ETV Bharat / bharat

कृष्ण जन्माष्टमी : जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि

श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के लिए तैयारियां तेज हो गई हैं. हालांकि इस बार कोरोना महामारी के चलते मंदिरों में बड़े आयोजन नहीं होंगे. 11 अगस्त और 12 अगस्त दोनों दिन जन्माष्टमी मनाई जा रही है.जन्माष्टमी के दिन लोग भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उपवास रखने के साथ ही भजन-कीर्तन और विधि-विधान से पूजा करते हैं.

krishna janmashtami
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
author img

By

Published : Aug 11, 2020, 10:35 AM IST

Updated : Aug 11, 2020, 1:17 PM IST

हैदराबाद : हर बार की तरह इस बार भी भगवान श्री कृष्ण के जन्म उत्सव के मुहूर्त को लेकर संशय की स्थिति बन रही है. अलग-अलग पंचांग और अलग-अलग विद्वान अलग-अलग मुहूर्त बता रहे हैं. इस बारे में मध्य प्रदेश के ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद गौतम ने बताया है कि स्मार्त संप्रदाय और वैष्णव संप्रदाय अलग-अलग मुहूर्त में कृष्ण जन्माष्टमी मनाते हैं. उनकी अपनी परंपराएं भिन्न हैं. जिसके चलते यह स्थिति बनती है. दूसरी तरफ विष्णु के अवतारों में श्रीकृष्ण ऐसे अवतार थे, जो सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन उनका प्रगट होना माना जाता है. भगवान श्रीकृष्ण की जन्म कुंडली क्या कहती है, इस पर भी ज्योतिषाचार्य ने प्रकाश डाला है. आइए जानते हैं कि जन्माष्टमी के मुहूर्त और भगवान कृष्ण की जन्म कुंडली के बारे में....

ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद गौतम के मुताबिक स्मार्त मतानुसार जन्माष्टमी सप्तमी युक्त अष्टमी एवं रोहिणी नक्षत्र का योग के हिसाब मानते हैं. जबकि वैष्णव नवमीं युक्त अष्टमी एवं रोहिणी नक्षत्र के योग को मानते हैं. इसका कारण है कि स्मार्त संप्रदाय के सभी लोग मथुरा वृंदावनवासी साधु संप्रदाय के होते हैं. जिन्हें भगवान कृष्ण के जन्म का पूर्वाभास हो गया था. लिहाजा वहां पर उसी समय हर्षोल्लास मनाया गया था.

Shrubs on Sri Krishna Janmashtami
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर सजी झाकियां

वैष्णव संप्रदाय में विष्णु उपासक इस व्रत को दूसरे दिन प्रातः काल से करते हैं. ज्योतिष संस्थान भोपाल के ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद गौतम के अनुसार इस वर्ष जन्माष्टमी स्मार्तजनों के लिए 11 अगस्त मंगलवार एवं वैष्णव जनों हेतु 12 अगस्त बुधवार को है. वैष्णवजन हेतु 12 अगस्त को सूर्योदय कालीन अष्टमी तिथि एवं अर्ध रात्रि कालीन रोहिणी नक्षत्र का संयोग बन रहा है, यह शुभ और फलदायक है. इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग रात्रि अंत तक रहेगा.

इस दिन प्रात से ही चंद्रमा वृष राशि में प्रवेश कर जाएगा.ज्योतिष मठ संस्थान के अनुसंधान के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का जन्म प्रगट भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र एवं वृष लग्न और वृष राशि के चंद्रमा में अर्धरात्रि के समय हुआ था. तदनुसार इस वर्ष 12 अगस्त की रात्रि में कृष्ण जन्म के सभी योग भाद्रपद,कृष्ण पक्ष, अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र, वृष राशि, वृष लग्न दिन बुधवार की उपस्थिति द्वापर युग में कृष्ण जन्म के योग पैदा कर रही है.

जानिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का महत्व
क्या कहती है श्री कृष्ण की जन्मकुंडलीज्योतिषाचार्य पंडित विनोद गौतम के मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण, राम के समान ही अवतारी पुरुष थे. पूर्ण पुरुष श्रीकृष्ण भगवान परम योगेश्वर थे. शास्त्र, वेद-पुराणों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का प्रकट ईसा से 5000 वर्ष पूर्व भाद्रपद कृष्ण अष्टमी रात्रि के समय रोहिणी नक्षत्र वृष लग्न में हुआ था. वर्तमान में ईस्वी सन् 2020 चल रहा है. अतः पुराणों के अनुसार इस वर्ष भगवान का 7020 वां प्रकट उत्सव है. जन्म कुंडली में पंच महायोग विद्यमान हैं. उनकी जन्म कुंडली वृष लग्न की है.

रोहिणी नक्षत्र में जन्म,चंद्रमा वृष राशि पर है. उनकी जन्म कुंडली के पंचम भाव में स्थित के बुध ने जहां उन्हें वेणुवादक बनाया है. वहीं स्वग्रही गुरू ने नवम भाव में स्थित उच्च के मंगल एवं शत्रु मित्र छठ में भाव में स्थित उच्च के शनि ने परम पराक्रमी बनाया है. चतुर्थ स्थान में स्थित रही सूर्य ने उनके माता-पिता से विरक्त रखा है.इसके अतिरिक्त सप्तमेश मंगल लग्न में स्थित उच्च के चंद्र तथा स्वग्रही शुक्र ने श्री कृष्ण को रसिक शिरोमणि, कला प्रिय तथा सौंदर्य उपासक बनाया है. यही नहीं आय के भाव में स्थित उच्च के बुध और चतुर्थ भाव में स्थित सूर्य ने उन्हें महान पुरुष,शत्रु हंता, तत्व ज्ञानी, जन नायक तथा अमर बनाया है.

मथुरा में 12 अगस्त की मध्य रात्रि में होगा जश्न
उत्तर प्रदेश के मथुरा में जन्माष्टमी का पर्व 12 अगस्त की मध्य रात्रि 12 बजे धूमधाम के साथ मनाया जाएगा. पूर्व के सालों की भांति सभी मंदिरों में विशेष सजावट की जाएगी. चारों तरफ लाइटों से श्री कृष्ण जन्मभूमि का परिसर जगमगा उठेगा. हालांकि महामारी कोविड-19 के चलते इस बार श्रद्धालुओं का प्रवेश मंदिर परिसर में वर्जित है. मंदिर परिसर में विधि-विधान के अनुसार, सभी कार्यक्रम भव्य और दिव्यता के साथ मनाए जाएंगे. भक्त अपने नटखट कन्हैया का जन्मोत्सव मनाने के लिए आतुर हैं. भगवान श्री कृष्ण का 5248वां जन्मोत्सव बड़े हर्षोल्लास के साथ मंदिरों में मनाया जाएगा.

मंदिरों में होगी विशेष सजावट
झिलमिल लाइटों से श्री कृष्ण जन्मभूमि परिसर जगमगा उठेगी. जन्म स्थान के गर्भगृह स्थित भागवत भवन में ढोल नगाड़े, झांझ और शंख ध्वनि से उत्सव मनाया जाएगा. 11 अगस्त शाम 6:30 पर ठाकुर जी के लिए विशेष पोशाक समक्ष भेंट की जाएगी. वहीं 12 अगस्त की सुबह 10 बजे भागवत भवन में पुष्पांजलि कार्यक्रम संपन्न होंगे. नटखट कन्हैया पुष्प वृंत पोशाक धारण करके भक्तों को टीवी के माध्यम से दर्शन देंगे. रजत कमल पुष्प में विराजमान होकर ठाकुर जी का प्रकट उत्सव महाभिषेक किया जाएगा.

