पानीपत: 18 फरवरी 2007, वो काली रात जब भारत और पाकिस्तान के बीच हफ्ते में 2 दिन चलने वाली समझौता ट्रेन में बम ब्लास्ट हुआ था. इस ब्लास्ट में 68 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 13 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे. दिल्ली से 80 किलोमीटर दूर पानीपत के दीवाना रेलवे स्टेशन के पास 49 नंबर फाटक के पास हुए उस ब्लास्ट ने कई परिवारों को जिंदगीभर का जख्म दिया है. उस धमाके को आज 16 बरस बीत गए हैं लेकिन उस ब्लास्ट में अपनों को खोने वालों के साथ समझौता ब्लास्ट की गूंज आखिरी सांस तक रहेगी.
18 फरवरी 2007 का वो दिन- रविवार का वो दिन समझौता एक्सप्रेस अपने तय वक्त पर रात करीब पौने ग्यारह बजे दिल्ली से अटारी के लिए रवाना हुई थी. करीब एक घंटे बाद दिल्ली से लगभग 80 किलोमीटर दूर ट्रेन जैसे ही पानीपत के दीवाना रेलवे स्टेशन पर पहुंची तो ट्रेन की जनरल बोगियों में धमाके के बाद अचानक आग लग गई. ट्रेन में एक के बाद एक दो धमाके हुए जिससे ट्रेन के दो जनरल डिब्बे आग की लपटों से घिर गए.
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ब्लास्ट में 68 लोगों की मौत: पिछले 2 कोच में लगी आग के बाद गार्ड ने ड्राइवर को सिग्नल भेजा और ट्रेन को रुकवाया गया. तब तक आग भी भयंकर रूप ले चुकी थी. पानीपत के गांव शिवा के लोगों ने ट्रेन को आग से लिपटा देखा तो आग बुझाने की कोशिश में जुट गए. आग पर तो काबू पा लिया गया, लेकिन तब तक इन डिब्बों में सवार 68 लोग अपनी जान गंवा चुके थे. धमाके में 13 लोग गंभीर रूप से झुलस गए थे, जिन्हें इलाज के लिए दिल्ली रेफर किया गया था.
ट्रेन में दो और बम थे: हरियाणा पुलिस मौके पर पहुंची तो अन्य बोगियों में दो सूटकेस बरामद हुए. संदिग्ध होने पर जांच की गई तो वो सूटकेस बम थे. बम निरोधक दस्तो को मौके पर बुलाया गया. इनमें से एक बम को डिफ्यूज कर दिया गया और दूसरे को खाली पड़े खेतों में ब्लास्ट कर नष्ट कर दिया गया था. दो और बम मिलने का मतलब साफ था कि अपराधी समझौता एक्सप्रेस और उसमें बैठी सवारियों को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाना चाहते थे. 18 फरवरी को हुए हादसे के बाद 19 फरवरी को जीआरपी हरियाणा पुलिस ने मामला दर्ज किया. करीब ढ़ाई साल के बाद घटना का जिम्मा 19 जुलाई 2010 को एनआईए को दे दिया गया.
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पानीपत में ही दफन हुए सभी मृतक- समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट के मृतकों में ज्यादातर पाकिस्तानी नागरिक थे. ब्लास्ट के बाद शवों की हालत ऐसी हो गई थी कि उन्हें पहचानना भी मुश्किल था. इसलिये पोस्टमार्टम के वक्त डीएनए सैंपल ले लिए गए और फिर जो परिजन बॉडी क्लेम करने के लिए आता था, उनके डीएनए रिपोर्ट के आधार पर शवों की शिनाख्त हो पाती थी. शवों की हालत इतनी खराब हो चुकी थी उनका अंतिम संस्कार पानीपत में ही किया गया. सभी 68 शवों को पानीपत के मेहराणा गांव में बने कब्रिस्तान में दफनाया गया था.
