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World Rabies Day 2023 : जानलेवा हो सकता है जुनोटिक रोग रेबीज, जागरूकता है जरूरी

जुनोटिक रोग रेबीज के बारे में वैश्विक स्तर पर लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से वैश्विक स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रम के रूप में हर साल 28 सितंबर को “विश्व रेबीज दिवस” मनाया जाता है. World rabies day 28 September 2023 . वैज्ञानिक लुई पाश्चर के सम्मान में विश्व रेबीज दिवस मनाया जाता है

World Rabies Day 2023
विश्व रेबीज दिवस
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 28, 2023, 11:31 AM IST

Updated : Sep 28, 2023, 1:29 PM IST

विश्व रेबीज दिवस : रेबीज एक जुनोटिक रोग है जिसके लिए आमतौर पर लोग सिर्फ कुत्तों के काटने को कारण मानते हैं. लेकिन ज्यादातर लोग यह नहीं जानते हैं कि रेबीज के लिए कई बार कुछ अन्य जानवरों द्वारा काटना भी कारण बन सकता है. रेबीज से जुड़े तथ्यों के बारें में आम जन को जागरूक करने तथा इस रोग के कारणों तथा निदान को लेकर लोगों में जानकारी फैलाने के उद्देश्य से हर साल 28 सितंबर को World Rabies Day मनाया जाता है. इस वर्ष यह विशेष आयोजन ‘एक के लिए सभी, सभी के लिए एक स्वास्थ्य( One for all , All for one ) थीम पर मनाया जा रहा है.

जरूरी नहीं है कि यह सिर्फ कुत्तों के काटने से होती है. यह बिल्ली,बंदर ,फेरेट्स ,बकरी, चमगादड़, बीवर, लोमड़ी, तथा रैकून सहित कुछ अन्य जानवरों के काटने से भी हो सकता है. हालांकि इसके अधिकांश मामलों में संक्रमित कुत्तों द्वारा काटा जाना ही कारण होता है. रेबीज वायरस संक्रमित जानवर की लार में पाया जाता है. जब संक्रमित जानवर किसी को काटता है या उसकी लार उसके द्वारा लगने वाली खरोंच या किसी अन्य माध्यम से व्यक्ति की त्वचा में प्रवेश करती है तो वायरस व्यक्ति को अपने प्रभाव में ले लेता है.

क्या है रेबीज और उससे जुड़े आँकड़े
विभिन्न स्वास्थ्य संबंधी वेब साइट्स पर मौजूद सूचनाओं की माने तो हर साल अनुमानित तौर पर वैश्विक स्तर पर लगभग 55,000 से 60,000 मानव मृत्यु रेबीज के कारण होती है. रेबीज के कारण मृत्यु के आंकड़ों की माने तो भारत में हर साल लगभग 20,000 लोग इस कारण से जान गवां देते हैं. वहीं अन्य दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में यह आंकड़ा 65%तक का है. रेबीज दरअसल एक जूनोटिक बीमारी है जो रेबीज नामक विषाणु से संक्रमित जानवरों के काटने से मनुष्यों को होती है.

यह एक जानलेवा वायरस है. माना जाता है कि यदि एक बार इस वायरस का प्रभाव मस्तिष्क तक पहुंच जाता है तो इसका इलाज संभव नहीं है तथा इस अवस्था में पीड़ित का बचना भी संभव नहीं होता है. चिकित्सकों के अनुसार यदि संक्रमित जानवर के काटने के 8 से 10 दिन में एंटी रेबीज वैक्सीन सहित जरूरी इलाज ना कराया जाय तो इसका प्रभाव मस्तिष्क तक पहुंच जाता है और काटने वाले जानवर तथा पीड़ित दोनों की मृत्यु हो सकती है. इसलिए इसे गंभीर तथा जानलेवा रोगों की श्रेणी में रखा जाता है.

