चंडीगढ़: रोजगार के विश्वव्यापी बनने के कारण पिछले कुछ सालों में अंग्रेजी भाषा का क्रेज बढ़ा है. पिछले कुछ सालों में अग्रेंजी भाषा राष्ट्रीय और इंटरनेशनल स्तर पर अपनी बात कहने का माध्यम बन कर उभरी है. अग्रेंजी भाषा बोलने वाले को ज्यादा महत्व दिया जाने लगा है, लेकिन पंजाब यूनिवर्सिटी के हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर गुरमीत सिंह का कहना है कि कि ऐसा नहीं है कि अगर किसी को इंग्लिश नहीं आती तो उसके लिए रोजगार के अवसर कम हो जाएंगे, लेकिन शर्त यह है कि व्यक्ति को जो भी भाषा आती हो वह बेहतरीन तरीके से आती हो. तभी वह उस भाषा का रोजगार के लिए लाभ ले पाएगा.
'हिंदी बनी राजभाषा, गैर हिंदी राज्य पिछड़ जाएंगे'
ईटीवी से खास बातचीत करते हुए प्रोफेसर गुरमीत सिंह ने कहा कि आजादी से पहले तक हिंदी को ही देश की राष्ट्रभाषा माना जाता था. राष्ट्रभाषा शब्द का इस्तेमाल महात्मा गांधी ने भी किया था. उस समय राजभाषा का कोई शब्द नहीं था और हिंदी को राष्ट्रभाषा और मातृभाषा कहा जाता था. जो आजादी के बाद हिंदी को राजभाषा का दर्जा देने की बात उठी तो, गैर हिंदी भाषी राज्यों के नेताओं ने इसका विरोध जताया.
उनका कहना था कि अगर हिंदी को राजभाषा बना दिया गया तो गैर हिंदी भाषी राज्यों के लोग पिछड़ जाएंगे. उनके विरोध के बाद यह फैसला लिया गया कि अगले 15 सालों तक अंग्रेजी को भी हिंदी के समान दर्जा दिया जाएगा और यह सरकार की सबसे बड़ी भूल थी. क्योंकि इस वजह से हिंदी के साथ साथ दूसरी भाषाएं भी पिछड़ भी चली गई और अंग्रेजी पूरे भारत में छा गई.
'बिना इंग्लिश के ज्ञान के भी मिल सकता है रोजगार'
प्रोफेसर गुरमीत सिंह ने कहा कि ऐसा नहीं है कि अगर किसी को इंग्लिश नहीं आती तो उसके लिए रोजगार के अवसर कम हो जाएंगे, लेकिन शर्त यह है कि व्यक्ति को जो भी भाषा आती हो वह बेहतरीन तरीके से आती हो. तभी वह उस भाषा का रोजगार के लिए लाभ ले पाएगा. उन्होंने कहा कि सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि सरकारी दफ्तरों में इंग्लिश भाषा का ज्यादा प्रयोग होता है खासकर अदालतों में हिंदी का प्रयोग बिल्कुल नहीं किया जाता महात्मा गांधी ने भी कहा था कि जो लोग अदालत में न्याय पाने आते हैं. उन्हें समझ ही नहीं आता कि उन्हें न्याय मिल पा रहा है या नहीं. क्योंकि वह लोग इंग्लिश नहीं समझ पाते. इसलिए कम से कम अदालतों में सिर्फ हिंदी भाषा का प्रयोग किया जाए और बाद में उन लेखों को इंग्लिश में भी ट्रांसलेट किया जाए. लेकिन आज अदालतों में सिर्फ इंग्लिश भाषा का ही प्रयोग किया जाता.
'हिंदी अच्छी आती है तो नौकरियों की है भरमार'
प्रोफेसर गुरमीत ने कहा कि लोगों के दिमाग में यह बात बैठ चुकी है कि अगर इंग्लिश नहीं आएगी तो उन्हें नौकरी भी नहीं मिलेगी. जबकि यह सरासर गलत है. क्योंकि आज के लोग एमबीए करते हैं इंजीनियरिंग करते हैं और इसके बावजूद भी उन्हें नौकरी नहीं मिलती. जबकि उन्हें इंग्लिश भी अच्छे से आती है. तो ऐसा मानना बिल्कुल गलत है कि नौकरियां इंग्लिश के साथ ही मिलती हैं. जो लोग हिंदी में पूरी तरह से निपुण हैं उनके लिए भी नौकरियों की कोई कमी नहीं है. प्रोफेसर गुरमीत सिंह ने कहा कि वे कोई भी भाषा सीखे उसे अच्छी तरह से सीखे तब वही भाषा आप को नौकरियां दिलाने में सहायक सिद्ध होंगी और ऐसा ही हिंदी भाषा के साथ भी है. अगर आपको हिंदी बेहतरीन तरीके से आती है तो हिंदी भाषा के जरिए भी आपको बहुत सी नौकरियां मिल जाएंगी.
कहां-कहां मिल सकती है नौकरी ?
स्कूलों में टीचर की नौकरी, यूनिवर्सिटी और कॉलेज में लेक्चरर की नौकरी, ट्रांसलेटर की नौकरी, रेडियो में, टीवी में, अखबारों में, न्यूज चैनल्स में, फिल्मों में राइटिंग, विदेशों में भी हिंदी टीचर की बहुत सी नौकरियां हैं, इसके अलावा प्रूफ रीडिंग, पब्लिशिंग, हाउस स्क्रिप्ट राइटर की भी बहुत सी नौकरियां युवाओं को मिल सकती है. आजकल तो राजनीतिक पार्टियों ने भी हिंदी में निपुण युवाओं को नौकरी पर रखना शुरू कर दिया है. ताकि वह युवा पार्टी के नेताओं के लिए भाषण और नारे लिखकर दे सकें. इसके लिए राजनीतिक पार्टियां इन्हें अच्छा खासा वेतन भी देती हैं. इसलिए यह कहा जाना सरासर गलत है कि हिंदी पढ़ने वाले युवाओं को नौकरियां नहीं मिलेंगी अगर इस विषय में जानकारी हासिल की जाए तो हिंदी पढ़ने वाले युवाओं के लिए भी बहुत सी नौकरियां है.