हैदराबाद : फोटोग्राफी एक कला है, जिसके पीछे जटिल विज्ञान और लंबा इतिहास है. हर वर्ष 19 अगस्त को विश्व फोटोग्राफी दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य इस कला और उसके पीछे के इतिहास की सराहना करने के साथ-साथ उसके विज्ञान को भी समझना है. इस दिन विश्वभर में फोटोग्राफी पर चर्चा होती है, जिसका उद्देश्य लोगों को फोटोग्राफी करने के लिए प्रेरित करना है. यही नहीं, इस दिन क्षेत्र के अग्रदूतों को भी याद किया जाता है, जिनकी वजह से आज यह कला लोगों के बीच इतनी लोकप्रिय है.
1837 में लुइस डागुएरे (Louis Daguerre) और जोसेफ नाइसफोर नीप्स (Joseph Nicephore Niepce) द्वारा किए गए एक आविष्कार के प्रचलित होने के बाद विश्व फोटोग्राफी दिवस की शुरुआत हुई. उस आविष्कार को डागुएरेटाइप प्रोसेस (Daguerreotype process) के नाम से जाना जाता है.
19वीं सदी की शुरुआत से ही फोटोग्राफी लोगों के बीच लोकप्रिय हो गई थी. दुनियाभर में अनगिनत लोग अभिव्यक्ति और सराहाना के लिए इसका उपयोग कर रहे थे. इस कला के माध्यम से कलाकार दर्शक को वैसी दुनिया दिखा सकता है जैसी वह खुद देखता है. फोटोग्राफी के माध्यम से कलाकार किसी भी साधारण वस्तु को अपने परिपेक्ष्य से दिखाकर उसके असाधारण पक्ष पर प्रकाश डाल सकता है.
फोटोग्राफी की मदद से दुनिया को देखने का नया और अगल नजरिया मिलता है. इससे दुनिया, लोगों और उनसे जुड़ी भावनाओं को देखने और समझने के नए अवसर मिले हैं. कलाकारों के लिए यह जीवन को जीने के का तरीका है. यह न सिर्फ एक कला है बल्कि यह संचार के सबसे कुशल माध्यमों में से एक भी है.
तस्वीरें अतीत में सैर करने का जरिया हैं. कई सौ वर्ष पुरानी तस्वीर आज भी उतनी जीवंत होगी जितनी वह तब थी जब वह ली गई थी. तस्वीरों में कैद की गई भावनाएं और यादें आने वाली कई सदियों तक जीवंत रहेंगी.
इस कला ने कई सौ वर्षों का लंबा सफर तय किया है. आज के समय में सभी की जेब में कैमरा है, लेकिन शुरुआती दिनों में यह इतना आम नहीं था. हम सभी को याद होगा कि कुछ वर्षों पहले तक तस्वीरें सिर्फ खास मौकों पर ली जाती थीं. कैसे परिवार के सभी लोग तैयार होते थे और सभी की जगह पहले से तय रहती थी. आंखों को खोले रखने पर खास ध्यान दिया जाता था क्योंकि तब फोटो को डिलीट करने का कोई विकल्प नहीं होता था.
स्मार्टफोन के आने के बाद से तस्वीरें खींचने और उनको संजोने के तरीकों में नाटकीय परिवर्तन आए हैं. अब फोटो खींचना, खिंचवाना या खुद खींचना (सेल्फी) आम बात है. इस सबके बीच शायद हम यह भूलते जा रहे हैं कि यही वह कला है, जिसने क्रांति ला दी थी.
20वीं शताब्दी में कैमरे और फोटोग्राफी में कई बदलाव आए. उन्नत तकनीक के कारण आज के कैमरे सस्ते और अच्छे हैं, जो फोटोग्राफी के लोकप्रिय होने के प्रमुख कारणों में से एक है.
फोटोग्राफी क्या है
एक तस्वीर अपने अंदर लम्हे, यादें, अनगिनत भावनाएं और विचार समेटे हुए होती है. इसी वजह से एक तस्वीर को हजार शब्दों के बराबर माना जाता है. यह भावों को तेजी से और कई बार शब्दों से बेहतर तरीके से व्यक्त कर सकती है.