यह है पूजा कार्यक्रम का विवरण

  • 12 अगस्त बुधवार की रात्रि श्रीकृष्ण जन्मस्थान के भागवत भवन में होंगे कार्यक्रम.
  • रात्रि 11 से 11:55 तक श्री गणेश नवग्रह पूजन किया जाएगा.
  • 11:55 से 11:59 तक प्रकट उत्सव दर्शन पट बंद किए जाएंगे.
  • भागवत भवन में 12 बजे नटखट कन्हैया भगवान श्रीकृष्ण का प्रकट उत्सव.
  • मध्य रात्रि 12 से 12:05 पर प्रकट आरती.
  • रात्रि 12:10 से 12:20 तक जन्मोत्सव महाभिषेक.
  • 12:20 से 12:30 तक जन्म महाभिषेक रजत कमल पुष्प में विराजमान होंगे प्रभु.
  • 12:40 से 12:50 तक भागवत भवन में श्रृंगार आरती.
  • रात्रि 1 बजे भागवत पाठ में शयन आरती.
    कोविड-19 के चलते श्रद्धालु इस बार जन्माष्टमी का पर्व का आनंद ऑनलाइन ले सकेंगे. मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं के प्रवेश वर्जित किए गए हैं.

शुभ मुहूर्त
इस साल जन्माष्टमी 11, 12 और 13 अगस्त को मनाया जा रहा है. अष्टमी की तिथि आज सुबह 9.6 से शुरू होकर 12 अगस्त को 11.16 को समाप्त होगी. 11 अगस्त को भरणी नक्षत्र और 12 अगस्त को कृतिका नक्षत्र है. इसलिए इस साल दोनों ही दिन जन्माष्टमी मनायी जा रही है. जनमाष्टमी की पूजा रात 12 बजे के बाद ही की जाती है. इस साल जन्माष्टमी की पूजा का शुभ समय आज रात 12.5 से 12.47 तक का है. पूजा की अवधि 43 मिनट है.

11 अगस्त को अद्वैत और स्मार्त संप्रदाय के लोग जन्माष्टमी मनाएंगे. 11 तारीख की सुबह 9.07 बजे से भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि शुरू हो जाएगी. ये तिथि 12 अगस्त की सुबह 11.17 बजे तक रहेगी. 11 अगस्त की रात में अष्टमी तिथि रहेगी. इस वजह से बद्रीनाथ धाम में 11 की रात में जन्माष्टमी मनाई जाएगी, क्योंकि श्रीकृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि की रात में ही हुआ था.

वैष्णव संप्रदाय में उदयकालीन अष्टमी तिथि का महत्व है, इसीलिए ये 12 अगस्त को जन्माष्टमी मनाएंगे. जबकि श्री संप्रदाय और निंबार्क संप्रदाय में रोहिणी नक्षत्र में जन्माष्टमी मनाने की परंपरा है. इस वजह से ये लोग 13 अगस्त को रोहिणी नक्षत्र में जन्माष्टमी मनाएंगे.

पूजा की विधि
जन्माष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है, इसलिए इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के बाल्य रूप की पूजा की जाती है. सबसे पहले भगवान को दूध, दही, शहद और जल से स्नान कराया जाता है. भगवान को पीतांबर रंग पसंद है, इसलिए उन्हें पीतांबर वस्त्र धारण कराया जाता है. इसके बाद भगवान का श्रृंगार कर उन्हें झूले में बैठाया जाता है. जिसके बाद गोपाल पर चंदन-फूल चढ़ाकर पूजा की जाती है.

जन्माष्टमी व्रत का महत्व
शास्त्रों में जन्माष्टमी को व्रतराज कहा गया है. इसे सभी व्रत से सर्वश्रेष्ठ माना गया है. इस दिन व्रत कर नियम से पूजा-पाठ करने पर संतान, मोक्ष और भगवान की प्राप्ति होती है. माना जाता है कि जन्माष्टमी का व्रत करने से सुख-समृद्धि और दीर्घायु का वरदान मिलता है. इस व्रत को करने से अनेकों व्रत के फल मिलते हैं.

श्रीकृष्ण द्वारिका छोड़कर उत्तराखंड आए थे श्री कृष्ण

उत्तराखंड में ऐसे कई ऐतिहासिक मठ-मंदिर हैं, जिनसे कई लोग अनभिज्ञ हैं. जिनका उल्लेख पुराणों में मिलता है. ऐसा ही एक मंदिर टिहरी जिले में स्थित है, जिसे सेममुखेम नाम से जाना जाता है. जो भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है. इस मंदिर की महत्ता ही है, जहां साल भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.

