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नेताजी बोस : आज भी मिलती है उनकी जिंदगी से प्रेरणा - 124वीं जयंती नेताजी

आज के बदलते दौर में कुछ युवाओं को शानदार नौकरी और आराम तलब जिंदगी की चाह रहती है, लेकिन बदलते दौर के बदलते इतिहास के पन्नों को अगर पलटाया जाए, तो युवाओं को बहुत कुछ सीखने को मिलेगा. कुछ कर गुजरने की चाह रखने वाले युवाओं के लिए सुभाष चंद्र बोस की जिंदगी प्रेरणा दायक है. अंग्रेजों से लोहा लेना, देश के लिए अपना पूरा जीवन न्योछावर कर देने वाला साहस और जोश तथा नेताजी की जिंदगी के अनगिनत पलों से हम आज भी प्रेरित होते रहते हैं. आइए जानते हैं नेताजी से जुड़ी खास बातें...

सुभाष चंद्र बोस
सुभाष चंद्र बोस
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Published : Jan 23, 2021, 5:57 AM IST

Updated : Jan 23, 2021, 9:19 AM IST

हैदराबाद : 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती है. नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 में हुआ था. उन्होंने पहले भारतीय सशस्त्र बल की स्थापना की थी, जिसका नाम आजाद हिंद फौज रखा गया था. उनके 'तुम मुझे खून दो मैं, तुम्हें आजादी दूंगा' के नारे से भारतीयों के दिलों में देशभक्ति की भावना और बलवान होती थी. आज भी उनके इस नारे से सभी को प्रेरणा मिलती है.

अंग्रेजों से लोहा लेने की बात हो, अन्याय के विरुद्ध डटकर खड़े रहने की बात हो या फिर देश को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराने की बात हो. इन सब में एक नाम जो सबसे ऊपर और सबसे पहले हमारे जहन में आता है वो है नेताजी सुभाष चंद्र बोस का. 23 जनवरी 1897 को जन्मे नेताजी ने भारत के लिए जो कुछ भी किया, वो किसी को बताने की जरूरत नहीं है, बल्कि ये सब सुनहरे अक्षरों में इतिहास में दर्ज है.

कटक में पैदा हुए थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी वर्ष 1897 को कटक में था. पिता जानकीनाथ बोस और माता प्रभावती बोस के बेटे सुभाष वर्ष 1902 में अपने स्कूल की पढ़ाई अंग्रेजी मीडियम स्कूल से शुरू की, जो कि उस समय प्रोटेस्टैंट यूरोपियन स्कूल के तौर पर जाना जाता था और बाद में यह स्कूल स्टुअर्ट स्कूल के तौर पर नामित किया गया. यह स्कूल आज भी कटक के मिशन रोड में मौजूद है. घर से महज तीन किलोमीटर की दूरी पर यह स्कूल होने के बावजूद नेताजी के पिता जानकीनाथ बोस ने उन्हें स्कूल के हॉस्टल में रखा था, ताकि वह स्कूल के शिक्षक से अच्छी तरह से जुड़ सकें और एक आम जिंदगी जीने की प्रेरणा लेते हुए ऊंची सोच रख सकें. इसके बाद नेताजी राज्य के बाहर अपनी पढ़ाई जारी रखें. आज के युवाओं को नेताजी के इस यात्रा काफी कुछ सीखने को मिलता है.

नेताजी के नारे भारतीयों के लिए हैं प्रेरणा स्त्रोत
नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने ऐशोआराम की जिंदगी को त्यागकर देश की सेवा में अपना पूरा जीवन न्योछावर कर दिया. उन्होंने अपना पूरा जीवन अपने राष्ट्र को समर्पित कर दिया. वहीं, ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता को सुरक्षित करने के लिए, जो भी आवश्यक हो सकता था वो किया. महात्मा गांधी की शांतिवाद और जवाहर लाल नेहरू की कूटनीति के विपरीत, नेताजी अंतिम सांस तक डटकर लड़ते रहे. 'तुम मुझे खून दो मैं, तुम्हें आजादी दूंगा' के नारे से वे प्रत्येक भारतीयों के दिलों में देशभक्ति की मशाल जला रहे थे. आज भी नेताजी के इस नारे से सभी को प्रेरणा मिलती है. नेताजी का यह नारा सैनिकों के लिए बूस्टर से कम नहीं.

