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हाई कोर्ट ने महिला को गर्भपात की दी इजाजत, जानें कारण

एक महिला ने हाई कोर्ट में याचिका दायर करके बताया था कि पीजीआई में जांच में सामने आया था कि उसके गर्भ में पल रहा शिशु डाउन सिंड्रोम नामक बीमारी से ग्रस्त है, अगर उसका ये बच्चा पैदा हुआ तो वो शारीरिक और मानसिक तौर पर अक्षम होगा.

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हाई कोर्ट ने महिला को गर्भपात की दी इजाजत
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Published : Apr 25, 2020, 7:21 PM IST

Updated : Apr 26, 2020, 9:37 AM IST

चंडीगढ़: पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए उसे गर्भपात की इजाजत दे दी है. हाई कोर्ट ने पीजीआई को निर्देश दिए हैं कि वे जल्द से जल्द महिला का सुरक्षित गर्भपात करवाएं.

जस्टिस सुधीर मित्तल ने ये आदेश पीजीआई चंडीगढ़ के मेडिकल बोर्ड द्वारा महिला के गर्भ की जांच कर सौंपी मेडिकल रिपोर्ट को देखने के बाद दिए हैं. बता दें कि महिला ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर बताया था कि पीजीआई में उसके गर्भ की जांच के बाद सामने आया था कि उसके गर्भ में पल रहा शिशु डाउन सिंड्रोम नामक बीमारी से ग्रसित है. अगर उसका ये बच्चा पैदा हुआ तो वो शारीरिक और मासिक तौर पर अक्षम रह जाएगा.

ऐसे में महिला को गर्भपात करवाए जाने का सुझाव दिया था. लेकिन मेडिकल टर्मिनेशन एंड प्रेगनेंसी एक्ट के तहत अगर गर्भ 20 सप्ताह से ज्यादा का हो गया हो तो मेडिकल बोर्ड गठित किया जाना जरुरी है और गर्भपात के लिए हाई कोर्ट की इजाजत अनिवार्य है. हाई कोर्ट ने याचिका पर पीजीआई को आदेश दिए थे कि वो मेडिकल बोर्ड का गठन करे और महिला के गर्भ की जांच कर उसकी सीलबंद रिपोर्ट हाई कोर्ट में सौंपे.

पीजीआई ने शुक्रवार को मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट सौंप स्वीकार किया कि गर्भ में पल रहा शिशु डाउन सिंड्रोम नामक बीमारी से ग्रसित है अगर वो पैदा हुआ तो वह सामान्य जीवन नहीं जी पाएगा और वो शारीरिक और मानसिक रूप से अक्षम रह जाएगा. पीजीआई की इस रिपोर्ट के बाद हाई कोर्ट ने पीजीआई को तत्काल महिला के गर्भपात करने के आदेश देते हुए याचिका का निपटारा कर दिया है.

क्या है गर्भपात को लेकर नियम?

ऐसे तो 20 सप्ताह के भीतर गर्भपात करवाने में कोर्ट की इजाजत नहीं लेनी होती, लेकिन 20 हफ्ते के बाद अदालत ही फैसला करती है कि महिला को गर्भपात की इजाजत दी जानी चाहिए या नहीं. इसमें कुछ आधार होते हैं. जिन्हें देखते हुए अदालत फैसला लेती है. जैसे अगर महिला के गर्भ में पल रहा बच्चा शारीरिक या मानसिक तौर पर विकलांग हो तो गर्भपात हो सकता है. लेकिन ये कोर्ट तय करेगा कि पेट में पल रहे बच्चे की क्या स्थिति है. कानून ने महिला की जान को सबसे जरूरी माना है और इसलिए अगर गर्भ के कारण महिला की जान को खतरा हो तो 20 हफ्ते के बाद भी महिला का गर्भपात हो सकता है.

ये भी पढ़ें- हरियाणा: 5 रेड जोन जिलों में जानिए कैसे हैं हालात और सरकार के इंतजाम

चंडीगढ़: पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए उसे गर्भपात की इजाजत दे दी है. हाई कोर्ट ने पीजीआई को निर्देश दिए हैं कि वे जल्द से जल्द महिला का सुरक्षित गर्भपात करवाएं.

जस्टिस सुधीर मित्तल ने ये आदेश पीजीआई चंडीगढ़ के मेडिकल बोर्ड द्वारा महिला के गर्भ की जांच कर सौंपी मेडिकल रिपोर्ट को देखने के बाद दिए हैं. बता दें कि महिला ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर बताया था कि पीजीआई में उसके गर्भ की जांच के बाद सामने आया था कि उसके गर्भ में पल रहा शिशु डाउन सिंड्रोम नामक बीमारी से ग्रसित है. अगर उसका ये बच्चा पैदा हुआ तो वो शारीरिक और मासिक तौर पर अक्षम रह जाएगा.

ऐसे में महिला को गर्भपात करवाए जाने का सुझाव दिया था. लेकिन मेडिकल टर्मिनेशन एंड प्रेगनेंसी एक्ट के तहत अगर गर्भ 20 सप्ताह से ज्यादा का हो गया हो तो मेडिकल बोर्ड गठित किया जाना जरुरी है और गर्भपात के लिए हाई कोर्ट की इजाजत अनिवार्य है. हाई कोर्ट ने याचिका पर पीजीआई को आदेश दिए थे कि वो मेडिकल बोर्ड का गठन करे और महिला के गर्भ की जांच कर उसकी सीलबंद रिपोर्ट हाई कोर्ट में सौंपे.

पीजीआई ने शुक्रवार को मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट सौंप स्वीकार किया कि गर्भ में पल रहा शिशु डाउन सिंड्रोम नामक बीमारी से ग्रसित है अगर वो पैदा हुआ तो वह सामान्य जीवन नहीं जी पाएगा और वो शारीरिक और मानसिक रूप से अक्षम रह जाएगा. पीजीआई की इस रिपोर्ट के बाद हाई कोर्ट ने पीजीआई को तत्काल महिला के गर्भपात करने के आदेश देते हुए याचिका का निपटारा कर दिया है.

क्या है गर्भपात को लेकर नियम?

ऐसे तो 20 सप्ताह के भीतर गर्भपात करवाने में कोर्ट की इजाजत नहीं लेनी होती, लेकिन 20 हफ्ते के बाद अदालत ही फैसला करती है कि महिला को गर्भपात की इजाजत दी जानी चाहिए या नहीं. इसमें कुछ आधार होते हैं. जिन्हें देखते हुए अदालत फैसला लेती है. जैसे अगर महिला के गर्भ में पल रहा बच्चा शारीरिक या मानसिक तौर पर विकलांग हो तो गर्भपात हो सकता है. लेकिन ये कोर्ट तय करेगा कि पेट में पल रहे बच्चे की क्या स्थिति है. कानून ने महिला की जान को सबसे जरूरी माना है और इसलिए अगर गर्भ के कारण महिला की जान को खतरा हो तो 20 हफ्ते के बाद भी महिला का गर्भपात हो सकता है.

ये भी पढ़ें- हरियाणा: 5 रेड जोन जिलों में जानिए कैसे हैं हालात और सरकार के इंतजाम

Last Updated : Apr 26, 2020, 9:37 AM IST
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