जानिए उत्तराखंड के 5वें धाम के बारे में

कहते है अगर मनुष्य की कुंडली में काल सर्पयोग हो तो वह अकाल मृत्यु को प्राप्त होता है, लेकिन पुराणों में इस काल सर्प दोष से मुक्ति की युक्ति भी है. देवभूमि उत्तराखंड के टिहरी जिले के सेममुखेम नागराजा मंदिर में आने से कुंडली में इस योग का समाधान हो जाता है. यहां भगवान श्रीकृष्ण साक्षात नागराज के रूप में विराजमान हैं.

मान्यता है कि द्वापर युग में कालिंदी नदी में जब बाल स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण गेंद लेने उतरे तो उन्होंने इस कालिया नाग को इस नदी से सेममुखेम जाने को कहा. तब कालिया नाग ने भगवान श्रीकृष्ण से सेममुखेम आकर दर्शन देने की इच्छा जाहिर की. कहते हैं इस वचन को पूरा करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण द्वारिका छोड़कर उत्तराखंड के रमोला गढ़ी में आकर स्थापित हो गए. जो आज सेममुखेम नागराजा मंदिर के नाम से जाना जाता है.

सेममुखेम नागराजा मंदिर को उत्तराखंड का 5वां धाम भी कहा जाता है. मंदिर के पुजारी का कहना है कि यहां पर भगवान श्रीकृष्ण नागराजा के रूप में साक्षात विराजमान हैं. मान्यता है कि द्वारिका में डूबने के बाद भगवान श्रीकृष्‍ण ने उत्तराखंड में नागराजा के रूप में प्रकट हुए थे. उन्हें नागराजा रूप को सेममुखेम में पूजा जाता है. इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण भी डांडानागराजा (पौड़ी) चले गए, लेकिन वहां उन्हें रास नहीं आया. इसके बाद वह पवित्र धाम सेममुखेम पहुंचे.

मान्यता है कि द्वापर युग के समय गंगू रमोला गढ़पति था. जो काफी वृद्ध हो चुका था. उनकी कोई संतान नहीं थी, लेकिन उनकी पत्‍‌नी की भगवान के प्रति काफी आस्था थी. वह रोज पुत्र रत्‍‌न प्राप्ति की मन्नतें भगवान से मांगती थी, लेकिन गंगू रमोला के आगे उनकी कुछ नहीं चलती थी. इसी दौरान भगवान श्रीकृष्ण रूप बदलकर गंगू रमोला के यहां गए. उन्होंने गंगू रमोला से जमीन मांगी पर गंगू ने एक इंच भूमि देने से इंकार कर दिया. इतनी लीला देखकर भगवान श्री कृष्ण वहां से चले गए और गंगू रमोला की पत्नी के सपने में आए और कहा यदि गंगू रमोला थोड़ी जमीन दे देता तो तुम्हें पुत्र की प्राप्ति होगी, लेकिन गंगू रमोला ने ऐसा नहीं किया.

गंगू रमोला की पत्नी ने यह सब अपने पति को बताई. यह बात सुन गंगू ने जमीन देने की बात स्वीकार तो कि, लेकिन बेमन से उसने मंदिर बनाने का काम शुरू किया. उस जमीन में एक के बाद एक मंदिर बनाता गया, लेकिन वह रात होते ही टूट जाते थे. यह देख उसकी पत्नी और गंगू बहुत दुखी होने लगे. एक रात गंगू की पत्नी बहुत दुखी हुई, उसी समय श्रीकृष्ण गंगू की पत्नी के सपने में आए और कहा कि गंगू रमोला मन से मंदिर नहीं बना रहा है. इसलिए तुम्हें पुत्र प्राप्ति नहीं हो सकती.

वहीं, गंगू रमोला की पत्नी ने सुबह होते ही बात यह गंगू को बताया. इसके बाद गंगू रमोला ने मन से मंदिर बनाया. जिसके बाद भगवान श्रीकृष्ण सेम के नाम से प्रकट हुए और उन्हें पुत्र होने का आशीर्वाद दिया. जिसके बाद गंगू रमोला ने सिदवा और विद्धवा दो पुत्रों को जन्म दिया. बाद में एक भाई रमोल गढ़ का गढ़पति बना और दूसरा कुमाऊं चला गया. इस दौर की शिलाएं आज भी यहां पर गाय के खुर के रूप में मौजूद है.