स्वामी विवेकानंद को अपना गुरु मानते थे नेताजी
हमारा देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ था. इस आजादी में क्रांतिकारी नेता सुभाष चंद्र बोस का अहम योगदान था. अपने बचपन के दिनों से नेताजी सुभाष चंद्र बोस, स्वामी विवेकानंद और महर्षि अरविंद के साहित्य से बहुत प्रेरित थे. नेताजी स्वामी विवेकानंद को अपना गुरु मानते थे. नेताजी ने 'जय हिंद' और 'तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा' जैसे नारे दिये, जो उस समय काफी प्रचलन में थे. यदि वे जीवित होते तो देश का विभाजन कभी नहीं होने देते, नेताजी इसका विरोध करते.

आजादी के लिए नेताजी का जोश
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का विचार था कि भारत को बिना शर्त पूर्ण स्वतंत्रता दी जानी चाहिए. उनका विचार था कि हमें क्रांतिकारी संघर्ष के माध्यम से स्वतंत्रता प्राप्त करनी चाहिए. उनका दृढ़ विश्वास था कि महात्मा गांधी की अहिंसा की अवधारणा पर्याप्त नहीं थी और इसलिए वे इस बात का बचाव करते थे कि स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए शारीरिक संघर्ष की आवश्यकता है. उनका संघर्ष स्वतंत्रता प्राप्त करने के मुख्य कारणों में से एक है.

  • अंग्रेजों के खिलाफ नेताजी के अधिक कट्टरपंथी विचार ने उन्हें कई बार सलाखों के पीछे पहुंचाया था.
  • नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत के सबसे प्रतिष्ठित चेहरों में से एक हैं. हर राजनीतिक संगठन एक उज्जवल भविष्य के लिए विकास की चाह में निरंतर कोशिश करता रहता है.
  • प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी नेताजी का जन्म ओडिशा के कटक में हुआ था और वह प्रसिद्ध आजाद हिंद फौज के संस्थापक थे.
  • बोस एक वास्तविक नायक थे, जो धार्मिक सद्भाव और नारी शक्ति के लिए हमेशा डटकर लड़े.
  • 1940 के दशक में सुभास चंद्र बोस ने मांस व अन्य कुछ सामग्रियों का विरोध किया था.
  • नेताजी इस बात को लेकर काफी उत्सुक थे कि विभिन्न धार्मिक समुदायों के सदस्यों को अन्य धर्म के बारे में और अधिक जानने की कोशिश करनी चाहिए.
  • वह चाहते थे कि हर समुदाय के लोग आपस में मेलजोल बनाए रखें.
  • नेताजी का कहना था कि हर धर्म के लोगों को एक-दूसरे के सभी समारोहों में शामिल होना चाहिए और उनके सुख-दुख उनका साथी बनना चाहिए.
  • उन दिनों नेताजी ने युवा लड़कियों को स्वतंत्रता आंदोलन में सबसे आगे रहने के लिए प्रेरित किया था.
  • नेताजी की चेतना और उनके कार्य इतने महान थे कि, आज भी कई भारतीयों का ये मानना ​​है कि वह अभी भी हमारे भीतर जीवित हैं.
  • देश को आजाद कराने को आजाद हिंद फौज का सपना पूरा करने की दिशा में सुभाष चंद्र बोस ने मजदूरों को एकजुट कर कदम बढ़ाए थे.
  • नेताजी ने नबाद में 1930 में देश की पहली रजिस्टर्ड मजदूर यूनियन कोल माइनर्स टाटा कोलियरी मजदूर संगठन की स्थापना की थी.
  • नेताजी का वर्ष 1930 से 1941 के बीच सुभाष चंद्र बोस कई बार धनबाद आगमन हुआ था.

