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जानिए क्यों ताऊ देवीलाल को कहा जाता है भारतीय राजनीति का किंगमेकर

भारत के पूर्व उप प्रधानमंत्री एवं भारतीय राजनीति के पुरोधा चौधरी देवीलाल की आज 106वीं जयंती है. चौधरी देवीलाल हरियाणा की सियासत का वो नाम है जिनका महज नाम लेने से ही, हज़ारों की संख्या में बुजुर्ग एवं नौजवान उद्वेलित हो उठते हैं.

ताऊ देवीलाल 106वीं जयंती आज
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Published : Sep 25, 2019, 8:20 AM IST

Updated : Sep 25, 2019, 2:15 PM IST

चंडीगढ़: भारतीय राजनीति के सबसे बड़े किंग मेकर माने जाने वाले चौधरी देवी लाल की 106वीं जयंती मनाई जा रही है. चौधरी देवी लाल को हरियाणा में ताऊ देवी लाल के नाम से भी जाना जाता है. वो हरियाणा के एक प्रमुख राजनीतिज्ञ थे. उनका जन्म 25 सितम्बर 1914 को हुआ था और 6 अप्रैल 2001 को इस महान राजनेता ने दुनिया को अलविदा कह दिया.

चौधरी देवीलाल को शुरू से राजनीति में थी दिलचस्पी
चौधरी देवी लाल ने अपने स्कूल की दसवीं की पढ़ाई छोड़कर सन् 1929 से ही राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया था. चौ. देवीलाल ने सन् 1929 में लाहौर में हुए कांग्रेस के ऐतिहासिक अधिवेशन में एक सच्चे स्वयं सेवक के रूप में भाग लिया और फिर सन् 1930 में आर्य समाज ने नेता स्वामी केशवानन्द द्वारा बनाई गई नमक की पुड़िया खरीदी, जिसके फलस्वरूप देशी नमक की पुड़िया खरीदने पर चौ. देवीलाल को हाईस्कूल से निकाल दिया गया.

इसी घटना से प्रभाविक होकर देवीलाल स्वाधीनता संघर्ष में शामिल हो गए. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. देवीलाल ने देश और प्रदेश में चलाए गए सभी जन-आन्दोलनों एवं स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर भाग लिया.इसके लिए इनको कई बार जेल यात्राएं भी करनी पड़ी.

ये भी पढ़ें: दुनिया के नेताओं के लिए प्रेरणा स्रोत रहे हैं गांधी

ताऊ देवीलाल का राजनीतिक सफर
चौ. देवीलाल में बचपन से ही संघर्ष का माद्दा कूट-कूट भरा हुआ था. बचपन में उन्होंने जहां अपने स्कूली जीवन में मुजारों के बच्चों के साथ रहकर नायक की भूमिका निभाई. इसके साथ ही महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय, भगत सिंह के जीवन से प्रेरित होकर भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर राष्ट्रीय सोच का परिचय दिया.

1962 से 1966 तक हरियाणा को पंजाब से अलग राज्य बनवाने में निर्णायक भूमिका निभाई. उन्होंने सन् 1977 से 1979 और 1987 से 1989 तक हरियाणा प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में जनकल्याणकारी नीतियों के माध्यम से पूरे देश को एक नई राह दिखाई. इन्हीं नीतियों को बाद में अन्य राज्यों और केन्द्र ने भी अपनाया. वो ताउम्र देश एवं जनता की सेवा करते रहे और किसानों के मसीहा के रूप में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा.

भारतीय राजनीति के सबसे बड़े किंगमेकर
दिसंबर, 1989 को लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद संयुक्त मोर्चा संसदीय दल की बैठक हुई. इसमें विश्वनाथ सिंह के प्रस्ताव और प्रस्ताव पर चंद्रशेखर के समर्थन से चौधरी देवीलाल को संसदीय दल का नेता मान लिया गया था. विश्वनाथ प्रताप सिंह और चंद्रशेखर दोनों देवीलाल के नीचे काम करने को तैयार थे और दोनों देवीलाल के नाम पर सहमत भी हो गए थे.

ऐसे में देवीलाल के पक्ष में सब कुछ था, वो चाहते तो प्रधानमंत्री बन सकते थे. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. तब देवीलाल ने कहा था- 'मैं सबसे बुजुर्ग हूं, मुझे सब ताऊ कहते हैं, मुझे ताऊ बने रहना ही पसंद है और मैं ये पद विश्वनाथ प्रताप को सौंपता हूं'.

स्वतंत्रता के बाद देवीलाल ने शुरू किया किसान आंदोलन
आजादी के बाद, वो भारतीय किसानों के लोकप्रिय नेता के रूप में उभरे और देवी लाल ने एक किसान आंदोलन शुरू किया. कुछ समय बाद, मुख्यमंत्री, गोपी चंद भार्गव ने एक समझौता किया. 1952 में पंजाब विधानसभा के सदस्य और 1956 में पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए.

ताऊ देवीलाल को माना जाता है हरियाणा का निर्माता
संयुक्त पंजाब के समय वर्तमान हरियाणा जो उस समय पंजाब का ही हिस्सा था, विकास के मामले में भारी भेदभाव हो रहा था. उन्होंने इस भेदभाव को न सिर्फ पार्टी मंच पर निरंतर उठाया बल्कि विधानसभा में भी आंकड़ों सहित यह बात रखी और हरियाणा को अलग राज्य बनाने के लिए संघर्ष किया.