हैदराबाद : हर बार की तरह इस बार भी भगवान श्री कृष्ण के जन्म उत्सव के मुहूर्त को लेकर संशय की स्थिति बन रही है. अलग-अलग पंचांग और अलग-अलग विद्वान अलग-अलग मुहूर्त बता रहे हैं. इस बारे में मध्य प्रदेश के ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद गौतम ने बताया है कि स्मार्त संप्रदाय और वैष्णव संप्रदाय अलग-अलग मुहूर्त में कृष्ण जन्माष्टमी मनाते हैं. उनकी अपनी परंपराएं भिन्न हैं. जिसके चलते यह स्थिति बनती है. दूसरी तरफ विष्णु के अवतारों में श्रीकृष्ण ऐसे अवतार थे, जो सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन उनका प्रगट होना माना जाता है. भगवान श्रीकृष्ण की जन्म कुंडली क्या कहती है, इस पर भी ज्योतिषाचार्य ने प्रकाश डाला है. आइए जानते हैं कि जन्माष्टमी के मुहूर्त और भगवान कृष्ण की जन्म कुंडली के बारे में....

ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद गौतम के मुताबिक स्मार्त मतानुसार जन्माष्टमी सप्तमी युक्त अष्टमी एवं रोहिणी नक्षत्र का योग के हिसाब मानते हैं. जबकि वैष्णव नवमीं युक्त अष्टमी एवं रोहिणी नक्षत्र के योग को मानते हैं. इसका कारण है कि स्मार्त संप्रदाय के सभी लोग मथुरा वृंदावनवासी साधु संप्रदाय के होते हैं. जिन्हें भगवान कृष्ण के जन्म का पूर्वाभास हो गया था. लिहाजा वहां पर उसी समय हर्षोल्लास मनाया गया था.

Shrubs on Sri Krishna Janmashtami
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर सजी झाकियां

वैष्णव संप्रदाय में विष्णु उपासक इस व्रत को दूसरे दिन प्रातः काल से करते हैं. ज्योतिष संस्थान भोपाल के ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद गौतम के अनुसार इस वर्ष जन्माष्टमी स्मार्तजनों के लिए 11 अगस्त मंगलवार एवं वैष्णव जनों हेतु 12 अगस्त बुधवार को है. वैष्णवजन हेतु 12 अगस्त को सूर्योदय कालीन अष्टमी तिथि एवं अर्ध रात्रि कालीन रोहिणी नक्षत्र का संयोग बन रहा है, यह शुभ और फलदायक है. इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग रात्रि अंत तक रहेगा.

इस दिन प्रात से ही चंद्रमा वृष राशि में प्रवेश कर जाएगा.ज्योतिष मठ संस्थान के अनुसंधान के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का जन्म प्रगट भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र एवं वृष लग्न और वृष राशि के चंद्रमा में अर्धरात्रि के समय हुआ था. तदनुसार इस वर्ष 12 अगस्त की रात्रि में कृष्ण जन्म के सभी योग भाद्रपद,कृष्ण पक्ष, अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र, वृष राशि, वृष लग्न दिन बुधवार की उपस्थिति द्वापर युग में कृष्ण जन्म के योग पैदा कर रही है.

जानिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का महत्व
क्या कहती है श्री कृष्ण की जन्मकुंडलीज्योतिषाचार्य पंडित विनोद गौतम के मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण, राम के समान ही अवतारी पुरुष थे. पूर्ण पुरुष श्रीकृष्ण भगवान परम योगेश्वर थे. शास्त्र, वेद-पुराणों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का प्रकट ईसा से 5000 वर्ष पूर्व भाद्रपद कृष्ण अष्टमी रात्रि के समय रोहिणी नक्षत्र वृष लग्न में हुआ था. वर्तमान में ईस्वी सन् 2020 चल रहा है. अतः पुराणों के अनुसार इस वर्ष भगवान का 7020 वां प्रकट उत्सव है. जन्म कुंडली में पंच महायोग विद्यमान हैं. उनकी जन्म कुंडली वृष लग्न की है.

