प्रायोजित की थी.

इनेलो और जेजेपी को हो सकता है नुकसान
वहीं सालों से जाट मतदाताओं के सहारे राजनीति करती आ रही इनेलो की पकड़ रोहतक और सोनीपत में तो न के बराबर है लेकिन जींद और कैथल में जरूर इनेलो के वोट हैं जिनके सहारे पिछले चुनाव में इनेलो ने जींद में 5 में से 3 सीटें जीती थी लेकिन इस बार इनेलो और जेजेपी में जाट वोटर्स का बंटवारा होने की संभावना है और ऐसा हुआ तो दोनों ही दलों को नुकसान जरूर होगा जिसका ज्यादा फायदा बीजेपी को होने की संभावना है क्योंकि हाल के लोकसभा चुनाव के नतीजे को देखें तो बीजेपी को 58 फीसदी वोट मिले जबकि 2014 लोकसभा चुनाव में केवल 34 प्रतिशत वोट ही मिले थे.

तो कुछ ऐसे हैं हरियाणा के जाटलैंड के समीकरण. सभी दल यहां के मतदाताओं को साधने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं. स्थानीय नेताओं को टिकट देने से लेकर जातीय कार्ड तक खेलें जा रहे हैं. ऐसे में इस बार जाटलैंड में किसका दबदबा रहेगा ये तो 24 अक्टूबर को ही पता चलेगा.

चंडीगढ़: जाट समुदाय हरियाणा की सियासत का प्रभावी फैक्टर रहा है. कई दशक तक सत्ता की चाभी इसी समुदाय के इर्द गिर्द घूमती रही है. जाटलैंड के अंदर आने वाले मुख्य जिले हैं- सोनीपत, रोहतक, जींद, झज्जर और कैथल. हरियाणा में 27 फीसदी जाट समुदाय माना जाता है. प्रदेश की सत्ता बनाने और बिगाड़ने में जाट समुदाय की बड़ी भूमिका रहती है. कई सालों तक ये मिथक चलता रहा कि जिस पार्टी ने जाटलैंड का दिल जीत लिया उसी को सत्ता मिलती है, लेकिन 2014 के विधानसभा चुनाव के बाद स्थितियां बदल चुकी हैं.

जानिए जाटलैंड में इस बार क्या बन रहे हैं समीकरण.

बीजेपी को जनाधार की तलाश
बीजेपी की स्थिति हरियाणा के जाटलैंड में कभी अच्छी नहीं रही. पिछले विधानसभा चुनाव में जाटलैंड सोनीपत में बीजेपी 6 में से मात्र 1 ही सीट जीत पाई थी. वहीं रोहतक की भी 4 विधानसभा सीटों में से केवल एक पर ही भगवा लहराया था. झज्जर में भी 4 में से केवल 2 सीटें ही बीजेपी को मिली थी. वहीं जींद में बीजेपी के टिकट पर केवल बीरेन्द्र सिंह की पत्नी प्रेमलता ही चुनाव जीत पाई थी.

कांग्रेस की रही है अच्छी पकड़
कांग्रेस की बात करें तो कांग्रेस को 15 सीटों में से सबसे ज्यादा इसी इलाके से मिली थी. जिसमें सोनीपत की 5 सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों ने जीत का परचम लहराया था, रोहतक की 3 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली थी और झज्जर की 2 अहम सीटें कांग्रेस की झोली में आई थी. कुल मिलाकर 10 सीटें कांग्रेस को इसी इलाके से मिली यानि कह सकते हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव में जाटलैंड ने ही कांग्रेस की लाज रखी थी.

सभी दलों ने बनाई रणनीति
2019 में फिर एक बार बीजेपी नॉन-जाट की राजनीति को ही आगे लेकर चल रही है. लेकिन 75 पार के नारे को अगर नतीजों में तब्दील करना है तो जाटलैंड में कमल खिलना जरूरी है. वहीं बीजेपी के उल्ट कांग्रेस की जाटलैंड में अच्छी पकड़ रही है. एक बार फिर कांग्रेस जाट समुदाय से आने वाले पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा को ही आगे कर के चुनाव लड़ रही है. सोनीपत और रोहतक को हुड्डा का प्रभाव क्षेत्र या माना जाता है.