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समझौता ब्लास्ट में 8 लोगों पर लगे थे आरोप: समझौता ब्लास्ट की जांच एनआईए ने की थी. एनआईए ने असीमानंद सहित लोकेश शर्मा, कमल चौहान और राजेंद्र चौधरी को गिरफ्तार किया गया था. जांच एजेंसी एनआईए ने कुल 8 लोगों को आरोपी बनाया गया. जिनमें से एक की मौत हो चुकी थी, जबकि तीनों लोगों को भगोड़ा घोषित कर दिया गया था. मामले की सुनवाई पंचकूला एनआईए कोर्ट में हुई थी. इस दौरान पंचकूला कोर्ट ने सभी चारों आरोपियों को बरी कर दिया था. एनआईए ने पंचकूला स्पेशल कोर्ट में उपरोक्त सभी आयुक्तों को लेकर 2011 से 2012 के बीच तीन बार चार्जशीट फाइल की थी.
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सबूतों के अभाव में सभी आरोपी हो गए बरी: 2014 में समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट केस में मास्टरमाइंड स्वामी असीमानंद को जमानत मिल गई. कोर्ट में जांच एजेंसी एनआईए असीमानंद के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं दे पाई. उन्हें सीबीआई ने असीमानंद को 2010 में हरिद्वार से गिरफ्तार किया था. 16 अप्रैल 2018 को लव कुमार सरकार उर्फ स्वामी असीमानंद को एनआईए की विशेष अदालत ने 2007 के मक्का मस्जिद विस्फोट मामले में दोष मुक्त कर दिया. उन्हें पहले ही 2007 के अजमेर दरगाह विस्फोट मामले में दोषमुक्त कर दिया गया था. 14 मार्च 2019 को सबूतों के अभाव में समझौता ब्लास्ट मामले में भी बरी कर दिया गया.
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दिल दहला देने वाला था मंजर: कब्रिस्तान के केयरटेकर शकूर मोहम्मद का कहना है, कि वह रात एक काली रात थी. उस रात अस्पताल में एक के बाद एक लाशें इकट्ठी होती जा रही थी. सभी मारे गए लोगों को पहले डीएनए सैंपल लेकर लकड़ी के ताबूत में पैक किया गया और फिर 23 फरवरी को उन्हें कब्रिस्तान में दफन किया गया. आज भी उस हादसे को याद कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं. मरने वालों में से ज्यादातर लोग पाकिस्तान के रहने वाले थे. समझौता ब्लास्ट में मरने वालों में बच्चे भी थे.
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क्या कहते हैं एडवोकेट मोमिन मलिक: पीड़ितों की पैरवी करने वाले पानीपत के वकील मोमिन मलिक ने बताया कि 68 लोगों में से 19 लोग ऐसे दफन हैं, जिनकी आज तक पहचान नहीं हो सकी. शिनाख्त के लिए कुछ लोग पाकिस्तान से आए थे. जिन्होंने दावा किया था, कि उस हादसे में मारे गए लोगों के वो परिजन हैं. लेकिन डीएनए मैच ना होने के कारण उनकी पहचान नहीं हो सकी. वहीं, कुछ लोगों की पहचान मौके पर शवों से मिलने वाले आभूषण और कपड़ों से कर ली गई. कुछ की पहचान डीएनए रिपोर्ट से हो गई. लेकिन पासपोर्ट और जरूरी कागजात चेक करने के बाद भी आज तक 19 लोगों का सुराग नहीं मिल पाया है. मोमिन मलिक बताते हैं, कि मारे गए लोगों के मृत्यु प्रमाण पत्र भारत सरकार ने अभी तक जारी नहीं किए. जिसके चलते मारे गये लोगों के परिजनों के काम आज भी अधर में लटके हैं.
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राणा शौकत अली ने खोए अपने 5 बच्चे: बम ब्लास्ट वाली रात को पाकिस्तान के फैसलाबाद के रहने वाले राणा शौकत अली दिल्ली से अपनी पत्नी रुखसाना अख्तर और 5 बच्चों के साथ पाकिस्तान लौट रहे थे. राणा शौकत अली बताते हैं, कि उस दिन उन्हें पहले से ही कुछ अजीब लग रहा था. ट्रेन अपने समय से ना चलकर कुछ देरी बाद दिल्ली से रवाना हुई थी और ट्रेन में दो अभियुक्त भी घूम रहे थे. जिनके बारे में वह अनजान थे. टीटी के पूछने पर उन दोनों युवकों ने जवाब दिया कि वह अहमदाबाद जा रहे हैं. पर उन्होंने इस पर ऑब्जेक्शन करते हुए कहा कि यह ट्रेन तो लाहौर जा रही है, अहमदाबाद नहीं.