रेबीज के खतरे को कम किया जा सके इसीलिए पशु पालकों को हमेशा पालतू कुत्तों या अन्य जानवरों को रेबीज का टीका लगवाने की सलाह दी जाती है, क्योंकि यह रेबीज के खतरे की आशंका को काफी कम कर देता है. इस वायरस के प्रभाव में आने के बाद पीड़ित में लक्षण नजर आने में समय लगता है. वहीं जब लक्षण नजर आने शुरू भी होते हैं तो बिल्कुल शुरुआती चरण में वे ज्यादातर फ्लू जैसे होते हैं . लेकिन जब वायरस का प्रभाव गंभीर होने लगता है तो पीड़ित में न्यूरोलॉजिकल लक्षण नजर आने लगते हैं जिनमें कई बार पीड़ित का व्यवहार उग्र भी हो सकता है.

उद्देश्य, महत्व तथा इतिहास
विश्व रेबीज दिवस को मनाए जाने के पीछे सिर्फ इस रोग को लेकर जागरूकता फैलाना ही एक मात्र उद्देश्य नहीं है. दरअसल रेबीज के होने के कारणों, उसके निदान विशेषकर टीकाकरण को लेकर तथा कई बार प्राथमिक चिकित्सा को लेकर भी लोगों में काफी भ्रम रहता है. कई लोग इसका सही समय पर इलाज करवाने की बजाय इससे राहत पाने के लिए टोने-टोटकों को भी अपनाने लगते हैं. जिससे सही समय पर इलाज ना मिलने के चलते पीड़ित की जान जाने का खतरा और भी ज्यादा बढ़ जाता है और ऐसा सिर्फ हमारे देश में ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों में होता है.

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खतरनाक होने के कारण इस रोग से जुड़े भ्रमों को दूर करना, इससे जुड़े मुद्दों पर लोगों का ध्यान आकर्षित करना तथा इसके सही इलाज तथा उससे जुड़ी सावधानियों के बारें में लोगों को जागरूक करना भी विश्व रेबीज दिवस के आयोजन के मुख्य उद्देश्यों में से एक है. इस अवसर पर कई क्लीनिक और संस्थान टीकाकरण शिविर भी आयोजित करते हैं. विश्व रेबीज दिवस फ्रांसीसी जीवविज्ञानी और रसायन शास्त्री लुई पाश्चर की पुण्यतिथि के अवसर पर मनाया जाता है, जिन्होंने पहली बार रेबीज का वैक्सीन विकसित की थी. यह दिवस सबसे पहले वर्ष 2007 में 28 सितंबर को विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन अमेरिका और एलायंस फॉर रेबीज कंट्रोल द्वारा मनाया गया था. World Rabies Day .

विश्व रेबीज दिवस : रेबीज एक जुनोटिक रोग है जिसके लिए आमतौर पर लोग सिर्फ कुत्तों के काटने को कारण मानते हैं. लेकिन ज्यादातर लोग यह नहीं जानते हैं कि रेबीज के लिए कई बार कुछ अन्य जानवरों द्वारा काटना भी कारण बन सकता है. रेबीज से जुड़े तथ्यों के बारें में आम जन को जागरूक करने तथा इस रोग के कारणों तथा निदान को लेकर लोगों में जानकारी फैलाने के उद्देश्य से हर साल 28 सितंबर को World Rabies Day मनाया जाता है. इस वर्ष यह विशेष आयोजन ‘एक के लिए सभी, सभी के लिए एक स्वास्थ्य( One for all , All for one ) थीम पर मनाया जा रहा है.

जरूरी नहीं है कि यह सिर्फ कुत्तों के काटने से होती है. यह बिल्ली,बंदर ,फेरेट्स ,बकरी, चमगादड़, बीवर, लोमड़ी, तथा रैकून सहित कुछ अन्य जानवरों के काटने से भी हो सकता है. हालांकि इसके अधिकांश मामलों में संक्रमित कुत्तों द्वारा काटा जाना ही कारण होता है. रेबीज वायरस संक्रमित जानवर की लार में पाया जाता है. जब संक्रमित जानवर किसी को काटता है या उसकी लार उसके द्वारा लगने वाली खरोंच या किसी अन्य माध्यम से व्यक्ति की त्वचा में प्रवेश करती है तो वायरस व्यक्ति को अपने प्रभाव में ले लेता है.