पिछले चुनाव में इन दोनों जिलों की 10 में 8 सीटें कांग्रेस को मिली थी. हालांकि लोकसभा चुनाव में जरूर सोनीपत से भूपेंद्र सिंह हुड्डा और रोहतक से उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा चुनाव हार गए थे लेकिन जाटलैंड में हुड्डा को कम आंकने की भूल कोई पार्टी नहीं करेगी इसलिए बीजेपी की इस बार पैनी नजर इस इलाके पर है. बीजेपी ने प्रधानमंत्री की रैली भी इसी हिसाब से प्रायोजित की थी.

इनेलो और जेजेपी को हो सकता है नुकसान
वहीं सालों से जाट मतदाताओं के सहारे राजनीति करती आ रही इनेलो की पकड़ रोहतक और सोनीपत में तो न के बराबर है लेकिन जींद और कैथल में जरूर इनेलो के वोट हैं जिनके सहारे पिछले चुनाव में इनेलो ने जींद में 5 में से 3 सीटें जीती थी लेकिन इस बार इनेलो और जेजेपी में जाट वोटर्स का बंटवारा होने की संभावना है और ऐसा हुआ तो दोनों ही दलों को नुकसान जरूर होगा जिसका ज्यादा फायदा बीजेपी को होने की संभावना है क्योंकि हाल के लोकसभा चुनाव के नतीजे को देखें तो बीजेपी को 58 फीसदी वोट मिले जबकि 2014 लोकसभा चुनाव में केवल 34 प्रतिशत वोट ही मिले थे.

तो कुछ ऐसे हैं हरियाणा के जाटलैंड के समीकरण. सभी दल यहां के मतदाताओं को साधने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं. स्थानीय नेताओं को टिकट देने से लेकर जातीय कार्ड तक खेलें जा रहे हैं. ऐसे में इस बार जाटलैंड में किसका दबदबा रहेगा ये तो 24 अक्टूबर को ही पता चलेगा.

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चौधर की जंग: जाटलैंड में इस बार क्या बन रहे हैं समीकरण? देखिए ये स्पेशल रिपोर्ट



ये है ईटीवी भारत की खास पेशकश 'चौधर की जंग'. हरियाणा राजनीतिक नजरिए से चार भागों में बंटा हुआ है जिनका अपना अलग मिजाज है- जाटलैंड, जीटी रोड बेल्ट, अहीरवाल और मेव क्षेत्र. इस कड़ी में हम बात करेंगे जाटलैंड की राजनीति की.

चंडीगढ़: हरियाणा में विधानसभा चुनाव के शंखनाद के साथ ही सभी दल पूरे दम के साथ मैदान में उतर चुके हैं. सभी ने स्टार प्रचारकों की फौज मैदान में उतार दी है. बीजेपी की ओर से पीएम नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह के अलावा 18 कैबिनेट मंत्री प्रचार करेंगे जबकि कांग्रेस की ओर से भी कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी सहित कई कद्दावर नेता कमान संभाल रहे हैं.

देखने में तो सामान्य लगता है कि चुनाव है तो सभी पार्टियां प्रचार तो करेंगी ही लेकिन सियासी नजरिया कुछ अलग होता है. प्रधानमंत्री सरीखे नेता की रैली ऐसे नहीं होती. उससे पहले सभी सियासी गुणा गणित साधने पड़ते हैं. हरियाणा की राजनीति में जाटलैंड की बात करें तो ये क्षेत्र सियासी दलों के लिए काफी अहम है.

जाटलैंड की राजनीति है अलग

जाट समुदाय हरियाणा की सियासत का प्रभावी फैक्टर रहा है. कई दशक तक सत्ता की चाभी इसी समुदाय के इर्द गिर्द घूमती रही है. जाटलैंड के अंदर आने वाले मुख्य जिले हैं- सोनीपत, रोहतक, जींद, झज्जर और कैथल. हरियाणा में 27 फीसदी जाट समुदाय माना जाता है. प्रदेश की सत्ता बनाने और बिगाड़ने में जाट समुदाय की बड़ी भूमिका रहती है. कई सालों तक ये मिथक चलता रहा कि जिस पार्टी ने जाटलैंड का दिल जीत लिया उसी को सत्ता मिलती है लेकिन 2014 के विधानसभा चुनाव के बाद स्थितियां बदल चुकी हैं.