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राणा शौकत अली के इस ऑब्जेक्शन पर टीटी ने उन्हें बम ब्लास्ट होने से 15 मिनट पहले ट्रेन से उतार दिया. शौकत अली अपनी पत्नी और 6 बच्चों आइशा, राणा मोहम्मद बिलाल, राणा अणीर हमजा, आसमा, राणा मोहम्मद रहमान और अक्सा के साथ सफर कर रहे थे. थोड़ी देर बाद जब ट्रेन में ज्यादातर लोग सो रहे थे तभी एक धमाके की आवाज सुनाई दी. शौकत के मुताबिक धमाके को अनसुना कर वो फिर से सो गए. पर जैसे शौकत अली को सांस लेने में तकलीफ होने लगी, तो उन्होंने उठकर देखा कि ट्रेन में धुआं ही धुआं भरा हुआ था.
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जैसे ही वह उठकर दरवाजे की तरफ गए और उन्होंने दरवाजा खोला तो आग की लपटों ने पूरे कोच को घेर लिया. दूसरे कोच में जाकर उन्होंने दरवाजा खटखटाया चेन पुलिंग के बाद ट्रेन रुकी और वह एकदम ट्रेन से नीचे उतर गए. फिर उन्होंने दोबारा हिम्मत जुटाकर अपने बीवी बच्चों को निकालने की कोशिश की. पर वह नाकाम रहे, बार-बार कोशिश करने के बाद वह अपनी पत्नी रुखसाना अख्तर और सबसे छोटी बेटी अक्सा को ही बाहर निकाल पाए. वो अपने बाकी 5 बच्चों को नहीं बचा पाए, जिसका मलाल उन्हें जिंदगीभर रहेगा. इन बच्चों की उम्र 6 साल से 17 साल के बीच थी.
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मां के सामने आग में जल गये कलेजे के टुकड़े: शौकत अली बताते हैं कि करीब 1 घंटे के बाद वहां एंबुलेंस पहुंची, फायर ब्रिगेड पहुंची आग पर काबू पाया गया. लेकिन तब तक जलकर सब कुछ राख हो चुका था. वह अपने पांच बच्चों को इस हादसे में गंवा चुके थे और खुद भी बुरी तरह जख्मी हो चुके थे. आज भी वह इस मंजर को याद करते हैं, तो उनकी रूह कांप जाती है. ट्रेन में सफर करने वाली राणा शौकत अली की बेगम रुखसाना अख्तर बताती है, कि आज भी उनके जहन में वह हादसा इस कदर घर किये हुए है कि चाहकर भी उस मंजर को नहीं भुला सकती. भुलाए भी कैसे, आखिरकार एक मां ने अपने बच्चों को उस धमाके में राख होते हुए देखा था. लाचार और बेबस मां की ममता के वो जख्म आज भी ताजा है. जिसके दर्द को कभी बयां नहीं किया जा सकता.
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आज भी मां के सपनों में आती है उसकी बेटी: रुखसाना अख्तर ने ईटीवी भारत संवाददाता से फोन पर हुई बातचीत में कहती हैं कि जहां उनके बच्चों को दफनाया गया था वहां पर उनके बच्चों के लिए दुआ करें. उनकी एक बेटी शायना आज भी उनके सपनों में आती है जो अपनी मां से कहती हैं कि अम्मी तुम मुझे इन झाड़ियों में अकेला छोड़ कर चली गई. वाकई इस मां के ये जख्म दिल को झकझोर देने वाले हैं. इस ब्लास्ट ने दोनों देशों भारत और पाकिस्तान को कभी ना भूल पाने वाले जख्म दिये हैं. जिसे शायद कभी भुलाया नहीं जा सकता और ना ही इस हादसे से मिले जख्मों को कभी कम किया जा सकता है. उन्होंने ईटीवी भारत के माध्यम से भारत सरकार से भी अपील की है कि उन्हें 4 दिन का वीजा हिंदुस्तान आने के लिए दिया जाए, ताकि वह इस बम ब्लास्ट में मारे गए अपने बच्चों की कब्र पर जाकर फतिया पढ़ सके.