1943 में नेताजी ने किया था आजाद हिंद फौज का नेतृत्व
तीन मई 1939 को सुभाषचंद्र बोस ने कलकत्ता में फॉरवर्ड ब्लाक की स्थापना की. सितंबर 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान आजाद हिंद फौज ने जापानी सेना के सहयोग से भारत पर आक्रमण किया. अपनी फौज को प्रेरित करने के लिए नेताजी ने दिल्ली चलो का नारा दिया. 1943 में उन्होंने आजाद हिंद फौज का नेतृत्व संभाला और उसी समय से उन्हें नेताजी की उपाधि दी गई.

हैदराबाद : 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती है. नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 में हुआ था. उन्होंने पहले भारतीय सशस्त्र बल की स्थापना की थी, जिसका नाम आजाद हिंद फौज रखा गया था. उनके 'तुम मुझे खून दो मैं, तुम्हें आजादी दूंगा' के नारे से भारतीयों के दिलों में देशभक्ति की भावना और बलवान होती थी. आज भी उनके इस नारे से सभी को प्रेरणा मिलती है.

अंग्रेजों से लोहा लेने की बात हो, अन्याय के विरुद्ध डटकर खड़े रहने की बात हो या फिर देश को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराने की बात हो. इन सब में एक नाम जो सबसे ऊपर और सबसे पहले हमारे जहन में आता है वो है नेताजी सुभाष चंद्र बोस का. 23 जनवरी 1897 को जन्मे नेताजी ने भारत के लिए जो कुछ भी किया, वो किसी को बताने की जरूरत नहीं है, बल्कि ये सब सुनहरे अक्षरों में इतिहास में दर्ज है.

कटक में पैदा हुए थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी वर्ष 1897 को कटक में था. पिता जानकीनाथ बोस और माता प्रभावती बोस के बेटे सुभाष वर्ष 1902 में अपने स्कूल की पढ़ाई अंग्रेजी मीडियम स्कूल से शुरू की, जो कि उस समय प्रोटेस्टैंट यूरोपियन स्कूल के तौर पर जाना जाता था और बाद में यह स्कूल स्टुअर्ट स्कूल के तौर पर नामित किया गया. यह स्कूल आज भी कटक के मिशन रोड में मौजूद है. घर से महज तीन किलोमीटर की दूरी पर यह स्कूल होने के बावजूद नेताजी के पिता जानकीनाथ बोस ने उन्हें स्कूल के हॉस्टल में रखा था, ताकि वह स्कूल के शिक्षक से अच्छी तरह से जुड़ सकें और एक आम जिंदगी जीने की प्रेरणा लेते हुए ऊंची सोच रख सकें. इसके बाद नेताजी राज्य के बाहर अपनी पढ़ाई जारी रखें. आज के युवाओं को नेताजी के इस यात्रा काफी कुछ सीखने को मिलता है.

नेताजी के नारे भारतीयों के लिए हैं प्रेरणा स्त्रोत
नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने ऐशोआराम की जिंदगी को त्यागकर देश की सेवा में अपना पूरा जीवन न्योछावर कर दिया. उन्होंने अपना पूरा जीवन अपने राष्ट्र को समर्पित कर दिया. वहीं, ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता को सुरक्षित करने के लिए, जो भी आवश्यक हो सकता था वो किया. महात्मा गांधी की शांतिवाद और जवाहर लाल नेहरू की कूटनीति के विपरीत, नेताजी अंतिम सांस तक डटकर लड़ते रहे. 'तुम मुझे खून दो मैं, तुम्हें आजादी दूंगा' के नारे से वे प्रत्येक भारतीयों के दिलों में देशभक्ति की मशाल जला रहे थे. आज भी नेताजी के इस नारे से सभी को प्रेरणा मिलती है. नेताजी का यह नारा सैनिकों के लिए बूस्टर से कम नहीं.

स्वामी विवेकानंद को अपना गुरु मानते थे नेताजी
हमारा देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ था. इस आजादी में क्रांतिकारी नेता सुभाष चंद्र बोस का अहम योगदान था. अपने बचपन के दिनों से नेताजी सुभाष चंद्र बोस, स्वामी विवेकानंद और महर्षि अरविंद के साहित्य से बहुत प्रेरित थे. नेताजी स्वामी विवेकानंद को अपना गुरु मानते थे. नेताजी ने 'जय हिंद' और 'तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा' जैसे नारे दिये, जो उस समय काफी प्रचलन में थे. यदि वे जीवित होते तो देश का विभाजन कभी नहीं होने देते, नेताजी इसका विरोध करते.

आजादी के लिए नेताजी का जोश
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का विचार था कि भारत को बिना शर्त पूर्ण स्वतंत्रता दी जानी चाहिए. उनका विचार था कि हमें क्रांतिकारी संघर्ष के माध्यम से स्वतंत्रता प्राप्त करनी चाहिए. उनका दृढ़ विश्वास था कि महात्मा गांधी की अहिंसा की अवधारणा पर्याप्त नहीं थी और इसलिए वे इस बात का बचाव करते थे कि स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए शारीरिक संघर्ष की आवश्यकता है. उनका संघर्ष स्वतंत्रता प्राप्त करने के मुख्य कारणों में से एक है.

  • अंग्रेजों के खिलाफ नेताजी के अधिक कट्टरपंथी विचार ने उन्हें कई बार सलाखों के पीछे पहुंचाया था.
  • नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत के सबसे प्रतिष्ठित चेहरों में से एक हैं. हर राजनीतिक संगठन एक उज्जवल भविष्य के लिए विकास की चाह में निरंतर कोशिश करता रहता है.
  • प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी नेताजी का जन्म ओडिशा के कटक में हुआ था और वह प्रसिद्ध आजाद हिंद फौज के संस्थापक थे.
  • बोस एक वास्तविक नायक थे, जो धार्मिक सद्भाव और नारी शक्ति के लिए हमेशा डटकर लड़े.
  • 1940 के दशक में सुभास चंद्र बोस ने मांस व अन्य कुछ सामग्रियों का विरोध किया था.
  • नेताजी इस बात को लेकर काफी उत्सुक थे कि विभिन्न धार्मिक समुदायों के सदस्यों को अन्य धर्म के बारे में और अधिक जानने की कोशिश करनी चाहिए.
  • वह चाहते थे कि हर समुदाय के लोग आपस में मेलजोल बनाए रखें.
  • नेताजी का कहना था कि हर धर्म के लोगों को एक-दूसरे के सभी समारोहों में शामिल होना चाहिए और उनके सुख-दुख उनका साथी बनना चाहिए.
  • उन दिनों नेताजी ने युवा लड़कियों को स्वतंत्रता आंदोलन में सबसे आगे रहने के लिए प्रेरित किया था.
  • नेताजी की चेतना और उनके कार्य इतने महान थे कि, आज भी कई भारतीयों का ये मानना ​​है कि वह अभी भी हमारे भीतर जीवित हैं.
  • देश को आजाद कराने को आजाद हिंद फौज का सपना पूरा करने की दिशा में सुभाष चंद्र बोस ने मजदूरों को एकजुट कर कदम बढ़ाए थे.
  • नेताजी ने नबाद में 1930 में देश की पहली रजिस्टर्ड मजदूर यूनियन कोल माइनर्स टाटा कोलियरी मजदूर संगठन की स्थापना की थी.
  • नेताजी का वर्ष 1930 से 1941 के बीच सुभाष चंद्र बोस कई बार धनबाद आगमन हुआ था.

1943 में नेताजी ने किया था आजाद हिंद फौज का नेतृत्व
तीन मई 1939 को सुभाषचंद्र बोस ने कलकत्ता में फॉरवर्ड ब्लाक की स्थापना की. सितंबर 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान आजाद हिंद फौज ने जापानी सेना के सहयोग से भारत पर आक्रमण किया. अपनी फौज को प्रेरित करने के लिए नेताजी ने दिल्ली चलो का नारा दिया. 1943 में उन्होंने आजाद हिंद फौज का नेतृत्व संभाला और उसी समय से उन्हें नेताजी की उपाधि दी गई.

Last Updated : Jan 23, 2021, 9:19 AM IST
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