फोटोग्राफी एक व्यापक विषय है. कुछ शब्दों में इसके सार को पिरो पाना मुश्किल है. आम जनों की भाषा में यह प्रकाश को कैद करने की कला है, जिससे तस्वीर बनती है. आज के समय में पांच में से कम से कम एक व्यक्ति को फोटोग्राफी का शौक होता है. इसका मुख्य कारण तकनीक में हो रहा विकास है. इसके अलावा आज की पीढ़ी को तस्वीरों के माध्यम से अपने अनुभवों को सोशल मीडिया पर साझा करना पसंद है.
फोटोग्राफी के कई प्रकार हैं, जैसे-
• लैंडस्केप फोटोग्राफी
• पोर्ट्रेट फोटोग्राफी
• वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी
• टैवल फोटोग्राफी
• स्ट्रीट फोटोग्राफी
• मैक्रो फोटोग्राफी
विश्व फोटोग्राफी दिवस का इतिहास और उससे जुड़ी कुछ रोचक बातें
• विश्व फोटोग्राफी दिवस की शुरुआत 1837 में एक आविष्कार के बाद हुई थी.
• 1826 में हीलियोग्राफी नाम की प्रक्रिया से विश्व की पहली फोटो खींची गई थी या यूं कहें कि बनाई गई थी. नीप्स (Niepce) नाम के व्यक्ति ने यह फोटो खींची थी. शॉट के लिए आठ घंटे का एक्पोजर लगा था. उसे 'View from the Window at Le Gras' के नाम से जाना जाता है.
• खगोल विज्ञानी सर जॉन हरस्चेल (Sir John Herschel) ने 1839 में पहली बार फोटोग्राफ शब्द का प्रयोग किया था.
• नौ जनवरी 1839 को फ्रांस की विज्ञान अकादमी ने डागुएरेटाइप प्रोसेस (Daguerreotype process) की घोषणा की थी. उसी वर्ष 19 अगस्त को फ्रांस की सरकार ने इसका पेटेंट खरीदकर उसे सार्वजनिक कर दिया.
• विश्व की सबसे पहली रंगीन फोटो वर्ष 1861 में थॉमस सटॉन (Thomas Sutton) ने ली थी. उन्होंने लाल, हरे व नीले फिल्टर और तीन ब्लैक एंड ह्वाइट फोटो का इस्तेमाल करके फोटो खींची थी. हालांकि, वह फोटो उतनी प्रभावी नहीं थी.
• वर्ष 1839 में विश्व की पहली सेल्फी ली गई थी. अमेरिका के रॉबर्ट कॉर्नेलियस (Robert Cornelius) ने यह सेल्फी ली थी.
• कोडैक के इंजीनियर ने डिजिटल कैमरे का आविष्कार किया था, उससे करीब 20 वर्ष पहले 1957 में पहली डिजिटल फोटो ली गई थी. यह तस्वीर फिल्म पर ली गई फोटो का डिजिटल स्कैन थी. इसका रेजोल्यूशन 176x176 था.
• कोडैक के इंजीनियर स्टीव सैसन (Steve Sasson) ने वर्ष 1975 में डिजिटल कैमरे का आविष्कार किया था. उस कैमरे का वजन आठ पाउंड या 3.6 किलोग्राम था. 0.01 मेगापिक्सल के कैमरे ने 23 सेकंड में पहली फोटो ली थी.
• 19 अगस्त, 2010 को पहली बार ऑनलाइन फोटो गैलेरी की प्रदर्शनी लगाई गई थी. इसमें करीब 270 कलाकारों ने अपनी तस्वीरें लगाई थीं और दुनियाभर के 100 से ज्यादा देशों से लोगों ने इसे वेबसाइट पर देखा था. इसी के साथ ही पहली बार आधकारिक रूप से विश्व फोटोग्राफी दिवस मनाया गया.
• स्मार्टफोन के आने के बाद से हर रोज विश्वभर में 350 बिलियन तस्वीरें खींची जाती हैं.
• एंटीक कैमरों का सबसे बड़ा कलेक्शन मुंबई के दिलिश पारेख (Dilish Parekh) के पास है. पारेख के पास 4,425 एंटीक कैमरे हैं.
• फेसबुक पर 250 बिलियन से ज्यादा तस्वीरें अपलोड की गई हैं. इसके अलावा इंस्टाग्राम पर हर रोज औसतन 58,000,000 तस्वीरें अपलोड होती हैं.
