चंडीगढ़ः 2020 में हमारे सामने आकर खड़ा हुआ कोरोना और उस कोरोना ने दी हमें आर्थिक गिरावट, वो भी ऐसी जैसी देश ने कभी नहीं देखी थी. कोरोना के बाद जब जीडीपी के आंकड़े आये तो सरकार से लेकर हर उस आम आदमी तक की आंखे फटी रह गई जो सकल घरेलू उत्पाद यानि जीडीपी के खेल को जरा भी समझता है.
हमारे देश की जीडीपी कोरोना काल में लॉकडाउन के प्रकोप से ऐसी प्रभावित हुई कि माइनस 23.9 तक लुढ़क गई. लेकिन गिरावट के इस दौर में जब सारा उत्पादन बंद था, सारी कंपनियों पर ताले लटके थे और तमाम नौकरियों पर अनिश्चितता के बादल छाये थे. संकट के इस समय में जिसने देश को संभाला वो था किसान, गिरावट के इस समय में किसानों ने बंपर फसल पैदा की और कृषि क्षेत्र में 3.4 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई गई.
कृषि में आगे रहा है हरियाणा
कृषि क्षेत्र में हरियाणा हमेशा अग्रणी राज्यों में रहा है. जब देश में ऐसा कोई संकट नहीं था तब भी हरियाणा के कृषि क्षेत्र की जीडीपी देश की जीडीपी के मुकाबले 3 फीसदी ज्यादा थी. और कोरोना काल में भी हरियाणा के किसानों ने ये साबित कि वो किसी से भी पीछे रहने वाले नहीं हैं. और बंपर फसल पैदी की. इतनी बंपर कि पिछले साल के मुकाबले इस बार फसल की पैदावार में 25 फीसदी बढ़ोत्तरी हुई. हालांकि कोरोना काल में मजदूरों के वापस चले जाने से किसानों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ा और खुद ही एक दूसरे की मदद करके फसल काटनी पड़ी, दशकों पुरानी डंगवारा प्रथा भी किसानों ने इस वक्त में अपनाई.
कोरोना काल में किसानों ने की सरकार की मदद
कोरोना काल में किसानों ने सरकार को भी मदद की और कोरोना राहत कोष में खूब दान दिया. लेकिन उसी बीच केंद्र सरकार ने तीन नए कृषि कानून दोनों सदनों से पास करा लिए. जिसके विरोध में किसान सड़कों पर उतर आए, इन तीन नए कृषि कानूनों का पंजाब के बाद हरियाणा में सबसे ज्यादा विरोध हुआ.
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2020 में सरकार ने इतनी फसल खरीदी
इन कानूनों का ही असर था कि इस बार सरकार ने 55 लाख 50 हजार मीट्रिक टन धान की सरकारी खरीद कि जो पिछले साल 64 लाख मीट्रिक टन के मुकाबले काफी कम थी. जबकि बाजरे की खरीद में बढ़ोत्तरी देखी गई. पिछले साल जहां हरियाणा सरकार ने 3 लाख मीट्रिक टन बाजरा खरीदा था वहीं इस बार 7 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा बाजरा खरीदा गया.
3 नए कृषि कानूनों का विरोध
तीन नए कानूनों का किसान शुरू से ही विरोध कर रहे थे लेकिन कोरोना के वक्त में वो खुलकर सामने नहीं आए थे जिस पर सरकार ने कोई खास ध्यान नहीं दिया. जिसका नतीजा ये हुआ कि पंजाब से उठी विरोध की चिंगारी देश भर में फैल गई और हरियाणा से लगते दिल्ली के बॉर्डर पर जाकर किसान बैठ गए जो सिंघु बॉर्डर से लेकर पलवल तक फैल गया. और अब किसान वहीं पर डटे हैं और उनकी मांग है कि ये तीनों नए कानून वापस लिए जाएं. हालांकि सरकार कई दौर की बातचीत के बाद कुछ संशोधन के लिए भी मान गई थी लेकिन किसानों ने सरकार वो प्रस्ताव ठुकरा दिया था. अब किसान दिल्ली के बॉर्डरों पर ही डेरा डाले, लंगर लगाए बैठे हैं.
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ठंड में भी दिल्ली के दर पर डटे हैं किसान
कोरोना के वक्त में पूरे देश का पेट भरने वाला किसान 2020 के अंत में दिल्ली की दहलीज पर बैठा है. जिस वक्त उसे अपने गेहूं को पानी लगाना चाहिए था उस वक्त वो पुलिस के पानी की बौछार सह रहा है. कुल मिलाकर 2020 की शुरुआत भले ही किसान के लिए भली रही हो लेकिन अंत होते-होते वो कड़ाके की ठंड में दिल्ली के दरवाजे पर खुले आसमान के नीचे बैठा है.