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भिवानी: कुम्हारों के धंधे पर लगा 'ग्रहण', इलेक्ट्रॉनिक झालरों ने बाजार में जमाई पैठ

सोशल मीडिया में भले ही चाइनीज सामान की खरीददारी को लेकर विरोध जताया जा रहा है, लेकिन सच्चाई कुछ इससे विपरीत है. दूसरों का घर रौशन करने वाले कुम्हारों के घरों में आज खुद अंधेरा नजर आ रहा है.

कुम्हारों के धंधे पर लगा ग्रहण
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Published : Oct 23, 2019, 2:48 PM IST

Updated : Oct 23, 2019, 2:55 PM IST

भिवानी: आधुनिकता के दौर ने कुम्हारों के धंधे पर जहां ग्रहण लगा दिया है. वहीं चाइनीज इलेक्ट्रॉनिक दीयों और झालरों की जगमगाहट ने लोगों को मिट्टी के दीयों से कोसों दूर कर दिया है. दूसरों का घर रौशन करने वाले कुम्हारों के घरों में आज खुद अंधेरा नजर आ रहा है.

कुम्हारों के धंधे पर लगा ग्रहण
कुम्हार मिट्टी के दिए बनाकर किसी तरह अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं. पहले तो उनका धंधा खूब फलता-फूलता था. लेकिन चाइनीज दीयों के बाजार में आने से इनका धंधा चौपट हो गया और कुम्हार बेरोजगारी की कगार पर आ खड़े हुए. इलेक्ट्रॉनिक दीयों के चकाचौंध ने लोगों के दिलों से मिट्टी के दीयों की अहमियत को खत्म कर दिया है.

क्लिक कर देखें वीडियो

मिट्टी के बर्तनों की बिक्री में कमी
ईटीवी भारत की टीम ने भिवानी कुम्हारों से जब बात की तो उन्होंने बताया कि वो मिट्टी के बर्तन का पुश्तैनी काम करते हैं, इसलिए उसे छोड़ भी नहीं सकते हैं. उन्होंने कहा कि बिक्री में तो कमी आई है. लेकिन लोगों को मिट्टी के दीए जलाने चाहिए. क्योंकि ये शुभ होते हैं.

दिवाली को लेकर चाइनीज सामान से दुकानें भरी पड़ी

आपको बता दें कि सोशल मीडिया में भले ही चाइनीज सामानों की खरीददारी को लेकर विरोध जताया जा रहा है और तमाम समाजसेवी, राजनीतिक दल एवं अन्य संगठनों के लोग चाइनीज उत्पादों के बहिष्कार की बात कर रहे है. लेकिन सच्चाई कुछ इससे विपरीत है. दिवाली को लेकर चाइनीज सामानों से दुकानें भरी पड़ी है. लोग मिट्टी के दीयों की अपेक्षा इलेक्ट्रॉनिक चाइनीज दीयों और झालरों को ज्यादा पसंद कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें: मतदान के बाद NCRB के आंकड़े जारी, हरियाणा में महिलाओं के साथ अपराध में इजाफा

भिवानी: आधुनिकता के दौर ने कुम्हारों के धंधे पर जहां ग्रहण लगा दिया है. वहीं चाइनीज इलेक्ट्रॉनिक दीयों और झालरों की जगमगाहट ने लोगों को मिट्टी के दीयों से कोसों दूर कर दिया है. दूसरों का घर रौशन करने वाले कुम्हारों के घरों में आज खुद अंधेरा नजर आ रहा है.

कुम्हारों के धंधे पर लगा ग्रहण
कुम्हार मिट्टी के दिए बनाकर किसी तरह अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं. पहले तो उनका धंधा खूब फलता-फूलता था. लेकिन चाइनीज दीयों के बाजार में आने से इनका धंधा चौपट हो गया और कुम्हार बेरोजगारी की कगार पर आ खड़े हुए. इलेक्ट्रॉनिक दीयों के चकाचौंध ने लोगों के दिलों से मिट्टी के दीयों की अहमियत को खत्म कर दिया है.

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मिट्टी के बर्तनों की बिक्री में कमी
ईटीवी भारत की टीम ने भिवानी कुम्हारों से जब बात की तो उन्होंने बताया कि वो मिट्टी के बर्तन का पुश्तैनी काम करते हैं, इसलिए उसे छोड़ भी नहीं सकते हैं. उन्होंने कहा कि बिक्री में तो कमी आई है. लेकिन लोगों को मिट्टी के दीए जलाने चाहिए. क्योंकि ये शुभ होते हैं.