बीजेपी को जनाधार की तलाश

बीजेपी की स्थिति हरियाणा के जाटलैंड में कभी अच्छी नहीं रही. पिछले विधानसभा चुनाव में जाटलैंड सोनीपत में बीजेपी 6 में से मात्र 1 ही सीट जीत पाई थी. वहीं रोहतक की भी 4 विधानसभा सीटों में से केवल एक पर ही भगवा लहराया था. झज्जर में भी 4 में से केवल 2 सीटें ही बीजेपी को मिली थी. वहीं जींद में बीजेपी के टिकट पर केवल बीरेन्द्र सिंह की पत्नी प्रेमलता ही चुनाव जीत पाई थी. 

कांग्रेस की रही है अच्छी पकड़

कांग्रेस की बात करें तो कांग्रेस को 15 सीटों में से सबसे ज्यादा इसी इलाके से मिली थी. जिसमें सोनीपत की 5 सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों ने जीत का परचम लहराया था, रोहतक की 3 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली थी और झज्जर की 2 अहम सीटें कांग्रेस की झोली में आई थी. कुल मिलाकर 10 सीटें कांग्रेस को इसी इलाके से मिली यानि कह सकते हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव में जाटलैंड ने ही कांग्रेस की लाज रखी थी.

सभी दलों ने बनाई रणनीति

2019 में फिर एक बार बीजेपी नॉन-जाट की राजनीति को ही आगे लेकर चल रही है. लेकिन 75 पार के नारे को अगर नतीजों में तब्दील करना है तो जाटलैंड में कमल खिलना जरूरी है. वहीं बीजेपी के उल्ट कांग्रेस की जाटलैंड में अच्छी पकड़ रही है. एक बार फिर कांग्रेस जाट समुदाय से आने वाले पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा को ही आगे कर के चुनाव लड़ रही है. सोनीपत और रोहतक को हुड्डा का प्रभाव क्षेत्र या माना जाता है. 

पिछले चुनाव में इन दोनों जिलों की 10 में 8 सीटें कांग्रेस को मिली थी. हालांकि लोकसभा चुनाव में जरूर सोनीपत से भूपेंद्र सिंह हुड्डा और रोहतक से उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा चुनाव हार गए थे लेकिन जाटलैंड में हुड्डा को कम आंकने की भूल कोई पार्टी नहीं करेगी इसलिए बीजेपी की इस बार पैनी नजर इस इलाके पर है. बीजेपी ने प्रधानमंत्री की रैली भी इसी हिसाब से प्रायोजित की गई है. 18 अक्टूबर को प्रधानमंत्री मोदी हिसार में रैली करेंगे जिसके जरिए इस पूरे इलाके को साधा जा सके.

इनेलो और जेजेपी को हो सकता है नुकसान

वहीं सालों से जाट मतदाताओं के सहारे राजनीति करती आ रही इनेलो की पकड़ रोहतक और सोनीपत में तो न के बराबर है लेकिन जींद और कैथल में जरूर इनेलो के वोट हैं जिनके सहारे पिछले चुनाव में इनेलो ने जींद में 5 में से 3 सीटें जीती थी लेकिन इस बार इनेलो और जेजेपी में जाट वोटर्स का बंटवारा होने की संभावना है और ऐसा हुआ तो दोनों ही दलों को नुकसान जरूर होगा जिसका ज्यादा फायदा बीजेपी को होने की संभावना है क्योंकि हाल के लोकसभा चुनाव के नतीजे को देखें तो बीजेपी को 58 फीसदी वोट मिले जबकि 2014 लोकसभा चुनाव में केवल 34 प्रतिशत वोट ही मिले थे.

तो कुछ ऐसे हैं हरियाणा के जाटलैंड के समीकरण. सभी दल यहां के मतदाताओं को साधने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं. स्थानीय नेताओं को टिकट देने से लेकर जातीय कार्ड तक खेलें जा रहे हैं. ऐसे में इस बार जाटलैंड में किसका दबदबा रहेगा ये तो 24 अक्टूबर को ही पता चलेगा.

 


Conclusion:
Last Updated : Oct 20, 2019, 4:26 PM IST
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