रोहिणी नक्षत्र में जन्म,चंद्रमा वृष राशि पर है. उनकी जन्म कुंडली के पंचम भाव में स्थित के बुध ने जहां उन्हें वेणुवादक बनाया है. वहीं स्वग्रही गुरू ने नवम भाव में स्थित उच्च के मंगल एवं शत्रु मित्र छठ में भाव में स्थित उच्च के शनि ने परम पराक्रमी बनाया है. चतुर्थ स्थान में स्थित रही सूर्य ने उनके माता-पिता से विरक्त रखा है.इसके अतिरिक्त सप्तमेश मंगल लग्न में स्थित उच्च के चंद्र तथा स्वग्रही शुक्र ने श्री कृष्ण को रसिक शिरोमणि, कला प्रिय तथा सौंदर्य उपासक बनाया है. यही नहीं आय के भाव में स्थित उच्च के बुध और चतुर्थ भाव में स्थित सूर्य ने उन्हें महान पुरुष,शत्रु हंता, तत्व ज्ञानी, जन नायक तथा अमर बनाया है.

मथुरा में 12 अगस्त की मध्य रात्रि में होगा जश्न
उत्तर प्रदेश के मथुरा में जन्माष्टमी का पर्व 12 अगस्त की मध्य रात्रि 12 बजे धूमधाम के साथ मनाया जाएगा. पूर्व के सालों की भांति सभी मंदिरों में विशेष सजावट की जाएगी. चारों तरफ लाइटों से श्री कृष्ण जन्मभूमि का परिसर जगमगा उठेगा. हालांकि महामारी कोविड-19 के चलते इस बार श्रद्धालुओं का प्रवेश मंदिर परिसर में वर्जित है. मंदिर परिसर में विधि-विधान के अनुसार, सभी कार्यक्रम भव्य और दिव्यता के साथ मनाए जाएंगे. भक्त अपने नटखट कन्हैया का जन्मोत्सव मनाने के लिए आतुर हैं. भगवान श्री कृष्ण का 5248वां जन्मोत्सव बड़े हर्षोल्लास के साथ मंदिरों में मनाया जाएगा.

मंदिरों में होगी विशेष सजावट
झिलमिल लाइटों से श्री कृष्ण जन्मभूमि परिसर जगमगा उठेगी. जन्म स्थान के गर्भगृह स्थित भागवत भवन में ढोल नगाड़े, झांझ और शंख ध्वनि से उत्सव मनाया जाएगा. 11 अगस्त शाम 6:30 पर ठाकुर जी के लिए विशेष पोशाक समक्ष भेंट की जाएगी. वहीं 12 अगस्त की सुबह 10 बजे भागवत भवन में पुष्पांजलि कार्यक्रम संपन्न होंगे. नटखट कन्हैया पुष्प वृंत पोशाक धारण करके भक्तों को टीवी के माध्यम से दर्शन देंगे. रजत कमल पुष्प में विराजमान होकर ठाकुर जी का प्रकट उत्सव महाभिषेक किया जाएगा.

यह है पूजा कार्यक्रम का विवरण

  • 12 अगस्त बुधवार की रात्रि श्रीकृष्ण जन्मस्थान के भागवत भवन में होंगे कार्यक्रम.
  • रात्रि 11 से 11:55 तक श्री गणेश नवग्रह पूजन किया जाएगा.
  • 11:55 से 11:59 तक प्रकट उत्सव दर्शन पट बंद किए जाएंगे.
  • भागवत भवन में 12 बजे नटखट कन्हैया भगवान श्रीकृष्ण का प्रकट उत्सव.
  • मध्य रात्रि 12 से 12:05 पर प्रकट आरती.
  • रात्रि 12:10 से 12:20 तक जन्मोत्सव महाभिषेक.
  • 12:20 से 12:30 तक जन्म महाभिषेक रजत कमल पुष्प में विराजमान होंगे प्रभु.
  • 12:40 से 12:50 तक भागवत भवन में श्रृंगार आरती.
  • रात्रि 1 बजे भागवत पाठ में शयन आरती.
    कोविड-19 के चलते श्रद्धालु इस बार जन्माष्टमी का पर्व का आनंद ऑनलाइन ले सकेंगे. मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं के प्रवेश वर्जित किए गए हैं.

