चंडीगढ़: हरियाणा बजट सत्र का समापन हो गया है. मंगलवार को इस सत्र का आखिरी दिन रहा. पूरे बजट सत्र के दौरान सदन में कुल 10 विधेयक पारित हुए. दोषी कैदियों को पैरोल या फरलो की रियायत प्रदान करने के लिए हरियाणा सदाचारी बंदी(अस्थाई रिहाई) अधिनियम, 1988 में आवश्यक प्रावधान करने के लिए हरियाणा सदाचारी बंदी (अस्थाई रिहाई) विधेयक, 2022 भी इस दौरान पारित किया गया है.
इसके अलावा पैरोल प्रदान करने की प्रक्रिया को सरल किया गया है. जैसे पहले जिन कैदियों का खुद का मकान है, केवल उन्हें ही तीन वर्ष में एक बार मकान मरम्मत हेतू चार सप्ताह तथा जिन कैदियों के पास खेती-बाड़ी की जमीन है, उन्हें ही खेती के लिए एक वर्ष में छ: सप्ताह तक पैरोल प्रदान करने के प्रावधान हैं. अब ये शर्त हटा दी गई है. वर्तमान विधेयक में शर्तें पूरी करने वाले सभी कैदियों को एक कैलेण्डर वर्ष में 10 सप्ताह की पैरोल प्रदान करने का प्रावधान था जबकि अब बिना किसी शर्त के समान रूप से सभी बन्दियों को वर्ष में अधिकतम दस सप्ताह पैरोल प्रदान की जा सकेगी. इसे कैदी एक कैलेण्डर वर्ष में अधिकतम दो बार तक प्राप्त कर सकेंगे.
वर्तमान विधेयक में फरलो की अवधि प्रथम बार तीन सप्ताह तथा उसके उपरान्त दो सप्ताह प्रति वर्ष है. जबकि अब प्रत्येक वर्ष तीन सप्ताह फरलो प्रदान करने का प्रावधान रखा गया है. जब कोई कैदी अपनी सजा के तीन चौथाई भाग को पूरा कर लेगा अथवा आजीवन कारावास के बन्दी अपनी दस वर्ष की वास्तविक सजा व्यतीत कर लेंगे तो उन्हें प्रति वर्ष चार सप्ताह फरलों दी जायेगी. बन्दी को पैरोल अथवा फरलो प्रदान करने से पूर्व हर बार पुलिस वैरिफिकेशन करवानी पड़ती थी, किन्तु अब कैलेण्डर वर्ष में एक बार ही पुलिस वैरिफिकेशन का प्रावधान किया गया है ताकि बन्दियों की अस्थाई रिहाई के मामलों का निपटान समयबद्ध तरीके से किया जा सके.
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वर्तमान विधेयक में पैरोल या फरलो पर गये बन्दियों द्वारा समय पर समर्पण ना करने अथवा पैरोल पर जाकर अपराध करने की स्थिति में उन्हें हार्डकोर की श्रेणी में रखा जाता है और उनका पैरोल रिहाई के केस पर 5 वर्ष के उपरान्त विचार किया जाता है. लेकिन अब आत्मसमर्पण करने में असफल रहने पर कैदी को कारावास (जो दो वर्ष से कम नहीं होगा और जिसे तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है) और एक लाख रुपये तक के जुर्मान की सजा दी जाएगी. इसी प्रकार, पैरोल पर अपराध करने पर वह हार्डकोर बन्दी की श्रेणी में आयेगा.
कैदियों को अस्थाई रिहाई प्रदान करने के आवेदन का निपटान करने के लिए 36 दिन निर्धारित हैं लेकिन इस अवधि में ऐसे मामलों के आवेदनों का निपटान नहीं हो पाता और इसी कारण कैदी बार-बार न्यायालयों में रिट दायर करते है. इससे बचने के लिए इस अवधि को बढ़ाकर सात सप्ताह (49 दिन) किया गया है.
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इन संशोधनों के अलावा विधेयक में नये प्रावधान भी किए गए है. वर्तमान अधिनियम में केवल हार्डकोर श्रेणी के कैदियों के लिए अपने किसी पारिवारिक सदस्य की मृत्यु अथवा शादी में सम्मिलित होने हेतू कस्टडी पैरोल का प्रावधान है जबकि अब यह प्रावधान सभी श्रेणी के बन्दियों के लिए किया गया है. इसी प्रकार वर्तमान में प्राकृतिक मृत्यु तक के दण्ड की सजा पाये बन्दियों को पैरोल / फरलों का कोई प्रावधान नहीं था. लेकिन अब प्राकृतिक मृत्यु तक के दण्ड की सजा पाये बन्दियों को सात वर्ष वास्तविक सजा व्यतीत करने के उपरान्त पैरोल प्रदान करने का प्रावधान किया गया है.
ऐसे कैदी जो एनडीपीएस अथवा राजद्रोह अथवा हत्या के साथ बलात्कार अथवा हत्या के साथ लूट अथवा फिरोती या जबरन वसूली के अपराध में दण्डित हो, उन्हें फरलो प्रदान नहीं की जायेगी. अब अपराधों की श्रेणी एवं बन्दियों के जेल में आचरण के आधार पर प्रतिभूति राशि का प्रावधान किया गया है. किसी सामान्य श्रेणी के बन्दी के लिए यह राशि एक लाख रुपये से तीन लाख रुपये तक होगी. वहीं कट्टर श्रेणी के बन्दियों हेतू यह राशि कम से कम दो लाख रुपये से पांच लाख तक होगी.
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