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फर्जी डिग्री का खेल, मिल रही पनाह

देश भर में फर्जी डिग्री का जाल फैला हुआ है. आप कहीं भी चले जाइए, पैसे खर्च कीजिए, आपको घर बैठे डिग्री मिल जाएगी, दूसरी ओर मेहनती छात्र हैं, जो दिन-रात पढ़ाई कर कुछ हासिल करना चाहते हैं. ऐसे छात्रों के सामने बड़ी अजीबो-गरीब स्थिति उत्पन्न हो जाती है. आइए एक नजर डालते हैं, फर्जी डिग्री के इस खेल और इसको मिल रहे संरक्षण पर.

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Published : Oct 23, 2019, 6:26 PM IST

डिग्री प्राप्त करने के लिए पढ़ाई करनी पड़ती है, लेकिन वे छात्र जो पिछले दरवाजे का रास्ता पसंद करते हैं, वैसे लोग डिग्री खरीदते हैं. किसी भी कोर्स का अध्ययन करने में समय लगता है. कक्षाओं में पूरी उपस्थिति की ज़रुरत होती है. हर साल परीक्षा का सामना करना होता है. अच्छे अंक प्राप्त करते हैं. अतिरिक्त कौशल का आधार हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत भी करनी पड़ती हैं. वे लोग जिनके पास इस तरह का धैर्य नहीं होता कि वे कॉलेज जाएं या परीक्षाओं में सफल हों, उनको डिग्री हासिल कराने के लिए, ऐसे कई गिरोह हैं जो नकली डिग्री बेच रहे हैं.

भारत में शिक्षा एक मुनाफेवाला व्यवसाय है. ऐसे में इस तरह के उपभोक्ता और व्यापारी बढ़ रहे हैं. परिणामस्वरूप, देश में नकली डिग्रियों बाढ़ आई हुई है. देश के सभी कोनों में दसवीं, इंटर और डिग्री के प्रमाणपत्रों की जरुरत पूरी करने वाली फर्जी संस्थाएं फलफूल रहीं हैं. मात्र 10,000- 15,000 रुपये देकर, चुटकी बजाते ही नकली डिग्री प्राप्त की जा सकती है. स्नातक, स्नातकोत्तर और अभियान्त्रिकी यानि इंजीनियरिंग की डिग्री को हासिल करने के लिए सिर्फ़ 20,000 से 75,000 रुपये खर्च करने होते हैं.

ये गिरोह आपकी पसंद के विश्वविद्यालय के नाम से प्रमाण पत्र दिला सकते हैं. एक साल पहले, एक ऐसा ही घोटाला सामने आया था, जिसमें तेलुगु राज्यों में निजी विश्वविद्यालयों के नाम से जाली परामर्श केन्द्रों के माध्यम से पीएचडी की डिग्री जारी की गई थी.

जवाहरलाल नेहरु टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने घोटाले की जांच के आदेश दिए थे. पूर्व राज्यपाल, नरसिम्हन, ने ऐसे फर्जी डिग्रियों के जरिए नियुक्त व्याख्याताओं की जांच के आदेश दिए थे. मगर इस मामले में कोई प्रगति नहीं हुई.

हाल ही में, ईनाडु-ईटीवी ने पीएचडी घोटाले के रहस्यों की तह तक जाने के लिए एक ऑपरेशन किया. हैदराबाद में लगभग 10 ऐसे परामर्श केंद्र हैं, जिनके माध्यम से अन्नामलाई विश्वविद्यालय, तमिलनाडु और बैंगलोर विश्वविद्यालय, कर्नाटक में दाखिला लेने वाले उम्मीदवारों को प्रोफेसरों और अनुसंधान विद्वानों द्वारा संपर्क किया गया है, वे कहते हैं कि वे उन्हें वांछित प्रमाण पत्र प्राप्त कराने में मदद कर सकते हैं.