शुभ मुहूर्त
इस साल जन्माष्टमी 11, 12 और 13 अगस्त को मनाया जा रहा है. अष्टमी की तिथि आज सुबह 9.6 से शुरू होकर 12 अगस्त को 11.16 को समाप्त होगी. 11 अगस्त को भरणी नक्षत्र और 12 अगस्त को कृतिका नक्षत्र है. इसलिए इस साल दोनों ही दिन जन्माष्टमी मनायी जा रही है. जनमाष्टमी की पूजा रात 12 बजे के बाद ही की जाती है. इस साल जन्माष्टमी की पूजा का शुभ समय आज रात 12.5 से 12.47 तक का है. पूजा की अवधि 43 मिनट है.

11 अगस्त को अद्वैत और स्मार्त संप्रदाय के लोग जन्माष्टमी मनाएंगे. 11 तारीख की सुबह 9.07 बजे से भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि शुरू हो जाएगी. ये तिथि 12 अगस्त की सुबह 11.17 बजे तक रहेगी. 11 अगस्त की रात में अष्टमी तिथि रहेगी. इस वजह से बद्रीनाथ धाम में 11 की रात में जन्माष्टमी मनाई जाएगी, क्योंकि श्रीकृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि की रात में ही हुआ था.

वैष्णव संप्रदाय में उदयकालीन अष्टमी तिथि का महत्व है, इसीलिए ये 12 अगस्त को जन्माष्टमी मनाएंगे. जबकि श्री संप्रदाय और निंबार्क संप्रदाय में रोहिणी नक्षत्र में जन्माष्टमी मनाने की परंपरा है. इस वजह से ये लोग 13 अगस्त को रोहिणी नक्षत्र में जन्माष्टमी मनाएंगे.

पूजा की विधि
जन्माष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है, इसलिए इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के बाल्य रूप की पूजा की जाती है. सबसे पहले भगवान को दूध, दही, शहद और जल से स्नान कराया जाता है. भगवान को पीतांबर रंग पसंद है, इसलिए उन्हें पीतांबर वस्त्र धारण कराया जाता है. इसके बाद भगवान का श्रृंगार कर उन्हें झूले में बैठाया जाता है. जिसके बाद गोपाल पर चंदन-फूल चढ़ाकर पूजा की जाती है.

जन्माष्टमी व्रत का महत्व
शास्त्रों में जन्माष्टमी को व्रतराज कहा गया है. इसे सभी व्रत से सर्वश्रेष्ठ माना गया है. इस दिन व्रत कर नियम से पूजा-पाठ करने पर संतान, मोक्ष और भगवान की प्राप्ति होती है. माना जाता है कि जन्माष्टमी का व्रत करने से सुख-समृद्धि और दीर्घायु का वरदान मिलता है. इस व्रत को करने से अनेकों व्रत के फल मिलते हैं.

श्रीकृष्ण द्वारिका छोड़कर उत्तराखंड आए थे श्री कृष्ण

उत्तराखंड में ऐसे कई ऐतिहासिक मठ-मंदिर हैं, जिनसे कई लोग अनभिज्ञ हैं. जिनका उल्लेख पुराणों में मिलता है. ऐसा ही एक मंदिर टिहरी जिले में स्थित है, जिसे सेममुखेम नाम से जाना जाता है. जो भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है. इस मंदिर की महत्ता ही है, जहां साल भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.

जानिए उत्तराखंड के 5वें धाम के बारे में

कहते है अगर मनुष्य की कुंडली में काल सर्पयोग हो तो वह अकाल मृत्यु को प्राप्त होता है, लेकिन पुराणों में इस काल सर्प दोष से मुक्ति की युक्ति भी है. देवभूमि उत्तराखंड के टिहरी जिले के सेममुखेम नागराजा मंदिर में आने से कुंडली में इस योग का समाधान हो जाता है. यहां भगवान श्रीकृष्ण साक्षात नागराज के रूप में विराजमान हैं.

