भिवानी: आधुनिकता के दौर ने कुम्हारों के धंधे पर जहां ग्रहण लगा दिया है. वहीं चाइनीज इलेक्ट्रॉनिक दीयों और झालरों की जगमगाहट ने लोगों को मिट्टी के दीयों से कोसों दूर कर दिया है. दूसरों का घर रौशन करने वाले कुम्हारों के घरों में आज खुद अंधेरा नजर आ रहा है.
कुम्हारों के धंधे पर लगा ग्रहण
कुम्हार मिट्टी के दिए बनाकर किसी तरह अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं. पहले तो उनका धंधा खूब फलता-फूलता था. लेकिन चाइनीज दीयों के बाजार में आने से इनका धंधा चौपट हो गया और कुम्हार बेरोजगारी की कगार पर आ खड़े हुए. इलेक्ट्रॉनिक दीयों के चकाचौंध ने लोगों के दिलों से मिट्टी के दीयों की अहमियत को खत्म कर दिया है.
मिट्टी के बर्तनों की बिक्री में कमी
ईटीवी भारत की टीम ने भिवानी कुम्हारों से जब बात की तो उन्होंने बताया कि वो मिट्टी के बर्तन का पुश्तैनी काम करते हैं, इसलिए उसे छोड़ भी नहीं सकते हैं. उन्होंने कहा कि बिक्री में तो कमी आई है. लेकिन लोगों को मिट्टी के दीए जलाने चाहिए. क्योंकि ये शुभ होते हैं.
दिवाली को लेकर चाइनीज सामान से दुकानें भरी पड़ी
आपको बता दें कि सोशल मीडिया में भले ही चाइनीज सामानों की खरीददारी को लेकर विरोध जताया जा रहा है और तमाम समाजसेवी, राजनीतिक दल एवं अन्य संगठनों के लोग चाइनीज उत्पादों के बहिष्कार की बात कर रहे है. लेकिन सच्चाई कुछ इससे विपरीत है. दिवाली को लेकर चाइनीज सामानों से दुकानें भरी पड़ी है. लोग मिट्टी के दीयों की अपेक्षा इलेक्ट्रॉनिक चाइनीज दीयों और झालरों को ज्यादा पसंद कर रहे हैं.
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