एमटेक उम्मीदवारों के लिए नकली पीएचडी डिग्री के बारे में जांच किए जाने के बाद, उत्तर प्रदेश स्थित, श्रीवेंकटेश्वर विश्वविद्यालय में हुए घोटाले का भी पर्दाफाश हुआ है. यदि आप 4,00,000 की कीमत चुकाते है तो, यह परामर्श केंद्र आपको मात्र 6 महीने के भीतर सिनोप्सिस, शोध प्रबंध और इंजीनियरिंग में पीएचडी की डिग्री प्राप्त करा देंगे. चूंकि घोटाले का खुलासा हो गया, इसलिए परामर्श केन्द्रों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की गई.

ये भी पढ़ें : अयोध्या भूमि विवादः समाधान की ओर बढ़ते 'सुप्रीम' कदम

देश भर में ऐसे हजारों अवैध परामर्श केंद्र हैं. आधिकारिक गणना के अनुसार, शैक्षणिक वर्ष 2010-11 में 78,000 छात्रों ने पीएचडी प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की. अगले 7 वर्षों के भीतर, यह संख्या बढ़कर 1,60,000 हो गई. यूजीसी का कहना है कि अनुसंधान की गुणवत्ता से स्तर में गिरावट आई है. नकली पीएचडी प्रमाणपत्र प्राप्त करवाना एक लघु उद्योग बन गया है. राजस्थान में, एक वर्ष की अवधि में पीएचडी में प्रवेश 70 प्रतिशत बढ़ गया है.

अखिल भारतीय उच्चतर शिक्षा सर्वेक्षण (एआईएसएचई) ने इस तरह के उछाल के पीछे के कारण की जांच की और माना कि राज्य के चार निजी विश्वविद्यालय फर्जी प्रमाण पत्र प्रदान कर रहे हैं. उन विश्वविद्यालयों में न तो योग्य प्रोफेसर हैं और न ही कोई उम्मीदवारों की नामावली हैं.

ये भी पढ़ें: भारत में तटीय क्षेत्रों का नियमन किस तरह होता है, विस्तार से समझें

एक जांच समिति ने मध्य प्रदेश के बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय द्वारा सम्मानित की गई 20 डॉक्टरेट डिग्रियों को रद्द कर दिया. कश्मीर में डॉक्टरेट उपाधि से सम्मानित किया जाने वाला पांचवा हिस्सा फर्जी है. 10 मिनट के भीतर फर्जी प्रमाण पत्र दिलाने वाले गिरोह के पकड़े जाने के बाद पुलिस विभाग हैरान रह गया है. कुछ महीने पहले, गुड़ीवाड़ा में सैकड़ों फर्जी डिप्लोमा और डिग्री प्रमाण पत्र बाँटे जा रहे थे. ये सभी उदाहरण स्थिति की गंभीरता को दर्शाते हैं.

तीन साल पहले, नेपाल सरकार ने 35 सरकारी डॉक्टरों को बर्खास्त कर दिया था, क्योंकि उनपर बिहार से जाली डिग्री हासिल करने का आरोप था. थाईलैंड के उच्च शिक्षा मंत्रालय ने मगध विश्वविद्यालय, बिहार द्वारा प्रदान की गई 40 डॉक्टरेट उपाधियों की मान्यता रद्द दी थी. फर्जी सर्टिफिकेट रैकेट और शिक्षा के गिरते स्तर से देश की छवि लगातार धूमिल हो रही है, उसके बावजूद कोई कार्य योजना बनती नज़र नहीं आ रही है. जब तक फर्जी प्रमाणपत्रों पर सख्त अंकुश नहीं लगाए जाते, तब तक इन घोटालों का अंत होना नामुमकिन है.

डिग्री प्राप्त करने के लिए पढ़ाई करनी पड़ती है, लेकिन वे छात्र जो पिछले दरवाजे का रास्ता पसंद करते हैं, वैसे लोग डिग्री खरीदते हैं. किसी भी कोर्स का अध्ययन करने में समय लगता है. कक्षाओं में पूरी उपस्थिति की ज़रुरत होती है. हर साल परीक्षा का सामना करना होता है. अच्छे अंक प्राप्त करते हैं. अतिरिक्त कौशल का आधार हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत भी करनी पड़ती हैं. वे लोग जिनके पास इस तरह का धैर्य नहीं होता कि वे कॉलेज जाएं या परीक्षाओं में सफल हों, उनको डिग्री हासिल कराने के लिए, ऐसे कई गिरोह हैं जो नकली डिग्री बेच रहे हैं.