पुलित्जर पुरस्कार 2020
पत्रकारिता के क्षेत्र में दिए जाने वाले श्रेष्ठतम पुस्कारों में से एक है पुलित्जर पुरस्कार. पत्रकारों को यह पुरस्कार वर्ष 1917 से दिया जा रहा है. अमेरिका के अखबार प्रकाशक जोसेफ पुलित्जर की याद में यह पुरस्कार दिया जाता है.
वर्ष 2020 में तीन भारतीय फोटो-जर्नलिस्ट्स को पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. इनमें दार यासीन (Dar Yasin), मुख्तार खान (Mukhtar Khan) और चन्नी आनंद (Channi Anand) शामिल हैं.
जम्मू-कश्मीर को विषेश दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 और 35ए के हटाए जाने के बाद की कवरेज के लिए सभी फोटोग्राफर को पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
फोटोग्राफी में बड़े नाम
इस क्षेत्र से जुड़े सभी लोगों का उल्लेख कर पाना मुश्किल है. इस लेख में कुछ बड़े नामों का जिक्र किया गया है, जिनका इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान रहा है.
एंसल एडम्स (Ansel Adams)
अमेरिकी फोटोग्राफर एंसल एडम्स को ब्लैक एंड व्हाइट लैंडस्केप फोटोग्राफी के लिए जाना जाता है. इतिहास में एडम्स का नाम सबसे महान फोटोग्राफरों में गिना जाता है. उनकी कला ने ब्लैक एंड व्हाइट लैंडस्केप फोटोग्राफी की लोकप्रियता को नई ऊचाइयों तक पहुंचाया.
हेनरी कार्टर-ब्रेसन (Henri Cartier-Bresson)
हेनरी कार्टर-ब्रेसन को फोटो-पत्रकारिता का जनक माना जाता है. उनकी कैंडिड पोर्ट्रेट और स्ट्रीट फोटोग्राफी ने लाखों की कल्पनाओं को संजोया है. हेनरी ने इतिहास की कुछ सबसे प्रमुख घटनाओं को भी अपने कैमरे में कैद किया है. इनमें चीनी क्रांति और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका में आए सामाजिक और आर्थिक बदलाव शामिल हैं.
डोरोथिया लेंज (Dorothea Lange)
महिला फोटो-पत्रकारों में लेंज का नाम सबसे ऊपर है. वह अपनी डॉक्यूमेंट्री स्टाइल के लिए जानी जाती हैं. अमेरिका के इतिहास में आए बदलावों को उन्होंने अपने कैमरे में बखूबी कैद किया है. लेंज की कला ने दर्शाया कि एक कैमरे में कितना कुछ कहने की ताकत होती है.
अल्फ्रेड स्टिगलिट्ज (Alfred Stieglitz)
अल्फ्रेड स्टिगलिट्ज के काम ने 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में फोटोग्राफी को एक कला के रूप में लोकप्रिय बनाया. वह खास तौर पर पोर्ट्रेट फोटोग्राफी के लिए जाने जाते थे.
कोरोना महामारी और फोटोग्राफर
कोरोना वायरस से फैली महामारी ने दुनियाभर में लोगों की आजीविका को प्रभावित किया है. फोटोग्राफर भी इससे बच नहीं पाए हैं. महामारी ने वाइल्डलाइफ या वन्यजीवों की फोटो लेने वाले फोटोग्राफरों की मुश्किलों को और भी बढ़ा दिया है. दुर्लभ वन्यजीवों को कैमरे में कैद करने के लिए उन्हें साल का ज्यादातर समय जंगलों में बिताना पड़ता है, लेकिन महामारी के चलते सभी अपने घरों में बंद हैं.
शादियों में फोटो खींचना सबसे जरूरी समझा जाता है. कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए लागू नियमों के कारण ज्यादातर आयोजनों को अनिश्चितकाल तक के लिए स्थगित कर दिया गया है. इससे फ्रीलांस और इवेंट फोटोग्राफरों की आजीविका पर संकट पैदा हो गया है. इसके अलावा ट्रैवल और कॉर्पोरेट फोटोग्राफरों पर भी अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं.