डाउन सिंड्रोम को एक ऐसा आनुवंशिक विकार माना जाता है जिससे पीड़ित लोगों को दिव्यांग श्रेणी में रखा जाता है. लोगों में आम धारणा है कि इस विकार से पीड़ित लोग सामान्य जीवन नहीं जी सकते हैं. लेकिन यदि समय से इस विकार से पीड़ित लोगों की चिकित्सीय तथा व्यावहारिक तौर पर मदद की जाय तथा उन्हे जरूरी प्रशिक्षण दिया जाय तो कुछ मामलों में वे भी आत्मनिर्भर हो सकते हैं तथा काफी हद तक आम जीवन जी सकते हैं. दुनिया भर में डाउन सिंड्रोम को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल 21 मार्च को विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस मनाया जाता है. World down syndrome day 2023 . With Us Not For Us . World Down Syndrome Day 2023 Theme .
विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस 2023 थीम व महत्व
इस वर्ष यह दिवस # with us not for us थीम पर मनाया जा रहा है. दरअसल, क्योंकि डाउन सिंड्रोम से पीड़ित लोगों को दिव्यांग श्रेणी में रखा जाता है इसलिए उन्हे लेकर लोगों का नजरिया भी काफी दयनीय होता है. आमतौर पर लोगों को लगता है इस विकार से पीड़ित लोग ना सिर्फ आर्थिक रूप से बल्कि अपनी आम दिनचर्या जीने के लिए भी आजीवन दूसरों पर निर्भर रहते हैं. लेकिन यदि शुरुआत से इस विकार से पीड़ित लोगों को जरूरी चिकित्सा मुहैया करवाई जाय तथा थेरेपी तथा प्रशिक्षण के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया जाय, तो उनकी दूसरों पर निर्भरता को काफी हद तक कम किया जा सकता है.इसी संदेश को जन-जन तक पहुंचाने के लिए इस बार इस आयोजन के लिए #WithUsNotForUs थीम का चयन किया गया है. जिससे लोगों को इस विकार से पीड़ित लोगों के लिए नहीं बल्कि उन्हे साथ लेकर चलने के लिए प्रेरित किया जा सके.
विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस वैश्विक स्तर पर लोगों में इस विकार को लेकर जागरूकता बढ़ाने के साथ ही लोगों में समावेशिता को बढ़ावा देने तथा डाउन सिंड्रोम से पीड़ित लोगों के हर संभव तरह से विकास के लिए प्रयास करने का मौका देता है. इसके अवसर पर इस मनोविकार, उसके लक्षणों, उसके प्रभावों तथा पीड़ित के जीवन पर उसके असर को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए कई प्रकार के जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं. इस दिवस पर दुनिया भर में रैली, दौड़, सेमीनार, गोष्ठियां तथा अन्य कई प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं.
इतिहास
सबसे पहली बार विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस वर्ष 2006 में मनाया गया था. जिसके उपरांत ब्राजीलियाई फेडरेशन ऑफ एसोसिएशन ऑफ डाउन सिंड्रोम ने Down syndrome international और उसके सदस्य देशों के साथ मिलकर इस विकार को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से एक व्यापक अभियान शुरू किया था.बाद में नवंबर 2011 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा की सिफ़ारिश पर हर साल विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस मनाने का प्रस्ताव पारित किया गया, जिसके बाद 21 मार्च 2012 से प्रतिवर्ष विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस मनाने की शुरुआत हुई.
दरअसल इस दिवस के लिए 21 तारीख का चयन विशेष कारण से किया गया था. गौरतलब है कि यह विकार 21वें गुणसूत्र के कारण होता है , ऐसे में इस क्रोमोसोम या गुणसूत्र की विशिष्टता को दर्शाने के लिए इस दिवस को मनाने के लिए 21 तारीख का चयन किया गया. गौरतलब है कि इस विकार की पहचान सबसे पहले 1866 में हुई थी. जिसके बाद इस विकार के बारे में पता लगाने वाले ब्रिटिश चिकित्सक जॉन लैंगडन डाउन के नाम पर ही इस सिंड्रोम को डाउन सिंड्रोम नाम दिया गया.
क्या है डाउन सिंड्रोम
उपलब्ध जानकारी के अनुसार प्रति 1000-1100 में से 1 बच्चा डाउन सिंड्रोम के साथ पैदा होता हैं. डाउन सिंड्रोम एक ऐसा विकार है जिसमें बच्चा मानसिक व शारीरिक विकारों के साथ जन्म लेता है. जिसके कारण ना सिर्फ बच्चे के शारीरिक व मानसिक विकास में देरी व समस्या होती है बल्कि उसके चेहरे व नाक नक्श की बनावट भी थोड़ी भिन्न होती है. गौरतलब है कि डाउन सिंड्रोम में बच्चा अपने 21वें गुणसूत्र की एक्स्ट्रा कॉपी के साथ पैदा होता है. इसलिए इसे ट्राइसॉमी-2 भी कहा जाता है. यह एक आनुवंशिक विकार कहलाता है.
स्वास्थ्य समस्याओं का उच्च जोखिम
इस विकार से पीड़त लोगों में आमतौर पर हल्की से गंभीर संज्ञानात्मक कमी , मांसपेशियों में कमजोरी व समस्या, नाक व आंखों की बनावट भिन्न होना, जोडों में समस्या, मुंह से लार निकलना तथा जीभ का ज्यादा समय बाहर रहना जैसी विकृतियां देखने में आती हैं. हालांकि डाउन सिंड्रोम हर व्यक्ति को अलग अलग तरह से प्रभावित कर सकता है लेकिन इस विकार से पीड़ित लोगों में आमतौर पर स्वास्थ्य समस्याओं का उच्च जोखिम रहता है. डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों में विभिन्न स्वास्थ्य संबंधी दोष जैसे जन्मजात हृदय रोग, सुनने में समस्या तथा दृष्टि व आंखों संबंधी परेशानियां भी देखने में आती हैं. वहीं उनमें वयस्क होने पर स्लीप एपनिया, थायरॉयड रोग और अल्जाइमर रोग के होने की आशंका भी ज्यादा रहती है.
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