भारत में शिक्षा एक मुनाफेवाला व्यवसाय है. ऐसे में इस तरह के उपभोक्ता और व्यापारी बढ़ रहे हैं. परिणामस्वरूप, देश में नकली डिग्रियों बाढ़ आई हुई है. देश के सभी कोनों में दसवीं, इंटर और डिग्री के प्रमाणपत्रों की जरुरत पूरी करने वाली फर्जी संस्थाएं फलफूल रहीं हैं. मात्र 10,000- 15,000 रुपये देकर, चुटकी बजाते ही नकली डिग्री प्राप्त की जा सकती है. स्नातक, स्नातकोत्तर और अभियान्त्रिकी यानि इंजीनियरिंग की डिग्री को हासिल करने के लिए सिर्फ़ 20,000 से 75,000 रुपये खर्च करने होते हैं.

ये गिरोह आपकी पसंद के विश्वविद्यालय के नाम से प्रमाण पत्र दिला सकते हैं. एक साल पहले, एक ऐसा ही घोटाला सामने आया था, जिसमें तेलुगु राज्यों में निजी विश्वविद्यालयों के नाम से जाली परामर्श केन्द्रों के माध्यम से पीएचडी की डिग्री जारी की गई थी.

जवाहरलाल नेहरु टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने घोटाले की जांच के आदेश दिए थे. पूर्व राज्यपाल, नरसिम्हन, ने ऐसे फर्जी डिग्रियों के जरिए नियुक्त व्याख्याताओं की जांच के आदेश दिए थे. मगर इस मामले में कोई प्रगति नहीं हुई.

हाल ही में, ईनाडु-ईटीवी ने पीएचडी घोटाले के रहस्यों की तह तक जाने के लिए एक ऑपरेशन किया. हैदराबाद में लगभग 10 ऐसे परामर्श केंद्र हैं, जिनके माध्यम से अन्नामलाई विश्वविद्यालय, तमिलनाडु और बैंगलोर विश्वविद्यालय, कर्नाटक में दाखिला लेने वाले उम्मीदवारों को प्रोफेसरों और अनुसंधान विद्वानों द्वारा संपर्क किया गया है, वे कहते हैं कि वे उन्हें वांछित प्रमाण पत्र प्राप्त कराने में मदद कर सकते हैं.

एमटेक उम्मीदवारों के लिए नकली पीएचडी डिग्री के बारे में जांच किए जाने के बाद, उत्तर प्रदेश स्थित, श्रीवेंकटेश्वर विश्वविद्यालय में हुए घोटाले का भी पर्दाफाश हुआ है. यदि आप 4,00,000 की कीमत चुकाते है तो, यह परामर्श केंद्र आपको मात्र 6 महीने के भीतर सिनोप्सिस, शोध प्रबंध और इंजीनियरिंग में पीएचडी की डिग्री प्राप्त करा देंगे. चूंकि घोटाले का खुलासा हो गया, इसलिए परामर्श केन्द्रों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की गई.

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देश भर में ऐसे हजारों अवैध परामर्श केंद्र हैं. आधिकारिक गणना के अनुसार, शैक्षणिक वर्ष 2010-11 में 78,000 छात्रों ने पीएचडी प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की. अगले 7 वर्षों के भीतर, यह संख्या बढ़कर 1,60,000 हो गई. यूजीसी का कहना है कि अनुसंधान की गुणवत्ता से स्तर में गिरावट आई है. नकली पीएचडी प्रमाणपत्र प्राप्त करवाना एक लघु उद्योग बन गया है. राजस्थान में, एक वर्ष की अवधि में पीएचडी में प्रवेश 70 प्रतिशत बढ़ गया है.

अखिल भारतीय उच्चतर शिक्षा सर्वेक्षण (एआईएसएचई) ने इस तरह के उछाल के पीछे के कारण की जांच की और माना कि राज्य के चार निजी विश्वविद्यालय फर्जी प्रमाण पत्र प्रदान कर रहे हैं. उन विश्वविद्यालयों में न तो योग्य प्रोफेसर हैं और न ही कोई उम्मीदवारों की नामावली हैं.

