नई दिल्ली: सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग को प्रमोशन में आरक्षण देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को फैसला सुना दिया. कोर्ट ने अपने पहले के फैसलों में तय आरक्षण के पैमानों को बदलने से मना कर दिया.
जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने कहा कि राज्य सरकारें प्रमोशन में आरक्षण दे सकती हैं लेकिन ऐसा करने से पहले उसे आंकड़े जुटाने होंगे. साथ में यह निर्देश दिए कि सरकार को समय-समय पर इस बात की समीक्षा जरूर करनी चाहिए कि नौकरियों में अनुसूचित जाति और जनजातियों को सही प्रतिनिधित्व मिला है या नहीं. समीक्षा के लिए अवधि भी तय होनी चाहिए. कोर्ट ने डाटा या रिव्यू का समय तय करने का दायित्व राज्यों की सरकार पर छोड़ दिया है
2006 में कोर्ट ने प्रमोशन में एम.नागराज मामले में सुनवाई के बाद आरक्षण के लिए तीन पैमाने तय किए थे, जिसका राज्य सरकारें विरोध कर रही थी. कोर्ट के तय पैमानों के अनुसार प्रमोशन में आरक्षण के लिए अनुसूचित जाति और जनजाति का सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा होना जरूरी है. मगर इससे पहले यह देखना होगा कि सरकारी पदों पर एससी-एसटी वर्ग का सही प्रतिनिधित्व नहीं है और आरक्षण की इस पॉलिसी से प्रशासनिक कामकाज पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.
वर्ष 2006 में आए एम.नागराज फैसले को आधार बनाकर कुछ राज्यों में वर्ष 1994 वालों को पदावनत (रिवर्ड) कर दिया था. एम नागराज मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा था कि सरकार को प्रोन्नति में आरक्षण देने से पहले अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के आंकड़ें जुटाने होंगे. यानी सभी राज्य सरकारों को प्रमोशन में आरक्षण देने से पहले संवर्गवार, वर्गवार और विभागवार डाटा उपलब्ध कराना होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर राज्य के अपने अनूठे मुद्दे हैं, इसलिए राज्यवार मामलों की सुनवाई होगी. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि वे राज्यों के लिए अनूठे मुद्दों की पहचान करें और दो हफ्ते के भीतर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करें. कोई भी फैसला करने से पहले उच्च पदों पर नियुक्ति का आंकड़ा जुटाना जरूरी है यानी प्रमोशन में आरक्षण के मामले में यथास्थिति बरकरार रहेगी. सुप्रीम कोर्ट ने 6 बिंदू तय किए हैं. इसके आधार पर देखा जाएगा कि केंद्र या राज्य सरकार ने क्या किया है? ऐसे मामलों की सुनवाई अब 24 फरवरी से होगी.
सुप्रीम कोर्ट तक कैसे पहुंचा मामला
2016 में मध्यप्रदेश के जबलपुर हाईकोर्ट ने प्रमोशन में आरक्षण पर रोक लगा दी थी, जिसके चलते सैकड़ों कर्मचारी बिना प्रमोशन का लाभ लिए ही रिटायर हो गए. इस फैसले के खिलाफ मध्यप्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई. इस मामले में देश भर से 133 याचिकाएं दाखिल की गई थीं, सभी याचिकाओं में राज्य के स्तर पर जटिल समस्याओं और आरक्षण की कठिनाइयों को उठाया गया था. सुप्रीम कोर्ट से केंद्र और राज्य सरकारों ने अधिकारियों- कर्मचारियों के रिजर्वेशन इन प्रमोशन के मुद्दे पर तत्काल सुनवाई की मांग की थी.
बता दें कि पिछले साल जून में केंद्र सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में याचिका दायर करके अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के पुराने आदेश पर स्पष्टीकरण मांगा था. इससे पहले के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने प्रमोशन में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था. सरकार ने दलील थी कि जनवरी, 2020 तक के करीब 1.3 लाख प्रमोशन रुके पड़े हैं. पदोन्नति में आरक्षण को लेकर दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2021 में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.