मान्यता है कि द्वापर युग में कालिंदी नदी में जब बाल स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण गेंद लेने उतरे तो उन्होंने इस कालिया नाग को इस नदी से सेममुखेम जाने को कहा. तब कालिया नाग ने भगवान श्रीकृष्ण से सेममुखेम आकर दर्शन देने की इच्छा जाहिर की. कहते हैं इस वचन को पूरा करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण द्वारिका छोड़कर उत्तराखंड के रमोला गढ़ी में आकर स्थापित हो गए. जो आज सेममुखेम नागराजा मंदिर के नाम से जाना जाता है.

सेममुखेम नागराजा मंदिर को उत्तराखंड का 5वां धाम भी कहा जाता है. मंदिर के पुजारी का कहना है कि यहां पर भगवान श्रीकृष्ण नागराजा के रूप में साक्षात विराजमान हैं. मान्यता है कि द्वारिका में डूबने के बाद भगवान श्रीकृष्‍ण ने उत्तराखंड में नागराजा के रूप में प्रकट हुए थे. उन्हें नागराजा रूप को सेममुखेम में पूजा जाता है. इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण भी डांडानागराजा (पौड़ी) चले गए, लेकिन वहां उन्हें रास नहीं आया. इसके बाद वह पवित्र धाम सेममुखेम पहुंचे.

मान्यता है कि द्वापर युग के समय गंगू रमोला गढ़पति था. जो काफी वृद्ध हो चुका था. उनकी कोई संतान नहीं थी, लेकिन उनकी पत्‍‌नी की भगवान के प्रति काफी आस्था थी. वह रोज पुत्र रत्‍‌न प्राप्ति की मन्नतें भगवान से मांगती थी, लेकिन गंगू रमोला के आगे उनकी कुछ नहीं चलती थी. इसी दौरान भगवान श्रीकृष्ण रूप बदलकर गंगू रमोला के यहां गए. उन्होंने गंगू रमोला से जमीन मांगी पर गंगू ने एक इंच भूमि देने से इंकार कर दिया. इतनी लीला देखकर भगवान श्री कृष्ण वहां से चले गए और गंगू रमोला की पत्नी के सपने में आए और कहा यदि गंगू रमोला थोड़ी जमीन दे देता तो तुम्हें पुत्र की प्राप्ति होगी, लेकिन गंगू रमोला ने ऐसा नहीं किया.

गंगू रमोला की पत्नी ने यह सब अपने पति को बताई. यह बात सुन गंगू ने जमीन देने की बात स्वीकार तो कि, लेकिन बेमन से उसने मंदिर बनाने का काम शुरू किया. उस जमीन में एक के बाद एक मंदिर बनाता गया, लेकिन वह रात होते ही टूट जाते थे. यह देख उसकी पत्नी और गंगू बहुत दुखी होने लगे. एक रात गंगू की पत्नी बहुत दुखी हुई, उसी समय श्रीकृष्ण गंगू की पत्नी के सपने में आए और कहा कि गंगू रमोला मन से मंदिर नहीं बना रहा है. इसलिए तुम्हें पुत्र प्राप्ति नहीं हो सकती.

वहीं, गंगू रमोला की पत्नी ने सुबह होते ही बात यह गंगू को बताया. इसके बाद गंगू रमोला ने मन से मंदिर बनाया. जिसके बाद भगवान श्रीकृष्ण सेम के नाम से प्रकट हुए और उन्हें पुत्र होने का आशीर्वाद दिया. जिसके बाद गंगू रमोला ने सिदवा और विद्धवा दो पुत्रों को जन्म दिया. बाद में एक भाई रमोल गढ़ का गढ़पति बना और दूसरा कुमाऊं चला गया. इस दौर की शिलाएं आज भी यहां पर गाय के खुर के रूप में मौजूद है.

Last Updated : Aug 11, 2020, 1:17 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.