दिवाली को लेकर चाइनीज सामान से दुकानें भरी पड़ी

आपको बता दें कि सोशल मीडिया में भले ही चाइनीज सामानों की खरीददारी को लेकर विरोध जताया जा रहा है और तमाम समाजसेवी, राजनीतिक दल एवं अन्य संगठनों के लोग चाइनीज उत्पादों के बहिष्कार की बात कर रहे है. लेकिन सच्चाई कुछ इससे विपरीत है. दिवाली को लेकर चाइनीज सामानों से दुकानें भरी पड़ी है. लोग मिट्टी के दीयों की अपेक्षा इलेक्ट्रॉनिक चाइनीज दीयों और झालरों को ज्यादा पसंद कर रहे हैं.

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Intro:रिपोर्ट इन्द्रवेश भिवानी
दिनांक 23 अक्तूबर।
आधुनिकता में इलैक्ट्रॉनिक लड़ी मिट्टी के दीयों पर पड़ रही है भारी
मिट्टी के दीये परंपरागत प्रकाश स्त्रोत माने जाते है
दीपावली त्यौहार के चलते जगह-जगह सजे दीयों की स्टॉल
लो फिर से दीपावली का त्यौहार आने वाला है। तीन दिन बाद रविवार को दीपों का पर्व मनाया जाएगा। शहर में जगह-जगह मिट्टी के दीयों की स्टॉल सज गए हैं, लेकिन आधुनिक परिवेश में मिट्टी के दीवों पर चाईनीज लड़ी भारी साबित हो रही हैं। चाईनीज लड़ी 12 से 15 रूपये में ग्राहक के हाथ में पहुंच रही है और इसे जलाना व लगाना भी आसान हैं। मिट्टी के दीयों की स्टॉल पर खड़ा होकर आम ग्राहक मोलभाव करता है, इससे मिट्टी के दीयों को बनाने वालों को दर्द भी होता है। लेकिन परिवेश बदलने के साथ ही मिट्टी के दीवों की मांग भी सिमट कर रह गई है। अब तो लोग केवल पूजन व औपचारिकता पूरी करने के लिए मिट्टी के दीवों की खरीदारी करते है। कोई 11 पीस खरीदता है तो कोई 20 पीस। यह सब महज रसमो-रिवाज को पूरा करने के लिए हो रहा है।
Body: हालांकि कुंभकारों ने आधुनिकता की दौड़ में शामिल होने का प्रयास किया है। वे अनेक प्रकार की दीवे ग्राहकों को रिझाने के लिए बाजार में ला रहे हैं, ताकि ग्राहकों को अपनी तरफ आकर्षित कर सकें। मिट्टी का दीवे को पहले भिगोने फिर उसे थोड़ी देर सुखाना, बाती बनाना, तेल डालना और फिर जलाकर पूजन करना और घर की मुंडेर पर लगाना, मशक्कत भरा है। जबकि इलैक्ट्रॉनिक झालर जो चीन से आई है, महज 12 से 15 रूपये में ग्राहक के हाथ में होती है। दो छोर कील में अटकाओ या फिर टेप से चिपकाओ, बिजली का कनेक्शन करो और हो गई दीवाली की रोशनी। प्रतिस्पर्धा के युग में आम आदमी यह भी देखने लगा है।
Conclusion: इस बारे में कुभकार बलबीर से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करते है। पुश्तैनी काम है, इसीलिए छोड़ भी नहीं सकते। परिवार का पालन-पोषण इन्ही मिट्टी के बर्तनों के सहारे चलता है। वे प्रतिदिन दो हजार मिट्टी के दीपक दीपों के पर्व के लिए तैयार करते हैं। सभी दीपक प्रतिदिन बिक जाते हैं। उन्होंने कहा कि दीये कितने बना लो, लेने वालो की कमी नहीं है। लेकिन आधुनिकता दीवों पर हावी हैं। पहले जिस घर में 100-150 दीये जाते थे, आज वो घर 20-25 दीयों में सिमट गया है। उन्होंने कहा कि दीपक पवित्रता, शुद्धता व शुभता का प्रतीक है। घर में उजाला भी इसी से होता है। यह हमारी संस्कृति का प्रमुख आधार है। इसीलिए हमें इस परंपरा को आगे बढ़ाना चाहिए।
बाईट : बलबीर कुंभकार।
Last Updated : Oct 23, 2019, 2:55 PM IST
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