जिसके परिणामस्वरूप 1 नवंबर, 1966 को अलग हरियाणा राज्य अस्तित्व में आया और प्रदेश के निर्माण के लिए संघर्ष करने वाले चौधरी देवीलाल को हरियाणा निर्माता के तौर पर जाना जाने लगा.

चंडीगढ़: भारतीय राजनीति के सबसे बड़े किंग मेकर माने जाने वाले चौधरी देवी लाल की 106वीं जयंती मनाई जा रही है. चौधरी देवी लाल को हरियाणा में ताऊ देवी लाल के नाम से भी जाना जाता है. वो हरियाणा के एक प्रमुख राजनीतिज्ञ थे. उनका जन्म 25 सितम्बर 1914 को हुआ था और 6 अप्रैल 2001 को इस महान राजनेता ने दुनिया को अलविदा कह दिया.

चौधरी देवीलाल को शुरू से राजनीति में थी दिलचस्पी
चौधरी देवी लाल ने अपने स्कूल की दसवीं की पढ़ाई छोड़कर सन् 1929 से ही राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया था. चौ. देवीलाल ने सन् 1929 में लाहौर में हुए कांग्रेस के ऐतिहासिक अधिवेशन में एक सच्चे स्वयं सेवक के रूप में भाग लिया और फिर सन् 1930 में आर्य समाज ने नेता स्वामी केशवानन्द द्वारा बनाई गई नमक की पुड़िया खरीदी, जिसके फलस्वरूप देशी नमक की पुड़िया खरीदने पर चौ. देवीलाल को हाईस्कूल से निकाल दिया गया.

इसी घटना से प्रभाविक होकर देवीलाल स्वाधीनता संघर्ष में शामिल हो गए. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. देवीलाल ने देश और प्रदेश में चलाए गए सभी जन-आन्दोलनों एवं स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर भाग लिया.इसके लिए इनको कई बार जेल यात्राएं भी करनी पड़ी.

ये भी पढ़ें: दुनिया के नेताओं के लिए प्रेरणा स्रोत रहे हैं गांधी

ताऊ देवीलाल का राजनीतिक सफर
चौ. देवीलाल में बचपन से ही संघर्ष का माद्दा कूट-कूट भरा हुआ था. बचपन में उन्होंने जहां अपने स्कूली जीवन में मुजारों के बच्चों के साथ रहकर नायक की भूमिका निभाई. इसके साथ ही महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय, भगत सिंह के जीवन से प्रेरित होकर भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर राष्ट्रीय सोच का परिचय दिया.

1962 से 1966 तक हरियाणा को पंजाब से अलग राज्य बनवाने में निर्णायक भूमिका निभाई. उन्होंने सन् 1977 से 1979 और 1987 से 1989 तक हरियाणा प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में जनकल्याणकारी नीतियों के माध्यम से पूरे देश को एक नई राह दिखाई. इन्हीं नीतियों को बाद में अन्य राज्यों और केन्द्र ने भी अपनाया. वो ताउम्र देश एवं जनता की सेवा करते रहे और किसानों के मसीहा के रूप में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा.

भारतीय राजनीति के सबसे बड़े किंगमेकर
दिसंबर, 1989 को लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद संयुक्त मोर्चा संसदीय दल की बैठक हुई. इसमें विश्वनाथ सिंह के प्रस्ताव और प्रस्ताव पर चंद्रशेखर के समर्थन से चौधरी देवीलाल को संसदीय दल का नेता मान लिया गया था. विश्वनाथ प्रताप सिंह और चंद्रशेखर दोनों देवीलाल के नीचे काम करने को तैयार थे और दोनों देवीलाल के नाम पर सहमत भी हो गए थे.

ऐसे में देवीलाल के पक्ष में सब कुछ था, वो चाहते तो प्रधानमंत्री बन सकते थे. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. तब देवीलाल ने कहा था- 'मैं सबसे बुजुर्ग हूं, मुझे सब ताऊ कहते हैं, मुझे ताऊ बने रहना ही पसंद है और मैं ये पद विश्वनाथ प्रताप को सौंपता हूं'.

स्वतंत्रता के बाद देवीलाल ने शुरू किया किसान आंदोलन
आजादी के बाद, वो भारतीय किसानों के लोकप्रिय नेता के रूप में उभरे और देवी लाल ने एक किसान आंदोलन शुरू किया. कुछ समय बाद, मुख्यमंत्री, गोपी चंद भार्गव ने एक समझौता किया. 1952 में पंजाब विधानसभा के सदस्य और 1956 में पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए.

ताऊ देवीलाल को माना जाता है हरियाणा का निर्माता
संयुक्त पंजाब के समय वर्तमान हरियाणा जो उस समय पंजाब का ही हिस्सा था, विकास के मामले में भारी भेदभाव हो रहा था. उन्होंने इस भेदभाव को न सिर्फ पार्टी मंच पर निरंतर उठाया बल्कि विधानसभा में भी आंकड़ों सहित यह बात रखी और हरियाणा को अलग राज्य बनाने के लिए संघर्ष किया.

जिसके परिणामस्वरूप 1 नवंबर, 1966 को अलग हरियाणा राज्य अस्तित्व में आया और प्रदेश के निर्माण के लिए संघर्ष करने वाले चौधरी देवीलाल को हरियाणा निर्माता के तौर पर जाना जाने लगा.

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Last Updated : Sep 25, 2019, 2:15 PM IST
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