क्या है रेबीज और उससे जुड़े आँकड़े
विभिन्न स्वास्थ्य संबंधी वेब साइट्स पर मौजूद सूचनाओं की माने तो हर साल अनुमानित तौर पर वैश्विक स्तर पर लगभग 55,000 से 60,000 मानव मृत्यु रेबीज के कारण होती है. रेबीज के कारण मृत्यु के आंकड़ों की माने तो भारत में हर साल लगभग 20,000 लोग इस कारण से जान गवां देते हैं. वहीं अन्य दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में यह आंकड़ा 65%तक का है. रेबीज दरअसल एक जूनोटिक बीमारी है जो रेबीज नामक विषाणु से संक्रमित जानवरों के काटने से मनुष्यों को होती है.

यह एक जानलेवा वायरस है. माना जाता है कि यदि एक बार इस वायरस का प्रभाव मस्तिष्क तक पहुंच जाता है तो इसका इलाज संभव नहीं है तथा इस अवस्था में पीड़ित का बचना भी संभव नहीं होता है. चिकित्सकों के अनुसार यदि संक्रमित जानवर के काटने के 8 से 10 दिन में एंटी रेबीज वैक्सीन सहित जरूरी इलाज ना कराया जाय तो इसका प्रभाव मस्तिष्क तक पहुंच जाता है और काटने वाले जानवर तथा पीड़ित दोनों की मृत्यु हो सकती है. इसलिए इसे गंभीर तथा जानलेवा रोगों की श्रेणी में रखा जाता है.

रेबीज के खतरे को कम किया जा सके इसीलिए पशु पालकों को हमेशा पालतू कुत्तों या अन्य जानवरों को रेबीज का टीका लगवाने की सलाह दी जाती है, क्योंकि यह रेबीज के खतरे की आशंका को काफी कम कर देता है. इस वायरस के प्रभाव में आने के बाद पीड़ित में लक्षण नजर आने में समय लगता है. वहीं जब लक्षण नजर आने शुरू भी होते हैं तो बिल्कुल शुरुआती चरण में वे ज्यादातर फ्लू जैसे होते हैं . लेकिन जब वायरस का प्रभाव गंभीर होने लगता है तो पीड़ित में न्यूरोलॉजिकल लक्षण नजर आने लगते हैं जिनमें कई बार पीड़ित का व्यवहार उग्र भी हो सकता है.

उद्देश्य, महत्व तथा इतिहास
विश्व रेबीज दिवस को मनाए जाने के पीछे सिर्फ इस रोग को लेकर जागरूकता फैलाना ही एक मात्र उद्देश्य नहीं है. दरअसल रेबीज के होने के कारणों, उसके निदान विशेषकर टीकाकरण को लेकर तथा कई बार प्राथमिक चिकित्सा को लेकर भी लोगों में काफी भ्रम रहता है. कई लोग इसका सही समय पर इलाज करवाने की बजाय इससे राहत पाने के लिए टोने-टोटकों को भी अपनाने लगते हैं. जिससे सही समय पर इलाज ना मिलने के चलते पीड़ित की जान जाने का खतरा और भी ज्यादा बढ़ जाता है और ऐसा सिर्फ हमारे देश में ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों में होता है.

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खतरनाक होने के कारण इस रोग से जुड़े भ्रमों को दूर करना, इससे जुड़े मुद्दों पर लोगों का ध्यान आकर्षित करना तथा इसके सही इलाज तथा उससे जुड़ी सावधानियों के बारें में लोगों को जागरूक करना भी विश्व रेबीज दिवस के आयोजन के मुख्य उद्देश्यों में से एक है. इस अवसर पर कई क्लीनिक और संस्थान टीकाकरण शिविर भी आयोजित करते हैं. विश्व रेबीज दिवस फ्रांसीसी जीवविज्ञानी और रसायन शास्त्री लुई पाश्चर की पुण्यतिथि के अवसर पर मनाया जाता है, जिन्होंने पहली बार रेबीज का वैक्सीन विकसित की थी. यह दिवस सबसे पहले वर्ष 2007 में 28 सितंबर को विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन अमेरिका और एलायंस फॉर रेबीज कंट्रोल द्वारा मनाया गया था. World Rabies Day .

Last Updated : Sep 28, 2023, 1:29 PM IST
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