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एक जांच समिति ने मध्य प्रदेश के बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय द्वारा सम्मानित की गई 20 डॉक्टरेट डिग्रियों को रद्द कर दिया. कश्मीर में डॉक्टरेट उपाधि से सम्मानित किया जाने वाला पांचवा हिस्सा फर्जी है. 10 मिनट के भीतर फर्जी प्रमाण पत्र दिलाने वाले गिरोह के पकड़े जाने के बाद पुलिस विभाग हैरान रह गया है. कुछ महीने पहले, गुड़ीवाड़ा में सैकड़ों फर्जी डिप्लोमा और डिग्री प्रमाण पत्र बाँटे जा रहे थे. ये सभी उदाहरण स्थिति की गंभीरता को दर्शाते हैं.

तीन साल पहले, नेपाल सरकार ने 35 सरकारी डॉक्टरों को बर्खास्त कर दिया था, क्योंकि उनपर बिहार से जाली डिग्री हासिल करने का आरोप था. थाईलैंड के उच्च शिक्षा मंत्रालय ने मगध विश्वविद्यालय, बिहार द्वारा प्रदान की गई 40 डॉक्टरेट उपाधियों की मान्यता रद्द दी थी. फर्जी सर्टिफिकेट रैकेट और शिक्षा के गिरते स्तर से देश की छवि लगातार धूमिल हो रही है, उसके बावजूद कोई कार्य योजना बनती नज़र नहीं आ रही है. जब तक फर्जी प्रमाणपत्रों पर सख्त अंकुश नहीं लगाए जाते, तब तक इन घोटालों का अंत होना नामुमकिन है.

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फर्जी डिग्री का खेल, मिल रही पनाह



डिग्री प्राप्त करने के लिए पढ़ाई करनी पड़ती है, लेकिन वे छात्र जो पिछले दरवाजे का रास्ता पसंद करते हैं, वैसे लोग डिग्री खरीदते हैं. किसी भी कोर्स का अध्ययन करने में समय लगता है. कक्षाओं में पूरी उपस्थिति की ज़रुरत होती है. हर साल परीक्षा का सामना करना होता है.  अच्छे अंक प्राप्त करते हैं. अतिरिक्त कौशल का आधार हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत भी करनी पड़ती हैं. वे लोग जिनके पास इस तरह का धैर्य नहीं होता कि वे कॉलेज जाएं या परीक्षाओं में सफल हों, उनको डिग्री हासिल कराने के लिए, ऐसे कई गिरोह हैं जो नकली डिग्री बेच रहे हैं.



भारत में शिक्षा एक मुनाफेवाला व्यवसाय है. ऐसे में इस तरह के उपभोक्ता और व्यापारी बढ़ रहे हैं. परिणामस्वरूप, देश में नकली डिग्रियों बाढ़ आई हुई है. देश के सभी कोनों में दसवीं, इंटर और डिग्री के प्रमाणपत्रों की जरुरत पूरी करने वाली फर्जी संस्थाएं फलफूल रहीं हैं. मात्र 10,000- 15,000 रुपये देकर, चुटकी बजाते ही नकली डिग्री प्राप्त की जा सकती है. स्नातक, स्नातकोत्तर और अभियान्त्रिकी यानि इंजीनियरिंग की डिग्री को हासिल करने के लिए सिर्फ़ 20,000 से 75,000 रुपये खर्च करने होते हैं. 



ये गिरोह आपकी पसंद के विश्वविद्यालय के नाम से प्रमाण पत्र दिला सकते हैं. एक साल पहले, एक ऐसा ही घोटाला सामने आया था, जिसमें तेलुगु राज्यों में निजी विश्वविद्यालयों के नाम से जाली परामर्श केन्द्रों के माध्यम से पीएचडी की डिग्री जारी की गई थी. 



जवाहरलाल नेहरु टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने घोटाले की जांच के आदेश दिए थे. पूर्व राज्यपाल, नरसिम्हन, ने ऐसे फर्जी डिग्रियों के जरिए नियुक्त व्याख्याताओं की जांच के आदेश दिए थे. मगर इस मामले में कोई प्रगति नहीं हुई. 



हाल ही में, ईनाडु-ईटीवी ने पीएचडी घोटाले के रहस्यों की तह तक जाने के लिए एक ऑपरेशन किया. हैदराबाद में लगभग 10 ऐसे परामर्श केंद्र हैं, जिनके माध्यम से अन्नामलाई विश्वविद्यालय, तमिलनाडु और बैंगलोर विश्वविद्यालय, कर्नाटक में दाखिला लेने वाले उम्मीदवारों को प्रोफेसरों और अनुसंधान विद्वानों द्वारा संपर्क किया गया है, वे कहते हैं कि वे उन्हें वांछित प्रमाण पत्र प्राप्त कराने में मदद कर सकते हैं. 

एमटेक उम्मीदवारों के लिए नकली पीएचडी डिग्री के बारे में जांच किए जाने के बाद, उत्तर प्रदेश स्थित, श्रीवेंकटेश्वर विश्वविद्यालय में हुए घोटाले का भी पर्दाफाश हुआ है. यदि आप 4,00,000 की कीमत चुकाते है तो, यह परामर्श केंद्र आपको मात्र 6 महीने के भीतर सिनोप्सिस, शोध प्रबंध और इंजीनियरिंग में पीएचडी की डिग्री प्राप्त करा देंगे. चूंकि घोटाले का खुलासा हो गया, इसलिए परामर्श केन्द्रों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की गई. 

देश भर में ऐसे हजारों अवैध परामर्श केंद्र हैं. आधिकारिक गणना के अनुसार, शैक्षणिक वर्ष 2010-11 में 78,000 छात्रों ने पीएचडी प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की. अगले 7 वर्षों के भीतर, यह संख्या बढ़कर 1,60,000 हो गई. यूजीसी का कहना है कि अनुसंधान की गुणवत्ता से स्तर में गिरावट आई है. नकली पीएचडी प्रमाणपत्र प्राप्त करवाना एक लघु उद्योग बन गया है. राजस्थान में, एक वर्ष की अवधि में पीएचडी में प्रवेश 70 प्रतिशत बढ़ गया है. अखिल भारतीय उच्चतर शिक्षा सर्वेक्षण (एआईएसएचई) ने इस तरह के उछाल के पीछे के कारण की जांच की और माना कि राज्य के चार निजी विश्वविद्यालय फर्जी प्रमाण पत्र प्रदान कर रहे हैं. उन विश्वविद्यालयों में न तो योग्य प्रोफेसर हैं और न ही कोई उम्मीदवारों की नामावली हैं. 

एक जांच समिति ने मध्य प्रदेश के बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय द्वारा सम्मानित की गई 20 डॉक्टरेट डिग्रियों को रद्द कर दिया. कश्मीर में डॉक्टरेट उपाधि से सम्मानित किया जाने वाला पांचवा हिस्सा फर्जी है. 10 मिनट के भीतर फर्जी प्रमाण पत्र दिलाने वाले गिरोह के पकड़े जाने के बाद पुलिस विभाग हैरान रह गया है. कुछ महीने पहले, गुड़ीवाड़ा में सैकड़ों फर्जी डिप्लोमा और डिग्री प्रमाण पत्र बाँटे जा रहे थे. ये सभी उदाहरण स्थिति की गंभीरता को दर्शाते हैं.

तीन साल पहले, नेपाल सरकार ने 35 सरकारी डॉक्टरों को बर्खास्त कर दिया था, क्योंकि उनपर बिहार से जाली डिग्री हासिल करने का आरोप था. थाईलैंड के उच्च शिक्षा मंत्रालय ने मगध विश्वविद्यालय, बिहार द्वारा प्रदान की गई 40 डॉक्टरेट उपाधियों की मान्यता रद्द दी थी. फर्जी सर्टिफिकेट रैकेट और शिक्षा के गिरते स्तर से देश की छवि लगातार धूमिल हो रही है, उसके बावजूद कोई कार्य योजना बनती नज़र नहीं आ रही है. जब तक फर्जी प्रमाणपत्रों पर सख्त अंकुश नहीं लगाए जाते, तब तक इन घोटालों का अंत होना नामुमकिन है.


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